पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- 'जब तक मनुष्य की चेतना परिष्कृत नहीं होती , विचारों का सुधार -परिष्कार नहीं होता तब तक परिस्थितियों में सुधार संभव नहीं है l ' आज हम देखते हैं कि संसार में हर बुराई के उन्मूलन के लिए कानून है , नियम हैं लेकिन बुराई कम नहीं हुई बढ़ती ही जा रही है l भ्रष्टाचार और नशा विरोधी कितने भी कानून बना दो यदि मन में बेईमानी है , नशे की लत है तो व्यक्ति छुपकर यह कार्य करेगा और जब छुपकर कोई कार्य किया जाता है तो उसमे अपराध का प्रतिशत और बढ़ जाता है l इसी तरह बहु विवाह के विरोध में नियम -कानून बन गए लेकिन संयम न होने से व्यभिचार बढ़ गया , शक और वहम की बीमारी बढ़ गई l यह भी सत्य है कि यदि कानून न हो तो जंगल राज से भी भयावह स्थिति हो जाये l जब मनुष्य स्वयं जागरूक होगा , उसका विवेक जागेगा तभी सुधार संभव होगा l सुधर जाने के इंतजार में कहीं देर न हो जाये क्योंकि संसार में शांति के लिए , बच्चों की सुरक्षा उनके स्वस्थ जीवन और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेकों प्रयास किए गए हैं लेकिन ' समरथ को नहीं दोष गोंसाई ' l संसार में युद्ध बढ़ते ही जा रहे हैं , घातक हथियारों के प्रयोग से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है और क्रोध उन पर है जो बच्चे पलट कर वार भी नहीं कर सकते l महाभारत में कथा है --- शिशुपाल ने भगवान श्रीकृष्ण को 100 गालियाँ दीं l भगवान मुस्कराते हुए गिनते रहे और शिशुपाल को सचेत करते रहे ---95 ------98 , 99 शिशुपाल ! रुक जाओ ! लेकिन वह माना नहीं और जैसे ही उसने 101 बार अपशब्द बोला , भगवान श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उसका गला काट दिया , वह सब तरफ शरण के लिए भागा भी लेकिन किसी ने उसे शरण नहीं दी l इसी तरह भगवान मानव जाति को समय -समय पर संकेत भेजते हैं कि मानवीय गरिमा के अनुकूल जीवन जिओ, इनसान बनो लेकिन मनुष्य सुधरना ही नहीं चाहता , वह तो स्वयं को भगवान समझने लगा है l आज हर व्यक्ति को अपने अंतर्मन में झाँक कर देखना है कि वह क्या मानवता के विरुद्ध काम कर रहा है और जब उस पर ईश्वरीय प्रकोप होगा तो उसे कहाँ छुपने की जगह मिलेगी ?