15 October 2022

WISDOM ----

   महाराज  कृष्णदेवराय   तेनालीराम  की  बुद्धि  की  परीक्षा  लेने  के  लिए   समय -समय  पर  उनसे  बेतुके  सवाल  किया  करते  थे  l  एक  दिन  उन्होंने  तेनालीराम  से  पूछा  ---" यह  बताओ  कि  हमारे  राज्य  में  कबूतरों  की  कितनी  संख्या  है  ?  सही  संख्या  जानने  के  लिए   हम  तुम्हें  एक  सप्ताह  का  समय  देते  हैं ,  यदि  तुम  गणना  नहीं  कर  पाए  तो  तुम्हारा  सिर  कलम  कर  दिया  जायेगा  l  "  तेनालीराम  से  कुढ़ने  वाले  दरबारियों  ने  सोचा  कि  इस  बार  तेनालीराम  का  बच  पाना  मुश्किल  है  l   एक  सप्ताह  बाद   तेनालीराम  फिर  दरबार  में   हाजिर  हुए  l   महाराज  के  पूछने  पर  वे  बोले --- " महाराज  ! हमारे  राज्य  में   कुल  तीन  लाख , बाईस  हजार , चार  सौ  चौबीस  कबूतर  हैं  l   आप  संतुष्ट  न  हों  तो  किसी  से  इनकी  गिनती   करवा   लें  l   यदि  गिनती  ज्यादा  हुई  तो  ये  वो  कबूतर  हैं  ,  जो  हमारे  राज्य  में  मेहमान  बनकर  आए  हैं   और  कम  हुई  तो  उन  कबूतरों  के  कारण  ,  जो  दूसरे  राज्य  में  मेहमान  बनकर  गए  हैं  l "  कृष्णदेवराय  तेनालीराम  की  हाजिरजवाबी  सुनकर  मुस्करा  उठे l   

WISDOM

   छल -कपट , धोखा , षड्यंत्र  यह  सब   हर  युग  में  रहा  है  l  रावण  ने  छल  से  ही  सीता -हरण  किया ,  दुर्योधन  और  शकुनि  का  सारा  जीवन  षड्यंत्र  रचने  में  ही  बीता  l  ऐसी  नीति  अपनाकर  व्यक्ति  अपने  अहंकार  को  पोषित  करता  है  l  लेकिन  यह  सब  बहुत  लम्बे  समय  तक  नहीं  चल  पाता  l  ऐसे  लोगों  का  अंत  वही  होता  है  जैसा  रावण  और  दुर्योधन  का  हुआ  l  वे  स्वयं  तो  डूबते  ही  हैं  ,  अपना  साथ  देने  वालों  को  भी  डुबो  देते  हैं  l   एक  कथा  है -----  कबूतर  की  सुविधाएँ  देखकर  कौए  को  ईर्ष्या  होती  कि  उसका  सब  ओर  से  तिरस्कार  होता  है   और  दुत्कारा  जाता  है   और  कबूतर  को  बुलाकर  दाना -पानी  दिया  जाता  है  , सुरक्षा , सुविधाएँ  दी  जाती  हैं   l  घर  लौटते  कबूतर  के  साथ  एक  दिन  कौआ   भी  साथ  हो  लिया  l  कबूतर  बोला  --आप  कौन  हैं  ?  मेरे  पीछे  क्यों  लगे  हैं  ? '  कौआ   भोला  बनकर  बोला  ---- " न  जाने  क्यों  आपकी  सज्जनता   और  विनम्र  स्वभाव  देखकर   कुछ  आपसे  सीखने  , सत्संग  करने   और  सेवा  करने  का  मेरा  मन  करता  है  ,  इसलिए  चला  आया  हूँ  l  कृपया  अधम  की  सेवाएं  स्वीकार  करें  l "   भोला  कबूतर  कपटी  कौए  की  बातों  में  आ  गया  l  कौआ  साथ  रहने  लगा  l  कबूतर  अपने  दाना -पानी  में  से  उसे  भी  हिस्सा  दे  देता  l  कौआ  छककर  खाता  किन्तु  ताक -झांक  से  बाज  न  आता  l  कबूतर  के  मालिक  ने  दड़बे  में  कौआ  देखा  तो  उसे  आश्चर्य  हुआ  कि   यह  कैसी  विचित्र  मित्रता  है  l   एक  दिन  कबूतर  प्रात:काल  बाहर  जाने  को  हुआ  तो  कौए  से  बोला  --चलो  बाहर  सैर  करें  l  कुछ  दाना  भी  चुग  लेगें  l  कौआ  बोला  --क्षमा  करें   आज  पेट  में  बहुत  पीड़ा  है  ,  रात्रि  को  इतना  खाया  कि  भूख  भी  नहीं  लगी  है  l  मैं  आज  विश्राम  करूँगा  ,  आप  ही  घूम  आएं  l  कबूतर  चला  गया  l  कौए  ने   अच्छा  मौका  देखकर   मालिक  की  रसोई  में  प्रवेश  कर   भगोनी  में  रखी  खीर  खाना  प्रारंभ  किया  l  इतने  में  नौकर  ने  आ  कर  देख  लिया  कि  दुष्ट  कौआ   खीर  खाने  में  लगा  है   l  उसने  तुरंत  रसोई  का  दरवाजा  बंद  कर  दिया   और  पकड़कर  पंख  और  पैर  बांधकर   कोने  में  पटक  दिया   l  कौआ  अब  पछताया  कि  छल , कपट , धोखे  और  लोभ  के  कारण  ही  उसकी  यह  दुर्दशा  हुई  है  l