28 October 2019

WISDOM -----

  श्रीमद्भगवद्गीता  में  भगवान  कहते  हैं ---- " जैसे  जल  में  चलने  वाली  नाव  को  वायु  हर  लेती  है ,  वैसे  ही  विषयों  में  विचरती  हुई    इंद्रियों  में  से  मन  जिस  इंद्रिय  के  साथ  रहता  है  ,  वह  एक  ही  इंद्रिय  इस  पुरुष  की  बुद्धि    को  हर  लेती  है  l "
  इसका  अर्थ  यह  हुआ  कि  मनुष्य को  बहुत  सावधान  रहना  चाहिए  l  एक  ही  इन्द्रिय  काफी  है  ,  जो  मनुष्य  को  पतन  की  ओर  ले  जा  सकती  है  l    द्वापरयुग  में  एक  असुर  था  --- शंबरासुर  l  उसने   प्रद्दुम्न  ( श्रीकृष्ण  के  बड़े  पुत्र )  का  हरण  कर  लिया   l  शंबरासुर   पाककला  में  निपुण  स्त्रियों  का  ही  अधिकतर  हरण  करता  था  l  उसकी  पाकशाला  सदैव  सजी  रहती  थी  l  उसे  खाने  का  बड़ा  शौक  था  l  वह  चाहता  था  कि  उसकी  पाकशाला  में  बढ़िया  से  बढ़िया  खाना  बने  और  उसे  खिलाया  जाये  l  वह  किसी  स्त्री  की  खूबसूरती  को  नहीं  देखता  था  ,  न  ही  उन्हें  हाथ  लगाता  था  ,  मात्र  उसका  पाककला  में  पारंगत  होना  जरुरी  होता  था   l  प्रद्दुम्न  ने  उस  असुर  को  मारकर    अगणित  स्त्रियों  को  मुक्त  कराया  l  मात्र  एक    इंद्रिय  ही  उस  असुर  के  पतन  का   कारण  बनी  ---- सुस्वादु  आहार  का  सेवन  l  दिन  रात  उसी  का  चिंतन   l

24 October 2019

WISDOM ---- महाकाव्यों से प्रेरणा लें

 हमारे  महाकाव्य   हमें  बहुत  कुछ  सिखाते  हैं   l  हमारे  विवेक  को  जाग्रत  करते  हैं   l  अत्याचार , अन्याय  और  षड्यंत्रकारी  का  साथ  देने  का  परिणाम  कितना  भयंकर  होता  है ,  यह  महाभारत  से  ज्ञात  होता  है  --- महाभारत  में    शकुनि  के  षड्यंत्र  को   दुर्योधन  ने  स्वीकार  किया  l  पांडवों  को  राज्य  से  , उनके  हक  से  बेदखल  करने  के  लिए  मामा  शकुनि  ने  दुर्योधन  ने  जितने  षड्यंत्र  रचे   उसमे  सभी  कौरव  उनके  साथ  थे   यहाँ  तक  कि  धृतराष्ट्र ,  गुरु द्रोणाचार्य,  भीष्म  पितामह   ,  कर्ण    सब  मौन  रहे ,  अर्थात  समर्थन  किया  l  अपनी  ही  कुलवधु   द्रोपदी  के   चीर  हरण    की  शर्मनाक    घटना  पर  सब  मूक  बने  रहे  --- इसका  परिणाम  हुआ  -- महाभारत   l   जिसमें  महा विध्वंस  हुआ  l  यदि  दुर्योधन  और  शकुनि  के  इन  षड्यंत्रों  को  प्रारंभ  से  ही कोई समर्थन  नहीं  देता   तो   यह महाभारत  न  होता  l
    रामायण  में   मंथरा  व  कैकेयी  ने  षड्यंत्र  रचा    कि  भरत    को  राजगद्दी   और  राम  को  चौदह  वर्ष  का वनवास  मिले  l  राम  के  अनुज   भरत    ने  इस  षड्यंत्र  को  नहीं  माना   l  उन्होंने  भी   चौदह  वर्ष  तक   सब  सुख भोग  का  त्याग  कर  दिया  l  यहाँ  तक  कि  पूरी  अयोध्या  में  चौदह वर्ष  तक  कोई किलकारी  नहीं  गूंजी  ,  सभी अपने  प्रिय  राम   के  इंतजार  में  तपस्वी  का  जीवन  जीते  रहे  l   अयोध्या  में  पूरी  तरह  शांति  रही   l राम  ने  पिता  की  आज्ञा  का  पालन  किया  l  राम  वन  में  जहाँ  भी  गए  सबको  गले  लगाया  ,  कोल - भील , किरात ,  वानर  सबसे  प्रेम  से  मिले  ,  उनके  सान्निध्य  में  सबको  सुकून  व  शांति  मिली  l
              दूसरी  और  रावण    का  चारों  और  आतंक  था  l  वह   वेद , शास्त्रों का   विद्वान्  व महाज्ञानी और  महाबलवान  था   लेकिन  उसने  अपनी  शक्तियों  का  दुरूपयोग  किया   l  एक  लाख  पूत , सवालाख  नाती ,  सभी  राक्षस  जिसने  भी  उसका  साथ  दिया  सभी  का  अंत  हो  गया  l

22 October 2019

WISDOM ------

   मन  में  बहुत  कुछ  पाने  और  संचित  करने  की  अनैतिक   वृत्ति    लोभ  बनकर  उभरती  है  l  लोभ  का  विकृत  विस्तार  ही  समाज  में  घोटाले ,  घपला  एवं   भ्रष्टाचार  की  व्यथित  कथा - गाथा  है  l
 रातों - रात  बड़ा  बनने,  प्रतिष्ठित  कहलाने  की  आकुल  मानसिकता  से  भ्रष्टाचार  का  प्रादुर्भाव  होता  है  l  अधिक  से  अधिकतम   वस्तुओं  और   संपदा  प्राप्ति  की    ललक   सभी  मर्यादाओं  को  तोड़  देती  है   l  लोभ  गुब्बारे  की  तरह  बढ़ता और   फूलता  है  इसका  उदर    कभी  तृप्त  नहीं  होता  है  l  भ्रष्टाचार  ,  घपला  कभी  कोई  व्यक्ति  अकेले  नहीं  करता  ,  इसकी  बहुत  बड़ी   श्रंखला  होती  है    और  सब  बड़ी  मजबूती  से  एक - दूसरे  से  बंधे  होते  हैं  l  लोभ  का  आकर्षण  इतना  तीव्र  होता  है  कि  कभी   यह  श्रंखला  देश  व  सीमाओं  को  भी  लांघ  जाती  है   l  लोभ - लालच  का  अंतिम  परिणाम  जानते  व  देखते  हुए  भी  व्यक्ति  सुधरता  नहीं है  l

21 October 2019

WISDOM -----

  महाकवि  कालिदास   ने  एक  प्रसंग  में  कहा  है ,  पुरानी  होने  से   हर  कोई   वस्तु   अच्छी  नहीं  हो  जाती   और  न  ही  नई  होने  मात्र  से   कोई  बुरी  l  केवल  मूढ़  व्यक्ति    भेड़चाल  को  अपनाते  हैं  ,  जबकि  बुद्धिमान  विवेक  का  आश्रय  लेते  हुए  ,  गुण - दोष  की  परीक्षा  करते  हुए   स्वयं  चुनाव  करते  हैं   l
         '  जो  राष्ट्र   केवल  अपने  समय  में   वर्तमान  में  ही  जीता  है  ,  वह  सदा  दीन  होता  है  ,  यथार्थ  में    समुन्नत  वही  होता  है  ,  जो  अपने  आपको   अतीत  की  उपलब्धियों   तथा  भविष्य  की  संभावनाओं  के  साथ  जोड़कर  रखता  है   l '

