एक राजा के अनेक शत्रु हो गए l एक रात शत्रुओं ने पहरेदारों को अपनी ओर मिला लिया और महल में जाकर राजा को दवा सुंघाकर बेहोश कर दिया l उसके बाद उन्होंने राजा के हाथ -पाँव बांधकर एक पहाड़ की गुफा में ले जाकर बंद कर दिया l राजा को जब होश आया तो अपनी दशा देखकर घबरा उठा l उस अँधेरी गुफा में उसे कुछ करते -धरते न बना l तभी उसे अपनी माता का बताया हुआ मन्त्र याद आ गया --- " कुछ कर , कुछ कर l " राजा की निराशा दूर हुई और उसने पूरी शक्ति लगाकर हाथ -पैर की डोरी तोड़ डाली l तभी अँधेरे में उसका पैर सांप पर पड़ गया जिसने उसे काट लिया l राजा फिर घबराया किन्तु फिर तत्काल ही उसे वही मन्त्र ' कुछ कर , कुछ कर ' याद आ गया l उसने तत्काल कमर से कटार निकालकर सांप के काटे स्थान को चीर दिया l खून की धार बहने से वह फिर घबरा गया लेकिन फिर उसे माँ का मन्त्र याद आ गया --' कुछ कर , कुछ कर ' उसने प्रेरणा पाकर अपने वस्त्र को फाड़ कर घाव पर पट्टी बाँध ली l अब उसे उस गुफा से बाहर निकलने की चिंता सताने लगी और भूख प्यास भी लगी थी l पुन: माँ के मन्त्र को याद कर वह उस अँधेरे में आगे बढ़ता रहा और गुफा के द्वार पर आ गया और उसके मुख पर लगे पत्थर को धक्का देने लगा l बहुत बार प्रयास करने पर आखिर वह पत्थर लुढ़क गया और राजा गुफा से बाहर निकलकर अपने महल में वापस आ गया l इस कथा से हमें यही शिक्षा मिलती है कि कभी हार नहीं मानो , बार -बार गिरते हो , तो बार - बार नए हौसले के साथ उठो , हिम्मत नहीं हारो l जीवन इतना सरल नहीं है , इसमें बड़े -बड़े तूफान आते हैं , उनका डटकर सामना करो और जिन्दगी की इस जंग को जीत लो l
28 November 2023
26 November 2023
WISDOM ------
लघु कथा ---- विनाश का कारण सांसारिक आकर्षण '------ कालिंदी के महापंडित कौत्स स्नान कर प्रात: वंदना कर रहे थे l एक घड़ियाल उन्हें काफी दूर से ताक रहा था , किन्तु कौत्स ऐसी ऊँची शिला पर बैठे थे कि घड़ियाल वहां तक पहुँच नहीं सकता था l उसने युक्ति से काम लिया और यमुना की तलहटी से रत्नों का ढेर उठाकर ऊपर की ओर उछाला l अपने चारों ओर मणि -मुक्तक देखकर महर्षि कौत्स का लोभ जाग उठा l उसने कौत्स से कहा --- " आचार्य ! मैं त्रिवेणी का रास्ता नहीं जानता , यदि आप मेरी पीठ पर बैठकर मुझे त्रिवेणी का रास्ता बता दें तो मैं इन तुच्छ मोतियों से बढ़कर पांच मुक्ताहार दे सकता हूँ l कौत्स के हर्ष का ठिकाना न रहा l घड़ियाल ने उन्हें पीठ पर बैठाया l अभी वह बीच धार में पहुंचा ही था कि उसे हंसी आ गई l घड़ियाल को हँसते देख कौत्स ने पूछा --- " वत्स ! असमय आपकी हँसी का क्या कारण है ? " घड़ियाल ने कहा --- " आचार्य ! आप जीवन भर दूसरों को उपदेश देते रहे कि विनाश सांसारिक आकर्षण के रूप में आता है l मनुष्य जब एक बार वासनाओं के शिकंजे में आ जाता है तब ये वासनाएं मनुष्य को वहां ले जाती हैं , जहाँ सिवाय विनाश के कुछ नहीं होता l दूसरों को उपदेश देने के बावजूद तुम यह तथ्य न समझ सके और आज एक लालच ने तुम्हे सर्वनाश के पास पहुंचा दिया l यह कहकर उसने कौत्स को उछाला और एक ही क्षण में निगल लिया l उपदेश देना बहुत सरल होता है , लेकिन उसे आचरण में उतारना बहुत कठिन l
