3 April 2013

GRIEF

जिसने दुःख नहीं सहा वह सुख की मिठास क्या जाने | जो रोया नहीं उससे हँसना भी न आयेगा | जिसने हार -जीत नहीं देखी उसे पुरुषार्थ का महत्व कैसे मालुम होगा | | जिसे संदेह करना नहीं आता वह सही चिंतन भी न कर सकेगा |
तपस्वियों ने दुःख को देवों के हाथ का हथौड़ा कहा है ,जो चेतना के उन्नयन के नये सोपान स्रष्ट करता है ,विकास व परिष्कार के नये द्वार खोलता है |
सिनाका प्रसिद्ध संत थे | उनका एक शिष्य अपने नवजात शिशु को उनसे आशीर्वाद दिलाने पहुंचा | सिनाका बोले -"इसे क्या आशीर्वाद दूं ?"शिष्य ने अनुरोध किया -"बस इतना कह दें कि इसका व्यक्तित्व परिपक्व और तेजस्वी निकले | "सिनाका बोले -"भगवान करे इसके जीवन में संघर्षों की कमी न रहे | "शिष्य घबराया तो सिनाका ने उसे समझाते हुए कहा -"पुत्र !बिना तराशे हीरे की कीमत पत्थर से ज्यादा नहीं होती | संघर्ष और कठिनाइयां मनुष्य के व्यक्तित्व को मजबूत और सुगढ़ बनाते हैं ,जैसे श्रम के अभाव में शरीर नकारा हो जाता है वैसे ही विपरीत परिस्थितियों से टकराए बिना मनुष्य का व्यक्तित्व निष्प्राण बना रहता है | ये विषम घड़ियाँ ही उसके व्यक्तित्व को मजबूत और तेजस्वी बनायेंगी | "