14 April 2020

WISDOM ----- मानसिक पराधीनता

 गरीबी  अपने  आप  में  एक  अभिशाप  है  ,  वे  स्वाधीन  हों  या  पराधीन  उनके  सामने   रोजी - रोटी  की  और  अपने  परिवार  का  पेट  पलने  की  समस्या  होती  है  l 
  मानसिक  रूप  से  पराधीन  वे  लोग  होते  हैं   जिनकी  अतृप्त  इच्छाएं  होती  हैं  ,  अपनी  स्थिति  से  अधिक  ऊँची  सामर्थ्य   वाली  वस्तुओं  और   वैसा   जीवन  जीने  के  लिए  आतुर  होते  हैं  l   चालाक   लोग  मनुष्य  की  इसी  कमजोरी  का  फायदा  उठाकर  उसे  अपना  गुलाम  बना  लेते  हैं  l   इस  संबंध   में  एक  कथा  है -----  एक  साहूकार  था  ,  बहुत  धन  था  उसके  पास  l   लेकिन  उस  क्षेत्र  के  लोग  ईश्वरविश्वासी  थे  ,  सादगी  का  जीवन  था  , इसलिए  उस  साहूकार   की  खुशामद  करने  लोग  आते  नहीं  थे  l   यह  बात  उसे  बहुत  अखरती  थी  l   उसने  अपने  ही  जैसे   धनी    लोगों  के  साथ  मिलकर   योजना  बनाई   और  लोगों  को  सुख - सुविधाओं  से  भरा ,  भोग - विलास  का  जीवन  जीने  के  लिए   तरह - तरह  के  सब्जबाग  दिखाए ,  अनेकों  आकर्षण  प्रस्तुत  किये    और  कहा --मैं  तुम  सबको  धन  उधार  दूंगा  ,  तुम  आराम  का  जीवन  जियो  l 
  सीधे - सरल  लोग  उसकी  मंशा  को  समझ  न  सके  ,  दूर - दूर  के  क्षेत्रों  के  लोग  उससे  धन  उधार  लेने  लगे  l  तृष्णा  कभी  समाप्त  नहीं  होती  l   लोग  दूसरों  की  नक़ल  और  दिखावे  के  जीवन  के  लिए   उसके  ऋणी  हो  गए  l   इससे  साहूकार  का  अहंकार  बहुत  बढ़  गया  ,  उसने  अपना  क्षेत्र  बहुत  बढ़ा  लिया  l    अब  क्योंकि  वह  लोगों  की  जरूरतें  पूरी   करने  को  धन  देता  था  , इसलिए  वह  उन  पर  अपनी  हुकूमत  चलाने  लगा  l    अब  उस  क्षेत्र  में  व्यवस्था   न  तो  बुद्धि - विवेक  से  चलती  थी  न  धर्म  से  l   धन  सब  पर  हावी  हो  गया   l   ऋण    के  बोझ  के  कारण   लोगों  की  व्यक्तिगत  स्वतंत्रता  भी  नहीं  रही ,  उनके  जीवन  की  उमंग  ख़त्म  हो  गई  l 
तब  एक  संत  का  आगमन  हुआ  l   उन्होंने  लोगों  की  दयनीय  स्थिति   देखी ,  सारी   परिस्थिति  को  समझा  ,  फिर  कहा  ---   तुम    लोग  सादगी  का  जीवन   जियो  ,    सादा  जीवन  हो ,  जिसमे  कहीं  कोई  दिखावा  न  हो  l   तुम्हारे  पास  जो  है  उसमे  संतुष्ट  रहो ,  अपनी  तृष्णा  के  लिए  धन  उधार  न  लो  l  ऋण   के  बोझ  से  दबे  रहना  भी   गुलामी  है  l   कोई  व्यक्ति  हो  या  देश  जब  वह  अपने  साधनो  का  सर्वोत्तम  उपयोग  कर  के  स्वाभिमान  से  रहेगा   तभी  सुख  शांति  से  तनाव  रहित  जीवन  का  आनंद  ले  पायेगा   l