30 April 2022

WISDOM -----

 आज  संसार  में  इतनी  अशांति  है  , तनाव  है  ,  इसका  एक  ही  कारण  है  --- व्यक्ति जैसा  अपने  को  दिखाता  है  वैसा  वो  है  नहीं  l     अपनी  असलियत  छुपाने  के  लिए  उसे  तरह - तरह  के  स्वांग  रचने  पड़ते  हैं   l  इसी  चिता  में  वे  तनावग्रस्त  हो  जाते  हैं   l  इसका  सबसे  बड़ा  उदाहरण  है  कि  आज  व्यक्ति   स्वयं  को  धार्मिक  होने  का   दावा  करता  है   लेकिन    यह  केवल  उसका  बाहरी  रूप  है  l  यदि  इतना  ही  अच्छा  वह  अपने  ह्रदय  से  होता  तो  संसार  में  शांति  होती  l 

29 April 2022

WISDOM ----

    काल  का  पहिया  ----- समय  का  चक्र  चलता  रहता  है   l  भगवान  ने  गीता  में  कहा  है  --- कर्म  करने  के  लिए  तुम  स्वतंत्र  हो    लेकिन  उसके  परिणाम  से   बच    नहीं  सकते  l '     मनुष्य  अहंकार  के  वशीभूत  होकर  स्वयं  को  भगवान  समझने  लगता  है  l  अहंकार  मनुष्य  का  दुर्गुण  है  इसलिए  इस  दुर्गुण  से  ग्रस्त  मनुष्य   छल - कपट , धोखा , षड्यंत्र  ,  पीठ  में  छुरा  भोंकना  जैसे  नीच  कर्म  करता  है   l    ईश्वर  तो  श्रेष्ठता  का  समुच्च्य   हैं   और   पाप    कर्म  करने  वाले   स्वयं  को  भगवान  समझें  ,    यह  मनुष्य  की  दुर्बुद्धि  है  l    रावण  और  दुर्योधन   केवल  उस  युग  में  ही  नहीं  हुए   ,  वे  हर  युग  में  हुए  हैं   और  उनका  अंत  सबका  एक  जैसा  ही  होता  है   l   वे  स्वयं  तो  डूबते  ही  हैं  ,  अपना  साथ  देने  वालों  को  भी  ले  डूबते  हैं  l    यही  उनका  प्रारब्ध  है   l    ईश्वर  तो  सदा  से  यही  चाहते  हैं  कि   मनुष्य  की  चेतना  का  स्तर  ऊँचा  उठे  ,  वह  कम  से  कम  इनसान   तो  बने  l    जब  तक  मनुष्य  स्वयं  नहीं  सुधरना  चाहे  ,  उसे  कोई  नहीं  सुधार  सकता   l  रावण  को  समझाने   तो  श्री  हनुमान जी  गए  l   अंगद ,  विभीषण   और  रावण  की  पत्नी  मंदोदरी  ने  उसे  बहुत  समझाया  लेकिन  वह  नहीं  सुधरा  l  दुर्योधन  को  समझाने  तो  साक्षात्  भगवान  कृष्ण  गए   l   समझना  तो  दूर ,  वह  तो  उन्हें  ही  बंदी  बनाने  चला   l  ' जब  नाश  मनुज  पर  छाता  है  पहले  विवेक  मर  जाता  है  l  ' 

27 April 2022

WISDOM -----

   लघु  कथा ------  एक  मिटटी  के  ढेले   से  सुगंध  आ  रही  थी   तथा  दूसरे  से  दुर्गन्ध  l  दोनों  जब  मिले   तो  आपस  में  विचार  करने  लगे   कि  हम  दोनों  एक  ही  मिटटी  के  बने  हैं  ,  फिर  इतना  अंतर  क्यों  ?   सुगंधित  ढेले  ने  कहा ---- "  यह  संगति   का  प्रतिफल  है   l  मुझे  गुलाब  के  नीचे  पड़े  रहने  का  अवसर  मिला   और  तुम  गंदगी  के  नीचे  दबे  रहे  l  "  वास्तव  में  सत्संग  की  महिमा  अपरम्पार  है   l  सत्संग  पाने  का  कोई  भी  अवसर  खोना  नहीं  चाहिए   l   

 2 .    शत्रुओं  से  घिरे  एक  नगर  की  प्रजा   अपना  माल , असबाब  पीठ  पर  लादे  हुए  जान  बचाकर   भाग  रही  थी  l   सभी  घबराये  और  दुःखी   स्थिति  में  थे  ,  पर  उन्ही  में  से  एक  खाली  हाथ  चलने  वाला  व्यक्ति   सिर  ऊँचा  किए   ,  अकड़कर  चल  रहा  था   l   लोगों  ने  उससे  पूछा  --- " तेरे  पास  तो  कुछ  भी  नहीं  है  ,  इतनी  गरीबी  के  होते  हुए   फिर  अकड़  किस  बात  की   ?  "  दार्शनिक  वायस  ने  कहा ------- " मेरे  पास  जन्म  भर  की  संगृहीत  पूंजी   है   और  उसके  आधार  पर   अगले  ही  दिनों  फिर  अच्छा  भविष्य  सामने  आ  खड़ा  होने  का   विश्वास  है  l    यह  पूंजी  है  ,  अच्छी  परिस्थितियां  फिर  बना  लेने  की  हिम्मत   l   इस  पूंजी  के  रहते   मुझे   दुःखी   होने  और  सिर  नीचा  करने  की  आवश्यकता  ही  क्या  है   ?  "

26 April 2022

WISDOM ------

  लालच  एक  ऐसा  दुर्गुण  है  जो   उस  व्यक्ति  को  ही  नहीं  समाज  व  राष्ट्र  को  भी  पतन  के  गर्त  में  धकेल  देता  है   l  इतिहास  साक्षी  है   कि  सत्ता  और  धन  के  लालच  ने  ही   देश  को  युगों   तक  गुलाम  रखा  l----             जंगल  में  गाय  और  घोडा  घास  चार  रहे  थे   l   घोड़े  को  ईर्ष्या  हुई  कि   वह  गायों  के  सींगों  की  वजह  से   अच्छी  घास  नहीं  खा  पाता  l  उसने  सोचा  कि   किसी  तरह   उस  पर  काबू  पाया  जाये   l  तभी  वहां  इनसान  आ  निकला   उसने  दोनों  को  ललचाई  नजर  से  देखा   l  घोड़ा  इनसान  के  पास   आकर  बोला ---" देखते  क्या  हो  ,  गाय  का  मीठा  दूध  पीकर   अपनी  भूख  मिटाओ  ,  पर  वह  तेज  दौड़  सकती  है  l   उस  पर  काबू  पाना  है   तो    मेरी  पीठ  पर  बैठ  जाओ  ,  मैं  उससे  तेज  दौड़ दौड़  सकता  हूँ  ,  उसे  पकड़ने  में  तुम्हारी  मदद  करूँगा  l "  इनसान  घोड़े  की  पीठ पीठ  पर  सवार  हो  गया   l   उसने  पहले  घोड़े  को   गुलाम  बनाया   फिर  गाय  को  काबू  में  किया   l    अपने  लालच  के  कारण  घोड़ा  स्वयं  तो  गुलाम  बना  ही ,  उसने  गाय  को  भी  गुलाम  बना  दिया   l   

25 April 2022

WISDOM ---

   लघु - कथा -----  तीन  व्यक्ति  पहाड़ी  मार्ग  पार  कर  रहे  थे  l  चोटी  काफी  उंचाई  पर  थी  , रास्ता  लंबा  था  l  धूप  और  थकान  से  उनका  मुंह  सूखने  लगा  l  प्यास  से  व्याकुल  उन्होंने  चारों  ओर  देखा  l  एक  झरना  दूर  नीचे  की  ओर  बह  रहा  था  l  एक  पथिक  ने  आवाज  लगाईं --- " हे  ईश्वर  !  सहायता  कर   l   हम  तक  पानी  पहुंचा  l   दूसरे  पथिक  ने  आवाज  लगाईं  --- " हे  इंद्र  !  मेघमाला  ला   और  जल्दी  से  जल्दी  जल  बरसा l  हमारी  प्यास  बुझा  l  "  तीसरे  ने  कुछ  नहीं  कहा  ,    वहां  से    नीचे   उतर  कर   झरने  तक   पहुंचा   और  जी  भरकर  प्यास  बुझाई  l   दो  प्यासे  अभी  भी  सहायता  के  लिए  चिल्ला  रहे  थे   l  पहाड़ियों  से  प्रतिध्वनि   आ  रही  थी   l  पर  जिसने  पुरुषार्थ  का  सहारा  लिया  ,  वह  तृप्ति  प्राप्त  कर   फिर  आगे  बढ़  गया    l   सही  कहा  है ---- ' दैव - दैव  !  आलसी  पुकारा  l  ' आलसी  ही  हमेशा  इस  तरह  का  आचरण  कर   पुकार  लगाते  रहते  हैं l   जीत  पुरुषार्थी  की  ही  होती  है   l   

