19 August 2020

WISDOM ------ भय से आनंद नहीं , भीरुता आती है l

   भगवान  श्रीकृष्ण  की  बाल  लीलाएं  हैं  ,  जो  हमें  कुछ  सन्देश  देती  हैं , कुछ  सिखाती  हैं  l   ऐसी  ही  एक  लीला  है ---- वृंदावन  में  इंद्रोत्सव  की  तैयारियाँ   चल  रहीं  थीं  l   गर्गाचार्य   ने  नन्द बाबा  से  कहा  कि   इस  बार  श्रीकृष्ण  को   यजमान  बनाया  जाये  l  इस  हेतु  वे  श्रीकृष्ण  के  पास  गए   l   तब  कृष्ण जी  ने  उनसे  कहा ---- ' आपका  आदेश  है  तो  मैं  मना  नहीं  करूँगा   लेकिन  इंद्रोत्सव  मुझे  पसंद  नहीं  l '  गर्गाचार्य  को  बहुत  आश्चर्य  हुआ  ,  उन्होंने  कहा ---' प्राचीन  काल  से  यह  उत्सव  मनाया  जा  रहा  है   l  तुम्हे  इससे  क्या  विरोध  है   ? '     श्रीकृष्ण  ने  कहा ----- "  यज्ञ  में  हम  ढेरों  सामग्री  इसलिए  समर्पित  कर  देते  हैं    क्योंकि  हम  इंद्र  से  भय  खाते  हैं   l   उसकी  आराधना  नहीं  करेंगे  तो  वह  कुपित  हो  जायेगा  l   मेरा  अन्तस्  कहता  है   कि   भय  से  जो  मनाया  जाये  ,  वह  उत्सव  नहीं  हो  सकता ,  वह  आतंक  है  l   भय  से  भीरुता  आती  है  l "

  गर्गाचार्य  ने  कहा  कि   तुम  क्या  चाहते  हो  ?  तब   श्रीकृष्ण  ने  कहा  ----- " मैं  ऐसा  उत्सव  पसंद  करता  हूँ  ,  जो  प्रेम  और  उल्लास  को  जगाए  l  अपने  गोप - गोपियों  के  सम्मान  में  उत्सव  मनाया  जाये  तो  उत्तम  होगा  l  दूध , मक्खन  और  घी  देने  वाली   गायों   के लिए  उत्सव  मनाएं  l  शीतल  छाया  देने  वाले  वृक्षों  के  लिए  उत्सव  मनाएं  ,  जिनसे  फल - फूल  और  ईंधन  मिलता  है  ,  उनसे  हमें  वन  में  ही  नहीं , घर  में  भी  आश्रय  मिलता  है  l  हमें  इंद्र  के  कोप  से  भयभीत  नहीं  होना  चाहिए  l "  उनके  इस  विचार  का  समर्थन  वहां  आये   मुनि  सांदीपनि  ने  भी  किया   l   उनकी  प्रेरणा  थी  कि  गोपोत्सव मनाकर  गोवर्धन पूजा  की  जाये  , यज्ञ  का  आयोजन  हो  , उसमे  आहुतियां  भी  दी  जाएँ  लेकिन  वे  निमित  मात्र  हों  l   इंद्र  उत्सव  के  लिए  जो  मनो  दूध , घी  और  अन्न   आदि संचित  कर  रखा  गया  था  , वह  व्रज  के  बालकों  के  लिए  रखें   l   गोवर्धन  पूजा  की  नई   परंपरा  शुरू  हुई  l