WISDOM ----- दूसरों को सुधारने के बजाय स्वयं को सुधारें

   मनुष्य  का  स्वभाव  ही  ऐसा  है  कि  वह  हर  गलत  काम  करने  पर  दूसरों  को  दोष  देता  है  ,  परिस्थितियों  को  दोष  देता  है ,  परन्तु  खुद   को  दोष  नहीं  देता  l
  अब्राहम  लिंकन  ने   अपने  जीवन  के  अनुभव  से   दूसरों  की  आलोचना   करने  के  बुरे  परिणाम  को  जाना  l  उनका  प्रिय  कोटेशन  था ---- " किसी की  आलोचना  मत  करो ,  ताकि  आपकी  भी  आलोचना  न  हो  l "  जब  भी  श्रीमती  लिंकन  और   दूसरे   लोग   दक्षिणी  प्रान्त   के  लोगों  की  आलोचना  करते    तो  लिंकन जवाब  देते  थे --- " उनकी  आलोचना  मत  करो ,  अगर  हम  उन  परिस्थितियों  में  होते   तो  हम  भी वैसे  ही  होते  l "   लिंकन  अपने  जीवन  के  कटु  अनुभवों  से  यह  जानते  थे  कि  तीखी  आलोचना  और   डाँट - फटकार   हमेशा  नुकसानदायक  होती  है   और  उससे  कोई  लाभ  नहीं  होता  है  l   आलोचना  यदि  दूसरों  को  सुधारने  के  लिए  भी  हो   तो  दूसरों  को  सुधारने  के  बजाय  स्वयं  को  सुधारना   ज्यादा  फायदेमंद   होता  है  और  उसमे  खतरा  भी  कम  होता  है  l
       यदि   किसी  के  मन  में  स्वयं  के  प्रति    विद्वेष  पैदा  करना  है  ,  जो  दशकों  तक  पलता रहे   और  मौत  के  बाद  भी  बना  रहे  ,   तो  इसके  लिए  कुछ  खास  नहीं  करना  पड़ता  ,  सिर्फ  चुनिंदा  शब्दों  में   चुभती  हुई  आलोचना  करनी   होती    है  l  ज्यादातर  लोग   जाने - अनजाने   ऐसा  ही करते  हैं   और  दूसरों  के  मन  में   खुद  के  प्रति  विषबीज   बो  देते  हैं   l

19 October 2019

WISDOM -----

   भाषण , प्रवचन , नियम - कानून  आदि   बाहरी  दबाव  से   मन  को  एक  सीमित  मात्रा  में  ही  काबू  में  रखा  जा  सकता  है  l   आत्मसुधार  तो  ह्रदय  परिवर्तन  से  ही  संभव  है    और   यह   व्यक्ति   को   स्वयं  ही  संयम - साधना  के  आधार  पर  करना  होता  है   अर्थात  अपनी  दुष्प्रवृतियों  पर  नियंत्रण   करने    का  कार्य  व्यक्ति  को  स्वयं  ही  करना  पड़ता  है  l
 संत  एकनाथ  के  साथ  तीर्थयात्रा  पर  एक  चोर  भी  चल  पड़ा   l  साथ  लेने  से  पूर्व  संत  ने  उससे  रास्ते  में  चोरी  न  करने  की  प्रतिज्ञा  कराई  l  यात्रा  मंडली  को  नित्य  ही   एक  परेशानी  का  सामना  करना पड़ता  I  रात  को  रखा  गया  सामान  कहीं  से  कहीं  चला  जाता  l  नियत  स्थान  पर  न  पाकर  सभी  हैरान  थे   और  जैसे - तैसे  , जहाँ - तहां  से  ढूंढकर  लाते  l  नित्य  की  इस  परेशानी  से  तंग  आकर  ,  रात  को  जागकर   इस  उलट - पुलट  की  वजह  मालूम  करने  का  जिम्मा  एक  चतुर  यात्री  ने  उठाया ,   खुरफाती  पकड़ा  गया  l  सबेरे  उसे  संत  के  सम्मुख  पेश  किया  गया  l  पूछने पर  उसने  वास्तविकता  कही  l  चोरी  करने  की  उसकी  आदत  मजबूत  हो  गई  है   l  चोरी  न  करने  की  यात्रा काल में  कसम  निभानी  पड़  रही  है  ,  पर  मन  नहीं  मानता   तो  तूम्बा - पलटी  ( इधर  से  उधर  सामान  रख  आना )  इससे  उसका  मन  बहल  जाता  है   l  संत  एकनाथ  ने  मंडली  के  साथियों   को  समझाया  कि मन  भी  एक  चोर  है , उसे बाहरी  दबाव  से  सीमित  मात्रा  में  ही  काबू  किया  जा  सकता  है  l              

18 October 2019

WISDOM -----

 अन्याय  चाहे  कितना  ही  बड़ा  क्यों  न  हो  ,  उसका  प्रतिकार  करने  का  साहस  न  करना   अपने  मानवीय  कर्तव्यों  की  उपेक्षा  करना  है   l '   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  वाड्मय - २८  में  लिखा  है ---- " हम  निश्चित  रूप  से  इन  दिनों विषम  परिस्थितियों  के  बीच  रह  रहे  हैं  l  पौराणिक  विवेचन  के  अनुसार  इसे   असुरता  के  हाथों   देवत्व  का  पराभव   होना  कहा  जा  सकता  है   l  कभी  हिरण्याक्ष, हिरण्यकशिपु,  वृत्तासुर ,  भस्मासुर ,  रावण  और  कंस  आदि  ने   जो  आतंक  उत्पन्न  किए  थे   वह  आज  की  परिस्थितियों  के  साथ  पूरी  तरह  मेल  खाता  है   l   पुनरावृति  स्पष्ट  परिलक्षित  होती     है  l  उन  दिनों  शासक  वर्ग  का   ही  आतंक  था  ,  पर  आज  तो   राजा - रंक,  धनी -  निर्धन ,  शिक्षित - अशिक्षित ,  वक्ता - श्रोता  सभी  एक  राह  पर  चल  रहे  हैं  l  छद्म  और  अनाचार  ही  सबका  इष्टदेव  बन  चला  है  l  नीति  और मर्यादा  का  पक्ष  दिनोंदिन  दुर्बल  होता  जा  रहा  है   l  उपाय  दो  ही  हैं  -- एक  यह  कि  शुतुरमुर्ग  की  तरह   आँखें  बंद  कर  के   भवितव्यता  के  सामने  सिर  झुका  दिया  जाये  l  जो  होना  है  उसे  होने  दिया  जाये  l  दूसरा  यह  कि  जो   सामर्थ्य  के  अंतर्गत  है   उसे  करने  में   कोई  कसर   न  उठा  रखी  जाये  l