2 .   कारूँ  को  अल्लाह  ने  बहुत  बड़ा  खजाना  दिया   l   कहा --- " इस  दौलत  को  नेकी  में  खर्च  करना   l  " कारूँ  दौलत  पाकर   फूला    नहीं  समाया   l  उसने  उस  दौलत  को  बेहिसाब  उड़ाना  आरंभ  किया  , राग - रंग  ऐशो-आराम   में  नष्ट  करने  लगा    खजाना  खरच  होने  लगा  l   एक  दिन  जमीन  हिली   और  कारूँ  का  मकान  मय  दौलत  के   उसमें  फंस  गया  l  बची  दौलत  का  थोड़ा   ही  हिस्सा  मिल  जाए  ,  यह  सोचकर  उसने  आवाजें  लगाईं  l   कोई  भी  नहीं  आया  l  खुदा  के  कहर  से  उसे  निजात  नहीं  मिली  l  कारूँ  की  तरह  ही  रातोरात  अमीर  बनने  वालों  ने  इससे  एक  सीख  ली   और  सोचा  कि  अल्लाह  की  मरजी  पर  अपनी  मरजी   नहीं  रखनी  चाहिए  l  परमात्मा  की  विभूतियाँ  सद उद्देश्यों   के  लिए  हैं  l   उनका  दुरूपयोग  विनाशकारी    ही  होता  है   l  

24 April 2022

WISDOM------

   लघु -कथा -----   मधुमक्खी  कोमल  पुष्प  की  छाती  पर  बैठी  उसका  जीवनरस  चूस  रही  थी  l   फूल   कराहते  हुए  बोला --- " इस  तरह  मुझे  मत  चूसो  l   मैं  भी  जीना  चाहता  हूँ   l '  मधुमक्खी   पर  कोई  असर  नहीं  पड़ा  l  वह  अपना  आनंद  लेती  रही  l  फूल  कराहता  रहा  l   एक  दिन  मधु  की  गंध  पाकर   भालू  पेड़  पर  चढ़  गया  और  उसने  शहद  पीकर  छत्ते  के  टुकड़े - टुकड़े  कर  दिए  l   मधुमक्खी  भिनभिनाकर  अपना  गुस्सा  निकालती   रही  ,  पर  भालू  को  उससे  क्या  मतलब  था  l    मुरझा  रहे  फुल  ने  मधुमक्खी  की  स्थिति  देखकर  कहा  ----- ' काश  !  यदि  हम  सब    एक  दूसरे   के     कष्ट  को  समझ  सके  होते   ,  तो  इस  दुनिया  में   चारों  ओर  सुन्दरता  होती  l  '  मधुमक्खी  भी  प्रायश्चित  भाव  से  यही  कह  रही  थी   l   

2 .   बूढा  आदमी  पेड़  के  समीप  आकर  रुका  और  बोला  --- ' अरे  !  फल  नहीं  सो  नहीं   l  और   फूल    भी  नहीं  ,  पत्ते  भी  नहीं   ! क्या  हो  गया  ?  बसंत  में  तुम्हारी  बहार  देखते  ही  बनती  थी   l   पेड़  ने  लम्बी  आह  भरी  --- काश  !  तुमने  अपना  झुर्री  भरा  चेहरा  देख  लिया  होता   l  बसंत  ऋतू  तो  सदा  आती - जाती  रहेगी   पर  बूढी  पीढ़ी   और  प्रथा -परंपरा  को  अपना  दायित्व  पूरा  करते  हुए   नयों  के  लिए   भी  तो  स्थान  खाली  करना  चाहिए  , अन्यथा  यह  स्रष्टि  ही  बूढी  होकर  समाप्त  हो  जाएगी   l  "  बात   बूढ़े  को  समझ  में  आ  गई   l  

22 April 2022

WISDOM -----

  लघु  कथा -----  ' संसार  अपनी  गति  से  चलता  है   लेकिन  अच्छे -अच्छों  को  यह  भ्रम  हो  जाता  है  कि   उनके  बिना  काम  नहीं  चल  सकता   l ' ----- मुर्गा  बांग  देता  है  और  सूरज  उगता  है  l   एक  व्यक्ति  को  यह  विश्वास  हो  गया  कि  सूरज  उगता  ही  उसके  मुर्गे  की   बांग   से  है  l   एक  दिन  उस  आदमी  का  झगड़ा   गाँव  वालों  से  हो  गया  l  उसने  कहा  ---- ' याद  रखना   यदि  मैं  अपने  मुर्गे  को  लेकर   गाँव  से  चला  जाऊंगा  ,  तो  सूरज   नहीं  उगेगा  तुम्हारे  गाँव  में   l  फिर  बैठे  रहना  अँधेरे  में  l   वह  मुर्गा  लेकर   दूसरे   गाँव  चला  गया  l    दूसरे   दिन  तड़के  मुर्गे  ने  बांग  दी   और  सूरज  निकला   इस  गाँव  में   l   उस  आदमी  ने  कहा  ---- अब  पीटते  होंगे  सिर   उस  गाँव  के  लोग  l   मुझसे  बिगाड़  कर   व्यर्थ  ही  अंधकार   की  मुसीबत  मोल  ले  ली   l '  उसे  भ्रम  था   कि   जहाँ  उसका  मुर्गा  बांग  देता  है   सूरज  वहीँ  निकलता  है   l          

2 .   बादल  गरज  रहे  थे  l    उन्हें  गरजते  बहुत  देर  हो  गई  पर  उससे  कुछ  खास  बात  नहीं  हुई   l   पर  जब  एक  बार  बिजली    कड़की    और  गिरी    तो  कई  पेड़  जलकर  खाक  हो  गए   l  एक  व्यक्ति  बादलों  की  गरज  को  बहुत  महत्त्व  दिया  करता  था   और  उन्ही  में  शक्ति  भरी  मानता  था   l  पर  जब  उसने  इस  बार  का  घटनाक्रम  देखा  तो  अपना  विचार  बदल  दिया  l  समझ  गया  कि  गरजने  वाले  चमत्कार  नहीं  दिखाते  हैं  ,  सामर्थ्य  तो  चमकने  वाली  शक्ति  में  होती  है  l  इसके  बाद  उसने  अपनी  आदत  सुधारी  ,  गरजना  बंद  कर  दिया  और  चमकने  वाली  पद्धति  अपनाई   l 

21 April 2022

WISDOM ------ --- प्रेरक लघु कथा ----

  एक  राजा  के  राज्य  में  एक  नदी  बहती  थी   l   जो  आगे  चलकर    दूसरे   राजा     के  राज्य  में  जाती  थी   l    पहले  राजा  ने   कई  जगह  बाँध  बनवा  रखे  थे  ताकि  पानी  खेतों  में  पहुँचता  रहे   l   फिर  भी  अगले  राजा  के  राज्य  में   भी  नदी  का  पानी   पहुँचता  ही  था   l  पहला  राजा  बड़ा  ईर्ष्यालु  था  l    उसने  हुकुम  दिया  कि   अपनी  नदी  का  एक  बूंद  पानी  भी   पडोसी  राज्य  में  न  जाने  पाए   ,  इसके  लिए  ऊँचे - ऊँचे  बाँध  बना  दिए  जाएँ   l   इससे  दूसरे  राजा  के  राज्य  में  सूखे  की  स्थिति  बन  गई   और  पहले  राजा  राजा  के  राज्य  में   रुका  हुआ  पानी  इतना  अधिक  जमा  हो  गया   जिससे  सारी   जमीन  ही  डूब  गई   ,  मकान  भी  बैठ  गए   l    जो  दूसरों  का  बुरा  चाहता  है  उसका   पहले  अपना  बुरा  होता  है  l                                                                   2 .          एक   बूढा  आदमी  पेड़  के  समीप  आकर  खड़ा  हुआ  l  बोला ---- " अरे ,  फल  नहीं  सो  नहीं   ,  फूल    भी  नहीं  और  पत्ते  भी  नहीं    l   बसंत  में  तुम्हारी  बहार  देखते  ही  बनती  थी   l  पेड़  ने  लम्बी  आह  भरी  और  बोला  ----" काश  !  तुमने  अपना  झुर्री  भरा  चेहरा  देख  लिया  होता   l बसंत  ऋतू  तो  सदा  आती  जाती  रहेगी    पर  बूढी  पीढ़ी    और  प्रथा  - परंपरा  को   अपना  दायित्व  पूरा  करते    हुए  नयों  के  लिए  भी   स्थान  खाली  करना    होता     है  अन्यथा  यह  स्रष्टि  ही  बूढी  होकर   समाप्त  हो  जाएगी   l  "  बात  वृद्ध  की    सभी  को   समझ  में  आ  गई  l   

