18 January 2021

WISDOM ------

   महर्षि   अरविन्द  ( मई  , 1920 )  लिखते  हैं ----- "युवाओं  को  ही  नूतन  विश्व  का  निर्माता  बनना  है  ,  न  कि   उन्हें  , जो  पश्चिम  के   प्रतियोगिता  पूर्ण   व्यक्तिवाद ,  पूंजीवाद  अथवा  भौतिकवादी   साम्यवाद  को   भारत  का  आदर्श  मानते  हैं   ,  और  न  उन्हें   जो  प्राचीन  धार्मिक  नुस्खों  के  दास   हैं   l ----- मैं  उन  सभी  को   आमंत्रित  करता  हूँ   जो  एक  महानतम  आदर्श  के  लिए   सत्य  को  स्वीकारते  हुए  ,  श्रम  करते  हुए   ,  मस्तिष्क   और  हृदय  को    स्वतंत्र   रखते  हुए    संघर्ष   कर  सकते  हैं  l   ये  ही  नवयुग   लाएंगे   l  "                                 द्वितीय   विश्वयुद्ध  चल  रहा  था  l   श्री  अरविन्द  को   एहसास  हुआ  कि  अंग्रेजों  से  घृणा  करने  के  कारण     आश्रम  के  कुछ  अंतेवासी   मन - ही -मन    हिटलर  की  विजय  की  दुआ  करने  लगे  हैं  l   श्री  अरविन्द  ने    तत्कालीन  शीर्ष   कार्यकर्ताओं  की   शाम  की   एक  बैठक  में  कहा  ----- " जो  लोग  ऐसा  कर  रहे  हैं    वे  असुरता  की  विजय  चाहते  हैं   l   भारतीय  मूल्य  हमें  ऐसा  नहीं  करने  देंगे  l   ऐसे  व्यक्ति  जो  हिटलर  की  विजय  की  इच्छा  रखते  हैं  ,  आश्रम  से  चले  जाएँ   l    प्रश्न   मूल्यों   का    है   l   हम  परमात्मा  की ,   आदर्शों की  विजय  चाहते  हैं   l  "      श्रीकृष्ण  ने  अर्जुन  से  यही  कहा  था   कि   तू  मोहग्रस्त  होकर   भीष्म  और  द्रोण   को  देख  तो  रहा  है  ,  उन्हें  न  मारने  की    दलीलें  भी  दे  रहा  है  ,  पर  तुझे  यह  नहीं  दिखाई   देता  कि   वे  दुर्योधन  के ----- अनीति  के  संरक्षक  भी  हैं   l   

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- " सामान्यतया  आदमी  निष्ठुर  जोंक  की  तरह   दूसरों  का  खून  चूस - चूस  कर   साधन  सम्पति  बटोरते   और  क्रुद्ध  नाग  की  तरह   उनकी  रक्षा  करने  में   जिंदगी  खपा  देता   है  l  -----  एक  जमींदार  ने  विधवा  बुढ़िया  का  खेत  बलपूर्वक  छीन  लिया  l  बुढ़िया  ने  गाँव  के  सभी  लोगों  के  पास   इस  अत्याचार  से  बचाने   की  पुकार  की  ,  पर  जमींदार  का  ऐसा  ' दबदबा '  था    कि   हर  कोई  स्वयं  को  बचाने   में  तत्पर  था  ,  जमींदार   के  सामने  मुंह  खोलने  की  हिम्मत  ही  किसी  में  नहीं  थी  l    दुःखी   बुढ़िया  ने  स्वयं  ही  साहस  बटोरा   और  जमींदार  के  पास  यह  कहने  पहुंची   कि   खेत  नहीं  लौटाते   तो  उसमें  से   एक  टोकरी  मिट्टी   खोद  लेने  दे ,  ताकि  कुछ  तो  मिलने  का  संतोष  हो  जाए  l   जमींदार   राजी  हो  गया    और  बुढ़िया  को  साथ  लेकर  खेत  पहुंचा   l   बुढ़िया  रोती   जाए   और  मिट्टी   से  टोकरी   भरती    जाए   l   टोकरी  पूरी  भर  गई  तो  बहुत  भारी  हो  गई  , तो  बुढ़िया  ने  कहा --- ' इसे  उठवाकर  मेरे  सिर   पर  रखवा  दे  l '  जमींदार   ने  अकड़  कर   कहा ---- " बुढ़िया  !  इतनी  सारी   मिट्टी   सिर   पर  रखेगी  तो  दबकर  मर  जाएगी  l  "   बुढ़िया  ने  पलटकर  पूछा  ---- ' यदि  इतनी  सी  मिट्टी   से  मैं  दबकर  मर  जाऊँगी   तो  तू  पूरे   खेत  की  मिट्टी   लेकर  जीवित  कैसे  रहेगा   ? "  जमींदार  से  उत्तर  देते  न  बना  ,  अहंकार  और  लालच   ने   उसके  हृदय  की  संवेदना  को  सुखा   दिया  था   l