स्वामी विवेकानंद अल्मोड़ा से 15 जून 1897 को स्वामी अखंडानंद जी को एक पत्र में लिखते हैं --
" ह्रदय और केवल ह्रदय ही विजय प्राप्त कर सकता है , मस्तिष्क नहीं । पुस्तकें और विद्दा , योग साधना और ज्ञान , प्रेम की तुलना में धूलि के समान हैं । प्रेम से अलौकिक शक्ति मिलती है , प्रेम से भक्ति उत्पन्न होती है , प्रेम ही ज्ञान देता है और प्रेम ही मुक्ति की ओर ले जाता है । यह निश्चय ही उपासना है । क्षणभंगुर मानव शरीर में यही ईश्वर की उपासना है । "
सेन फ्रांसिस्को के एक भाषण का जिक्र करते हुए क्रिस्टीना अलवर्स ने लिखा है - " जब वे भाषण में आये तो लगा कि वे बहुत थके हुए हैं , पलकें सूजी हुई हैं , पर जैसे ही उनने अपने गुरु को स्मरण कर बोलना आरम्भ किया तो पूरा मुखमंडल तेज से चमक उठा । लगा कि पूरा व्यक्तित्व बदल गया है । उनके नेत्र अदभुत थे , उनसे आलोक निकल रहा था । हर भाव-भंगिमा से बीस वर्ष की आयु के तरुण का जोश दिखाई दे रहा था । " बाद में जब उनने चर्चा की तो विवेकानंद हँसकर बोले - " वह तो ठाकुर का प्रताप है , नहीं तो ये काया तो पूरी खोखली हो गई है । अबतोजाने की बारी है । "
" ह्रदय और केवल ह्रदय ही विजय प्राप्त कर सकता है , मस्तिष्क नहीं । पुस्तकें और विद्दा , योग साधना और ज्ञान , प्रेम की तुलना में धूलि के समान हैं । प्रेम से अलौकिक शक्ति मिलती है , प्रेम से भक्ति उत्पन्न होती है , प्रेम ही ज्ञान देता है और प्रेम ही मुक्ति की ओर ले जाता है । यह निश्चय ही उपासना है । क्षणभंगुर मानव शरीर में यही ईश्वर की उपासना है । "
सेन फ्रांसिस्को के एक भाषण का जिक्र करते हुए क्रिस्टीना अलवर्स ने लिखा है - " जब वे भाषण में आये तो लगा कि वे बहुत थके हुए हैं , पलकें सूजी हुई हैं , पर जैसे ही उनने अपने गुरु को स्मरण कर बोलना आरम्भ किया तो पूरा मुखमंडल तेज से चमक उठा । लगा कि पूरा व्यक्तित्व बदल गया है । उनके नेत्र अदभुत थे , उनसे आलोक निकल रहा था । हर भाव-भंगिमा से बीस वर्ष की आयु के तरुण का जोश दिखाई दे रहा था । " बाद में जब उनने चर्चा की तो विवेकानंद हँसकर बोले - " वह तो ठाकुर का प्रताप है , नहीं तो ये काया तो पूरी खोखली हो गई है । अबतोजाने की बारी है । "