20 April 2022

WISDOM -------

   व्यक्तित्व  का  उत्थान -पतन  किस  प्रकार  सुख -दुःख  का  कारण  बनता  है  ,  इस  पर  गुरुकुल  में  विचार विमर्श  चल  रहा  था  l    पूर्णिमा  पर   चंद्रमा  के  शीतल  प्रकाश  को  देखकर   महर्षि  गार्ग्य   से  उनके  एक  शिष्य  ने  पूछा ---- ' पंद्रह  दिन  चंद्रमा  की  आभा  बढ़ती  रहती  है  ,  पंद्रह  दिन  घटती  रहती  है   l  इसका  रहस्य  क्या  है   ? "  महर्षि  गार्ग्य   ने  समझाया  ----- " तात  ! विधाता  ने  चंद्रमा  का  यह  क्रम  ,  यह  बताने  के  लिए   अपनाया  है   कि  व्यक्तित्व  के  विकास  से  लोग   न  केवल  स्वयं  प्रकाशित  होते  हैं  ,  वरन  संसार  को  भी  प्रकाशित  करते  हैं  ,  जबकि  पतन  की  और   उन्मुख   होने  वाले   क्षीण  होते  हैं   और  अज्ञान  के  अंधकार  में  गिरकर  नष्ट  हो  जाते  हैं   l   "           लोभ ,  लालच , तृष्णा   के  कारण     व्यक्ति   स्वयं  ही  पतन  के  गर्त  में  गिरता  जाता  है   ,  इस  सत्य  को  समझाने  वाली  एक  कथा  है  ------- '  एक  बार  भगवान  श्रीराम  के  दरबार  में  एक  कुत्ता  न्याय  मांगने  आया  ,  उसने  मानव  बोली  में  कहा ---- ' प्रभो  !  एक  ब्राह्मण  ने  मेरे  सर  पर  प्रहार  किया   है ,  उसे  दंड  दीजिये  l  '   ब्राह्मण  को  बुलवाया  गया  , वह  बोला ---- "  हे  भगवन  !  मैं  भूखा  था  ,  भोजन  हेतु  बैठता  इसके  पूर्व  ही  यह  कुत्ता   मेरे  सामने  आकर  बैठ  गया   l   मेरे  कहने  पर  भी  न  हटा    तब  क्रोध  में  आकर  मैंने  इसे  मारा  l  "  भगवान  राम  ने  सभी  सभासदों  से  पूछा   कि  इस  ब्राह्मण  को  क्या  दंड  दिया  जाए   l   कोई  कुछ  बोलता  उसके  पहले  कुत्ता  बोला ----- " " भगवान  !  आप  इसे  कलिंजर  का  मठाधीश  बना  दें  l  "  सुनकर  सभी  को  बहुत  आश्चर्य  हुआ   l     भगवान  तो  समझ  गए  पर  संसार  को  शिक्षण  देने  के  लिए   उन्होंने  सबके  समक्ष  कुत्ते  से  ही  इसका  कारण  पूछा    कि  इसे  भिक्षावृति   से  मुक्ति  दिलाकर    मठाधीश  क्यों  बनाना  चाहता  है  ? "  कुत्ता  बोला ---- "भगवन  ! मैं  भी  पिछले  जनम  में  कलिंजर  का  मठाधीश  था  l  मैं  पूजा -पाठ  करता  , लेकिन  चढ़ावे  की  सामग्री  मैं  व  मेरा  परिवार  खाता  l   इस  कारन  मुझे  कुत्ते  की  योनि  मिली  l  जो  व्यक्ति  देव , बालक ,  स्त्री  तथा  भिक्षुक  के  लिए   अर्पित  धन  और  खाद्य  सामग्री  का   संकीर्ण  स्वार्थ  के  साथ  उपभोग  करता  है   वह  नरकगामी  होता  है  l   क्रोधी  और  हिंसक  स्वभाव वाले  इस  ब्राह्मण  के  लिए    यही  सही  दंड  होगा   l   "   हँसकर  भगवान  श्रीराम  ने  उसे  वही  दंड  दिया   l    आचार्य श्री  लिखते  हैं --- 'आज  के  तथाकथित  मठाधीशों  की   अगले  जन्म  में  क्या  स्थिति  होने  वाली  है  ,  उसका  संकेत  यह  कथा  देती  है  l 

19 April 2022

WISDOM

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- 'पथ  तय  करता  है  कि  जीवन  की  मंजिल  कहाँ  है  l  नीति  की  राह   पर  चलें  और  उत्सव  मनाएं   l  ' आचार्य श्री  लिखते  हैं ----- 'अनीति  एवं  गलत  राह  से  कभी  भी  श्रेष्ठ  मंजिल  की  प्राप्ति  संभव  नहीं  है  l  गलत  राह  पर  चलकर  पाई  गई  यह  चाँद  दिनों  की  चकाचौंध   दूसरों  पर  अपना  प्रभाव  कितना  ही  क्यों  न  डाले  ,  परन्तु  अंतर्मन  खोखला  ही  रहता  है  , कभी  भी   तृप्ति  का  एहसास  नहीं  कर  पाता   है  l  '     कौरवों  के  पास  जो   ऐश्वर्य  और  वैभव  था  वह  पांडवों  के  अधिकारों  को  कुचलकर   प्राप्त  था  , इसलिए  उसका  अंत  भी  उससे  कई  गुना  दर्दनाक  था   l   धृतराष्ट्र  के  सौ  पुत्रों  में  से  एक  भी  जीवित  नहीं  बचा   l    जिनकी  नियत   में  खोट  होता  है   उनका  अंत  कभी  भी  भला  नहीं  हो  सकता  l  भगवान  ने  इंद्र  को  सिंहासन  देने  हेतु  वामन  रूप  धरकर    बलि  को  छला  l  अपने  छल  के  परिणाम  में  उन्हें  बलि  के  दरबार  में  द्वारपाल   होना  पड़ा   l    भगवान  राम  ने  सुग्रीव  को  बचाने  के  लिए   बाली  को  छुपकर  मारा  था  ,  अगले  जन्म  में   कृष्णावतार  के  समय  बाली  का  पुनर्जन्म  व्याध  जरा  के  रूप  में  हुआ   और  उसके  द्वारा   किए  गए  शर संधान   से  भगवान  कृष्ण  को  देह  त्यागनी  पड़ी   l   इनसान  हो  या  अवतार  , सभी  को  परिणामों  का  सामना  तो  करना  ही  पड़ता  है   l   

17 April 2022

WISDOM ------

                                                                                                                                                                             पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " हमारे  जीवन  में  जो  कुछ  भी  है  ---- भौतिक  संपदा , आध्यात्मिक  संपदा , रिश्ते - नाते ,  हमारा  अपना  भौगोलिक  परिवेश ,  ये  सब  हमारे   ही  कर्मों  की  अभिव्यक्ति  है  l  दुनिया  में  हम  जिसे  भी  देखते  हैं   अर्थात   संतान , गुरु -शिष्य , संबंधी   जो  कोई  भी  हैं  , वे  सब  हमारे  ही  कर्मों  का  परिणाम  हैं  l   इस  विश्व  ब्रह्माण्ड  में   हम  जहाँ  कहीं  भी  हों   हमारे  कर्म  हमारा  पीछा  करते  हुए   हम  तक  पहुँच  ही  जाते  हैं  और  तब  तक  समाप्त  नहीं  होते  ,  जब  तक  हम  उन्हें  भोग  नहीं  लेते   l   कर्मफल  का  विधान    सबके  लिए  एक  समान  है   l "      कर्म   करना  मनुष्य  के  वश  में  है  लेकिन  उसका  फल  कब  मिलेगा  यह  काल  निश्चित  करता  है   l ------ भीष्म  पितामह  शरशैया  पर  लेते  हुए  थे  l  भगवान  कृष्ण  युधिष्ठिर  को  लेकर  पितामह  भीष्म  के  पास  गए   और  बोले ---- " युद्ध  के  कारण  धर्मराज  युधिष्ठिर   बहुत  शोकग्रस्त  हैं  , आप  इन्हे  धर्म  का  उपदेश  देकर   इनके  शोक  का  निवारण  करें  l  "  तब  भीष्म  पितामह  ने  कहा ---- " आप  कहते  हैं  तो  मैं  उपदेश  दूंगा  ,  किन्तु  हे  केशव  ! पहले  मेरी  शंका  का  समाधान  करो   l  मैं  जानता   हूँ  कि   शुभ - अशुभ  कर्मों  का  फल   अवश्य  मिलता  है   l   इस  जन्म  में  तो  मैंने   कोई  ऐसा  कर्म  नहीं  किया   और   पिछले   72   जन्मों  में  भी  ऐसा  कोई  क्रूर  कर्म  नहीं  किया  ,  जिसके  फलस्वरूप   मुझे  बाणों  की  शैया  पर  शयन  करना  पड़े  l   "  उत्तर  में  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  कहा  ---- " यदि  आप   एक  और  जन्म  देख  लेते  तो  आपकी  जिज्ञासा  शांत  हो  जाती   l  पिछले  73  वे  जन्म  में   आपने  पत्ते  पर  बैठे   हरे  रंग  के  टिड्डे  को  पकड़  कर   उसको  बबूल   के  कांटे  चुभोये  थे  ,  आज  आपको  वही  कांटे  बाण  के  रूप  में  मिले  हैं   l 

