16 January 2024

WISDOM -----

     इस  संसार  में  भिन्न -भिन्न  मनोवृत्ति  के  लोग  हैं   l सबकी  आदतें , जीवन  जीने का  तरीका  , विचार   भिन्न  हैं  l  ईश्वर  के  प्रति  लोगों  के  विचारों  में  भिन्नता  है  ,  कोई  आस्तिक  है  , कोई  धर्मांध  हैं  l  ऋषियों  का  वचन  है   कि  ईश्वर  का  निवास  हम  सबके  ह्रदय  में  है  ,  अपने  मन  को  निर्मल  बनाओ  , सन्मार्ग  पर  चलो   तो  उसी  ह्रदय  में  भगवान  के  दर्शन  होंगे  और   और  मन  में  बसे  ईश्वर  से  बातचीत  का  सुन्दर  अवसर  भी  मिलेगा  l  लेकिन  मनुष्य  ने    ईर्ष्या , द्वेष , लालच , तृष्णा , महत्वाकांक्षा , कामना , वासना  आदि  बुराइयों  से  अपने   भीतर  इतनी  गंदगी  जमा  कर  ली  है   कि  उसे  अपने  ह्रदय  में  बैठे  ईश्वर  की    अनुभूति  ही  नहीं  हो  पाती  है  l  कलियुग  की  सबसे  अच्छी  बात  यह  है  कि  ईश्वर  कहीं  भी , किसी  भी  धर्म  में  प्रत्यक्ष  दिखाई  नहीं  देते   फिर  भी  लोग  उनके  नाम  पर  लड़ते  रहते  हैं  l   कभी  विभिन्न  धर्म  आपस  में  लड़ते  हैं  , कभी  एक  ही  धर्म  के  आपस  में  लड़ते  हैं  l  यह  भी  अच्छी  बात  है  कि  लोग  आपस  में  ही  लड़ते  हैं  , भगवान  तटस्थ ,  ऊपर  से  सब  देखते  हैं  l  द्वापर  युग  में  तो   हालात  बहुत  बुरे  थे  , लोग  प्रत्यक्ष  रूप  से  भगवान  से  लड़ते   थे   l  भगवान  श्रीकृष्ण  सामने   खड़े  थे  और  शिशुपाल  ने  उन्हें  सौ  गलियाँ   दीं  l   भगवान  श्रीकृष्ण  दुर्योधन  को  समझाने  गए  कि   जिद्द  नहीं  करो , पांडवों  को  केवल  पांच  गाँव  दे  दो   l  तो  समझना  तो  दूर   उसने  सैनिकों  को  आज्ञा   दी  कि  इन्हें  बंदी  बना  लो  l  अहंकार  इतना  सिर  चढ़  गया  कि  भगवान  को   बंदी  बनाने  चला  l  रावण  तो  इतना  अहंकारी  था  कि  उसने  भगवान  राम  की  पत्नी  माँ  सीता  का  ही  हरण  किया  l  ऐसे  ही  पुराणों  में  अनेक  उदाहरण  हैं   , भस्मासुर , हिरण्यकश्यप   आदि  अनेक  असुरों  ने  स्वयं  को  भगवान  मान  लिया  ,  उन्हें  ईश्वर  की  सत्ता  का  कोई  डर  नहीं  था  l  कलियुग  में  भी  अनेक  धर्म  के  प्रवर्तकों  को  बहुत  कष्ट  दिए  गए  , अति  का  सताया  गया  l     लेकिन  अब   परिस्थितियों    में  काफी  सुधार  हुआ  है  l   आपस  में  ही  लड़ -भिड़कर  शांत  हो  जाते  हैं   l    एक  बात   प्रत्येक  युग  में  समान  है ---   ईश्वर  चाहें  प्रत्यक्ष  हो या  अप्रत्यक्ष  हों   वे  केवल  एक  सीमा  तक  ही  सहन  करते  हैं   l  जब  भी  अति  हो  जाती  है   तब  शिवजी  का  तृतीय  नेत्र  खुल  जाता  है ,  सुदर्शन  चक्र  पीछा  नहीं  छोड़ता  ,  विभिन्न  रूपों  में  दैवीय  प्रकोपों  का  सामना  करना  पड़ता  है  , सामूहिक  दंड  मिलता  है  l  इसलिए  हमें  ' अति ' से  बचना  चाहिए  l   मनुष्य  शरीर  होने  के  नाते  गलतियाँ  सभी  से  होती  हैं  ,  लेकिन  हम  संकल्प  लें   और  उन  गलतियों  को  बार -बार  नहीं  दोहराएँ  l  ईश्वर  के  दरबार  में  छल -कपट  नहीं  चलता  , वे  हम  सब  के  ह्रदय  में  बैठे  हैं , हम  क्या  कर  रहे  हैं , क्या  सोच  रहे  हैं , हमारी  भावना  क्या  है  , सब  पर  उनकी  नजर  है  l