25 November 2023
WISDOM -----
एक बार एक राजा ने मंत्री से पूछा ---- "क्या गृहस्थ रहकर ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है ? " मंत्री राजा को एक वन में ले गए और बोले ---- " महाराज ! इस वन में एक प्रसिद्ध महात्मा रहते हैं l उनसे मिलने के लिए कीड़ों -मकोड़ों से पांव बचाकर चलना पड़ता है l एक भी कीड़े की मृत्यु हो जाए तो वे शाप दे देते हैं l " राजा ध्यान पूर्वक चलते हुए महात्मा जी के पास पहुंचे और अपना प्रश्न पूछा l महात्मा जी ने प्रत्युत्तर में प्रश्न किया ---- "मेरे पास आते हुए मार्ग में क्या -क्या देखा ? " राजा बोले ---- " भगवन ! मैं तो आपके शाप के डर से कीड़े =मकोड़ों को देखता हुआ आया हूँ l रास्ते के किसी द्रश्य की ओर मेरी द्रष्टि ही नहीं गई l " महात्मा जी हँसते हुए बोले ---- " राजन ! जिस प्रकार मेरे शाप के डर से तुम मार्ग में बचते -बचते आए हो , उसी प्रकार भगवान के दंड के डर से दुष्कर्मों से बचते हुए चलना चाहिए l इस प्रकार सावधानी से चलते हुए गृहस्थ रहते हुए भी ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है l "
23 November 2023
WISDOM ----
यह संसार एक रंगमंच है यहाँ हम सभी अपनी -अपनी भूमिका निभाने आते हैं l ईश्वर ने धरती पर जन्म लेकर हमें सिखाया कि काम कोई भी छोटा -बड़ा नहीं होता , हमें जो भी कार्य मिला है , जो भूमिका हमें मिली है उसे अहंकार रहित होकर समर्पण भाव से निभाएं l महाभारत का प्रसंग है ---- भगवान श्रीकृष्ण तो सर्वशक्तिमान थे लेकिन उन्होंने स्वयं महाभारत युद्ध में सारथी की भूमिका चयन की थी और इस भूमिका को बखूबी निभाया l एक सारथी की तरह वे सर्वप्रथम अर्जुन को ससम्मान रथ में चढ़ाते और उसके बाद स्वयं आरूढ़ होते और अर्जुन के आदेश की प्रतीक्षा करते l फिर संध्या के समय जब युद्ध बंद हो जाता तब वे पहले उतरकर फिर अर्जुन को बड़ी आवभगत के साथ उतारते l भगवान श्रीकृष्ण अपने इस अभिनय को सम्पूर्ण समर्पण के साथ निभा रहे थे l युद्ध का अंतिम दिन , युद्ध समाप्त हुआ , अब भगवान कृष्ण सदा की तरह अर्जुन से पहले नहीं उतरे और अर्जुन को संबोधित करते हुए बोले --"पार्थ ! आज तुम रथ से पहले उतर जाओ l तुम उतर जाओगे तब मैं उतरता हूँ l अर्जुन को आश्चर्य हुआ लेकिन कहना मान कर वे पहले उतर गए l अर्जुन के उतरने के बाद भगवान कृष्ण धीरे से उतरे और अर्जुन के कंधे पर हाथ रखकर उन्हें रथ से दूर ले गए , उसके बाद एक भयानक विस्फोट के साथ रथ जलकर ख़ाक हो गया l अर्जुन ने आश्चर्य से पूछा --- " हे कान्हा ! आपके उतरते ही पल भर में यह रथ भस्मीभूत हो गया , ये क्या रहस्य है ? " भगवान ने कहा ---- " हे पार्थ ! यह रथ तो पितामह भीष्म के दिव्यास्त्रों के प्रहार से मृत्यु का वरण