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        

16 April 2022

WISDOM --------

   एक  बार  माता  सीता  ने   हनुमान जी  से  प्रसन्न  होकर   उन्हें  हीरों  का  एक  हार  दिया  l   कुछ  समय  पश्चात्  सीताजी  ने  देखा   कि  हनुमान जी  ने  प्रत्येक  हीरे   को  माला  से  अलग  कर  दिया   और  उन्हें  चबा - चबाकर   जमीन   पर  फेंकते  जा  रहे  हैं  l   यह  देख  माता  सीता  को  बहुत  क्रोध  आ  गया   उन्होंने  कहा ---- ' इतना  बेशकीमती  हार  तुमने  नोच - खसोटकर  नष्ट  कर  दिया   l   यह  सुन  हनुमान जी  बोले --- " माते  !  मैं  तो  केवल  इन  रत्नों  को   खोलकर  यह  देखना  चाहता  था  कि   इनमे  मेरे  आराध्य  प्रभु  राम   और  माँ  सीता   बसते   हैं  अथवा  नहीं  l   आप  दोनों  के  बिना   इन  पत्थरों  का  मेरे  लिए  क्या  मोल  है  l  "  हनुमानजी  के  भक्तिपूर्ण  वचनों  को  सुनकर  सीताजी  का  हृदय  द्रवित  हो  गया   और  उन्होंने  अपना  वरदहस्त  उनके  मस्तक  पर  रख  दिया   l 

WISDOM------

   श्री रामचरितमानस  में  गोस्वामी जी  कहते  है  ---- ' मैं  सच्चे  भाव  से  दुष्टों  को  प्रणाम  करता  हूँ  , जो  बिना  ही  प्रयोजन  , अपना  हित   करने  वाले  के  भी  प्रतिकूल  आचरण  करते  हैं  , जिनको  दूसरों  के  उजड़ने  में  हर्ष   और  बसने  में  विषाद   होता  है  l  गोस्वामी जी  कहते  हैं  संत  व्यक्ति  कमल  के  समान   होते  हैं  जिनका  दर्शन  और  स्पर्श  सुख  देता  है  लेकिन  असंत  व्यक्ति  जोंक  की  तरह  होते  हैं  , जोंक  शरीर  का  स्पर्श  पाते  ही  रक्त  चूसने  लगती  है   l  '   आचार्य श्री  लिखते  हैं  --- 'इस  संसार  में   जो  वेषधारी  ठग  हैं , उन्हें  भी  साधु - संत  का  वेश  बनाए   देखकर  संसार  पूजता  है  ,  लेकिन  अंत  तक  उनका  कपट  नहीं  चलता  l  उदाहरण  के  लिए   कालनेमि  ने  ऋषि  का  वेश  बनाया   और  हनुमानजी  के  साथ  छल  किया ,  रावण  ने  साधु  का  वेश  बनाया  और  सीताजी  के  साथ  छल  किया   और  राहु  ने  देवता  का  रूप  बनाया  और  देवताओं  के  साथ  छल  किया  ,  लेकिन  इन  तीनों  को   इस  छल  का  भयंकर  दंड  भुगतना  पड़ा   l  '         कलियुग   में  लोगों  में  दुर्बुद्धि  है   कि   वे   लोगों  के  बाहरी  रूप , वेश -भूषा  को  देखकर  उसे  सम्मान  देते  हैं  ,  उसके  पीछे  जो  उनकी  असलियत  है  उसे   समझ  नहीं  पाते  l   सत्कर्म  करने  से , सन्मार्ग  पर  चलने  से  विवेक  जाग्रत  होता  है  l   विवेक  दृष्टि  जाग्रत  होने  पर  ही  हम  वो  समझ  सकते  हैं   जो  सामान्य  आँखों  से  नहीं  दिखाई  देता  l   रामचरितमानस   से  हमें  यही  शिक्षा  मिलती  है  कि   हम  गुणों  की ,  मन  और  विचारों  की  पवित्रता  का  सम्मान  करें  ,  जामवंत  जी  रीछ  शरीर धारी   होने  पर  भी  सम्मान  के  पात्र  हैं  ,  श्री हनुमानजी  वानर  रूप  में  भी  सारे  संसार  में  पूजित  हैं  l   

15 April 2022

--WISDOM-----

  आज  संसार  में  बेईमानी , भ्रष्टाचार , छल - कपट  बहुत  बढ़  गया  है  ,  लोग  दूसरों  को  धोखा  देकर   बहुत  प्रसन्न  होते  हैं    लेकिन  यह  प्रसन्नता  स्थायी  नहीं  है  , कहीं  न  कहीं  वे  भी  ठगे  जाते  हैं  l  प्रकृति  में  संतुलन  कुछ  इस  ढंग  से  होता  है   कि   यदि  हमने  किसी  का  भला  किया  है  तो  यह  जरुरी  नहीं  कि   वही  व्यक्ति  हमारा  कुछ  भला  करेगा  ,    जब  हम  किसी  परेशानी  में  होते  हैं   तो  प्रकृति  में  कहीं  न  कहीं  से   किसी  रूप  में  हमें  उस  पुण्य  का  फल  मिल  जाता  है   और  उस  परेशानी  से   छुटकारा  मिल  जाता  है  l  इसी  तरह  यदि  किसी  ने   धोखा , छल कपट  किया  है   तो  उसे  भी  कभी  न  कभी  ऐसी  ही  नकारात्मक  परिस्थितियों  का  सामना  अवश्य  करना  पड़ेगा  l  प्रकृति  में  संतुलन  होता  है  l   एक   बोध  कथा  है ----- एक  बुढ़िया  सूत  कातकर  हाट  में  बेचने  जाया  करती  थी   l  वजन  उसका  अधिक  बैठे   इसके  लिए  वह  चतुरता  करती  कि   उसमे  पानी  छिड़क   कर  ले  जाती   जिससे  वे  थोड़े  भारी  हो  जाएँ  l  खरीदार  बनिया  भी  चतुर  था  l  उसने   तराजू  के  बाट   वाले  पलड़े  में   वजनदार  गाँठ  बाँध  रखी   थी   कि   उस  उपाय  से  अधिक  माल  लिया  जा  सके  l   कोई  अपने  में  प्रसन्न  हो  ले  कि  दूसरे  को  ठग  कर  लाभ  उठा  लिया    पर  वैसा  कभी कभी  हो  नहीं  पाता  l 

14 April 2022

WISDOM------

   भगवान  श्रीकृष्ण  की  लीला  कथाएं  अद्भुत  हैं   l  भगवान  की  एक  लीला  है   जिसमे  देवर्षि  नारद  उसके  साक्षी  बने ------- भगवान  श्रीकृष्ण  द्वारका  में  अपनी  रानियों , पटरानियों  के  साथ   थे   l  भगवान  ने  उस   दिन  बीमार  होने  की  लीला  रची  l  बीमारी  का  समाचार  सुनकर  राजवैद्य  आ  गए  नाड़ी   देखी  लेकिन  क्या  रोग  है  कुछ  पता  ही  नहीं  चला  l  भगवान  के  पलंग  के  पास   रुक्मिणी , सत्यभामा  आदि  रानियां  खड़ी  थीं ,  सभी  चिंतित  थे  कि   प्रभु  को  अचानक  क्या  हो  गया  l  भगवान  श्रीकृष्ण  ने   नारद जी  का  स्मरण  किया  तो  नारद जी  तुरंत   वहां  पहुँच  गए  l   भगवान  की  मुस्कान  से  वे  समझ  गए   कि   भगवान  आज  भक्तों  को  भक्ति  का  मर्म  समझाना  चाहते  हैं   l  नारद जी  के   वहां पहुँचने  पर   सबने  उनसे  कहा  --- " देवर्षि  !  आप  परम   ज्ञानी हैं  , भगवान   की  बीमारी     उपाय  सुझाएँ   l   '   नारद    जी   ने  कहा ---- ' उपाय   तो    बहुत      सरल  है  ,  यदि  भगवान  श्रीकृष्ण   का कोई  भक्त   अपने  चरणों   की  धूल  को   इनके माथे   पर लगा  दे   तो  ये  अभी  और  तुरंत  ठीक    जायेंगे  l "  यह  उपाय  सुनकर   सभी आश्चर्यचकित   रह   गए ,  सब  रानियों   ने और  सब   ने    मना   कर  दिया   कि   वे  तो  साक्षात्  भगवान  हैं   , ऐसा  करने  से   हम    नरक  में  जायेंगे  l    भगवान  के    संकेत  पर   नारद जी     हस्तिनापुर   गए   वहां  भी   द्रोपदी    आदि    सबने   बीमारी  का  दुःख  तो  प्रकट  किया   लेकिन  नरक   के डर   से   चरण धूलि  देने   से     मना   कर  दिया  l  अब  भगवान  की  प्रेरणा  से  नारदजी  वृंदावन   गए  l   भगवान  की   बीमारी  का  सुनकर   गोपियाँ  बहुत  व्याकुल  हो  गईं   और   पोटली   में  अपनी   चरणधूलि  ले  आईं  l  नारदजी  ने  उन्हें  समझाया  कि   श्रीकृष्ण   भगवान  हैं   उन्हें  चरणधूलि  देकर  तुम  सब  नरक   में   जाओगी  ,  सब  गोपियों   ने    कहा  ---- अपने  कृष्ण   के  लिए   हम  सदा -सदा  के  लिए  नरक  भोगने  को  तैयार  हैं   l "  नारदजी  द्वारका  आ  गए     और सब  अनुभव  कथा  वहां  सुनाई    l   कृष्णजी  ने  कहा  ---- ' यही  है  भक्ति  ,  और  यही  हैं  वे  भक्त  जिनके  वश  में  मैं  हमेशा  रहता  हूँ    l "

