22 April 2020

जिसके पास कुछ होता है , भयभीत भी वही होता है

 वैराग्य शतक  में  भतृहरि  ने  भय  की  स्थिति  का  सूक्ष्म  विश्लेषण  किया  है  ---   ' भोग  में  रोग  का  भय ,   सामाजिक  स्थिति    में  गिरने  का  भय ,   धन  में  चोरी   होने  का  भय  ,  सत्ता  में  शत्रुओं  का  भय ,  सौंदर्य  में  बुढ़ापे  का  भय  ,  शरीर  में  मृत्यु  का  भय  l   इस  तरह  संसार  में  सब  कुछ  भय  से  युक्त  है  l '
             भोग - विलासिता   का  जीवन , स्टेट्स , धन सम्पदा ,  सत्ता  ,  सौंदर्य   यह  सब  उन्ही  के  पास  होता  है  जिनके  पास  वैभव  है   l   वे  इस  जीवन  के  आदि  हो  जाते  हैं  ,  इसलिए  उन्हें  सदैव  इसके  खोने  का  भय   सताता  रहता  है  l   निर्धन  व्यक्ति   तो  अपनी  गरीबी ,  भूख   और  अमीरों  द्वारा  किये  जाने  वाले  शोषण  से  तंग   हो  कर  ही  मरते  हैं   लेकिन  संपन्न  वर्ग  में   हम   तनाव ,  पागलपन ,  आत्महत्या  ,  राजरोग ---- आदि  से   जीवन  का  अंत  होता  देखते  हैं  l 
  यह  एक  चिंतन  का  विषय  है   कि   सब  कुछ  होने  के  बाद  भी  इस  वर्ग  को  शांति  नहीं  है  l   संसार  में  बड़े - बड़े  उत्पात, दंगे - फसाद , नर - संहार    इसी  वर्ग  के  अहंकार  और  लालच  की  वजह  से  होते  हैं  l   गरीब  तो  अपनी  रोटी - रोजी  की  समस्या  में  उलझा  हुआ  है  ,  इसी  कमजोरी  की  वजह  से  शक्तिशाली  वर्ग  अपने  स्वार्थ  के  लिए  इनको  इस्तेमाल  करते  हैं  l
महाभारत  काल  में  देखें  तो  दुर्योधन  के  पास  सब  कुछ  था  ,  लेकिन  उसे  सदा  अपनी  सत्ता  के  खोने  का  भय  सताता   था l   इसी  कारण  उसने  भीम  को  जहर  देकर  नदी  में  फेंक  दिया  ,  पांडवों  को  लाक्षा गृह  में  भेजा  ,  जिससे  वे  वहां  जलकर  ख़त्म  हो  जाये ,  वहां  वे  बच  गए   तो  जुए  में  चालाकी  से  हराकर  जंगल  भेज  दिया  l   आसुरी  प्रवृतियां  शुरू  से  रही  हैं  ,  बस  उनके  कार्य  करने  के  ,  अत्याचार - अन्याय  कर  दैवी  प्रवृतियों  को  कमजोर  करने  के  तरीके  युग  के  अनुसार  बदलते  रहे  हैं  l   दैवी  प्रवृतियां  जागरूक  और  संगठित  होकर  ही   इस  संग्राम  में  विजयी  हो  सकती हैं  l

अर्थ --- धरती

  यह  धरती ,  यह  मिटटी  हमें  ईश्वरीय  देन   है  ,  विज्ञान   की  कोई  भी  प्रयोगशाला  इस  मिटटी  को  बना  नहीं  सकती  ,  फिर  भी  मनुष्य   अहंकार  करता  है  l    विशाल  भूभाग   को  मनुष्य  ने  अपनी  सुविधा  के  लिए  नक़्शे  बनाकर  विभिन्न  देशों  और  विभिन्न  क्षेत्रों  में  बाँट  लिया  है  l   यह  भी  श्रम विभाजन  ही  है  जो  उचित  भी  है    लेकिन  इन  सबसे  अलग  हटकर  मनुष्य  ने    स्वार्थ  और  लालच   के  वशीभूत    होकर     इस  अर्थ  को  ' अर्थ ' ( धन )  के  अनुसार  दो  हिस्सों  में  बाँट  लिया  है  --- एक  ओर   सब  अमीर  हैं   और  दूसरी  ओर   सब  गरीब  हैं   l   यही  इस  धरती  पर  अशांति  का  सबसे  बड़ा  कारण  है  l
   अमीर  व्यक्ति  चाहे  किसी  भी  देश  के  हों ,  किसी  भी  विभाग  के  हों  ,   वे  सब  एक  हैं  ,  सब  की  एक  सी  प्रवृति  है  ,  गरीबों  और  कमजोर  का शोषण  करके  ही   कोई  इतना  अमीर  बनता  है    और  वे  सब  अपनी  इस  सम्पदा  को  दिन - प्रतिदिन  बढ़ाना  चाहते  हैं  ,  किसी  भी  कीमत  पर   इसे  खोना  नहीं  चाहते  ,  यह  खोने  का   भय   इनके  तनाव  का  सबसे  बड़ा  कारण  है  l
  यह  एक  विडम्बना  ही  है    अमीरों  की  अमीरी ,  भोग - विलास  सभी  कुछ   गरीब  और  कमजोरों  के  बिना  चल  नहीं  सकता  l    घरेलू   काम - काज  से  लेकर ,  फैक्ट्री  के  काम ,  भोजन , सफाई   आदि  जीवन  के  प्रत्येक  क्षेत्र  में    वे  इन्ही  लोगों  पर  निर्भर  हैं ,  एक  प्रकार  से  परजीवी  हैं  l   'धन  बहुत  महत्वपूर्ण  है ,  लेकिन  केवल  धन  से  जीवन  नहीं  चलता   l
यही  कारण  है  कि   ये  लोग  विभिन्न  तरीकों  से  गरीबों  का  शोषण  कर  उन्हें  गरीब  ही  बनाये  रखते  हैं  ,  उन्हें  किसी  भी  तरह  आगे  बढ़ने  का , जागरूक  होने  का  मौका  नहीं  देते   l
 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  इसी  को  दुर्बुद्धि  कहते  हैं  l   वे  कहते  हैं  हम  सब  एक  माला  के  मोती  है ' l  अमीर  हो  या  गरीब  ,  पेड़ - पौधे , वनस्पति , पशु - पक्षी   सम्पूर्ण  पर्यावरण   ये  सब  इस  माला  के  मनके हैं , मोती  हैं,     जो   परस्पर  निर्भर  हैं   l   एक  भी  मोती  ख़राब  होगा   तो  माला  का  अस्तित्व  खतरे  में  पड़   जायेगा  l   सुख - शांति  और  तनाव रहित  जीवन  जीने  के  लिए   सबके  साथ  संतुलन  बना  कर  चलना  होगा  l