कर चुका था , इस दिव्य रथ की आयु समाप्त हो चुकी थी लेकिन आयु समाप्ति के बाद भी इसकी उपयोगिता वांछित थी इसलिए यह मेरे संकल्प बल से चल रहा था l भगवान का संकल्प अटूट और अटल होता है l यह संकल्प सम्पूर्ण स्रष्टि में जहाँ भी लग जाता है वहीँ अपना प्रभाव दिखाता है और संकल्प के पूर्ण होते ही यह शक्ति पुन: भगवान के पास चली जाती है , उसके बाद जो हुआ वो तुमने देखा l अर्जुन ने अपने जीवन की बागडोर भगवान के हाथ में सौंप दी थी , भगवान ने उसे हर मुसीबत से बचाया l यदि हम भी अर्जुन की तरह अपना कर्तव्यपालन करते हुए अपने जीवन की बागडोर भगवान के हाथ में सौंप दे , स्वयं को ईश्वर के चरणों में समर्पित करें तो जीवन से भय समाप्त हो जाये और सुख -शांति से तनाव रहित जिन्दगी जी सकें l
22 November 2023
WISDOM ----
लघु कथा ---- एक लड़के ने एक बहुत धनी आदमी को देखकर धनवान बनने का निश्चय किया l कई दिन तक वह कमाई में लगा रहा और कुछ पैसा कमा भी लिया l इसी बीच उसकी भेंट एक विद्वान् से हुई l अब उसने विद्वान बनने का निश्चय किया और दूसरे दिन से ही कमाई धमाई छोड़कर पढ़ने में लग गया l अभी अक्षर अभ्यास ही सीख पाया था कि उसकी भेंट एक संगीतज्ञ से हुई l उसे संगीत में अधिक आकर्षण दिखाई दिया , इसलिए उसने उस दिन से पढ़ाई बंद कर दी और संगीत सीखना शुरू किया l काफी उम्र बीत गई l न वह धनी हो सका न विद्वान l न संगीत सीख पाया और न नेता बन सका l तब उसे बड़ा दुःख हुआ l एक दिन उसकी एक महात्मा से भेंट हुई l उसने अपने दुःख का कारण पूछा , तब महात्मा जी बोले ---- " बेटा ! यह दुनिया बड़ी चिकनी है , जहाँ जाओगे कोई -न कोई आकर्षण दिखाई देगा l एक निश्चय कर लो फिर पूरे श्रम और लगन के साथ उस लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयत्न करो , तो तुम्हारी उन्नति अवश्य हो जाएगी l बार -बार रूचि बदलते रहने से कोई भी उन्नति नहीं कर सकोगे l युवक समझ गया और अपना एक उदेश्य निश्चित कर उसी का अभ्यास करने लगा l
18 November 2023
WISDOM -----
श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान कहते हैं --- परमात्मा विभाग रहित होने के साथ स्वयं में तथा औरों में उपस्थित है l वही सबका भरण -पोषण करने वाला और उत्पन्न करने वाला है l सभी वही है , वही बनाता है , वही मिटाता है , वही संभालता है l --इस सत्य को स्वीकार कर लेने से हमारी सभी चिंताएं अपने आप ही समाप्त हो जाएँगी l जीवन जहाँ भी जिस भी रूप में उपस्थित है , उसका भरण -पोषण करने वाला ईश्वर ही है l गीता में कहा गया है ------ सभी जीवों के लिए परमात्मा उनके कर्मानुसार परिस्थितियां , घटनाक्रम और संसाधन जुटाता रहता है , फिर भले ही इस प्रक्रिया में माध्यम कोई भी क्यों न उपस्थित हो l जो इस सत्य की अनुभूति कर लेता है वह अनेक दायित्वों का निर्वाह करते हुए अहंकार से मुक्त रहता है l लेकिन जो इस अनुभूति से वंचित रहता है , वह स्वयं को अनेकों का भरण -पोषण करने वाला