महाभारत के विभिन्न प्रसंग पाप कर्म और उनके परिणाम को बताए हैं l यही नहीं अत्याचारी और अन्यायी का समर्थन करने वाले चाहे भीष्म पितामह और कर्ण ही क्यों न हो , उनके अंत को भी बताते हैं l एक प्रसंग है अश्वत्थामा का , यदि उसके द्वारा किए गए महान पाप का परिणाम कोई समझे तो शायद युद्ध , आतंक जैसी घटनाएँ समाप्त हो जाएँ l ---महाभारत का अंत हुआ , पांडव पक्ष के सभी लोग निश्चिन्त होकर शिविर में सो रहे थे , तब अश्वत्थामा ने वहां भयानक आतंक मचाया , अनेक वीरों को सोते में कुचलकर मार डाला और शिविर में आग लगा दी जिसमे द्रोपदी के पांच पुत्र जो बहुत छोटे थे उनका भी अंत हो गया l इससे भी उसका जी नहीं भरा तो उसने एक तिनके को अभिमंत्रित कर के अभिमन्यु की पत्नी उत्तर के गर्भ की ओर फेंका जिससे पांडवों के वंश का समूल नाश हो जाये l तब भगवान कृष्ण ने उस गर्भस्थ शिशु की रक्षा की l अश्वत्थामा जंगल में भाग गया , भीम ने उसे ढूंढ़कर भगवान कृष्ण के सामने प्रस्तुत किया l तब भगवान ने कहा --- इसे मृत्यु दंड नहीं दो l इसके माथे पर जो मणि है उसे निकाल दो l भीम ने वह मणि निकाल दी जिससे उसके मस्तक पर घाव हो गया और वह रिसने लगा l भगवान ने कहा --यह इस घाव को लिए युगों तक भटकता रहेगा l पूर्वज कहा करते थे कि अचानक यदि पास से यदि कोई भयानक बदबूदार कोई निकल गया तो समझो वह अश्वत्थामा था l आज युद्ध में भयानक बम आदि से कितने निर्दोष प्राणी , छोटे -छोटे बच्चे , महिलाएं , गर्भस्थ शिशु आदि मारे जाते हैं l यदि उक्त प्रसंग की गहराई को समझें तो संभवतः जीवन की राह बदल जाए l
7 November 2022
WISDOM----
कहते हैं ' जब जागो तब सवेरा l ' ---यह ' जागना ' भी ईश्वर की कृपा से ही संभव है l ---- सम्राट विक्रमादित्य के शासन काल में महान इंद्रजालिक , महान तांत्रिक वेताल भट्ट थे l उनका समूचा जीवन शमशानों में , तांत्रिक साधनों में बीता l कूटनीतिक चक्रव्यूह हो या सेना की व्यूह रचना , प्रत्येक समस्या का समाधान वे चुटकी बजाते ही कर देते थे l बड़े से -बड़े सम्राट उनके आगे सिर झुकाते थे l लेकिन अब कई दिनों से उनके मन में एक विचार उठ रहा था कि --'ये षड्यंत्र , ये कुचक्र किसके लिए किए , जीवन भर जिन पापों का भार उठाए घुमा , उससे क्या शरीर अमर हो गया ? मनुष्य से बढ़कर काल है , कोई कितना भी ऐंठे , अकड़ दिखाए पर काल को जीतना असंभव है l मृत्यु से कोई बच नहीं पाया है l जो अपने ही गोरख धंधे में लगा रहा वह अंततः पछताया और हाथ मलता हुआ ही गया l ' उनके विवेक चक्षु खुल गए , उन्होंने राजसी परिधान उतार फेंके और साधारण वेशभूषा में प्रात: काल भगवान महाकाल को प्रणाम कर निकल पड़े l कुछ ही कदम चले कि महाकवि कालिदास कालिदास आते हुए मिले l महाकवि ने उनसे पूछा ---- ' ये क्या वेश धारण कर लिया और अब कहाँ चले ? किसका ज्योतिष बिगड़ा ? ' तब वेताल भट्ट ने कहा ----' अब अंतिम और निर्णायक युद्ध अपने आप से ही होगा , अब स्वयं को जीतना है , एक युद्ध जो हमारे भीतर है उस पर विजय प्राप्त करनी है l ' कालिदास ने कहा ---- " किन्तु आर्य ! आपके बिना अवन्तिका ( उज्जैन ) का क्या होगा ? " बेताल भट्ट ने कहा --- " यह सब मोह है ! मनुष्य अहंकार वश ऐसा सोचता है और भावी पीढ़ी की प्रगति में बाधक बनता है `l यह कहकर वेताल आगे बढ़ गए और वानप्रस्थ लेकर समाज सेवा हेतु समर्पित हो गए l