17 October 2019

WISDOM ----- आपत्तियों का कारण अधर्म है l

  ' मन  की   वृत्तियों   का  स्वार्थ  प्रधान  हो  जाना  ही  पाप  है  '----- पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  
  आचार्य श्री ने लिखा  है --- '  चेतना    परिष्कार  किए  बिना ,  अपनी  सोच   बदले   बिना  --  बाहर  के  सारे  परिवर्तन  निरर्थक  कहे  जा सकते  हैं   l  उपासना  तभी  सार्थक   है    ,  जब  उसके  साथ  श्रेष्ठ  कर्म  जुड़ें  l  मात्र  पूजा - उपचार  तो  बहिरंग   का  कर्मकांड  भर  है   l   यदि  लोगों  के  ह्रदय  छल - कपट , पाखंड ,  द्वेष  आदि  दुर्भावों  से   भरे  रहें  , तो    उससे   अद्रश्य  लोक   एक  प्रकार  से   आध्यात्मिक  दुर्गन्ध  से   भर     जाते  हैं   l  पाप  वृत्तियों  के  कारण  सूक्ष्म  लोकों  का  वातावरण   गन्दा  हो   जाने  से    युद्ध ,   महामारी  ,  दरिद्रता ,  अर्थ  संकट  ,  दैवी   प्रकोप     आदि  उपद्रवों  का   आविर्भाव  होता  है   l
लेकिन  जब  मनुष्य  के  मन  में  सद्वृत्तियाँ  रहती  हैं  ,  तो  उनकी  सुगंध  से   दिव्यलोक  भरा - पूरा   रहता  है   और  जनता  की  सद्भावनाओं  के  फलस्वरूप  ईश्वरीय  कृपा  की  ,  सुख  शांति  की वर्षा  होती  है   l
 उनका  कहना  था ---- ' हम  सब  एक  पिता  के  पुत्र  हैं  ,  इसलिए  दूसरों  को  दुखी  देखकर  प्रसन्न  होना  एक  जघन्य  कर्म  है  l '

16 October 2019

WISDOM ---- सकारात्मक द्रष्टिकोण से जीवन को नई दिशा मिलती है

  जीवन  की  अधिकांश  समस्याएं  हमारी  नकारात्मक  सोच  के  कारण  उत्पन्न  होती  हैं  l  पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  अपने  लेखों  व  प्रवचनों  से   हमें  जीवन  जीने  की  कला  सिखाई  है  जिसकी  आज  के  संसार  में  सबसे  ज्यादा  जरुरत  है  l  स्वर्ग  और  नरक  हमारे  ही  द्रष्टिकोण  में  बसते हैं  l  आचार्य जी  की  अमृतवाणी  में  एक  घटना  का   उल्लेख  है ----
 '  आगरा  के  एक  सेठ  थे  , बहुत  संपन्न  थे  l  उन्हें  पंद्रह  दिनों  से  नींद  आनी  बंद  हो  गई  , भयंकर  सिरदर्द  और  आँखें  लाल  हो  गईं  थीं  l ऐसा  लगता  था  कि   दिमाग  की  नसें  फट  जाएँगी  l  किसी  ने  उन्हें  आचार्य जी  के  पास  जाने  की  सलाह  दी  l  आचार्यजी  ने  उनसे   कहा  कि  बताइए क्या  कारण  है  ?
  सेठजी  बोले ---- '   हुआ  यह  कि  इनकम  टैक्स   ऑफिसर  ने  छापा  मारा  l  हमारे  पास  दो  बहीखाते  थे  l  मुनीम  नाराज  हो  गया  था  ,  उसने  ऑफिसर  को  बता  दिया  कि  इनके  पास  दो  बहीखाते  हैं  और  यह भी  बता  दिया  कि  वे  कहाँ  रखे  हैं  l  इनकम  टैक्स  ऑफिसर  ने  दोनों  बहीखाते  जब्त  कर  लिए  l  हमारे  ऊपर  अपराधी  का  केस  चलाया  गया  l  अभी  जमानत  पर  छूटे  हैं   l  बहुत  भय  है ,  आगे  न  जाने  क्या  होगा  ?  "   आचार्य जी  ने  उनसे  कहा --- ' आप  मेरे  पास  बैठ  जाइए  l दवाई  मैं  आपको    कल   दूंगा  ,  मैं  चाहता  हूँ    कि  आपको  इस  मुकदमे  की जड़  से  ही  बचा  दूँ  l '
  सेठजी  पूछने  लगे  कि  आप  ऐसा  कैसे   कर  सकते  हैं  ?
  आचार्य जी  उन्हें  समझाने  के  लिए   उनसे  बात  करने  लगे    और  कहा  कि--- '  आप  यह  बताइए  कि  उस  असली  और  नकली  बहीखाते  में  कितने  रूपये  का  चक्कर  है  ?  यदि  आपको  इनकम टैक्स  देना  पड़े ,  पेनल्टी  देनी  पड़े    तो  आपको  कितने  रूपये  का   नुकसान  भुगतना  पड़ेगा  l '
 सेठ  ने  कहा  --- ' दस  लाख  रुपया  , जो  हमने  तीन - चार  वर्षों  से  चुरा  रखा  था  ,  एक  तो  वह  और   दुगुनी  पेनल्टी  लगाई जा  सकती  है  l  कुल  मिलकर  तीस  लाख  रुपया  देना  पड़  सकता  है  l  '
  आचार्य जी ने  सहानुभूति  प्रकट  की  -यह  तो  बड़ी  लम्बी  रकम  है  l  फिर  उससे पूछा   कि  तुम्हारी  चल - अचल  सम्पति    आदि  सब  मिलकर   कुल  कितनी  होगी  ? '
सेठ  ने  कहा  --- ' लगभग  पचास  लाख  l '
तब  आचार्यजी  ने  समझाया  कि--- '  पचास  लाख  में  से  तीस  लाख  चले  गए ,  तब  भी  बीस  लाख  तो  बचे  (  उस  समय  में  )  ,  मेरे  पास  तो  बीस  पैसे  भी  नहीं  हैं  l  फिर  कहा --- आपको  तीस लाख  जुरमाना  हो  जाये   और  आप   छूट   जाएँ ,  तब  मुझे  बुला  लेना  l  आपका  जो  बचा  हुआ  सामान  है  उसे  बिकवाकर    आपको  रकम  दिलव  दूंगा  l  बीस  लाख  का  ब्याज बहुत  होता  है   l आप  घर  बैठे  आराम  करें  l  किफ़ायत  से  इस  ब्याज  से महीने  का  खर्च  निकाल  कर  भी   पर्याप्त  राशी  बचेगी  l   गवर्नमेंट  को  जो  तीस  लाख  देना  पड़ेगा  ,  वह   घाटा    पंद्रह - सोलह वर्ष  में  पूरा  हो  जायेगा  l "
आचार्य जी  की  वाणी  में  जादू  था  ,  सेठ  को  बात  समझ  में  आ  गई  l  रात  भर  चैन  से  सोया  l  सुबह  गुरुदेव ने  पूछा  -- अब  कुछ  और  इलाज  कराना  है  क्या  ?  सेठ  बोला -- अब  तो  सब  हो  गया  l  आचार्य जी  ने  कहा --- अब  घर  जाओ  ,  ईश्वर  पर  विश्वास  रखो  ,  उनका  नाम  लो  l   '  उसके  बाद  घर  वालों  की  चिट्ठी  आई   कि  सेठ  जी  अब  बिलकुल  ठीक  हैं  ,  रात  भर  सोते  हैं  l
   

