26 January 2024

WISDOM -----

  हमारे  महाकाव्य  हमें  जीवन  जीने  की  शिक्षा  देते  हैं  l  इनके  विभिन्न  प्रसंग  हमें  बताते  हैं   कि   मनुष्य   की  मानसिक  कमजोरियां ,  उसके  भीतर  छिपी  हुई  बुराइयाँ   उसे  गुलाम   बनाती    हैं  l  ईर्ष्या , द्वेष , लालच , कामना , वासना , अति  महत्वाकांक्षा  , अहंकार  --- ये  सब  ऐसी  बुराइयाँ  हैं   जो  व्यक्ति  को  गुलाम   बनने    पर  विवश  कर  देती  हैं ,  व्यक्ति  कितना  ही  धन -संपन्न  हो  ,  कितने  ही  ऊँचे  पद  पर  हो  ,  इन  बुराइयों  की  वजह  से  उसे  कहीं  न  कहीं  अपने  स्वाभिमान  को  खोना  पड़ता  है  l  रावण   प्रकांड   पंडित   था  ,  उसके  पास  सोने  की  लंका  थी  , काल  तक  को  उसने  बंदी  बना  लिया  था   लेकिन   महत्वाकांक्षा , अहंकार  और  सीताजी  को  पाने  की  तीव्र  लालसा  के  कारण  कटोरा  लेकर , वेश  बदलकर   भिखारी  बन  गया  , और  छुपते -छुपाते   चला  , कहीं  कोई  देख  न  ले  l   दुर्योधन  के  पास  भी  सब  कुछ  था   लेकिन  ईर्ष्या  और  अति  महत्वाकांक्षा  ने  उसे  षड्यंत्रकारी  बना  दिया  ,  उसकी  दुष्प्रवृत्तियों  ने  उसकी  बुद्धि  हर  ली  l  अपनी  पतिव्रता  माँ  की  पवित्र   ऊर्जा   से  अपने  शरीर  को  फौलाद  बनाने  के  लिए  निर्वस्त्र  चल  दिया  l  यह  सब  प्रसंग  इस  बात  का  संकेत  करते  हैं  कि    जब  ये  मानसिक  कमजोरियां  व्यक्ति  पर  बुरी  तरह  हावी  हो    जाती  हैं   तब  व्यक्ति  स्वयं  ही  अपनी  असलियत  संसार  को  बता  देता  है  l  रावण  अनेक  गुणों  से  संपन्न  था   लेकिन  उसने   सीता -हरण  कर  के  अपनी  राक्षसी  प्रवृत्ति  पर  स्वयं  ही  मोहर  लगा  दी  ,  संसार  उसे  राक्षसराज  रावण  कहता  है  l  इसी  तरह  दुर्योधन   कुशल  प्रशासक  था , प्रजा  के  हित  का  बहुत  ध्यान  रखता  था   लेकिन  सारा  जीवन  पांडवों  के  विरुद्ध  षड्यंत्र  कर  के   और  हर  तरीके  से  उन्हें  कष्ट  देकर ,  अत्याचार , अन्याय  करने     के  कारण    सुयोधन   के  बजाय    षड्यंत्रकारी   दुर्योधन  कहलाया   l      हमारे  पुराणों  की  विभिन्न  कथाएं  इस  बात  को  भी  बताती  हैं   कि  ईर्ष्या , द्वेष , अहंकार , महत्वाकांक्षा  ---- आदि  बुराइयाँ  थोड़ी -बहुत  तो  सभी  में  होती  हैं  ,  इनसे  कोई  भी  नहीं  बचा  है   लेकिन  इनकी  ' अति '  सम्पूर्ण  समाज  के  लिए  घातक  होती  है  l  क्योंकि   इनसे    जुड़ी  इच्छाएं    एक  व्यक्ति  स्वयं  में   अकेले  ही  पूरी  नहीं  कर  सकता   , इसके  लिए  उसे   अन्य  लोगों  की  आवश्यकता  पड़ती  है   और  इच्छाओं  की  तीव्रता  के   साथ   समूह  बढ़ता  जाता  है   और  इच्छाओं  में  बाधा  आने  पर  गुणात्मक  दर  से  अपराध  भी  बढ़ता  जाता  है  l  आज  जब  वैश्वीकरण  का  युग  है  , संचार  के  साधनों  की  इतनी  प्रगति  हो  गई  है   तो  इन  इच्छाओं  का  और  इनसे  जुड़े  अपराधों  का   भी  वैश्वीकरण  हो  गया  है   इसलिए  संसार  में  इतना  तनाव ,  छिना -झपटी , युद्ध , अशांति  है  l  इसलिए  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी   कहते  हैं   कि  मनुष्य  की  चेतना  परिष्कृत  हो ,  विचारों   में  सुधार  हो  ,  सब  सद्बुद्धि  के  लिए  प्रार्थना  करें   तभी  धन  और  शक्ति  का  सदुपयोग  होगा   और  संसार में  सुख -शांति  होगी  l