9 February 2023

WISDOM -------

  पुराण  में  अनेक  कथाएं  हैं  जिनमे  यह   बताया  गया  है  कि   भगवान  को  छल , कपट , अहंकार    पसंद  नहीं  है  l   चाहे  कोई  भी  हो , वे  उसके  अहंकार   का  अंत  करते  हैं  l  हर  अहंकारी  इस  सत्य  को  जानता  भी  है   लेकिन  वह  इसे  छोड़  नहीं  पाता  l  महाभारत  की  एक  कथा  है ----  महाभारत  का  युद्ध  आरम्भ  होने  वाला  था  l  पांडवों  के  शिविर  में  उनके  पक्ष  के  सभी  महावीर  उपस्थित  थे  l  शिविर  में  चर्चा  होने  लगी  कि  कौन  महावीर   इस  महाभारत  के  महासमर  को  कितने  दिन  में  समाप्त  कर  सकता  है  L   युधिष्ठिर  ने  कहा --- पितामह  भीष्म   इसे  एक  महीने  में , द्रोणाचार्य   पंद्रह  दिनों  में   और  कर्ण  ने  तो  केवल  छह  दिनों  में  युद्ध  को  समाप्त  करने  की  बात  कही  है  l "  यह  सुनकर  अर्जुन  बोले ---- "वैसे  तो  युद्ध  के  संबंध  में  जय , पराजय  की  कोई  पहले  से  कोई  घोषणा  नहीं  कर  सकता ,  फिर  भी  मैं  आपको  आश्वस्त  करता  हूँ  कि  मैं  स्वयं  इस  युद्ध  को   एकम दिन  में  समाप्त  करने  में  समर्थ  हूँ   l "  अर्जुन  की  यह  बात  सुनकर   भीम  के  पौत्र   यानि  उसके  पुत्र  घटोत्कच  का  पुत्र  बर्बरीक   जो  एक  महा तपस्वी  और  परमवीर   था , उसे  इसका  अहंकार  भी  था , वह  बोला --- " मैं  आप  सबको  विश्वास  दिलाता  हूँ  कि  मैं  इस  युद्ध  को   केवल  एक  मुहूर्त  में  समाप्त  कर  सकता  हूँ   l  "  यह  सुनकर  सबको  बहुत  आश्चर्य  हुआ  l  श्रीकृष्ण  ने  ऊ८श्र्श्र  कहा --- " वत्स  !  तुम  भीष्म ,  द्रोणाचार्य , कर्ण  आदि  महारथियों  से  सुरक्षित  सेना  को    किस  विधि  से   एक  मुहूर्त  में  समाप्त  कर  पाओगे  ? "  इस  पर  बर्बरीक  ने  कहा ---  " इस  प्रश्न  का  उत्तर  मैं  कल  युद्ध भूमि  में  दूंगा  l "  दूसरे  दिन  प्रात : जब  दोनों  सेनाएं  युद्ध  भूमि  में  खड़ी  हुईं  तब   बर्बरीक  ने   अपने  धनुष  पर  बाण  चढ़ाया   और  उस  बाण  को  लाल  रंग  की  भस्म  में  रंग  दिया   और  बाण  को  प प्रत्यंचा  चढ़ाकर  छोड़  दिया  l  बाण  से  जो  भस्म   उड़ी   वह  दोनों  सेनाओं  के  मर्मस्थल  पर  गिरी  l  केवल  पांच  पांडव , , कृपाचार्य  और  अश्वत्थामा  के  शरीर  से  उसका  स्पर्श  नहीं  हुआ  l  अब  बर्बरीक  ने  कहा --- इस  क्रिया  से  मैंने  मरने  वालों  के  मर्मस्थल  का   निरीक्षण  कर  लिया  है  l  अब  बस , दो  घड़ी  में  मैं  इन्हें  मार  गिरता  हूँ  l "  यह  सुनकर  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  तुरंत  अपने  सुदर्शन  चक्र   से   उसका  मस्तक  काट  दिया  l  इससे  भीम , घटोत्कच  आदि  सबको  बहुत  दुःख  व  आश्चर्य  हुआ  l   तब  वहां  ब्रह्माजी  आए  और  उन्होंने  कहा --- " बर्बरीक  पूर्वजन्म  में  यक्ष  था   और  इसने  अहंकार वश  कहा  था   कि  किसी  देवता  को    पृथ्वी   पर  अवतार  लेने  की  जरुरत  नहीं  , यह  कार्य  मैं  अकेले  ही  कर  सकता  हूँ   , अवतार  का  प्रयोजन  जाने  बिना  उसने  अभिमानवश  यह  बात  कही  l  "  श्रीकृष्ण  ने   उसका  मस्तक  काटकर  उसके  अभिमान  का  अंत  किया   l   श्रीकृष्ण  ने  वहां  उपस्थित  सिद्ध चंडिका   से  कहा --- " आप  इसके  मस्तक  पर  अमृत सिंचन  करें  ताकि  यह  अमर  हो  जाये  l  ' अमृत सिंचन  से  जीवित  होने  पर  बर्बरीक  के  मस्तक  ने  भगवान  श्रीकृष्ण  से  निवेदन  किया  कि  वह  इस  महायुद्ध  को  देखना  चाहता  है   l  तब  भगवान  ने  उसके  मस्तक  को  पर्वत शिखर  पर   स्थापित  कर  दिया  l  युद्ध  की  समाप्ति  पर   जब  भीम , अर्जुन  आदि  को  अपनी  वीरता  का  अभिमान  हुआ   तो  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  कहा --- ' क्यों  न  हम  बर्बरीक  से  पूछ  लें  l ' जब  सब  इस  प्रश्न  को  लेकर  बर्बरीक  के  पास  गए   तो  उसने  कहा --- " आप  सब  बिना  किसी  कारण  अभिमान  कर  रहे  हैं  l  मैंने  यही  देखा  कि  इस  महायुद्ध  में  सभी  योद्धा   स्वयं  महाकाल  मके  द्वारा  मारे  गए  l  श्रीकृष्ण  के  रूप  में  आप  सब  उन्हें  पहचानों  और  अपने  अभिमान  को  दूर  कर  लो   क्योंकि  अभिमान  कभी  भी  शुभ  और  सुखद  नहीं  होता  l