समझकर मन -ही-मन अपनी अहंता को पोषित करता रहता है l एक प्रसंग है ---- छत्रपति शिवाजी महाराज उन दिनों एक किला बनवा रहे थे l उस किले के निर्माण में हजारों मजदूर व कारीगर काम कर रहे थे l इस द्रश्य को देखकर शिवाजी महाराज के मन में आया कि देखो मेरे कारण कितने लोगों का पालन -पोषण हो रहा है l यदि मैं न होता तो कितने लोग भूखे मर जाते l जब शिवाजी ऐसा सोच रहे थे उसी समय उनके गुरु समर्थ रामदास जी वहां भ्रमण करते हुए आ गए l उन्होंने शिवाजी से कहा कि वे वहां रखे हुए एक बड़े पत्थर को तुडवा दें l गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए शिवाजी ने तत्काल ही मजदूरों से उस पत्थर को तुडवा दिया l उस बड़े पत्थर के टूटने पर सभी ने चकित होकर देखा कि उसके भीतर से कई मेढ़क उछालते हुए बाहर आ गए l वे पत्थर के भीतर भरे पानी में मजे से रह रहे थे l उन्हें इस द्रश्य को दिखाते हुए समर्थ रामदास जी ने कहा ---- " शिवा ! तू सचमुच बहुत महान है l तूने अनेक जीवों के भरण -पोषण की व्यवस्था बना रखी है l देख ! ये मेढ़क भी तेरी कृपा से इस पत्थर के भीतर सुरक्षित एवं सकुशल थे l " अपने गुरु के इस वचन से शिवाजी महाराज को अपनी भूल का एहसास हो गया l इस घटना ने उन्हें यह सिखा दिया कि वे केवल माध्यम हैं , इससे अधिक कुछ भी नहीं हैं l सब जीवों का भरण -पोषण करने वाला केवल परमात्मा ही है l
16 November 2023
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " पथ तय करता है कि जीवन की मंजिल कहाँ है l मंजिल का अनुमान एवं आकलन राह को देखकर किया जा सकता है l अनीति एवं गलत राह से कभी भी श्रेष्ठ मंजिल की प्राप्ति संभव नहीं है l इस राह पर चलने के लिए कितने ही क्यों न प्रेरित करें , परन्तु अंत इसका अत्यंत भयावह होता है l " कौरवों की समृद्धि और ऐश्वर्य की कहानी पांडवों के अधिकार को कुचलकर लिखी गई थी और उसका अंत उससे कई गुना दर्दनाक था l पुत्र मोह से ग्रस्त धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक भी जीवित नहीं बचा l प्रारम्भ में वैभव के मद में चूर कौरव अंत में एक कफ़न के लिए तरस गए l जिनकी नियत में खोट होता है उनका अंत कभी भी अच्छा नहीं होता l इसके विपरीत सन्मार्ग सदा श्रेष्ठ लक्ष्य की ओर पहुंचाता है l सच्चाई की राह पर अडिग रहकर साहस , धैर्य और विवेक पूर्वक अपनी मंजिल को उपलब्ध किया है l इस उपलब्धि का आनंद ही कुछ और है , यहाँ आत्मा तृप्त होती है लेकिन अनीति और गलत राह पर चलकर जो सफलता प्राप्त की जाती है , उससे आत्मा कभी तृप्त नहीं होती , अंतर्मन खोखला ही रहता है क्योंकि मनुष्य का मन एक दर्पण है जो उसके भले -बुरे कर्मों को निरंतर उसे दिखाता है l संसार से मनुष्य छिप सकता है , भाग सकता है लेकिन अपने मन से भाग नहीं सकता l ऐश्वर्य और वैभव के भंडार के बीच भी आँखों से नींद उड़ जाती है l
14 November 2023
WISDOM -----
