30 August 2020

WISDOM ---- कथा - उपदेश वाणी की कला नहीं है , इसके पीछे आस्था का बल होना चाहिए ---- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

  आचार्य  श्री  ने  लिखा  है  --- कथा - उपदेश  का   जनता  पर  प्रभाव  तब  पड़ता  है  , जब  उसके  पीछे  आस्था  का  बल  हो  ,  और  यह  बल   उपदेशों  को  पहले  अपने  जीवन  में  उतारने   से  आता  है   l  भागवत   करुणा  और  भक्ति  का  शास्त्र  है  l  आचार्य श्री  के  पिता  पंडित   रूपकिशोर जी   अपने  क्षेत्र  में  भागवत   व्यास  के  रूप  में  श्रद्धा   की  दृष्टि  से  देखे  जाते  थे  l  उनके  जीवन  की  एक  घटना  है  ------ पंडितजी  कथा  कहने  जा  रहे  थे  कि   रास्ते  में  उनकी  मुलाकात  धांधू  नामक   डकैत  से  हुई  , वह  कहने  लगा ---- आप  ब्राह्मण  देवता  हैं  , आपका  अनादर  तो  नहीं  करूँगा  ,  लेकिन  मैं  दस्यु  हूँ  l   लूटना  छोड़  दूँ   तो  अपना  और  आश्रितों  का  निर्वाह  कैसे  करूँगा   ?  इसलिए  आपके  साथ  बल प्रयोग  नहीं  करूँगा   सिर्फ  यही  चाहूंगा   कि   आपके  पास  जो  कुछ  भी  है   वह  चुपचाप  रख  दें  l   पंडित जी  निश्चिन्त  भाव  से  धांधू  को  निहारने  लगे  l   यह  देख  डाकू  अचरज  में  पड़   गया  और  बोला  ,  पंडित जी  मैंने  जो  कहा ,  वह  आपने  सुन  लिया  l   पंडित जी  ने  कहा --- सुन  लिया  है  ,  पर  मैं  अभी  तुम्हे  कानी   कौड़ी  भी  नहीं  दूंगा  l   अगर  कथा  सुनने  चलते  हो   तो  वचन  देता  हूँ  कि   वहां  जो  भी  दान - दक्षिणा   आएगी   सब  तुम्हे  सौंप  दूंगा  l   पंडित जी  की  आवाज  में  प्रभाव  था  कि   डाकू  कथा  सुनने  के  लिए  तैयार  हो  गया  और  उनके  साथ  चल  पड़ा  l   भागवत  सप्ताह   की पूरी  अवधि  में  उसने   ध्यान  से  कथा  सुनी  l   भागवत   सप्ताह  पूरा  होने  के  बाद   पंडित जी  ने  दान - दक्षिणा  समेटकर   धांधू  के  हाथ  में  सौंपी  l   रूपये , पैसे , आभूषण , मेवे , मिठाई  से   गठरी  बंध   गई  थी  l   डाकू  ने  गठरी  उठाई  , सिर   पर  रखी   और  बोला --- आदेश  करें  प्रभुजी ,  किधर  चलना  है   l  पंडित जी  ने  कहा --- जहाँ  तुम  ले  जाना  चाहते  हो  ले  जाओ  ,  मैंने   अपना वचन  पूरा  कर  दिया   l  धांधू  ने  गठरी  उतार कर  एक  तरफ  रख  दी  और  पंडित जी  के  पाँव  में  लोट  गया ,  जोर - जोर  से  रोने  लगा   और  कह  रहा  था  -- भगवन  क्षमा  करें , मुझे  राह  मिल  गई  ,  अब  मैं  मेहनत   और  ईमानदारी  की  कमाई  ही  खाऊंगा   और  उसी  से  परिवार    का गुजारा   करूँगा  l  '     जिसने  भी  देखा  उसे  विश्वास  ही  नहीं  हुआ  कि   धांधू  बदल  गया   l