पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- सम्मान , प्रसिद्धि , यश , बड़ा आदमी होने का स्वांग , ये सब अहंकार के ही रूप हैं l सारी दुनिया इस ' मैं ' के कारण ही तो पागल है l यह ' मैं ' एक काला नाग है , महाविषधर सर्प है l इस महविषैले सर्प ने जिसे डस लिया , समझो उसकी खैर नहीं l अहं का विष ही सारी पीड़ा का कारण है l ------ जितना बड़ा अहंकार , उतनी बड़ी पीड़ा l अहंकार घाव है , जरा सा हवा का झोंका भी दरद दे जाता है l " स्वामी रामकृष्ण परमहंस कहते हैं ---- " जब तक अहंकार रहता है , तब तक ज्ञान नहीं होता और न मुक्ति होती है l इस संसार में बार - बार आना पड़ता है l बछड़ा ' हम्बा - हम्बा ' ( मैं , मैं ) करता है , इसलिए उसे इतना कष्ट भोगना पड़ता है l कसाई काटते हैं l चमड़े से जूते बनते हैं और जंगी ढोल मढ़े जाते हैं l वह ढोल भी न जाने कितना पीटा जाता है l तकलीफ की भी हद हो जाती है l अंत में आँतों से तांत बनाई जाती है l उस तांत से जब धुनिए का धुनहा बनता है और उसके हाथ में धुनकते समय जब तांत तूँ - तूँ करती है , तब कहीं निस्तार होता है l तब वह ' हम्बा - हम्बा ' ( हम - हम ) नहीं बोलती , तूँ - तूँ बोलती है , अर्थात हे ईश्वर , तुम ही कर्ता हो , मैं अकर्ता l तुम यंत्री हो , मैं यंत्र l तुम्ही सब कुछ हो l
21 January 2021
WISDOM ------
ग्रीक का राजा प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात से मिलने पहुंचा l उसने उनसे प्रश्न किया --- " कृपया ये बताएं कि संसार में इतनी असमानता है , हर जगह विसंगतियाँ हैं , इनका निस्तारण कैसे हो सकता है ? " सुकरात ने उत्तर दिया ---- " राजन ! दुनिया भर की असमानता हटाने की आवश्यकता ही क्या है ? यदि हम संसार के सारे पर्वत समतल कर दें तो पर्वतों पर रहने वाले प्राणी कहाँ रहेंगे और यदि संसार के सारे समुद्र और खाइयां पाट दी जाएँ तो मछलियाँ कहाँ रहेंगी ? समुद्र और जल में रहने वाले अन्य प्राणी कहाँ रहेंगे ? इसलिए यह सोचने के बजाय कि संसार की सारी असमानता हटा दी जाए , तुम अपने मन से इस भेदभाव को हटाने का प्रयत्न करो , तो तुम्हे सारी विसंगतियों में भी समरसता दिखाई पड़ने लगेगी l " सुखी जीवन का यही मार्ग है l