9 January 2023

WISDOM -----

   लघु कथा ---- एक  राजा  था  , उसे  अपने  सौन्दर्य  व  संपदा  पर  बहुत  अभिमान  था  l  उसे  लगता  था  कि  सारे  राज्य  का  भरण -पोषण  वही  कर  रहा  था  , नागरिकों  को  जो  भी  सुख -सुविधा  है  , वह  सब  उसी  की  बदौलत  है  l  उसका  राज्य  प्राकृतिक  द्रष्टि  से  बहुत  साधन -संपन्न  था   इसलिए  वह  आवश्यकतानुसार  दूसरे  राज्यों  की  भी  बहुत  मदद  कर  देता  था  l  इस  कारण  उसका  अहंकार  बहुत  बढ़ा -चढ़ा  था  l   एक  दिन  एक  साधु  उसके  दरबार  में  आए  l   राजा  ने  दर्प  से  उनसे  पूछा --- " बोलो ,  क्या  चाहिए  तुम्हे  ? '  साधु मुस्कराते  हुए  बोले  --- '  राजन  !  तुम्हारे  पास  अपना  क्या  है  , जो  तुम  मुझे  दोगे  ? जो  तुम्हे  सौन्दर्य  मिला  वह  तुम्हारे  माता -पिता  का  है  l  तुम्हारे  भंडार गृह  का  धन्य  धरती  माँ  का   और  कृषकों  के  श्रम -पसीने  का  है  l  राज -पाट  , प्रजा  ने  तुम्हे  दिया  है  l  तुम्हारे  शरीर  में  जो  प्राण  हैं  , वो  प्रकृति  ने  तुम्हे  दिया  है  l  शरीर  छूटते  ही   ये  सब  छूट  जायेगा  l  "  साधु  की  इन  बातों  से  राजा  का  अहंकार  नष्ट  हो  गया   l  वह  समझ  गया  कि   यह  सारा  संसार   तो  ईश्वर  ही  चलाता  है  ,   संसार  में  जो  भी  काम  हैं  , वे  सब  ईश्वर  के  हैं  l  यह  हमारा  सौभाग्य  है  कि  हमें  ईश्वर  ने  श्रेष्ठ  कार्यों  के  लिए  नियुक्त  किया  l  यदि  हम  ये  कार्य  नहीं  करेंगे  तो  ईश्वर  इन्हें  किसी  और  से  करा  लेंगे ,  फिर  हम  ही  उस  श्रेष्ठता  से  वंचित  रह  जायेंगे  l  इसलिए  उचित  यही  है  कि  स्वयं  को  ईश्वर  का  प्रतिनिधि  समझकर  कार्य  करे   और  अहंकार  न  करे  l  राजा  ने  झुककर  साधु  को  प्रणाम  किया  l  

WISDOM ----

   लघु कथा ---- एक  सेठजी  थे  l  उनकी  पत्नी  का  निधन  हो  गया  l  सेठ  ने  सोचा  कि  क्यों  न  चारों  बहुओं  को  परखकर    उनमे  से  किसी  एक  को  घर  का  सम्पूर्ण  दायित्व  सौंप  दिया  जाए  l   इस  विचार  के  साथ  उन्होंने  चारों  बहुओं  को  धान  के  पांच  दाने  देते  हुए  कहा  --- इन्हें  संभाल कर  रखना   और  जब  मैं  मांगू  तो  मुझे  लौटा  देना  l  चारों  बहुएं  दाने  लेकर  चली  गईं  l   बड़ी  बहु  ने  सोचा  कि   भंडार गृह  में  पर्याप्त  धान  पड़ा  है  , इसलिए  जब  भी  ससुर जी  मांगेंगे  तो  वहीँ  से  लाकर  दे  दूंगी  l   दूसरी  और  तीसरी  बहु  ने  भी  ऐसा  ही  सोचा   और  उन  तीनों  ने  अपने  धान  के  दाने  उसी  भंडार गृह  में  डाल  दिए  l  चौथी  बहु  ने  सोचा  कि  सत्कर्म  करने  से  वह  बढ़ता  है   इसलिए  उसने  पाँचों  दानों  को  खेत  में  बो  दिया  ,  उनसे  जो  फसल  हुई  , उसने  उन्हें  फिर  से  खेत  में  बो  दिया  l  पांच  वर्ष  बाद  सेठजी  ने   बहुओं  से  दाने  वापस  मांगे   तो  पहली  तीन  बहुओं  ने   भंडार गृह  से  दाने  लाकर  वापस  कर  दिए  , परन्तु  चौथी  बहु  ने   सारी  कहानी  सुनाते  हुए  कहा  --- " पिताजी  !  वे  पांच  दाने  असंख्य  दानों  में  बदल  गए  और  उन्हें  एक  दूसरे  भंडार गृह  में  रखना  पड़ा  l  "  उसकी  कथा  सुनकर  सेठ  बहुत  प्रसन्न  हुआ   और  बोला  --- " पुत्री  !  जिस  प्रकार  धान  के  दाने  बोने  से  बढ़  गए  ,  वैसे  ही   पुण्य ,  सेवा  और  परोपकार  के  कार्यों  से  बढ़ता  है  l  मुझे  तुम  पर  विश्वास  है  कि  तुम  अपने  परिवार  की   पुण्य संपदा  को  बढ़ाओगी  l  "  सेठजी  ने  छोटी  बहु  को   घर  की  मालकिन  बना  कर  उसे  सम्पूर्ण  जिम्मेदारी  सौंप  दी  l