14 October 2019

WISDOM -----

   इस  संसार में   व्यक्ति   एक  से  एक  अच्छे  ,  छोटे  - बड़े  अनेक  कार्य  करता  है  l  जिनमे  कोई   अहंकार    नहीं  होता  वे  अपने  हर  अच्छे  कार्यों    को  पूरा  करने  का    श्रेय  भगवान  को  देते  हैं   कि  सब  कुछ  ईश्वर  की  कृपा  से  हुआ  है   तथा  अपनी  गलतियों  के  लिए  स्वयं  को  जिम्मेदार  ठहराते   हैं    और  उन्हें    सुधारने  के  लिए  हमेशा  प्रयत्नशील    रहते  हैं    ताकि    वे  गलतियाँ  दुबारा  न  हों   l
  यह  भी  सत्य  है  कि  जिनमे  अहंकार  नहीं  है  और   जो  परमार्थ  के  लिए  , समाज  के  कल्याण  के  लिए  कुछ  करना  चाहते  हैं  उन्हें  अद्रश्य  शक्तियों  का  सहयोग  मिलता  है  l
  इनमे  सबसे  जीवंत  उदाहरण  महात्मा  गाँधी  का  है   l  गांधीजी  का   प्रमाणिक   व्यक्तित्व ,  उनका  उद्देश्य   व  सबसे  प्रमुख    मातृभूमि  के  लिए  कुछ  कर  गुजरने  की  चाहत   के कारण  उन्हें  कई  ऐसी  सूक्ष्म  शक्तियों  ने  अनुदान  दिए   कि  देखते  - ही - देखते   साधारण  दीखने   वाले   मोहनदास  कर्मचंद  गाँधी   असाधारण  चुम्बकत्व  के  स्वामी  हो  गए    और  महात्मा  गाँधी  कहलाये  ,  जिनके  इशारे  मात्र  पर  अनगिनत  लोग  उनके  पीछे  चल  दिए  और  कुछ  भी  कर  गुजरने  के  लिए  तैयार  हो  गए  l

13 October 2019

WISDOM ----- चेतना जाग्रत हो , तभी समस्याएं हल होंगी

पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा    है  ---- ' दुष्टता में  अपनी  कोई  शक्ति  नहीं ,  वह  अमरबेल   की  तरह  छाई और  चूसती  रहती  है  l  उसे  उठाकर  एक  कोने  में  पटक भर  दिया  जाये    तो  बेमौत मरने  में  देर न  लगेगी   l    गुंडागर्दी   इसलिए  जीवित , प्रबल  और  बलिष्ठ  है  क्योंकि  उसे  सहन  किया  जाता  है  l  संगठित  प्रतिरोध  सामने  नहीं  आता  l  जिस   पर  मुसीबत  आये  वही  भुगते ,  शेष  तमाशा  देखें   की नीति  अपनाने  पर  तो  एक  चिनगारी  समूचे  गाँव  को  स्वाहा   कर  सकती  है   l  मिलजुलकर  प्रतिरोध न  हो  तो    न  अग्निकांड  की  विनाश लीला  रुक  सकती  है    और  न  मुट्ठी  भर  गुंडों  की   आततायी  आक्रामकता  पर  अंकुश  लग  सकता  है  l 
 अनैतिकता  , अंध परम्परा  की  छत्रछाया  में  पलने  वाली   अनेकानेक  बुराइयाँ  मात्र  इसलिए  सीना  तानकर  खड़ी  हैं   क्योंकि  उन्हें  संगठित  प्रतिरोध  का   कभी  सामना  नहीं  करना  पड़ा  l एक  छोटे  से  विष बीज  को   बढ़ने  और  फलने - फूलने  का अवसर  तभी  मिलता  है   जब  उसे  सहन  करने  वाले  निरंतर   खाद - पानी  पहुंचाते  रहें  l 
  जामवंत ने  उदास  बैठे  हनुमानजी  को  आत्मबोध   कराया   तो  वे  समुद्र  लांघने  और   लंका  उजाड़ने में  सफल  हो  गए    उसी  तरह  जाग्रत  जन शक्ति  आज  की  विपत्ति   और    विभिन्न  समस्याओं  को  सुलझा  सकती  है   l

12 October 2019

WISDOM ----- किसी हिंसक डाकू से अहिंसक योद्धा अनीति और अन्याय के लिए खतरनाक होता है

  बात  उन  दिनों  की  है    जब  सारे  रूस में  आतंकवाद  का  साम्राज्य  था   l      प्रिंस  क्रोपाटकिन  का  जन्म  राजवंशी  परिवार  में  हुआ  था  l  जब  उन्होंने  साइबेरिया  में    जार  के  अत्याचार   से  त्रस्त  लोगों  को नारकीय  जीवन  जीते  देखा    तो  उनका  ह्रदय  विद्रोह  से  भर  गया  ,  उन्होंने  तुरंत  शासकीय  सेवा  से  त्यागपत्र   दे  दिया  ,  उनके  व्यक्तित्व  का  मानवीय  पक्ष  जाग्रत  हो  गया  l
  उन्हें  देश  के  लाखों - करोड़ों  लोगों  के  दुःख - दर्द  की  चिंता  थी  l   क्रांति  उनका  धर्म  था    लेकिन  उन्होंने  साधन  और  साध्य  की पवित्रता  पर  जोर  दिया    l  कलम  और  वाणी  के  माध्यम  से   उन्होंने    ऐसी  ही    पद्धतियों  का  प्रचार  किया  जो  मानवता  से  सीधा  सम्बन्ध  रखती  थीं   l   चाहे  संगठन  का  काम  हो  , विरोधियों  से  व्यवहार  हो , कोई  भी  काम  हो  उसमे   वे   अनुचित  साधनों  के  प्रयोग  को  किसी  भी  दशा  में  सहन  नहीं  करते  थे   l    उन्होंने   जार  के  अत्याचारी  शासन  के  विरुद्ध  आवाज  उठाई  तो  उन्हें  देश  से   निष्कासित  कर  दिया    और  जार  के  ही  इशारों  पर  फ़्रांस की  सरकार  ने   अकारण  ही  उन्हें  ढाई  वर्ष  जेल  में  रखा  l   कारावास   में  उन्होंने  ' परस्पर  सहयोग  '    और  ' रोटी  का  सवाल  ' जैसे  महत्वपूर्ण   ग्रंथों  की  रचना  की    जिनका  विश्व  व्यापी महत्व  है   l  आज  भी  उनके  जीवन  की  स्मृति  दिलाने  वाली  वस्तुएं  उनके  नाम  पर  स्थापित  म्यूजियम  में  सुरक्षित  हैं   l