13 April 2022

WISDOM------

 कहते  हैं  त्रेतायुग  में  सर्वप्रथम  भगवान  राम  के   बड़े  पुत्र  महाराज  कुश  ने  राम जन्मभूमि  पर  मंदिर  बनवाया  था  l   -------- वक्त  बीतता  गया ----- ईसा पूर्व  पहली  शताब्दी  में  महाराज  विक्रमादित्य  भारत  भ्रमण   करते  समय  अयोध्या  पहुंचे   वहां  उनको  वीरान  और  उजड़ी  हुई  अयोध्या  मिली  l  सरयू  नदी  का  जल  पवित्रतम  बना  हुआ  था  ,  उन्होंने  वहां  राम  जन्मभूमि  पर  दूसरी  बार   भव्य   मंदिर   का  निर्माण  कराया   l  राजा  विक्रमादित्य  द्वारा   राम  जन्मभूमि  पर  मंदिर  बनाने  के  संबंध   में  कई  रोचक  कथाएं   प्रचलित   हैं  ,  वे  इस  प्रकार  हैं  ------  "  एक  दिन  सरयू  तट  पर  खड़े  महाराज  विक्रमादित्य  ने  देखा  कि   एक  काला  हंस  आया  l  उसने  सरयू  में  डुबकी  लगाईं  ,  डुबकी  लगाकर  जब  वह  निकला    तो  वह  पूरा  सफ़ेद ,  शुभ्र - श्वेत  हो  गया  l  महाराज  की  उत्सुकता  जागी ,  अपने  योगबल  से  उसे  रोका   और  उससे  इस  परिवर्तन  का  कारण  पूछा   l   तब  उसने  बताया  कि   वह  तीर्थ  प्रयाग  है  ,  जिसमे  प्रतिवर्ष  हजारों -लाखों  लोग  स्नान  कर  के   अपने  पाप  छोड़  जाते  हैं   जिससे  वह  काला  हो  जाता  है  l   इस  पाप  से  मुक्ति  पाने  के  लिए  वह  प्रति  वर्ष   अयोध्या  आकर  भगवान  राम  के  चरणों  में  समर्पित  होकर   सरयू जी  में  स्नान  कर  के   अपनी  कालिमा  समाप्त  कर  लेता  है   l  महाराज  ने  जन्मभूमि  स्थान  जानने  की  जिज्ञासा  प्रकट  की  तो  तीर्थराज  प्रयाग  ने  उन्हें  बताया  कि   अगले  दिन  एक  बुढ़िया  आएगी   जो  उन्हें  सब  बताएगी   l  वास्तव  में  दूसरे  दिन  वहां  एक  वृद्धा  आई   उसने  जन्म  भूमि    के  साथ  और  भी  विभिन्न  स्थान  बताये  ,  उन  स्थानों  को  चिन्हित  कर  के  महाराज  विक्रमादित्य  ने  वहां  मंदिर  बनवाये   l    तीर्थराज  प्रयाग  ने  यह  भी  बताया  कि   गाय  बछड़ा  घूमते  मिलें  और  जिस  स्थान  पर  गाय  के  थनों  से   दूध  टपकने  लगे  वही  राम जन्मभूमि  है  l   इसी  तरह  एक  और  कथा  है  कि   रामनवमी  के  दिन  महाराज  सरयू  नदी  के  किनारे  भ्रमण  कर  रहे  थे   कि   एक  काला  पुरुष  काले   घोड़े  पर  सवार  होकर  आया   और  सरयू  में  घोड़े  सहित  डुबकी  लगाईं   ,  डुबकी  के  बाद  वे  दोनों  सफ़ेद  हो  गए  l   वे  भी  तीर्थराज  प्रयाग  थे    प्रतिवर्ष  चैत्र  की  रामनवमी  को  वे  आते  हैं   l   उन्होंने  महाराज  विक्रमादित्य  को   प्राचीन  अयोध्या  के  वे  सब  गुप्त  स्थान  बताये    और  उनसे  अयोध्या  के  जीर्णोद्धार  के  लिए  कहा  l   विक्रमादित्य  ने  उन  स्थानों  को  भाले  से  चिन्हित  किया   और  360  मंदिर  बनवाये  जिनमे   एक  मंदिर  रामजन्मभूमि  का  था   l  इस  मंदिर  में  कसौटी  के  84  कलात्मक  खम्भे  लगाए  गए  l   ऐसा  माना  जाता  है  कि   लंका  विजय  के  बाद   हनुमान  जी  लंका  से  इन्हे  लाये  थे   जिन्हे  महाराज  कुश  ने  मंदिर  निर्माण  में  लगाया  था   l ------ 


12 April 2022

WISDOM-----

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----' बदल  जाए  दृष्टिकोण  तो  इनसान   बदल  सकता  है  ,  दृष्टिकोण  में  परिवर्तन  से  जहान  बदल  सकता  है  l '  यदि  हमारा  दृष्टिकोण  सकारात्मक  हो  तो  जीवन  की  दिशा  बदल  जाती  है  , जीने  की  नई  राह  दिखाई  देती  हैं    लेकिन  यदि   दृष्टिकोण  नकारात्मक  हो  तो  जीवन  की  दिशा  उस  गर्त  में  जाती  है   जहाँ  से  निकलना , उबरना  आसान  नहीं  होता  है   l   अपनी  जिंदगी  के  बारे  में  निर्णय  हमें  लेना  है  , ईश्वर  ने  मनुष्य  को  चयन  की  स्वतंत्रता  दी  है  l ------ एक  कथा  है  ----- एक  गुरुकुल  में  दो  राजकुमार  पढ़ते  थे  , दोनों  अलग -अलग  राज्यों  के  वारिस  थे   l  एक  दिन  उनके  आचार्य  उन्हें   बाग   में  घुमाने  ले  गए  l   वहां  एक  आम  का  पेड़  भी  था  ,  उसी  समय  एक  बालक  आया  और   डंडा  मारकर   आम  तोड़ने  लगा  l  आचार्य  ने  राजकुमारों  से  पूछा  --" इस  विषय  में  तुम  दोनों  की  क्या  राय   है   ?  पहले  राजकुमार  ने  कहा --- " गुरूजी  !  वृक्ष  भी  बगैर  डंडा  खाए  फल  नहीं  देता  है   यानि  लोगों  पर  दबाव  डालकर  ही   उनसे  कोई  काम  कराया  जा  सकता  है  l  "  दूसरे  राजकुमार  ने  कहा  ---- " गुरूजी  !  मुझे  लगता  है  कि   जिस  प्रकार   यह  पेड़  डंडे  खाकर  भी   मीठे  आम  दे  रहा  है  ,  उसी  तरह  व्यक्ति  भी  स्वयं  दुःख  सहकर   दूसरों  को  सुख  दे  सकता  है   l   अपमान  के  बदले  उपकार  कर  सकता  है   l  "  गुरुदेव  ने  कहा ---- "  एक  ही  घटना  पर  तुम  दोनों  की  राय  अलग  है   क्योंकि  तुमहाते  दृष्टिकोण  में  भिन्नता  है  l   मनुष्य  अपने  दृष्टिकोण  के  अनुसार  ही   जीवन  की  व्याख्या  करता  है  ,  उसी  के  अनुरूप  कार्य  करता  है   और  उसी  के  अनुसार  फल  भोगता  है   l  "

