15 October 2020

WISDOM ----

   एक  बार  ईश्वरचंद्र  विद्दासागर  अपने  एक  जमींदार   मित्र  से  भेंट  करने  कोलकाता  जा  रहे  थे  l   रास्ते  में   एक  दुकानदार  जो  उनका  पूर्व  सहपाठी  भी  रह  चूका  था  ,  मिला  और  अपनी   दुकान  पर  ले  गया  l   बैठने  को  एक  बोरा  दिया  l   वे  भी  उस  पर  बैठकर  बातें  करने  लगे  l   इसी  बीच  वही  जमींदार  मित्र   कहीं  से  लौटता  हुआ   बग्घी  पर  निकला  l   उसने  उन्हें  जमीन   पर  बैठे  देखा   और  कुछ  झिझक  के  साथ  बोला ---- " तुम  जहाँ - तहाँ   बैठ  जाते  हो  --- क्या  तुम्हे  अपनी  प्रतिष्ठा  का  कोई  ध्यान  नहीं   l  "  सुनकर  विद्दासागर  बोले  --- "  यदि  इससे  तुम  अपमानित  महसूस  कर  रहे  हो   तो  तुम  अपनी   मित्रता  समाप्त  कर  दो  ,  ताकि  फिर  कोई  शिकायत  तुम्हे  न  हो  l   वह  गरीब  है ,  केवल  इसलिए  मैं  अपने   दुकानदार  मित्र  का  अपमान  नहीं  कर  सकता  l  "    महामानव  हमेशा  सरल , सहज  और  मान - अभिमान  से  परे  होते  हैं  l