11 October 2019

WISDOM ----- गिद्ध वृति कभी सुखी नहीं रह सकती

     पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  कहते  थे  ---- ' जितने  अधिक  का  लालच  ,  उतना  ही  अधिक  दुःख  ,  उतनी  ही  पीड़ा  ,  उतनी  ही  परेशानी  l ' इसलिए  उपनिषद  में कहा  गया  है ---- लालच  मत  करो   !  
  लालच  केवल  धन  का  या  वस्तुओं  का  ही  नहीं  होता  ,  मान ,  यश - प्रतिष्ठा ,  सत्ता ,  पद   सब  का  लालच  होता  ही  l   लालच  इस  कदर  बढ़  जाता  है  कि  व्यक्ति   दूसरे  के  सोच  व  स्वाभिमान  पर  भी  कब्ज़ा   जमा  कर   सबको  अपने  इशारे  पर  चलाना  चाहता  है   l यह  सब  पाने  के  बाद  व्यक्ति  को  उसका  खोने  का  भय  सताता  है  l  इसलिए  जिसकी    चाहतें    बड़ी  हुई  हैं  वह  कभी  शांत  नहीं  रह  पाता   l   अपने  सुख  को  बचाए  रखने  के  लिए   व्यक्ति  छल - कपट  और  षड्यंत्र  करता  है   और  अपनी  असीमित  इच्छाओं  को  पूरा  करने  के  लिए  वह  दूसरों  का  भी  हक  छीनता  है  l  यही  गिद्ध - वृति है   l
  आचार्य  श्री  अपनी  आँखों  देखी  एक  घटना  सुनाते  थे  -----   वे  किसी  ग्रामीण  क्षेत्र  से  पैदल  आ  रहे  थे   l  पास  के  बंजर  मैदान  में  किसी  जानवर  का  मृत  शरीर  पड़ा  था  ,  उसके  आसपास  गिद्धों  का  झुरमुट  था  जो  उसका  मांस  नोचने  में  लगे  थे  l  आपस  में  छीना - झपटी  थी   l  एक  गिद्ध  बड़ा  सा मांस  का  टुकड़ा  लेकर  भागा,  थोड़ी  ही  दूर  जा  पाया  कि  गिद्धों  की  फौज  उसके  पीछे   पड़   गई  l  उन  गिद्धों  में  कुछ  ताकतवर  भी  थे   जो  उसके   इर्द - गिर्द  व्यूह  रचना  करते  रहे   l
इस  दौड़ - भाग  में  उस  अकेले  पड़े  गिद्ध  से  मांस  का  टुकड़ा  छूट  गया    जिसे  दूसरे  गिद्ध  ने  उठा  लिया  l  अब  वे  सारे  गिद्ध  पहले  वाले  को  छोड़कर  दूसरे  के  पीछे  पड़  गए  l   पहले  वाला गिद्ध  अब  आश्वस्त  था  , शायद  समझ  गया  था  कि  सुख  संतोष  में  है  l  '
मनुष्य  की  इसी  गिद्ध वृति  के  कारण    संसार  में  अशांति  है   l

9 October 2019

WISDOM ----- मार्ग अलग - अलग हैं लेकिन मंजिल एक ही है

  श्रीमद्भगवद्गीता  में   श्री  भगवान  कहते  हैं  --- भक्ति  के  अलावा   भी  उन  तक  पहुँचने  के  अनेक  मार्ग  हैं   l  भक्त  हों  या  निराकार के  उपासक  हों ,  किसी  भी  विधि  से  ,  कहीं  से  भी  चलो  ,  सबकी  मंजिल   एक  ही  है  ,  वहां  पहुंचकर  कोई  भेद नहीं  रहता  है  l
पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी ने  लिखा  है  ----  ' इस  दुनिया  में  इतना  जो  अधर्म  है  ,  उसका  कारण  यह  नहीं  है  कि  नास्तिक  दुनिया में  ज्यादा  हो  गए  हैं  ,  बल्कि  कारण  यह  है  कि  आस्तिकों  ने  एक  दूसरे  को  गलत  सिद्ध  कर  के   ऐसी  हालत  पैदा  कर  दी  कि  कोई  भी  सही  नहीं  रह  गया  l  पूरी  दुनिया  में  तकरीबन  तीन सौ  धर्म  हैं   और  एक  धर्म  को  दो  सौ  निन्यानवे   गलत  कह  रहे  हैं  l  यह  सहज  ही  स्पष्ट  है   कि  आम जनता  पर  किसका  असर  ज्यादा  होगा  l  एक  स्वयं  को  ठीक  कहता  है  ,  तो  दो  सौ  निन्यानवे  उसे  गलत  साबित  करने  में  जुटे  हैं   l  स्थिति  यह  है   कि   हर  एक  के  खिलाफ   दो  सौ  निन्यानवे  हैं  l   दुनिया  की  खराब  हालत  के  लिए  जिम्मेदार  ये  तीन  सौ  धर्म  हैं  l  सभी  एक  दूसरे  की  लाशें  बिछाने  में  लगे  हैं  l  हिन्दुओं  ने  मुसलमानों  को  गलत  सिद्ध  किया  ,  मुसलमानों  ने  हिन्दुओं  को  गलत  कर  दिया  l  इसी  तरह  साकार  व  निराकार  ने  एक  दूसरे  को   गलत  कर  दिया  l  इन  लोगों  के  अनुसार  --- बाइबिल  कुरान  के  खिलाफ  है  ,  कुरान  गीता  के खिलाफ  है  l  वेद  तालमुद  के  खिलाफ  हैं  ,  तालमुद  जिंदे  अवेस्ता  के  खिलाफ  है   l  बस  इसी  तरह  खिलाफत  और  झगड़ों  का  सिलसिला  जारी  है   और  पूरी  दुनिया  लाशों  से  पटी  पड़ी  है  l एक  दूसरे  का  खून  बहाया  जा  रहा  है   l
  ऐसी  दशा  में    श्रीकृष्ण  बहुत  ही  क्रांतिकारी  सूत्र  देते  हैं  l  वे  कहते  हैं  की  विपरीतताएँ   कितनी  ही  क्यों  न  हों  ,  झगड़े  कितने  ही  खड़े  कर  लो  ,  पर  यदि  तुम  चलना  शुरू   करोगे   तो  पहुंचोगे  , एक  ही  मंजिल  तक   l  भक्ति  की ,  ज्ञान  की  मंजिल  एक  है   l  निराकार  और  साकार  एक  ही    सत्य  के  दो  रूप  हैं  l  हम  किसी  भी  पथ  से  चलें ,  लेकिन   पहुंचेंगे   भगवान  तक  ही  l  '  