WISDOM

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- ' आज  कितना  ज्यादा  दिखावा  धर्म क्षेत्र  में  दिखाई  दे  रहा  है  l  लगता  है  भगवान  के  भक्तों  की  संख्या  अनंत  गुनी  है  , सभी  उन्हें  पाने  का  प्रयास  कर  रहे  हैं  l  धार्मिक  स्थलों  पर  जाने  वालों  की  संख्या , कथा  सुनने - सुनाने  वालों  की  संख्या   और  भावावेश  में  आकर  नाच  उठने  वाले  साधकों  की  संख्या   अगणित  है  l  पर  क्या  वे  वास्तव  में  प्रभु  के  स्वरुप  को  जानते  हैं   ? '  श्रीमद्भगवद्गीता  में  भगवान  कहते  हैं --- दिखावा  अलग  बात  है , पर  प्रभु  को   जानना  दूसरी  बात  है  l  जिसने  भगवान  को  जान  लिया  उसने  दुनिया  का  सारा  दरद   जान  लिया  l '  आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- ' जीवन  का  सत्य  बाहरी  आवरण  में  नहीं  है  l   फिर  बाहरी  परिवर्तन  से , वेश  और  व्यवहार  बदलने  से  क्या  होगा  ?  '------ एक  कथा  है ------  एक  शहर  में  एक  दिन , एक  ही  समय  दो  मौतें  हुईं -- एक  संन्यासी  थे  और  एक  नर्तकी  l   जैसे  ही  उनकी  मृत्यु  हुई  ,  ऊपर  से  दूत  उनको  लेने  के  लिए  आए  l  एक  आश्चर्य  यह  था  कि  वे  दूत  नर्तकी  को  स्वर्ग  की  ओर   ले  चले  और  संन्यासी   को  घसीटते  हुए  नरक  की  ओर  l   संन्यासी  से  सहन  न  हुआ  , वह  दूतों  से  बोला ---- ' अरे  भाई  ! तुम  अपनी  भूल  सुधारो ,  नर्तकी  को  स्वर्ग  ले  जा  रहे  हो  और  मुझे  नरक l म यह  अन्याय  और  अंधेरगर्दी  है   l  '  दूतों  ने  कहा --- नहीं , ऐसी  बात  नहीं  है l  तुम  थोड़ा  सा  नीचे   देखो  l ' संन्यासी  ने  धरती  की ओर   देखा   , तो  वहां  उसके  मृत  शरीर  को  फूलों  से  सजाया   गया  था  , बहुत  भीड़  थी  , लोग  रामनाम  गाते   हुए  उसे  ले  जा  रहे  थे , चन्दन  की  चिता    तैयार  थी  l  दूसरी  ओर  नर्तकी  की  लाश  पड़ी  थी  ,  अब  उसे  पूछने  वाला  कोई  नहीं  था  l  '  यह  देख  संन्यासी  ने  कहा ---' तुमसे  ज्यादा  समझदार  तो  धरती  के  लोग  हैं  जो  मुझ  पर  न्याय  कर  रहे  हैं   l  ' दूत  हंसने  लगे  और  बोले --- ' वे  बेचारे  तो  केवल  वही  जानते  हैं  , जो  बाहर  था  ,   इन  लोगों  ने  वही  जाना  जो  तुम  दिखाते   रहे  , जो  तुमने  लोगों  के  सामने  किया   परन्तु  जो  तुम  सोचते  रहे  , मन  की  दीवारों  के  भीतर  करते  रहे    उसे  ये  सब  जान  नहीं   पाए    l   तुम्हारा  मन  सदा  नर्तकी  में  अनुरक्त  रहा , मन  भोग  और  वासना  में  डूबा  था  l  मृत्यु  की   घड़ी  में  भी  तुम्हारे  चित्त   में  अहंकार  था , वासना  थी   जबकि  नर्तकी  निरंतर  यही  सोचती  रही  कि   इन  संन्यासी  महाराज  का  जीवन  कितना  आनंदपूर्ण  है  l  रात  को  तुम  जब  भजन  गाते   थे   तब  वह  बेचारी  विकल  होकर  रोती    थी   , वह  अपने  पापों  की  पीड़ा  से   विगलित  होती  जाती  थी  l  मृत्यु  की  घड़ी  में  उसके  चित्त   में  न  अहंकार  था ,  न  वासना  थी  l   उसका  चित्त  तो  परमात्मा  के  प्रकाश , प्रेम  एवं  प्रार्थना  से  परिपूर्ण  था  l  "    अध्यात्म  अंत:करण   में  परिवर्तन  है ,  आंतरिक  जीवन  का ,    चित्त  का  रूपांतरण  है  l 

10 April 2022

WISDOM

 देवी पुराण  के अनुसार युद्ध  से  पहले  आराधना  करने  पर  राम  और  रावण  दोनों  के  सामने  शक्ति  प्रकट  हुईं  l  राम  को  उन्होंने  आशीर्वाद  दिया  ' विजयी  भव ' l  रावण  को  कहा ---' कल्याणमस्तु ' l  रावण  का  कल्याण  उसके  दर्प , अभिमान  और  असुरत्व  के  साथ  कट -मिट  जाने  में  ही  था  l  उसी  रूप  में  वह  आशीर्वाद  फलीभूत  हुआ  l 

8 April 2022

WISDOM -----

   श्रीमद्भगवद्गीता  में  भगवान  कहते  हैं ----- ज्ञान  से  नौका  तो  पार  की  जा  सकती  है  पर  रूपांतरण  संभव  नहीं   l   भावनात्मक  रूपांतरण  तो  मात्र  भक्ति  से  ही   संभव  है  l    मात्र    कोरे  ज्ञान  से  यह  संभव  नहीं  , हृदय  परिवर्तन  होना  जरुरी  है  l   भगवान  कहते  हैं --- दुराचारी  से  दुराचारी  व्यक्ति  भी  ठान  ले  कि   प्रभु   मेरे हैं  , मैं  उनका  हूँ  ,  उनका  अंश  होने  के  नाते  अब  मुझसे  कोई  गलत  कार्य  नहीं  होगा   तो  वे  उसे  भी  तार  देते   हैं  l   अनन्य   भाव से  भगवान  को  भजने   से   जीवन  की  राह   बदल जाती  है   l   अंगुलिमाल  डाकू   अनेक  नागरिकों  की  उँगलियाँ  काटकर  उनकी  माला  पहन  कर  घूमता  था  ,  प्रसेनजित  की  सेनाएं  भी  उससे  हार  मान  गई  थीं   तब  उसके  पास  चलकर  गौतम  बुद्ध    आए ,  अंगुलिमाल  ने  उनसे   बार -बार  रुकने  को  कहा   तब  तथागत  बोले ---- ' रुकना  तो  तुझे  है  पुत्र ,  भाग  तो  तू  रहा  है  --अपनी  जिंदगी  से  , अपने  आप  से , अपने  भगवान   से   l   वह  कुछ  समझ  पाता  तब  तक   भगवान  बुद्ध  ने  उसके  नजदीक  जाकर  उसे  अपने  गले  लगा  लिया   l   अंगुलिमाल  को  लोग  ऊँगली  दिखा - दिखाकर  ताना   मारते   थे  , जिससे  उसके  मन  में   एक  ग्रंथि  बन  गई  थी  l  पहली  बार  उसे  सच्चा  प्यार  मिला   l   बुद्ध  ने  उसे  संघ  में  शामिल  कर  लिया   l   खतरनाक  डाकू  को  संघ  में  शामिल   करने से  संघ  की  बुराई  होने  लगी   l   कुछ  तो  मन  ही  मन  उसे  मार  डालने  का  भी  सोचने  लगे   l   सब  भिक्षुओं  ने  अपनी  बात  भगवान  के  सामने  रखी  कि   इसके  कारण  संघ  की  बदनामी  हो  रही  है   l   बुद्ध  बोले --- ' वह  पूर्व  में  डाकू  था  ,  अब  भिक्षु  है  ,  पर  अब  तुम  में  से   बहुत  सारे  डाकू  बनने  की  दिशा  में  चल  रहे  हो   l   उसे  मार  डालने  की  सोच  रहे  हो     उन  सब  को  जवाब  देने  का  सोचकर  उन्होंने   अंगुलिमाल   को    भिक्षा  लेने  भेजा   l   लोगो  में  उसके  लिए  बहुत  गुस्सा  था ,  उसे  बहुत  पत्थर  मारे  जिससे   वो मूर्च्छित  होकर   गिर पड़ा  l   और  तो  कोई  नहीं  आया  उसके  पास , स्वयं   भगवान बुद्ध  आए ,  उसकी  सेवा  की   l    जब उसे  होश  आया  तो  उससे  कहा --- " तुम  एक   घुड़की  दे  देते  ,  सब  भाग  जाते  ,  क्यों  मार  खाते   रहे   l  " अंगुलिमाल  बोला ---- "  प्रभु  !  कल  तक  मैं  बेहोश  था  ,  आज  ये  बेहोश  हैं  l  "

