जन्म और मृत्यु प्रकृति का अनिवार्य नियम है l मृत्यु कोई नहीं चाहता , सब अमर होना चाहते हैं और असुर तो अमर होने के लिए कठिन साधना और तपस्या कर लेते हैं l आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' असुर ईश्वर से अमरता की याचना करते हैं और इसके न मिलने पर मृत्यु को असंभव बना देने वाले वरदान मांगते हैं l ये वरदान उन्हें मिल भी जाते हैं l फिर सही समय पर , सही स्थान में उनकी मृत्यु --उन्ही के बताये रास्ते के अनुसार उन्हें खोज लेती है l उनके वरदान के अनुसार ही प्रकृति उनकी मृत्यु का स्वरुप व स्थान तय करती है l मृत्यु से बचने का कोई प्रयास उनके काम नहीं आता l उनके द्वारा मृत्यु को असंभव बनाने के लिए किए गए सभी प्रयास ही उनकी मृत्यु को संभव बना देते हैं l ' वर्तमान युग में भी देखें तो मनुष्य की बुद्धि ने अमर होने के लिए कोई कोर - कसर नहीं छोड़ी l प्रकृति के नियम में दखल देने का परिणाम, अपने जीवन के लिए प्रकृति को नष्ट भ्रष्ट करने का प्रयास , प्रकृति को अपना रौद्र रूप दिखाने को विवश कर देता है l मृत्यु से बचने के बजाय जीवन को सार्थक करने का प्रयास करना चाहिए लेकिन यह मनुष्य की दुर्बुद्धि है कि वह स्वयं प्रकृति के हर कण को प्रदूषित करता है , अमर होना तो संभव ही नहीं है , वह तरह - तरह की बीमारियों से ग्रस्त होकर अपने जीवन को भार समझ कर ढोता है l ऐसा विकास जो विनाश कर दे -- उसे स्वीकार नहीं करने के लिए सम्पूर्ण मानव जाति को जागरूक होना पड़ेगा l