19 November 2022

WISDOM -----

 सत्संग  कुछ  पल  का  ही  क्यों  न  हो , जीवन  पर  गहरा  प्रभाव  डालता  है  l  यदि  उपदेश  देने  वाले  व्यक्ति  के   उपदेश  और   उसके   आचरण  में  एकरूपता  हो   तो  वे  उपदेश  बहुत  गहरा  प्रभाव  डालते  हैं  l   एक  कथा  है -----  आचार्य  धर्मघोष अपने  शिष्यों  सहित  प्रव्रज्या  पर  थे  , वे  एक  गाँव  पहुंचे    और  वर्षा  शुरू  हो  गई  l  निर्धारित  नीति  के  अनुसार  वर्षा  के  चार  माह  संन्यासी  को  यात्रा  करना  वर्जित  है   इसलिए  उन्होंने  नगरनायक  क्षुद्रमति   से  कहा   कि  अब  हम  चार  माह  इसी  गाँव  में  विश्राम  करेंगे  , आपको  कोई  कष्ट  तो  नहीं  होगा  l  क्षुद्रमति  ने  कहा  --आप  जैसे  त्यागी ,   तपस्वी  से  हमें  क्या  कष्ट  होगा   किन्तु  एक  बात  आपको  बताना  जरुरी  है   कि  इस  गाँव  के  सभी  लोग  दस्यु कर्म  करते  हैं  , दूसरों  को  लूटकर  अपना  जीवन  चलाना  ही  हमारा  धर्म  है  l  आपके  उपदेश  से  कहीं  हमारे  बंधू -बांधवों  की  मति  न  पलट  जाये   इसलिए  आप  वचन  दें  कि  चार  माह  कोई  उपदेश  नहीं  देंगे  ल  आचार्य  सोच  में  पड़  गए  कि  चार  माह  इनके  नीच  साधनों  की  कमाई  पर  जीवित  रहना  होगा  ,  लेकिन  धार्मिक  मर्यादा  का  पालन  जरुरी  है  इसलिए  इसे  आपद्धर्म    मानकर  शर्त  स्वीकार  कर  ली  l  चार  माह  बीत  गए  , उन्होंने  कोई  उपदेश  नहीं  दिया  l  आचार्य  की  आँखों  में  आंसू  थे  कि   दस्यु  कर्म  में  भी  परिश्रम  और  जीवन  के  संकट  में  डालकर  हुई  कमाई  से  अपने  जीवन  की  रक्षा  की   तो  उनका  कुछ  उपकार  तो  करना  ही  चाहिए  l  क्षुद्रमति  उन्हें  गाँव  की  सीमा  तक  छोड़ने  आया   तब  आचार्य  ने  कहा --- तुमने  हमारी  बहुत  सेवा  की  हम  प्रसन्न  हैं  ,  हमने  तुम्हारे  अन्न  पर  चार  माह  बिताए  और  उसका  कुछ  भी  ऋण  चुकाए  बिना  जा  रहे  हैं  l  हमारे  पास  धर्म शिक्षा  के  अतिरिक्त  और  कुछ  भी  नहीं  है  l  अब  तो  गाँव  की  सीमा  से  बाहर  आ  गए   तुम  कहो  तो  एक  उपदेश  दे  दें  l   क्षुद्रमति  ने  कहा  ठीक  है   आप  एक  उपदेश  दें  , हम  उसका  जीवन  भर  पालन  करेंगे   l  आचार्य  धर्मघोष  बोले ---- " आज  से  तुम  लोग  व्रत  लो  कि  सूर्यास्त  के  बाद   कभी  कुछ  खाना  मत  रात्रि  के  समय  भोजन  को  हिंसा  कहा  गया  है  ,  इससे  हानि  होती  है  , रात्रि  में  भोजन  करना  वर्जित  है  l   अब  उस  गाँव  के  सभी  निवासियों  ने  सूर्यास्त  से  पूर्व  ही  भोजन  करने  का  नियम  बना  लिया  l  एक  दिन  उन्होंने  निकट  के  राज्य  के  एक  गाँव  में    डकैती  डालने  की  योजना  बनाई  l   गाँव  में  डकैती  डालकर   बहुत  सा  धन  लेकर  वे  रात  में   लौट  रहे  थे  l  कुछ  दूर  बाहर  आकर  उन्होंने  विश्राम  और  भोजन  करने  का  विचार  किया  l  दो  दस्यु  भोजन  लेने  चले  गए  l  उनके  मन  में  धन  का  लालच  आ  गया   और  उन्होंने  मदिरा  में  विष  मिला  दिया   और  भोजन  सामग्री  लेकर   आ  गए  l    दूसरे  दस्यु  आचार्य  को  दिया  वचन  भूल  गए  और  मदिरा पान  और  भोजन  करने  लगे  l  क्षुद्रमति  ने  आचार्य  को  दिए  वचन  का  पालन  किया   और  भोजन , मदिरा  कुछ  नहीं  लिया  l  अचानक  उसने  देखा  एक -एक  कर  के  दस्यु  मरते  जा  रहे  हैं  l  उसके  सामने  सारी  स्थिति  स्पष्ट  हो  गई  कि  इसमें  विष  है  l   उसे  समझ  में  आया   कि  आचार्य  के  एक  उपदेश  से  ही  उसके  जीवन  की  रक्षा  हो  गई  l  उसकी  चेतना  जाग्रत  हो  गई  कि   जब  धर्म  की  एक  चिनगारी  ही  रक्षा  करती  है  तो  क्यों  न  धर्म  के  मार्ग पर , सत्य  और  अहिंसा  के  मार्ग  पर  चला  जाए   और  इस  जीवन  को  सार्थक  किया  जाए  l  उसने  दस्यु  कर्म  छोड़  दिया   और  गाँव  में  ही  खेती  कर  के  जीवनयापन  करने  लगा   l  उसके  साथ  सारे  ग्रामवासियों  का  जीवन  भी  धन्य  हो  गया  l