19 October 2022

WISDOM -----

 कर्म फल  प्रकृति  का  नियम  है  l  यह  नियम  सब  के  लिए  हैं  चाहे  वह  मनुष्य , हो  या  देवता , यक्ष  या  फिर  स्वयं  भगवान  ही  क्यों  न  हों   l  महाभारत  की  कथा   में  है   कि  युद्ध  में  अर्जुन  के  बाणों  से  घायल  हो  जाने  पर  वे  छह  महीने  तक  शर -शैया  पर  पड़े  रहे  l  एक  काँटा  चुभ  जाए  तो  कितना  कष्ट  होता  है   और  पूरे  शरीर  में  बाण  चुभे  हों   और  उन  नुकीले  बाणों  को  ही  छह  महीने  के  लिए  अपनी  शैया  बना  लेना  --- उस  असीम  कष्ट  को  हम  अनुभव  कर  सकते  हैं  l  उन्हें  इतना  कष्ट  उठाना  पड़ा  l   अपनी  भीष्म प्रतिज्ञा  के  कारण  अधर्म  और  अनीति  के  मार्ग  पर  चलने  वाले  दुर्योधन  का  साथ  देना  पड़ा  l  यह  सब  क्यों  हुआ  ?  इसके  पीछे  एक  कथा  है  -----   एक  बार  आठ  वसु   अपनी  पत्नी  सहित  मृत्यु लोक  में  भ्रमण  के  लिए  आए  और   कई  तीर्थों  के  दर्शन  करते  हुए  महर्षि  वशिष्ठ  के  आश्रम  पहुंचे  l  आश्रम  का  दर्शन  करते  हुए   एक  वसु 'प्रभास '  अपनी  पत्नी  सहित  महर्षि  के  उद्यान  में  आ  गए  ,  वहां  महर्षि  की   कामधेनु   गाय  नन्दिनी  थी  , जिसे  देखकर  वसु  की  पत्नी  उसे  पाने  के  लिए  व्याकुल  हो  गई  और  वसु  प्रभास  से  बोली  --- 'अभी  महर्षि  आश्रम  में  नहीं  है ,  इसे  हम  चुरा  लेते  हैं  l  '  वसु  ने  उसे  बहुत  समझाया  कि  लोगों  की  प्यारी  वस्तु  देखकर  लालच  करना  और  उसे  पाने  की  अनाधिकार  चेष्टा  करना  पाप  है  l  हम  अच्छे  कर्मों  के  कारण  ही  देवता  हुए  हैं  ,  बुराई  पर  चलने  से  कर्म-भोग  का  दंड  भुगतना  पड़ेगा  l  प्रभास  ने  उसे  हर  तरह  से  समझाया   लेकिन  वह  न  मानी   और  उसे  गाय  चुरानी  पड़ी  l   ऋषि  जब  आश्रम  वापस  आए  और  उन्होंने  नन्दिनी  को  नहीं  देखा  तो  सब  से  पूछा  l  कुछ  पता  न  चलने  पर  जब  उन्होंने  अपनी  दिव्य  द्रष्टि  से  देखा  तो  मालूम  हुआ  कि  यह  तो  वसुओं  की  करतूत  है  l  देवताओं  के  ऐसे  पतन  पर  उन्हें  बहुत  क्रोध  आया   और  उन्होंने  शाप  दे  दिया  कि  आठों  वसु   देव शरीर  त्याग  कर   पृथ्वी  पर  जन्म  लें  l   शाप  व्यर्थ  नहीं  हो  सकता  l  देव गुरु  के  कहने  पर   उन्होंने  सात  वसुओं  को  तो  धरती  पर  जन्म  लेते  ही  तत्काल  मुक्ति  का  वरदान  दे  दिया   लेकिन  अंतिम  वसु  प्रभास  को   जिसने  कामधेनु  चुराई  थी  उसे  चिरकाल  तक  मनुष्य  शरीर  में  रहकर  कष्टों  को  सहन  करना  पड़ा  l  ये  आठों  वसु  महाराज  शांतनु  और  गंगा  के  पुत्र  थे  ,  जिनमे  सात  की  तो  तत्काल  मृत्यु  हो  गई   परन्तु  आठवें  वसु  प्रभास  को  पितामह  के  रूप  में   जीवित  रहना  पड़ा  l  यह  कथा  उन्हें  समझाने  के  लिए  है  जो  बेईमानी  और  भ्रष्टाचार  में  लिप्त  हैं  l  ऋषि  कहते  हैं --- यह  न  समझा  जाए   कि  एकांत  में  किया  गया  अपराध  किसी  ने  देखा  नहीं   l  नियंता  की  द्रष्टि  सर्वव्यापी  है   उससे  कोई  बच  नहीं  सकता  l