11 January 2021

WISDOM ----

     जिसके   पास  जितना  अधिक  है  वह  उतना  ही  भयभीत  है   l   पुराणों  में  ऐसी  कई   कहानियां  हैं  ,  जिनमें   इंद्र  को  सबसे  ज्यादा  भयभीत  बताया  गया  है  l   किसी  ने  थोड़ी  भी  तपस्या  की  ,  उनका  सिंहासन  डोलने  लगता  है   l   विश्वामित्र  की  तपस्या  को  भंग   करने  के  लिए  उन्होंने   अप्सरा  मेनका  को  भेज  दिया  l   कोई  तनिक - सा  भी  ऊपर  उठे  , उसे  गिराने  की  हर  संभव  कोशिश   l   यही  स्थिति   आज  संसार  में  देखने  को  मिलती  है  l   प्रसिद्ध   विचारक  लाओत्से  ने  कहा  है  --- अगर  मजे  से  रहना  हो   तो  आखिरी  में  रहना  l   जो  अंतिम  में  खड़ा  है  ,  उसे  धक्का  देने   कोई  नहीं  आएगा  l  यदि  प्रथम  होने  की  कोशिश   होगी  तो   फिर  अनेकों  आ  जायेंगे  ,  पीछे  खींचने  के  लिए  l 

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  कहते  हैं  ---- "  खुशियाँ   यदि  तलाशनी  है   तो  दूसरों  को  खुशी   देने  में  तलाशिए ,  अपनेपन  में  तलाशिए  l   जो  खुशियों  को   दौलत  कमाने   या  अपने  अहं   की  संतुष्टि   में  तलाशते  हैं  ,  उनकी  तलाश  हमेशा  अधूरी  व  अपूर्ण  होती  है   l  वे  बहुत  कुछ  पाकर  भी    खाली   हाथ  रह  जाते  हैं  l  "                  इस    समय     में    यदि  कोई  काम  सबसे  कठिन  है  तो  वह  है  ---- किसी  को  ख़ुशी  देना  l   आज  दुर्बुद्धि  का  ऐसा  तांडव  है  कि   लोग  दूसरों  की  खुशियाँ   छीनने  को  उतारू  हैं  l   कहते  हैं   जब  जागो  तब  सवेरा  l     प्रसिद्ध   वैज्ञानिक  एल्फ्रेड   नोबेल  के  जीवन  का  वह  किस्सा   सुप्रसिद्ध  है  ,  जब  उनकी  मृत्यु  का  झूठा  समाचार  फैलने  पर   फ़्रांस  के  एक   समाचार पत्र   ने  उनका  शोक  संदेश   '  मौत  के  सौदागर  की  मृत्यु '  के  नाम  से  प्रकाशित  किया   था    क्योंकि   उन्होंने  डायनामाइट   की  खोज  की  थी  l   जब  एल्फ्रेड   नोबेल  को   यह  पता  चला   तो  उन्होंने   अपने  शेष   जीवन   और  अपनी  सारी   संपदा   को  जनहित  में   लगाने  का  निर्णय  लिया  ,  ताकि  मृत्यु  के  बाद  उन्हें  श्रेष्ठ  कर्मों  के  लिए   याद  किया  जाए  l   आज    सारे  विश्व  में  उनका  सम्मान  है   और  सारा  संसार  उन्हें    प्रसिद्ध   नोबेल  पुरस्कार  के  लिए   जानता  है  ,  मात्र  डायनामाइट  की  खोज  के  लिए  नहीं  l    श्री  लिखते  हैं  ---- ' मनुष्य  के  जीवन   की  श्रेष्ठता  इसी  में  है   कि   उससे  जितना  भी  बन  पड़े  ,  वह  अपनी  शक्ति , सामर्थ्य ,  संपदा    को   समाज    कल्याण  में  , जनहित  में   और  उच्च  उद्देश्यों  के  लिए  लगाए  ,  जिससे   अपने  जीवन  का  पथ  प्रशस्त   करने के  साथ,    वह   औरों  के  जीवन   लिए  भी   प्रेरणा  बन  सके  l