महाभारत चल रहा था l कर्ण और अर्जुन के बीच भयंकर बाण वर्षा चल रही थी l अवसर पाकर एक भयंकर सर्प कर्ण के तूणीर में घुस गया l कर्ण ने बाण निकाला तो स्पर्श कुछ अनोखा लगा l उसने सर्प को देखा और आश्चर्य से पूछा ----- " तुम यहाँ किस प्रकार आ गए l सर्प ने कहा --- " अर्जुन ने एक बार खांडव वन में आग लगा दी l उसमे मेरी माता जल गई l तभी से मेरे मन में प्रतिशोध की आग जल रही है l मैं इस ताक में था कि कोई अवसर मिले और मैं अर्जुन के प्राण हरण करूँ l आप मुझे तीर के स्थान पर चला दें l मैं जाते ही अर्जुन को डस लूँगा l आपका शत्रु भी मर जायेगा और मेरा प्रतिशोध भी शांत हो जायेगा l " कर्ण ने कहा ---- " अनैतिक उपाय से सफलता पाने का मेरा तनिक भी विचार नहीं है l सर्प देव आप वापस लौट जाएँ l " जो वीर होते हैं , जिनमें 'शौर्य ' होता है वे कभी अनैतिक तरीके से सफलता नहीं चाहते l लेकिन जैसे जैसे कलियुग अपने चरम पर पहुँच रहा है , संसार में कायरता बढ़ती जा रही है l साम -दाम , दंड -भेद हर तरीके से लोग दूसरे को धक्का देकर आगे बढ़ना चाहते हैं और इस दौड़ में सबसे ज्यादा खतरा बाहरी जीव -जंतुओं से नहीं ' आस्तीन के साँपों ' से है l
11 November 2023
WISDOM ----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " जीवन निर्वाह के लिए दूसरों के सहारे रहना पराधीनता है l इसी तरह मन और बुद्धि को ताला लगाकर किसी बात को , किसी विचार को मान लेना भी मानसिक पराधीनता है , विचारों की गुलामी है l " विचारों की यह गुलामी हर युग में रही है l जिसने अपने को इस गुलामी से मुक्त किया , वही स्वतंत्र है l जो निर्भय है , विशेष रूप से जिसे मृत्यु का भी भय नहीं है , वही आज़ादी का आनंद उठा सकता है l हमारे धर्म ग्रन्थ हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं l रावण का आतंक दसों दिशाओं में था l उसने काल को भी बंदी बना लिया था l वह अत्यंत शक्तिशाली और महान तांत्रिक व मायावी था l उसकी शक्ति से सब थर -थर कांपते थे , उसकी हर बात को आँख बंद कर स्वीकार करते थे लेकिन उसके भाई विभीषण ने उसे कई बार समझाया कि उसकी राह गलत है , वह शक्ति का दुरूपयोग कर रहा है l जब उसने भरी सभा में रावण से कहा कि माँ सीता साक्षात् भगवती हैं , भगवान राम से वैर नहीं लो l तब रावण ने विभीषण को भला -बुरा कहा और लात मारकर सभा से निकाल दिया l विभीषण ईश्वर विश्वासी था , उसे विश्वास था कि हमारी साँसे ईश्वर की दी हुई है , रावण अपनी ताकत से ईश्वर के विधान को नहीं बदल सकता l उसने उसी पल सोने की लंका को त्याग दिया और भगवान श्रीराम की शरण में चला गया l ईश्वर की शरण में जाने का क्या फायदा हुआ ? यह इस संसार अपने स्वार्थ और सिर्फ अपने ही लाभ को देखने वालों को समझना चाहिए l भगवान ने विभीषण को सोने की लंका का राजा बना दिया और कहते हैं मृत्यु से न डरने वाले विभीषण को भगवान ने अमर कर दिया l इस कलियुग में विभिन्न परिवारों में , संस्थाओं में और समूचे संसार में अपने धन और शक्ति के अहंकार में हर शक्तिशाली