8 October 2019

WISDOM ----- काल बड़ा बलवान

 काल   से  बलवान  कोई  नहीं  होता  l  काल  किसी  का  नहीं  होता  ,  काल  चक्र  में  सब  बंधे  हैं   l  
  काल   की  विपरीत  चाल  थी  कि  स्वयं   भगवती  सीता  को   रावण  जैसे  असुर  की  चाल  का  शिकार  होना  पड़ा    और  अवतारी  राम  को  वन - वन  भटकना  पड़ा  l  भगवान  राम  के  तरकश  में   एक  ही  तीर  पर्याप्त  था   रावण  का  शिरोच्छेद  कर  धराशायी  करने  में  l  इतने  दिव्यास्त्रों  से  सुसज्जित  भगवान  राम  को   काल  की  प्रतीक्षा करनी  पड़ी    और  तभी  आततायी  रावण  का  अंत  संभव  हो  सका  l  विपरीत  एवं  अंधकार की  घड़ियाँ   हमारे  धैर्य  की  परीक्षा   लेने  आती  हैं  कि  हम  प्रकाश  के  प्रति  कितने  प्रयत्नशील  हैं                                            ' तमसो  मा  ज्योतिर्गमय  ' 
 महापराक्रमी  , महाबलशाली  पांडव  ,  जिनके  पास  दिव्य  अस्त्र - शस्त्रों  का  भंडार  था  ,  दैवी  वरदान    एवं  अनुदान  से  जिनकी  झोली  भरी  पड़ी  थी  ,  स्वयं  भगवान  कृष्ण   जिनके  सखा - संबंधी  थे  ,  उनको   भी  बुरे  समय  की  मार  और  चौदह  वर्ष  का  अति  कष्टसाध्य  वनवास  झेलना  पड़ा  l  स्वयं  भगवान  भी  उनके  इस  विपरीत  समय  को  टाल  न  सके  l
 वे  धैर्यपूर्वक  विपरीत  घड़ी  के  गुजर   जाने  की  प्रतीक्षा   एक  कर्मयोगी  की तरह  करते  रहे  l   इस  अंधकार  की  अवधि  में  निरंतर  तप   तथा    संघर्ष  से   अपनी  शक्ति  को  बढ़ाया   और  ठीक  समय  आने  पर    अपने  ऊपर   ढहाए  गए    सभी  जुल्मों   और  अत्याचार  का  बदला  लिया   l
 पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का   कहना  है --- विपरीत  परिस्थितियों  में  हमें  शांत - संयत  होकर   अनगिनत  अपमान ,  तिरस्कार ,  उपेक्षा  आदि  को  असीम  धैर्य  के  साथ  सहन   करते  हुए  एक  कर्मयोगी  की  भांति  अपना  कर्तव्यपालन   करते  रहना  चाहिए   l  बुरे  समय  के  बाद  आने  वाला  अच्छा  समय  हमारा  होता  है   और  फिर  उस  समय  हम  अपराजेय  होते  हैं   l
   

7 October 2019

WISDOM ----- स्वयं को सम्मान दो

    जिनका  मन  मनोग्रंथियों  से  घिरा होता   है   वे  लोग  दुनिया  को  स्वयं  से  अधिक  महत्व  देते  हैं  l  दुनिया  के  लोगों  द्वारा  कही   हुई    बातें   इनके  अंतर्मन  में  बस  जाती  हैं  और  इससे  इनके  मन  में  हीनता  की  ग्रंथि  पनपती  है  ,  ऐसे  व्यक्ति   बेचैन ,  अशांत  व  परेशान   रहते  हैं  l
  लेकिन  जिनका  मन  मनोग्रंथियों  से  मुक्त  होता  है    वे  स्वयं  से   प्यार  करते  हैं   l  अपनी  कमियों  को  स्वीकारते  हैं ,  उन्हें  छिपाते  नहीं   हैं  ,  उन्हें  सुधारने  की  कोशिश  करते  हैं   और  अपना  आत्मविश्वास  बढ़ाने  के  लिए  पूरी  मेहनत  और  लगन  से  काम  करते  हैं  l
  महान  ज्ञानी   अष्टावक्र   जी  का  शरीर   आठ  जगह  से  टेड़ा  था ,  लोग  इन्हें  चिढ़ाते , इनका  मजाक  उड़ाते  ,  लेकिन  वे  उन  पर  कभी  ध्यान  नहीं  देते  थे  l  एक  बार  वे  राजा  जनक  के   दरबार  में  विद्वानों  की  सभा  में  आमंत्रित  किये  गए   ,  गंभीर  विषय  पर  चर्चा  होनी  थी  l  जैसे  ही  अष्टावक्र  ने  प्रवेश  किया  ,  उनके  टेड़े - मेढे शरीर  और  अजब  सी  चाल    देखकर    सभी  उपस्थित  ज्ञानीजन  ठहाके  लगाकर    हंस  पड़े   l  इस  पर भी  अष्टावक्र  न  तो  क्रोधित   हुए और  न  ही  स्वयं  को  अपमानित  महसूस  किया   l  बस  इतना  ही  बोले  ---- " राजन  ! मैंने  तो  सोच था   कि  मैं  विद्वानों  की  सभा  में  आया हूँ    लेकिन   यहाँ   तो  सब  चर्मकार   बैठे  हैं   l "    मनोग्रंथियों  से  रहित  व्यक्ति  ,  कैसी  भी  परिस्थिति  से  घिरे  हों    कभी  भी  अपने  मन  में  हीनता  का  भाव  नहीं  आने  देते  l   स्वयं  से  प्रेम   करते  हैं   l

5 October 2019

WISDOM ------

 पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कथन  है --- " जीवन  का  अर्थ  है  समय  ,  जो  जीवन  से  प्यार  करते   हों   वे  अपना  समय  व्यर्थ  न  गंवाएं  l  "
आचार्य जी  के  अनुसार  --- हमारा  जीवन  ही  समय  है  ,  हमारा  समय  समाप्त  होने  पर  जीवन  ही  समाप्त  हो  जायेगा  l
जीवन में  जो  भी  कार्य  करने  हैं   वे  इसी  शरीर  से  संभव  है   l  अत:  जरुरी  है   कि  शरीर  स्वस्थ  व  रोगमुक्त  रहे   l     एक  कथा  है ---- भगवान  बुद्ध   एक  गाँव  में  ठहरे  हुए  थे  l  उनके  दर्शन  व  सत्संग  के  लिए  अनेक  व्यक्ति  आते  थे   l  इसी  क्रम  में  एक  धनी व्यक्ति  उनके  दर्शन  के  लिए  पहुंचा  l l  उसका  शरीर  भारी - भरकम  था ,  सेवकों  की  मदद  से    कठिनाई  से  चल  रहा  था  l  झुक  नहीं  पा  रहा  था  , अत:  खड़े - खड़े  अभिवादन  कर  बोला  --- " भगवन  !  मेरा  शरीर  अनेक  व्याधियों  का  घर  बन  चुका  है  l  रात  को  न  तो  नींद  आ  पाती  है   और  न  ही  दिन  में  चैन  से  बैठ  पाता  हूँ  l   मुझे  रोग मुक्ति  का  साधन  बताने  की  कृपा  करें  l " 
भगवान  बुद्ध  उसकी  और  करुणा  भरी  द्रष्टि  से  देखते  रहे  , फिर  बोले  ---- " भंते  !  शारीरिक  श्रम  का  अभाव , प्रचुर  भोजन  करने  से  उत्पन्न  आलस्य ,  भोग  व  अनंत  इच्छाओं  की  कामना  ---- ये  सब  रोग  पनपने  के  कारण  हैं   l  जीभ  पर  नियंत्रण  रखने , संयम पूर्वक  सादा  भोजन  करने ,  शारीरिक  श्रम  करने ,  सत्कर्मों  में  रत  रहने  और  अपनी  इच्छाएं  सीमित  करने  से  ये  रोग  विदा  होने  लगते  हैं   l  असीमित  इच्छाएं  और  अपेक्षाएं  शरीर  को  घुन  की  तरह  जर्जर  बना  डालती  हैं  ,  इसलिए  उन्हें  त्यागो  l  " 
    सेठ  को    भगवान  बुद्ध   की   बातों   का  मर्म   समझ  में   आ  गया   और  संयमित  जीवन शैली  अपनाने  से  कुछ  ही  दिनों    उसने  स्वास्थ्य   लाभ  प्राप्त    किया   l    अब  वह  पुन:  भगवान  बुद्ध    मिलने  आया  l इस  बार  वह  सेवकों    बिना   अकेले  ही   आया  ,   झुककर  प्रणाम  किया   और  बोला ----- " शरीर  का  रोग  तो  आपकी  कृपा  से  दूर  हो  गया   , अब  चित  का  प्रबोधन  कैसे  हो  ?  "
बुद्ध  ने  कहा --- " अच्छा  सोचो , अच्छा  करो  और  अच्छे  लोगों  का  संग  करो   l  विचारों  का  संयम  चित  को  शांति  व  संतोष  देगा  l "   बुद्ध  के  बताये  मार्ग  पर  चलकर    अपने  शरीर  को  शारीरिक  व  मानसिक  द्रष्टि  से  स्वस्थ  रखकर  सेठ  ने  अपने  जीवन  को  सार्थक  किया   l  