7 April 2022

WISDOM ------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- "  यश - प्रतिष्ठा।,  मान - सम्मान ,  ऐश्वर्य - वैभव  उन्हें  अच्छे  लगते  हैं  , जिनका  अंतर   खोखला  एवं  शून्य  हो  l   समाज  में  इन  सब  के  माध्यम  से   ये  अपने  खोखलेपन  को  भरने  का   व्यर्थ  प्रयास   करने  में  संलग्न  रहते  हैं   l    अध्यात्म  जीवन  को  पवित्रता  से  भर  देता  है   l   यह  पवित्रता  यदि  व्यवहार  में   उतर  आए   तो  उसे  समाज  में  नैतिकता  का  नाम  दिया  जाता  है  ,  परन्तु   जब  यह  पवित्रता   , विचार , भाव  एवं  संस्कार  में  समाहित  हो  जाती  है  ,  तो  उसे  अध्यात्म  कहते   हैं  अर्थात  अध्यात्म   आंतरिक  पवित्रता  का   पर्याय  है  ,  जिसमें  विचारों , भावनाओं   एवं  संस्कारों  को  परिष्कृत  किया  जाता  है   l  "  आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं ---- ' वास्तविक  अध्यात्म  जब  आंतरिक  सफलताओं  का  मार्ग  प्रशस्त  करता  है   तो  ऐसे  आध्यात्मिक   व्यक्ति  की  प्रकृति   उदार , उदात्त   एवं  संवेदनशील  हो  जाती  है  l   आध्यात्मिक  व्यक्ति  बाहरी  संपन्नता   को  नहीं   बल्कि  आत्मिक  समृद्धि  को   वरीयता   एवं प्राथमिकता  प्रदान  करता  है  l  "           एक  बार  महात्मा  गांधी   से   उनके  साथ  कार्यरत  एक  स्वयंसेवक  ने  पूछा  ---- " आप  अंग्रेजों  से  इतनी  निर्भीकता  से  लोहा  ले  लेते  हैं  , क्या  आपको  कभी  भय  नहीं  लगता   ?  क्या  कभी  आपको  ऐसा  नहीं  लगता  कि   जिस  मार्ग  पर  आप  चल  रहे  हैं  वह  गलत  भी  हो  सकता  है   ? "  महात्मा  गांधी   बोले ---- " मित्र  !  मुझे  आनंदित  जीवन  का   रास्ता  मालूम  है   l   वह  तंग  जरूर  है  , परन्तु  सीधा  है  l   वह  तलवार  की  धार  के  समान   है  ,  परन्तु  उस  पर  चलने  में   मुझे  आनंद  आता  है   l   यदि  कभी  उस  पर  चलते  हुए   मैं  फिसल  भी  जाता  हूँ   तो  मैं  हृदय  से  भगवान  को  पुकारता  हूँ   l   भगवान  का  वचन  है  कल्याण - पथ  पर  चलने  वाले  की  कभी  दुर्गति  नहीं  होती  l   धर्म  का  पथ  लेने  वाले  की  रक्षा  स्वयं  भगवान  करते  हैं   l   भगवान  के  इस  आश्वासन  पर  मेरी  अटूट  श्रद्धा  है   l  "  स्वयंसेवक  ने  पुन:  पूछा ---- " यदि  इस  पथ  पर  चलते - चलते   आप  अपना  जीवन  गँवा  बैठे  तो  ? "  गाँधी जी  बोले  ---- "  मित्र  !  इस  संसार  में  अमरता  लिखाकर  तो  कोई  आया  नहीं  है  ,  पर  यदि  सन्मार्ग  पर  चलते  हुए    सदुद्देश्य  के  लिए   यह  शरीर  नष्ट  भी  हो  जाए  तो  उसकी  मुझे  परवाह  नहीं  है  l   जीवन  सही  कार्यों  में  गया   तो  मेरी  अंतरात्मा   इसी  से  संतुष्ट  होगी   l  "

5 April 2022

WISDOM ----

  वैराग्य  शतक  में  भतृहरि   ने  भय  की  स्थिति  का   सूक्ष्म  विश्लेषण  किया  है ---- ' भोग  में  रोग   का भय  है ,  सत्ता  में  गिरने  का  भय  है  ,  धन  में  खोने  का , उसके  चोरी  होने  का  भय  है  ,  सत्ता  में  शत्रुओं  का  भय  है  ,  मान - सम्मान  में  अपमान  का  भय  ,  सौंदर्य  में  बुढ़ापे  का  भय  ,  शरीर  में  मृत्यु  का  भय  है   l   इस  तरह  संसार  में  सब  कुछ  भय  से  युक्त  है  l  '     पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य श्री   लिखते  हैं ----- ' भय  को  भय  से  निपटने  के  नकारात्मक  रवैये  ने   समूची  मानव  जाति   को   अवर्णनीय  त्रासदियों  एवं  दुःख - कष्टों  से   गुजरने  के  लिए  विवश  किया  है   क्योंकि   भय  की  नकारात्मक   शक्ति    अविश्वास , घृणा   एवं  हिंसा  की  वाहक  होती  है   l   चंगेज  खां   ने  लगभग  आधी  दुनिया  का  क़त्ल   जनता   को भयभीत  कर   अपने  अधीनस्थ  करने  के  लिए  ही  किया  था  l  '  आज  भी  अमानवीय  कृत्य , नर - संहार , अत्याचार   के मूल  में  भय  ही  है  l   अध्यात्मवेत्ताओं  के  अनुसार ----  संकीर्ण  स्वार्थ ,  दैहिक  वासना  और  अहंकार  से  युक्त  अनैतिक  जीवन   भय  का  प्रमुख  कारण  है  l   इस  तरह  के भय  से  मुक्ति  का   एकमात्र  मार्ग   ईश्वरीय  अनुशासन  को  अपने  जीवन  में   धारण  करना  है  l 

WISDOM -----

   संत  तुकाराम  के  जीवन  में  जब   अनेक  विपत्तियां  आईं  तो  उन्होंने  भगवान  को  पत्र   लिखा  ---- ' हे  भगवान  ! अच्छा  ही  हुआ  , जो  आपने  मेरा  धन  छीन  लिया  l  पत्नी  और  बच्चे  भी  बीमारी   के  कारण  साथ  नहीं  रहे , यह  भी  अच्छा   ही हुआ  l   मैं  हर  प्रकार  से  दुर्दशा  भोग  रहा  हूँ  -- यह  भी  एक  तरह  से  ठीक  ही  है  l   संसार  में  घोर  अपमानित  हो  रहा  हूँ  ---- यह  भी  अच्छा  ही  है  ,  क्योंकि  इन्ही  कष्टों   की  राह  से  गुजर  कर   आपकी  मधुर , शांत  गोद   मिलती  है  l  '

4 April 2022

WISDOM ---------

               पुराण  में  लिखा  है ---- ' बिना  भोग  किए   कर्म   क्षीण  नहीं  होते  ,  चाहे  सौ   करोड़  कल्प  वर्ष   ही  क्यों  न  व्यतीत  हो  जाएँ    l   शुभ - अशुभ  किए   गए     कर्मों  का  फल  अवश्य  भोगना  पड़ता  है  l                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        

WISDOM ------

   रामकथा  का  मूल  आधार  वाल्मीकि  रामायण  है  l   हमारे  धर्म  ग्रन्थ  केवल  पूजा - पाठ  की  दृष्टि  से  पढ़ने  के  लिए  नहीं  है   l   इनमें  संसार  की  प्रत्येक  समस्या  का   उपचार  है , समाधान  है  l  चाहे  युद्ध  हो , आतंकवाद  हो ,   ऊंच - नीच , अमीर - गरीब , जाति -भेद , पर्यावरण , अत्याचार , उत्पीड़न ----- आदि  प्रत्येक  समस्या  का  समाधान  इसमें  मिलता  है   l   जरुरत   है श्रद्धा , विश्वास  और  सकारात्मक  सोच  की   l ---- यह   बात  है  उस  समय  की  जब  रूस  के  एकछत्र  नायक   रहे  श्री  ब्रेझनेव   भारत  आए   थे   l   अनेक  विशिष्ट  लोगों   से उनकी  मुलाकात  हुई  l   रामकथा   के प्रसिद्ध   विद्वान्    और  वाचक  पंडित  कपीन्द्र  जी  भी  उनसे  मिले  l   उन्होंने  ब्रेझनेव  को  रामचरितमानस  भेंट  की   और  कहा --- इस  ग्रन्थ  में   जहाँ  राम  हैं    वहां ' साम्यवाद ' रख  देना   l   सीता  के  स्थान  पर   ' शक्ति  '  और  असुर  के  स्थान  पर  ' पूंजीपति  '    फिर  आपको   इस  ग्रन्थ  की    महत्ता  का  पता   चल  जायेगा  l 