अत्याचार और अन्याय करता है और उसे सही सिद्ध करने के लिए विभीषण को ' घर का भेदी ' कहता है लेकिन सत्य तो यह है कि असुर कुल में पैदा होकर भी वह सन्मार्ग पर था , अत्याचार और अन्याय के खिलाफ खड़े होने की उसमें हिम्मत थी और साथ ही उसे तरीका भी पता था l वह जानता था कि रावण से सीधे मुकाबला संभव नहीं है इसलिए वह ईश्वर के शरणागत हुआ , अपने जीवन की बागडोर भगवान के हाथों में सौंप दी l भगवान ने उसकी नैया पार लगा दी l इसी तरह अर्जुन ने अपने जीवन रूपी रथ की बागडोर भगवान श्रीकृष्ण को सौंप दी l भगवान ने उसे हर खतरे से बचाया और पांडव विजयी हुए l
9 November 2023
WISDOM -----
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " मनुष्य के पतन का कारण उसका अहंकार है l संयम से स्वर्ग जीते जाते हैं लेकिन संयमी और पराक्रमी होने के साथ उसे निरहंकारी भी होना चाहिए l ' आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' ज्ञानी जब अहंकारी हो जाता है , तब उसके अंत: करण से करुणा नष्ट हो जाती है l उस स्थिति में वह औरों का मार्गदर्शन नहीं कर सकता , केवल मात्र दंभ प्रदर्शन कर सकता है l जिससे लोग प्रकाश लेने की अपेक्षा पतित होने लगते हैं l " पुराण की एक कथा है ----- देवता और असुरों में घोर संग्राम हो रहा था l असुरों की शक्ति के आगे देवता टिक नहीं पा रहे थे l तब प्रजापति ब्रह्मा ने मृत्यु लोक यानि इस पृथ्वी के एक मनुष्य महाराज मुचुकुन्द को सेनापति बनाया , उन्हें देव सेना के संचालन का कार्यभार सौंपा l प्रजापति ब्रह्मा का कहना था --- ' संयमी और सदाचारी व्यक्ति मनुष्य तो क्या , देव , दानव सभी को परस्त कर सकता है l देवता भोग -विलास और असंयम में डूबकर अपनी सामर्थ्य नष्ट कर रहे हैं जबकि महाराज मुचुकुन्द ने मनुष्य होते हुए भी संयम और पराक्रम में देवताओं को पीछे छोड़ दिया है l ' अत" प्रजापति ब्रह्मा के आदेशानुसार महाराज मुचुकुन्द सेनापति थे l एक महीने तक देवता और असुरों के बीच घनघोर युद्ध हुआ l मुचुकुन्द के पराक्रम के आगे असुरों की एक न चली l सारे संसार में महाराज मुचुकुन्द के शौर्य , संयम , पराक्रम और इन्द्रिय विजय की प्रशंसा के स्वर गूंज रहे थे l अपनी प्रशंसा सुनते -सुनते मुचुकुन्द के मन में अहंकार बढ़ने लगा , अब उनके पराक्रम में वो चमक नहीं दिखाई दे रही थी , अब अहंकारवश सुरा और सुंदरियों में उनकी शक्ति नष्ट हो रही थी l असुरों का पलड़ा फिर से भारी हो रहा था l प्रजापति ब्रह्मा ने मुचुकुन्द के ह्रदय में पनपने वाले इस अहंकार के विष -बीज को देख लिया l उन्होंने देवराज इंद्र को बुलाकर सब समझाया और कहा --- तुम अतिशीघ्र स्वामी कार्तिकेय को सैन्य -संचालन के लिए ससम्मान राजी कर लो l असुरों ने मुचुकुन्द को बंदी बनाकर पृथ्वी पर जा पटका , तब उन्हें अपनी भूल का पता चला l प्रजापति ब्रह्मा उनके पास पहुंचे और कहा ---- ' तुम्हारी साधना अधूरी रह गई , यह उसी का फल है l अब तुम फिर से शक्ति की साधना करो लेकिन ध्यान रखना इस बार अहंकार बिलकुल भी न रहे l '