4 October 2019

WISDOM ----

  श्री  भगवान  ने  गीता  में  कहा  है ---- ' मैं  काल  हूँ  l '    व्यक्तिगत  जीवन  में    यदि  कर्म  अशुभ  होता  है   तो  काल  रोग , शोक , पीड़ा  व  पतन   बनकर  प्रकट  होता  है   l  यदि  सामूहिक  जीवन  में  अशुभ  कर्म  होता  है   तो  काल  प्राकृतिक  आपदाओं  ,  युद्ध  की  विभीषिकाओं   का  रूप  लेकर  आता  है  l  ऐसी  स्थिति  में   महामारी , भूकंप ,  बाढ़ , सूखा ,  अकाल   और  ऐसे  ही  अनेक  उपद्रव  बन  जाता  है  काल   ! 
  कर्म  करना  तो  व्यक्ति  के  हाथ  में  है ,  लेकिन  इनके  परिणाम  काल  ही  तय  करता  है  l
    काल  का  एक  अर्थ  मृत्यु  भी है   l  कोई  भी  उससे  बच  नहीं  पाता  l
  सूफी  फकीर  शेख  सादी  के  वचन  हैं  ----  " बहुत  समय  पहले  दजला  के  किनारे    किसी  एक  खोपड़ी  ने    कुछ बातें   एक  राहगीर  से  कहीं  थीं  l "  वह  बोली  थी ---- " ऐ  मुसाफिर  !  जरा  होश  में  चल  l  मैं  भी  कभी  भारी  दबदबा   रखती  थी  l  मेरे  ऊपर  हीरे , मोती ,  मूंगों  से  जड़ा  बेशकीमती  ताज  था  l  फतह  मेरे  पीछे - पीछे  चली   और  मेरे  पांव  कभी  जमीन  पर  न  पड़ते    थे  l  होश  ही  न  था  कि  एक  दिन  सब  कुछ  खतम  हो  गया  l पल  भर  में  जीवन  के  सारे  सपने  विलीन  हो  गए   l  यथार्थ  से  तब  रूबरू  हुआ   और  पाया  कि  कीड़े  मुझे  खा  रहे  हैं     और  आज  हर  पाँव   मुझे  बेरहम   ठोकर  मारकर  आगे  निकल  जाता 
 है     l  तू  भी  अपने  कानों  से  गफलत  की  रुई    निकाल  ले  ,  ताकि  तुझे  मुरदों  की  आवाज  से  उठने  वाली  नसीहत  हासिल  हो  सके   l "                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      

3 October 2019

WISDOM-----

   पुरुषार्थी  और  परिश्रमी  व्यक्ति  कभी   साधनों , सुविधाओं  और  परिस्थितियों  का   मुंह  नहीं  ताकते,  निरंतर  आगे  बढ़ते  ही  रहते  हैं   l  
ग्यारहवीं  शताब्दी  में    जब  महमूद  गजनवी  ने  खीवा  पर  आक्रमण  किया   तो  अलबेरुनी  मात्र  एकमात्र  ऐसे  व्यक्ति  थे  जिन्होंने  जनमानस  को  विदेशी  आक्रमण  का  प्रतिरोध  करने  के  लिए  प्रेरित  किया  l  वे  अपने  प्रयासों  में  सफल  नहीं  हुए  और  उन्हें  देश निकाला  दिया  गया  l  उन्होंने  अपना  निर्वासित  जीवन  भारत  में  व्यतीत  करने  का  निश्चय  किया   l
  भारत  आकर  अलबेरुनी  ने  संस्कृत   भाषा   सीखी  l  और  संस्कृत  वाड्मय  का  अध्ययन  करने  के  बाद   वे  जिन  भारतीय  ग्रंथों  से  सर्वाधिक  प्रभावित  हुए  उनमे   भगवद्गीता  सर्वप्रथम  है   l   उन्होंने  अपनी  20  पुस्तकों  में   अनेक  स्थानों  पर  गीता   के  अध्ययन - मनन    का  महत्व   मानव - कल्याण  के  लिए   प्रतिपादित  किया  है   l  अरबी  जनता  जो   अब  तक  भारतीय  धर्म  को  कुफ्र  की  निगाह  से  देखती  थी  , वहां  के  प्रबुद्ध  वर्ग  ने   अलबेरुनी  के  माध्यम  से  गीता  का  परिचय  प्राप्त  कर  उसकी  मुक्त  कंठ  से  प्रशंसा  की   l 
अलबेरुनी  ने  वराहमिहिर  की  वृहतसंहिता   तथा  लघु  जातक  कथाओं    और  चरक  संहिता  का  अरबी  में  अनुवाद  किया  l इसके  बाद  उन्होंने  भारतीय  दर्शन  ग्रंथों  का  अरबी  में  अनुवाद  किया   l 
 'तारीखल  हिंदू '  एक  ऐतिहासिक   कृति  है  --- जिसमे  सैकड़ों  स्थानों   पर   गीता  के  श्लोक  उद्धृत   किये  हैं   l ऐसा  कहा जाता  है  कि  अलबेरुनी ने  146  पुस्तकें  लिखीं  ,  लेकिन  अब  अधिकांश  अनुपलब्ध  हैं  l   