3 April 2022

WISDOM -----

  ऋषि  का   वचन है ---- " दुष्ट  की  विद्या  विवाद  के  लिए  , धन  मद  के  लिए   और  शक्ति   दूसरों  को  कष्ट  देने  के  लिए  होते  हैं   l   सज्जन  पुरुष  के  लिए   ये  तीनों  विपरीत  होते  हैं   l   विद्या  ज्ञान  के  लिए ,  धन  दान  के  लिए  और  शक्ति  दूसरों  की  रक्षा  के  लिए  होते  हैं   l  "  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- मनुष्य  इस  सृष्टि  का  सर्वाधिक  बुद्धिमान  प्राणी  माना  जाता  है  l   वह  अपने  भाग्य  एवं  भविष्य  का  निर्माता  स्वयं  है   l   इतने  पर  भी  देखा  यही  जाता  है  कि  अक्लमंदी  के  प्रदर्शन  में  वह  ऐसे  प्रकृति  विरुद्ध  कार्य  कर  बैठता  है  ,  जिसे  उसकी  परले   सिरे  की  मूर्खता  ही  कहा  जा  सकता  है  l   सुविख्यात  मनीषी   कार्ल   मेनिंजर   ने   अपनी   कृति  ' मैन   अंगेस्ट   हिमसेल्फ  '  में    कहा  है  ----- " आज  सभ्यता  उन  लोगों  द्वारा   विकसित  हो  रही  है  ,  जो  प्राकृतिक   सम्पदाओं  को  नष्ट  करते  हैं  ,  प्रकृति  का  विनाश  करते  हैं   और  अपने  ही  ठौर - ठिकानों   को  प्रदूषित  कर   के  स्वयं  मृत्यु  का  वरण   करने  पर  उतारू  हैं   l  "  उन्होंने  आगे  लिखा  है ---- "अपने  अहंकार  की  पूर्ति  के  लिए   जिस  तरह  एक  देश  दूसरे  देश  को  नीचा  दिखाने   के  लिए   विनाशक  अस्त्र -शस्त्रों  , परमाणु  हथियारों   का  उपयोग  करता  है   और  देखते  ही  देखते   बड़े - बड़े  शहरों   को  ,  बड़ी - बड़ी  सभ्यताओं  को  जमींदोज  कर  देता  है  l   उसके  प्रभाव  से  वह  सारा  क्षेत्र  जीवन  विहीन  हो  जाता  है   और  वातावरण   में  विकिरण  की  विषाक्तता  और  विषाणुओं  की  फौज  ही  शेष  रह  जाती  है  l   यह  उन  संस्थाओं  या  सरकारों  का  कार्य  होता  है  ,  जिन्हे  जनता  नियमित  रूप  से   तरह - तरह  के  उपायों  से  कर  चुकाती   है  l  "

2 April 2022

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- "  जो अपनी  हर  कोशिश से ,  अपने  हर  प्रयास  से  कुछ  न  कुछ  सीखता  है  ,  वही  सकारात्मक  होता  है   और  अपनी  मंजिल  की  ओर   तेजी  से  बढ़ता  है   l  "     दंतकथाओं  के  अनुसार ------  फीनिक्स   पक्षी   अपने  जीवन  चक्र  के  अंत  में   खुद  के  इर्द -गिर्द   लकड़ियों  और  टहनियों  का  घोंसला  बनाकर  उसमें  जल  जाता  है   l  फिर  उसी  राख   से   एक  नए   फीनिक्स   का  जन्म  होता  है  l   कभी - कभी   ईश्वर  की  कृपा  से   किसी    मनुष्य   के  जीवन  में  भी  यह  सत्य  घटित  होता  है   l   अमेरिका  के  महान  वैज्ञानिक  थामस  अल्वा  एडिसन   के  जीवन  का   प्रसंग है   l    वर्ष  1914   के  आखिरी  महीने  के  दिन  थे  ,  एक  रात  उनकी  विशाल  फैक्टरी   में  आग  लग  गई   l   आग  की  उन  तेज  लपटों  में  एडिसन   अपनी  जिंदगी  की  पूरी  कमाई   और  अपने  वर्षों  के  काम  को   राख   में  तब्दील  होते  हुए  देख  रहे  थे  l  अपने  बेटे  पर  नजर  पड़ते  ही   एडिसन  ने   चिल्लाकर  उससे  कहा  ---- " चार्ल्स  अपनी  माँ  को   बुलाकर  लाओ  l   वो  अपनी  जिंदगी  में   इस  तरह  का  दृश्य   दोबारा  कभी  नहीं  देख  पाएंगी  l  "  सुबह  होते - होते  एडिसन  के  सारे  सपने   और  उनसे  जुडी  आशाएं  राख  हो  चुके  थे  ,  लेकिन  एडिसन   राख  के  उस  ढेर  में  से   फीनिक्स  पक्षी  की  भांति   एक  नए  रूप  में  बाहर  आए  l  विनाश  को  देखने  के  लिए  वहां  एकत्रित   भीड़  में  एडिसन   ने   पूरे   जोश  और  होश    के  साथ  यह  घोषणा  की   कि ----- " विध्वंस  के  बाद  हानि  नहीं ,  लाभ  होता  है   l   हमारी  सारी   गलतियां   इस  आग  में  जलकर  राख  हो  गईं   l   ईश्वर  को  धन्यवाद   कि   इसके  कारण  हम  दोबारा  नई   शुरुआत  कर  सकते  हैं   l  "

1 April 2022

WISDOM ----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- " क्षण - क्षण  से  जीवन  बनता  है  l   जीवन  का  हर  क्षण  महत्वपूर्ण  है  l   भूत , भविष्य  एवं  वर्तमान  में   केवल  वर्तमान  ही  हमारे  पास  रहता  है  ,  जो  ये  जानते  हैं  ,  वे  वर्तमान  क्षण  का  सार्थक  उपयोग  कर  लेते  हैं  ,      किसी     खास  अवसर   की  प्रतीक्षा  करने  वाले    समूचे  जीवन  के  समय   एवं  अवसर  को  ही  गँवा  देते  है  l   इसी  तरह  वर्तमान  को  छोड़कर   अतीत  में  उलझे  रहना  एक  विडंबना  के  समान   है   l   जो  जीवन  का  सत्य  पाना  चाहता  है  ,  उन्हें  वर्तमान  क्षण  में  जीने  की  कला  आनी   चाहिए  l  "  एक  कथा  है ------- '   एक  फकीर   ने   बादशाह  के  सामने  समय  की  शाश्वता   की  सच्चाई   प्रकट  करते  हुए  कहा ---- "  वर्तमान  को  संभाल   लो  ,  जीवन  संभल  जायेगा  , सार्थक  हो  जायेगा   l   खुद  को  बादशाह  कहते  हो   और  जीते  हो  दंभ  एवं  अहंकार  में  !  सच्चा  बादशाह   तो  वही  होता  है  ,  जो  जीवन  के  सब  रहस्यों  को  समझकर   इसके  आनंद   को  अनुभव  करे  l  "     बादशाह  को  फकीर   का  कहा  सच  अप्रिय  लगा  ,   सो   उसने   उसे कैद   कर लिया   l   उस  फकीर  के  एक  मित्र  ने  उससे  कहा ----- " आखिर  यह  बैठे - बैठाय  मुसीबत  क्यों  मोल  ले  ली   ?   न कहते  ये  सब  , तो  तुम्हारा  क्या  बिगड़  जाता   और  कह  भी  दिया   तो  वह  कौन  सा  बदल  गया   ? "  फकीर  बोला ------ " मैं  करूँ   भी तो  क्या  करूँ   ?  जब  से  खुदा  का  दीदार  हुआ  है  ,  तब  से  झूठ  बेमानी  हो  गया  है   l   कोशिश  करने  पर  भी  रहा  नहीं  जाता  और  झूठ  तो  बोला ही  नहीं  जाता  l  परमात्मा  की  सत्ता  ही  कुछ  ऐसी  है  कि   उसे  अनुभव  करने  के  बाद  असत्य  का  ख्याल   ही  नहीं  आता    l    समय के   एक -एक  क्षण  को   परमात्मा के  चरणों  में  समर्पित  करने  की  उमंग  मन  में  उठती  है   l   समय  के  इस  सार्थक  उपयोग  के  अलावा  कुछ   समझ  में  नहीं  आता  l   फिर  इस  कैद  का  क्या  ?  यह  कैद  तो   बस   घड़ी   भर  की  है  l  l "  किसी  गुप्तचर  ने  यह  बात   बादशाह  को  बता  दी  l   बादशाह  ने   कहा ---- " उस  पागल , फक्क्ड़  फकीर  से  कहना   कि   यह  कैद  घड़ी   भर  की  नहीं  ,  जीवन  भर  की  है l   उसे  जीवन  भर  इसी  कालकोठरी  में  सड़ते  हुए  मरना  है   l   उसे  यह  याद  रखना  होगा  कि   मैं  भविष्य   को अपनी  मुट्ठी  में  भर  सकता  हूँ  l  "  फकीर  ने   जब बादशाह   के इस  कथन  को  सुना   तो   हँसने   लगा   और   कहा ---- " ओ   भाई  !  उस  नादान  बादशाह  से  कहना   कि   उस  पागल  फकीर   ने  कहा  है  कि   क्या  उसकी  सामर्थ्य  समय  के  पहिए   को  थामने   की  ताकत  रखती  है  ?  क्या  समय  उसकी  मुट्ठी  में  है  ?  क्या  उसे  पता  है  कि   पल  भर  के  बाद  क्या  घटित   होने  वाला  है  ? "   बादशाह  तक  फकीर   की ये  बातें  पहुँच  पातीं  ,  इसके  पूर्व  ही  अचानक  बादशाह  को   दिल  का  दौरा  पड़ा  और  उसकी  मृत्यु  हो  गई   l   नए  बादशाह  ने  फकीर  को  आजाद  कर  दिया  l   उसके  मित्र  को  भी  समझ   में आ  गया  कि   समय  का  सदुपयोग  करें ,  अहंकार  न  करें   क्योंकि  वक्त  का  मिजाज  कब  बदल  जाए   कोई  नहीं  जानता  l