9 May 2021

WISDOM -----

  यदि  व्यक्ति  का  अंत:करण   शुद्ध  नहीं  है  ,  उसने  सद्गुण   और    सन्मार्ग   पर  चलने  की  साधना  नहीं  की  है     तो  ज्ञान  के  दुरूपयोग  की  संभावना   होती  है  l   प्रेरणाप्रद  दृष्टांत  है -----  महर्षि  वर्ष  ने  अपने   दो  शिष्यों  व्याडि  और  इंद्रदत्त  को  योग  की  समस्त  विद्या   सिखा    दीं  l  साधना  पूर्ण  होने  पर  दोनों  शिष्यों  ने   पूछा  कि   गुरुदक्षिणा  मकया  दें   ?  गुरु  ने  कहा  ---  ज्ञान  का  प्रकाश   दसों   दिशाओं  में  फैलाओ   जिससे    देश , जाति   और  संस्कृति   का    उत्थान   होगा   l    शिष्यों  को  अपने  ज्ञान  का  अहंकार  था  ,  उनने  कहा   कि   आप  कोई  भौतिक   वस्तु     मांगे   l   शिष्यों  के  बहुत  हाथ  करने  पर  गुरु  ने  कहा  ---  ' दे  सकते  हो  तो  एक  हजार  स्वर्ण  मुद्राएं   लेकर  दो  , जिससे  आश्रम  का  जीर्णोद्धार  हो  सके   l  "   उचित  तरीका  यह  था  कि   वे  परिश्रम  करते  ,  मेहनत  कर  धन  कमा  कर  गुरुदक्षिणा  देते   , लेकिन  उनमे  अहंकार  था   उनने  सोचा  तंत्र  विद्या  का  प्रयोग  कर  के   तुरंत  ही  गुरुदक्षिणा  चुका   दें  l  जब  वे  दोनों  इस  पर  मंत्रणा  कर  रहे  थे  , उस  समय  मगध  सम्राट  नन्द   की मृत्यु  हुई   l   दोनों  शिष्यों  ने  यह  तय  किया  कि   इंद्रदत्त  , परकाया  प्रवेश  की  विद्या  से  नन्द  के  शरीर   में प्रवेश  करे  ,  तब  तक  व्याडि   उसके  शव  की  रक्षा  करे  l  जब   इंद्रदत्त की  आत्मा  नन्द  के  शरीर  में  पहुँच  जाए   तो  एक  मित्र  वररुचि   जाकर  उनसे  स्वर्ण  मुद्राएं  मांग  लाये  जिससे  गुरुदक्षिणा  चूक  जाये  l   सारी   व्यवस्था  हो  गई , परकाया  प्रवेश  होते  ही   मृत  नन्द  जी  उठे   l   सारे  मगध  के  लोग  आश्चर्यचकित  रह  गए  l   लेकिन  नन्द  का  मंत्री  शकटारि   सारी   स्थिति  समझ  गया  l   उसने  तत्काल  जाकर  इंद्रदत्त  के  शव  का  दाह  संस्कार  करा  दिया   और  व्याडि  को  बंदी  बनाकर  जेल  में  डलवा  दिया   l   अब  कोई  उपाय  नहीं  बचा  इसलिए  इंद्रदत्त  की  आत्मा   सम्राट     नन्द  के  शरीर  में  ही  रह  गई   l   इंद्रदत्त  सम्राट  नन्द  के  शरीर  में  था   तो  वहां  के  सुख - वैभव  में  भोग - वासनाओं   में डूब   गया   l   इधर  चाणक्य   ने चन्द्रगुप्त  को  शस्त्र  और  शास्त्र  में  निपुण  बना  दिया  ,  उसके   हाथों वह  मारा   गया  और  उधर  व्याडि    जेल  की  यातनाओं  से  मर  गया  l    जो   योग - विद्या  आत्म कल्याण  के  उद्देश्य  से  सिखाई  गई  थी  ,  अहंकार  के  कारण   वह अपने  ही   साधकों  को  ले  डूबी   l   गुरुदक्षिणा  भी  चुका  न  सके  l  जब  गुरु  वर्ष  ने  यह  समाचार  सुना   तो  उन्होंने  यही  कहा  कि --- अपात्र  को  विद्या   देने  का  यही  फल  होता  है   l