7 November 2023
लघु -कथा ----- आयु कुल चार वर्ष
राजा नौशेरवां का ऐसा स्वभाव था कि जहाँ से जो भी मिले , उससे कुछ न कुछ सीख लो l राजा नौशेरवां एक दिन वेश बदल कर भ्रमण को निकले l मार्ग में उन्हें एक वृद्ध किसान मिला l किसान के बाल पक गए थे पर शरीर में जवानों जैसी चेतनता विद्यमान थी l इसका रहस्य जानने की इच्छा से राजा ने उससे पूछा --- " महोदय ! आपकी आयु कितनी होगी ? " वृद्ध ने हँसते हुए उत्तर दिया ---- " कुल चार वर्ष l " नौशेरवां ने सोचा बूढ़ा दिल्लगी कर रहा है , पर सच -सच पूछने पर भी जब वृद्ध ने अपनी आयु चार वर्ष ही बताई तो नौशेरवां को मन में बहुत क्रोध आया कि उसे बता दे कि वह साधारण व्यक्ति नहीं राजा है l नौशेरवां को जिज्ञासा थी , उसने अपने मन पर नियंत्रण रखा और नम्रता से पूछा ---- " पितामह ! आपके बाल पक गए , शरीर में झुर्रियां पड़ गईं , लाठी लेकर चलते हो , मेरा अनुमान है कि आप 80 से कम के न होंगे , और फिर भी अपने को चार वर्ष का बताते हैं l ऐसा क्यों ? " वृद्ध ने गंभीर होकर कहा ---- " आप ठीक कहते हैं , मेरी आयु 80 वर्ष है किन्तु मैंने 76 वर्ष धन कमाने , ब्याह -शादी और बच्चे पैदा करने में बिताए l ऐसा जीवन तो कोई पशु भी जी सकता , इसलिए उसे मैं मनुष्य की जिन्दगी नहीं , किसी पशु की जिन्दगी मानता हूँ l इधर चार वर्ष से मेरा विवेक जाग्रत हुआ , मेरा मन ईश्वर उपासना , जप , तप , सेवा , सदाचार , दया , करुणा , उदारता में लग रहा है l इसलिए मैं अपने को चार वर्ष का ही मानता हूँ l " नौशेरवां वृद्ध का उत्तर सुनकर बहुत संतुष्ट हुए और प्रसन्नता पूर्वक राजमहल लौटकर सादगी , सेवा और सज्जनता का जीवन जीने लगे l
5 November 2023
लघु -कथा --- नया पाने के लिए पुराना छोड़ो
विन्ध्याचल पर्वत पर दो चींटियाँ रहती थीं l एक उत्तरी चोटी पर और दूसरी दक्षिणी चोटी पर l एक का घर शक्कर की खान में था , और दूसरी का नमक की खान में l एक दिन शक्कर की खान में रहने वाली चींटी ने दूसरी को निमंत्रण दिया --- " बहन ! क्या इस नमक की खान में पड़ी हो , मेरे यहाँ चलो , वहां शक्कर ही शक्कर है l खाकर मुँह मीठा करो और अपना जीवन सफल बनाओ l " दूसरी चींटी ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया और दूसरे दिन शक्कर की खान में जा पहुंची l अपनी सहेली को देख चींटी बड़ी प्रसन्न हुई और उसे घूम- घूमकर शक्कर की खान दिखाई और कहा --- यहाँ किसी बात की कमी नहीं है , जी चाहे जितनी शक्कर खाओ l " चींटी दिन भर इधर -उधर भागती फिरी और शाम को पहली चींटी से यह कहकर चली गई कि बहन तुमने मुझे बड़ा धोखा दिया l यदि शक्कर तुम्हारे पास नहीं थी तो मुझे निमंत्रण ही क्यों दिया l " पास ही एक कुटिया में एक संत और उनका शिष्य निवास करते थे l शिष्य ने पूछा --- " गुरुदेव ! शक्कर के पहाड़ पर घूमने पर भी चींटी को शक्कर का पता क्यों नहीं चला ? " संत बोले ---- " वत्स ! बात यह थी कि चींटी अपने मुंह में नमक का टुकड़ा दाबे हुए थी , इसी से उसे शक्कर की मिठास का आभास नहीं हो पाया l इसी प्रकार जो लोग अपने पुराने संस्कार नहीं बदलते , आत्म शोधन द्वारा अपनी बुराइयाँ नहीं हटाते , परमात्मा के समीप होते हुए भी उनकी कृपा से वंचित हो जाते हैं l नया पाने के लिए पुराने को हटाने का नियम अनिवार्य और अटल है l "
