16 June 2019

WISDOM ---- असंतोष की परिणति अनीतिपूर्ण अत्याचार है , और अत्याचार का अर्थ है --- विनाश !

  विश्व विजयी  सिकन्दर  इसी  क्रम  में  पड़कर  एक  दिन  नष्ट  हुआ   और  निराश  होकर  इस  संसार  से  विदा  हुआ  l      दोष  सिकन्दर  का  भी  नहीं  , बल्कि  राजमद  का  था  ,  जो  सम्पूर्ण  पृथ्वी  को  अधिकार  में  करने  पर  भी   संतुष्ट  नहीं  होता   l  
  सिकन्दर  ने    भारतीय  राजाओं  की  आपसी  फूट  का  लाभ  उठाया  l  उसने  तक्षशिला  के  राजा  आम्भीक  को  पचास  लाख  रूपये   व  अन्य  सम्मान  का  लालच  देकर  अपनी  और  मिला  लिया  l  मनुष्य  का  लालच , स्वार्थ , अहंकार   सामूहिक  जीवन  के  लिए  घातक  है --  कहते  हैं  जब  उच्च  पद  पर  बैठा  व्यक्ति  कोई  अपराध  करता  है  तो  अन्य  लोगों  को  भी  वैसा  करने  में  कोई  संकोच  नहीं  रहता  l  इसका  परिणाम  सम्पूर्ण  राष्ट्र  के  लिए  दुखदायी  होता  है  l  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  वाड्मय ' महापुरुषों  के  अविस्मरणीय  जीवन  प्रसंग -- 2  में  पृष्ठ  1.35  पर  लिखा  है --- " जब  कोई  पापी  किसी  मर्यादा  की  रेखा  उल्लंघन  कर  उदाहरण  बन  जाता  है  ,  तब  अनेकों  को  उसका  उल्लंघन  करने  में  अधिक  संकोच  नहीं  रहता  l  "  
तक्षशिला  के  राजा  आम्भीक  की  देखादेखी  अन्य  राजा  भी  देशद्रोही  होकर  सिकन्दर  से  जा  मिले  l  एक  ओर  सिकन्दर  और  उसके  साथ  देशद्रोही  राजा  और  दूसरी  और   अकेले  महाराज  पुरु  l  
भारतीय  इतिहास  में   केवल  एक  महाराज  पुरु  ही  ऐसे  वीर  पुरुष हैं  , जिन्होंने  पराजित  होने  पर  भी  विजयी  को  पीछे  हटने  पर  विवश  कर  दिया  l