राम कथा जिसे हम पीढ़ी दर पीढ़ी सुनते आये हैं , हमें बताती है कि राम और रावण , दोनों में बुनियादी फरक बस अहंकार को लेकर था l श्रीराम अहंकारशून्य थे , जबकि रावण के अहंकार की कोई सीमा नहीं थी l अहंकार का मतलब है --- ' मैं ' को प्राथमिकता देना l राम ने ' मैं ' को कभी प्राथमिकता नहीं दी , जबकि रावण के लिए यही उसके अस्तित्त्व का आधार था l इसी अहंकर के कारण रावण का अंत हुआ l
4 August 2020
WISDOM ------
गुजरात की राजमाता मीनल देवी ने भगवान सोमनाथ का विधिवत अभिषेक कर के उन्हें स्वर्ण दान किया l राजमाता के मन में अहंकार आ गया कि भगवान को ऐसा दान किसी ने नहीं किया होगा l रात्रि को स्वप्न में भगवान सोमनाथ ने राजमाता से कहा --- " मेरे मंदिर में आज एक गरीब महिला आई है l उसका आज का पुण्य तुम्हारे स्वर्णदान की तुलना में कई गुना ज्यादा है l "
राजमाता ने उस महिला को महल में बुलवा लिया और उससे बोलीं ---- " तुम मुझे अपने संचित पुण्य दे दो उसके बदले में जितनी भी धनराशि लगेगी , वह मैं देने को तैयार हूँ l '
वह गरीब महिला बोली --- " राजमाता ! मुझ गरीब से भला क्या पुण्य कार्य हुआ होगा ? मुझे तो यह भी नहीं पता कि मैंने क्या पुण्य किया है तो मैं क्या अर्पित करुँगी ? "
राजमाता ने उसके विगत दिवस के क्रियाकलाप के विषय में पूछा , ताकि यह पता चल सके कि उसे किस कार्य हेतु अपार पुण्य मिला है l प्रत्युत्तर में वह गरीब महिला बोली --- " राजमाता ! मैं तो अत्यंत गरीब हूँ l मुझे कल किसी व्यक्ति ने दान में एक मुट्ठी बूँदी दी थी l उसमें से आधी बूँदी मैंने भगवान सोमेश्वर को भोग में चढ़ा दी और शेष आधी खाने चली थी तो एक भिखारी ने मुझसे मांग ली तो वह मैंने उसे दे दी l " राजमाता समझ गईं कि उस महिला का निष्काम कर्म उनके स्वर्णदान से बढ़कर है l भगवान भावनाओं का मोल समझते हैं l
राजमाता ने उस महिला को महल में बुलवा लिया और उससे बोलीं ---- " तुम मुझे अपने संचित पुण्य दे दो उसके बदले में जितनी भी धनराशि लगेगी , वह मैं देने को तैयार हूँ l '
वह गरीब महिला बोली --- " राजमाता ! मुझ गरीब से भला क्या पुण्य कार्य हुआ होगा ? मुझे तो यह भी नहीं पता कि मैंने क्या पुण्य किया है तो मैं क्या अर्पित करुँगी ? "
राजमाता ने उसके विगत दिवस के क्रियाकलाप के विषय में पूछा , ताकि यह पता चल सके कि उसे किस कार्य हेतु अपार पुण्य मिला है l प्रत्युत्तर में वह गरीब महिला बोली --- " राजमाता ! मैं तो अत्यंत गरीब हूँ l मुझे कल किसी व्यक्ति ने दान में एक मुट्ठी बूँदी दी थी l उसमें से आधी बूँदी मैंने भगवान सोमेश्वर को भोग में चढ़ा दी और शेष आधी खाने चली थी तो एक भिखारी ने मुझसे मांग ली तो वह मैंने उसे दे दी l " राजमाता समझ गईं कि उस महिला का निष्काम कर्म उनके स्वर्णदान से बढ़कर है l भगवान भावनाओं का मोल समझते हैं l
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