WISDOM -----
तपस्वी से राहगीर ने पूछा ---- " आप इस बियावान में अकेले रहते है , आपको भय नहीं लगता ? " तपस्वी ने उत्तर दिया ---- " नहीं , मैं अकेला नहीं हूँ , मेरे साथ परम पिता परमेश्वर हैं , माँ जगन्माता हैं l जो श्रेष्ठ विचारों से घिरे हैं , अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्र हैं और ईश्वर के चिन्तन में निमग्न हैं , वे भला कब और कैसे एकाकी हो सकते हैं ? उनके साथ उनके प्रभु परमेश्वर सदा ही रहते हैं l "
3 November 2023
WISDOM ------
कहते हैं ' अति ' हर चीज की बुरी होती है l महत्वाकांक्षा भी यदि अति की हो तो उसका दुष्परिणाम परिवार को , समाज को और संसार को झेलना पड़ता है l ऐसा व्यक्ति जिस भी क्षेत्र में है वह चाहता है सब उसे प्रणाम करें , उसकी गरिमा को समझें , उसके कहे अनुसार आचरण करे l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----' महत्त्व को जिस -तिस तरह हथिया लेने की ललक ऐसा विष है जो जिस क्षेत्र में घुसेगा उसे विषैला बना देगा l ' सिकंदर , हिटलर को विश्व विजयी होने का सम्मान पाने की ललक थी , इसके लिए लाखों -करोड़ों को मारने -काटने में उन्हें कोई तकलीफ नहीं हुई l अति का महत्त्व पाने की इच्छा धार्मिक क्षेत्र में व्यक्ति को धूर्त और पाखंडी बना देती है l अपने भीतर की कमजोरियों को छिपाकर -संत का वेश विन्यास कर व्यक्ति लाखों से अपनी पूजा भक्ति करा लेता है l इस महत्वाकांक्षा ने संसार में लाखों गुरु , सैकड़ों भगवान , अवतार पैदा कर दिए l सामाजिक क्षेत्र में महत्त्व लूटने की , सम्मान पाने की चाह ने कितने ही नकली समाज सेवी पैदा कर दिए l अमीरों की गिनती में आगे बढ़ने की चाह में संसार में धन कमाने के कितने ही गलत तरीके फ़ैल गए हैं l महत्त्व पाने की इस ललक में व्यक्ति दोहरा जीवन जीता है l अन्दर से नीति , मर्यादा की अवहेलना करते हुए बाहर से बहुत मर्यादित , अनुशासनप्रिय दिखाने का प्रयत्न करता है l कई लोग तो अपने चेहरे पर इतने चेहरे लगा लेते हैं कि वे स्वयं ऐसी मन;स्थिति में पहुँच जाते हैं की वे अपना सच ही भूल जाते हैं , मानसिक रूप से बीमार हो जाते हैं l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---' बुराई बुराई है पर अच्छाई के गर्भ में बुराई को भरण -पोषण मिलना और अधिक भयंकर है l पाप को पाप समझकर उससे बचा जा सकता है लेकिन जो पाप , पुण्य की आड़ में किया जाता है उससे बच पाना बहुत कठिन है l शत्रु से बचाव आसान है , पर मित्र बने शत्रु से बच पाना असंभव है l " जागरूक रहें और अति से बचें l