2 October 2019


WISDOM ----- कालजयी महात्मा गाँधी

  महात्मा  गाँधी  ने  एक  बार  कहा  था --- मेरा  विश्वास  है  कि  एक  दिन  ऐसा  आएगा  जब  सारा  संसार  शान्ति  की  खोज  में  भारत  आएगा   और  भारत  तथा  एशिया  संसार  के  लिए  प्रकाश  स्तम्भ  की  तरह  हो  जायेंगे   l   महात्मा  गाँधी  का  दैवी  व्यक्तित्व  था  ,  अपने  अपने  विलक्षण  आत्मबल  से   केवल  भारत  ही  नहीं  संसार  में  अनेकों  को  प्रभावित  किया  ----
 एक  यूरोपियन  प्रतिनिधि  ने  उनसे  भेंट  होने  पर  बड़े  विनीत  भाव  से  कहा  था ---- आपसे  भेंट  होने  को  हम  अपना  बड़ा  सौभाग्य   समझते  हैं  l  आप  जब  बोलते  हैं  तो  जान  पड़ता  है  कि  वे  शब्द  ' बाइबिल '  में  से  चले  आ  रहे  हैं   l
  डॉ . मार्टिन  लूथर  किंग  ने  जब  गांधीजी  के  साहित्य  तथा   भारतीय  स्वतंत्रता  संग्राम  के  इतिहास  को  पढ़ा  तो  उनकी  द्रष्टि  बदल  गई  l  उन्होंने  गाँधी जी  की  तरह  अहिंसात्मक  प्रतिरोध  का  आश्रय  लिया  l  उन्हें  विश्वास  हो  गया    कि   घ्रणा  को  घ्रणा  के  द्वारा  नहीं मिटाया  जा  सकता  l  आध्यात्मिक  शक्ति  ही  मानव - मानव  के  मध्य  गहरी  खाई  को  पाटने  वाली  है  l 
  महात्मा  गाँधी  की  तरह  अपने  आपको   मानव  जाति  की  सेवा  में  अर्पित  करने  वाले  और   उन्ही  नैतिक  मूल्यों , सत्य  , अहिंसा  के   पथ  पर  चलते  हुए   अपना  सारा  जीवन  अन्याय  से  संघर्ष  करने  में  खपाने  वाले   खान  अब्दुल  गफ्फार  खान  ' सीमान्त  गाँधी '   आज  भी  भारत  और  पाकिस्तान  के  जन मानस  में  स्थापित  हैं   l
  एक  इटालियन  राजकुमार  -- लांझडिल  वास्नो -- 1937  में  भारत  आये  l भारत  आकर   वे  बापू  से  मिले  व  हिमालय  भी  गए  l  दोनों  से  प्रेरणा  लेकर  वे  फ्रांस  गए   और  दक्षिण  फ्रांस  में   एक  आश्रम  स्थापित  किया  जिसका  नाम  है  ' आर्क  कम्युनिटी ' l  महात्मा  गाँधी  के  सिद्धांतों -- अहिंसा , अध्यात्म ,  श्रम  और  समाज सेवा  ,  विश्व  बंधुत्व  की  भावना  की  भावना  पर  आधारित  जीवन  प्रणाली  है  l  इन्हें  फ्रांस  का  शांति  दूत  माना  जाता  है  l  विनोबा  जी  ने   इस  इटालियन  राजकुमार  का  नामकरण  ' शान्तिदास  ' किया  l 
  रोडेशिया  में  जन्मे  अलबर्ट  लुथिली   ने  जब  से  होश  सम्हाला   वे  अफ्रीका  में  काले  लोगों  की  दुर्दशा  व  अत्याचार  से  बहुत  पीड़ित  थे  l  1938  में   वे  अंतर्राष्ट्रीय  ईसाई  परिषद्  में  भाग  लेने  भारत  आये  l  यहाँ  वे  गाँधी जी  से  मिले  l  अब  उन्हें  इस  अत्याचार व  अनाचार    का  व्यापक  प्रतिरोध  करने  का  साधन  मिल  गया  वह  था ---- अहिंसात्मक  आन्दोलन    l    अहिंसात्मक  आन्दोलन   केवल  राजनीतिक  शस्त्र  नहीं   वरन  आत्मिक  पवित्रता    तथा  आत्म बल  पाने  का  साधन  है  l  अन्याय  का  प्रतिकार  करना  हर  मनुष्य  का  परम  कर्तव्य  है   l  लुथिली  को  अपनी  आत्मा  की  शक्ति  पर  विश्वास  था  l  उन्होंने  कर्म  पथ  अपनाया    l   लोगों  को  जागरूक  किया ,  अहिंसा  पर  विश्वास  बढ़ने  लगा      l  दासत्व  के  विरोध  में  विशाल  आन्दोलन  खड़ा  हो  गया ---- l  शासन  को  इस  अहिंसा  के  आन्दोलन  के  आगे  झुकना  पड़ा  l 
1952  में   अलबर्ट  लुथिली  को  नोबेल  शांति  पुरस्कार  दिया  गया  l
 आइन्स्टाइन  ने  कहा  था  --- "  आने  वाली  पीढ़ियाँ  इस  बात  पर  विश्वास  नहीं  करेंगी    कि  इस  प्रकार  का  व्यक्ति  हाड़ - मांस  के  पुतले   के  रूप  में  पृथ्वी  पर  विचरण  करता  था  l  "

1 October 2019

WISDOM ---- व्यक्ति जन्म से नहीं , कर्म से महान बनता है

    महान  व्यक्ति  के  अंदर  अहंकार  नहीं  होता  ,  उनमे  त्याग  की  भावना  होती  है   l  मानवीय  संवेदना के  कारण    वे  सबके   सुख - दुःख  को  अपना  सुख - दुःख  मानते  हैं   l  उनकी  सम्पूर्ण  जिन्दगी  औरों  के  लिए  समर्पित  हो  जाती  है   l  ऐसे  व्यक्ति  श्रेष्ठता  का  प्रमाण  नहीं  देते  , बल्कि  वे   स्वयं  प्रमाण  होते  हैं   l  महान व्यक्ति  समस्त मानवता   के  लिए  संवेदनशील  होते  हैं  l   किसी  भी  महान  व्यक्ति  की  परख   उसके  बड़े - बड़े  कार्यों  से  नहीं ,  बल्कि  छोटे - छोटे  कार्यों  से  ही  हो  जाती  है  l
 महात्मा  गाँधी  छोटी - छोटी  बातों  से  ही  महात्मा  बने   l  महात्मा  गाँधी  में  विनम्रता  और  सबके  लिए  अपनत्व   व  आत्मीयता  का  भाव  था  -----   1936  की  बात  है ,  गांधीजी  वर्धा  में  सेवाग्राम  चले  गए  l  वहां   रहकर  उन्होंने    आसपास  के   ग्रामीण  लोगों  से  संपर्क  साधना  शुरू  किया  l  वे  नियमित  रूप  से  निकटवर्ती  गाँवों  में   जाते  ,  लोगों  को  स्वच्छता  का  महत्व  समझाते  ,  स्वयं  झाड़ू  लेकर   गली -   कूंचों  की  सफाई  करते   तथा  गरीब  गंदे  बच्चों  को  स्नान  कराते  l  ग्रामीणों  को   स्वच्छता  का  पाठ  पढ़ाने  का  यह  क्रम   महीनों    तक   नियमित  रूप से चलता  रहा  l
  बापू  के  इस  प्रयास का  कोई  विशेष  परिणाम   निकलता  न  देख कर   एक  कार्यकर्ता  ने   कहा --- बापू  !  इन  पिछड़े लोगों  को   समझाने    एवं  आपके  स्वयं  सफाई  करने  से  भी   इन  पर  कोई  प्रभाव   तो  पड़ता  नहीं  ,  फिर  भी  आप  क्यों  तन्मय  होकर   इस  कार्य  में  लगे  रहते  हैं  ? '
  गांधीजी  ने  कहा --- बस !  इतने  में  ही  धैर्य  खो  दिया   l  सदियों  के  संस्कार  इतनी  जल्दी  थोड़े  ही  दूर  हो  जायेंगे  l  लम्बे  काल  तक  इनके   मध्य  रहकर   इनमे  शिक्षा ,  स्वास्थ्य ,  सफाई  के  प्रति  अभिरुचि  एवं  जागरूकता  पैदा  करनी  होगी   l