21 September 2020

WISDOM -----

   एक  समय  की  बात  है   इंदौर   में   किसी  रास्ते  के  एक  किनारे  पर  एक  गाय  अपने  बछड़े  के  साथ  खड़ी  थी   l   तभी  देवी  अहिल्याबाई  के  पुत्र   मालोजी राव  की  सवारी  निकली  l   गाय  का  बछड़ा   अकस्मात  उछलकर  रथ  के  सामने  आ  गया  l   गाय   भी  उसके  पीछे  दौड़ी  ,  पर  तब  तक  मालोजी  का  रथ   बछड़े  को  कुचलता  हुआ   आगे  निकल  गया ,  किसी  ने  परवाह  नहीं  की   l   गाय  स्तब्ध  आहत - सी   वहीँ  बैठ  गई  l   थोड़ी  देर  बाद  अहिल्याबाई  वहां  से  गुजरीं  ,  उन्होंने   गाय  को  और  उसके  पास  मृत  पड़े  बछड़े   को  देखकर  घटनाक्रम  का  पता  लगाया  l   सारा  घटनाक्रम  जानने  पर  अहिल्याबाई  ने  दरबार  में   मालोजी  की  पत्नी  मेनाबाई  को  बुलाया  l   उन्होंने  मेनाबाई  से  पूछा  ---- " यदि  कोई  व्यक्ति  किसी  माँ  के  सामने   उसके  बेटे  की  हत्या  कर  दे  ,  तो  उसे  क्या  दंड  मिलना  चाहिए  ? "  मालोजी  की  पत्नी  ने  जवाब  दिया  --- " उसे  प्राणदंड  मिलना  चाहिए  l  "  देवी  अहिल्या  ने  मालोजी  को  हाथ - पैर   बांधकर   मार्ग  पर  डालने  को  कहा   और  फिर  उन्होंने  यह  आदेश  दिया  कि   मालोजी  को  यह  मृत्युदंड   रथ  से  टकरा  कर  दिया  जाये  l   परन्तु  यह  कार्य  करने  को  कोई  भी  सारथी  तैयार  न  हुआ  l   देवी  अहिल्याबाई  न्यायप्रिय  थीं  l  अत:  वे  स्वयं  माँ  होते  हुए  भी   इस  कार्य  को  करने  के  लिए   रथ  पर  सवार  हो   गईं  l   वे  रथ  को  लेकर  आगे  बढ़ी  ही  थीं   कि   तभी  एक  अप्रत्याशित  घटना  घटी  l   वही  गाय  रथ  के  सामने  आकर  खड़ी  हो  गई   और  उसे  जितनी  बार  हटाया  जाता  ,  वह  उतनी  ही  बार   अहिल्याबाई  के  सामने  आ  जाती   l   यह  दृश्य  देखकर  मंत्री परिषद  ने   देवी  अहिल्या  से  मालोजी  को  क्षमा  करने  की  प्रार्थना  की  l   इस  तरह  गाय  ने  स्वयं  पीड़ित   होते  हुए  भी   मालोजी  को  क्षमा  करके  उनके  जीवन  की  रक्षा  की   |   इंदौर   में  जिस  जगह  यह  घटना  घटी ,  वह  स्थान  आज  भी  आड़ा   बाजार  के  नाम  से  जाना  जाता  है   क्योंकि  इस  स्थान  पर  गाय  ने   अड़कर   दूसरे  की  रक्षा  की   l 

WISDOM ----

   चाहे  कोई  भगवान  का  कितना  भी  बड़ा  भक्त  हो  ,  कर्म फल  से  कोई  नहीं  बचा  है  l   जब  धरती  पर  पाप  बहुत   बढ़    जाता  है   तब  भगवान  स्वयं  जन्म  लेते  हैं  पापियों  का  नाश  करने  के  लिए   l   जब  दसों   दिशाओं  में  रावण  का  आतंक  था  ,  तब  भगवान  राम    का  जन्म  हुआ  l   उस  समय  ऋषियों  के  चिंतन  में  यह  बात  थी   की  रावण  तो  सपरिवार  परम  शिव  भक्त  है  ,  तो  क्या   प्रभु  स्वयं  अवतार  लेकर   अपने  ही  भक्त  का  विनाश  करेंगे   ?        तब  भगवान  भोलेनाथ  ने   ऋषियों  से  कहा --- ' हे   ऋषिगण  !  पूजा  के  कर्मकांड  को  भक्ति  नहीं  कहा  जा  सकता  l   भक्ति  तो  पवित्र  भावनाओं   में वास  करती  है  l   जो  भक्त  है  , उसकी  संवेदना  का  विस्तार  तो  सृष्टिव्यापी  होता  है  ,  भला  वह  कैसे  किसी  का  उत्पीड़न   कर  सकेगा  l   रावण  भक्त  नहीं , तपस्वी  है  l   आज  उसे  अपने  तप  का  फल  मिल  रहा  है  ,  परन्तु  उसकी  संवेदना  को  उसके  अहंकार  ने  निगल  लिया  है  l   फिर  यदि  किन्ही  अर्थों  में  वह  मेरा  भक्त  भी  है   तो   अपने  भक्त  का  उद्धार  करना  मेरा  ही  दायित्व  है  l  '   युद्ध    से पूर्व  जब  रावण  ने  शक्ति  पूजा  की  तब  देवी  ने  उसे  वरदान  दिया  था  --- ' तुम्हारा  कल्याण  हो  l '    रावण  का  अंत  होने  में  ही  उसका  कल्याण  था  l