गायत्री मंत्र में ' वरेण्यं ' शब्द प्रकट करता है कि प्रत्येक मनुष्य को नित्य श्रेष्ठता की ओर बढ़ना चाहिये । श्रेष्ठ देखना , श्रेष्ठ चिंतन करना , श्रेष्ठ विचारना , श्रेष्ठ कार्य करना , इस प्रकार से मनुष्य को श्रेष्ठता प्राप्त होती ।
धर्म , कर्तव्य , अध्यात्म , सत , चित , आनंद , सत्य , शिव , सुंदर की ओर जो तत्व हमें अग्रसर करते हैं , वे ' वरेण्य ' हैं । गायत्री मंत्र का जप करने से , श्रेष्ठता की ओर अभिमुख होने से , हमारी ईश्वर प्रदत्त श्रेष्ठता जाग पड़ती है और इस संसार में भरे हुए नानाविध पदार्थों में से हम अपने लिये श्रेष्ठता को ही चुनते हैं ।
बाग में गंदगी से लेकर मनोहर पुष्पों तक सभी पदार्थ होते हैं । मक्खी बाग में घुसते ही गंदगी ढूंढने लगती है और गंदगी का स्वाद लेती हुई प्रसन्न होती है । मधुमक्खी इस बाग में जाती है तो मनोहर पुष्पों में से मधुर पराग इकट्ठा करती है । कोकिल उस बाग में जाती है तो मुग्ध होकर कूकती है । चमगादड़ उस बाग में घुसता है तो उसके उत्तम फल - फूलों को कुतर -कुतर कर जमीन पर ढेर लगाता और उसे बगीचे को कुरूप बनाता है । ये चारों प्राणी अपने -अपने भाव के अनुसार क्रिया प्रकट करते हैं जिनके भीतर जो भाव है , वही उसकी क्रिया में प्रकट होता है ।
इसी प्रकार जब हमारा द्रष्टिकोण वरेण्य मय होता है तो ऐसी हंस -द्रष्टि प्राप्त होती है , जिसके द्वारा सर्वत्र श्रेष्ठता ही द्रष्टिगोचर होती है ।
जिन्हें हम बुरी वस्तुएं समझते हैं , जिन बातों को अप्रिय समझते हैं ,उनमे हमारी जागरूकता , विवेक -बुद्धि को जाग्रत करने की शक्ति होती है , उससे अनुभव बढ़ता है । इस प्रकार जब हम गंभीरतापूर्वक विचार करते हैं तो बुराई के गर्भ में श्रेष्ठता प्रतीत होती , इस प्रकार बुराई भी हमारी श्रेष्ठता को बढ़ाने का हेतु बनती है ।
धर्म , कर्तव्य , अध्यात्म , सत , चित , आनंद , सत्य , शिव , सुंदर की ओर जो तत्व हमें अग्रसर करते हैं , वे ' वरेण्य ' हैं । गायत्री मंत्र का जप करने से , श्रेष्ठता की ओर अभिमुख होने से , हमारी ईश्वर प्रदत्त श्रेष्ठता जाग पड़ती है और इस संसार में भरे हुए नानाविध पदार्थों में से हम अपने लिये श्रेष्ठता को ही चुनते हैं ।
बाग में गंदगी से लेकर मनोहर पुष्पों तक सभी पदार्थ होते हैं । मक्खी बाग में घुसते ही गंदगी ढूंढने लगती है और गंदगी का स्वाद लेती हुई प्रसन्न होती है । मधुमक्खी इस बाग में जाती है तो मनोहर पुष्पों में से मधुर पराग इकट्ठा करती है । कोकिल उस बाग में जाती है तो मुग्ध होकर कूकती है । चमगादड़ उस बाग में घुसता है तो उसके उत्तम फल - फूलों को कुतर -कुतर कर जमीन पर ढेर लगाता और उसे बगीचे को कुरूप बनाता है । ये चारों प्राणी अपने -अपने भाव के अनुसार क्रिया प्रकट करते हैं जिनके भीतर जो भाव है , वही उसकी क्रिया में प्रकट होता है ।
इसी प्रकार जब हमारा द्रष्टिकोण वरेण्य मय होता है तो ऐसी हंस -द्रष्टि प्राप्त होती है , जिसके द्वारा सर्वत्र श्रेष्ठता ही द्रष्टिगोचर होती है ।
जिन्हें हम बुरी वस्तुएं समझते हैं , जिन बातों को अप्रिय समझते हैं ,उनमे हमारी जागरूकता , विवेक -बुद्धि को जाग्रत करने की शक्ति होती है , उससे अनुभव बढ़ता है । इस प्रकार जब हम गंभीरतापूर्वक विचार करते हैं तो बुराई के गर्भ में श्रेष्ठता प्रतीत होती , इस प्रकार बुराई भी हमारी श्रेष्ठता को बढ़ाने का हेतु बनती है ।