' वार्तालाप में सत्यता , नम्रता और शिष्टता का अपना प्रभाव है और कटुता या स्वार्थपूर्ण वार्ता का अपना l परिशोधित - परिष्कृत होने पर शब्द अमृत बन सकते हैं और विकृत होने पर विष का भी काम कर डालते हैं l '
घटना उन दिनों कि है एक नवयुवक स्वामी दयानंद के पास पहुंचा , उस समय स्वामीजी नाम स्मरण के सन्दर्भ में उपस्थित जन समुदाय के समक्ष भक्तियोग का उपदेश दे रहे थे l वह युवक तार्किक था प्रवचन के बीच में ही बोला ---" स्वामीजी ! नाम स्मरण से क्या फायदा ? यह शब्दों का जंजाल है , इससे किसी को कोई फायदा नहो l "
स्वामी दयानंद ने अपना उपदेश बीच में ही रोका और उसे समझाने के लिए जोर से बोले ---- " पागल कहीं का , जाने क्या बक रहा है ? जानता भी नहीं है , अहंकार इतना बढ़ा - चढ़ा है , जैसे कोई प्रकांड पंडित हो l "
स्वामीजी के इन अपशब्दों को सुनकर वह युवक तिलमिला गया और कहने लगा --- " आप एक संन्यासी हैं पर आपको बोलने का ढंग नहीं आया l "
स्वामीजी अब बड़े सहज और शांत स्वर में बोले ---- " अरे भाई ! मैंने दो - चार शब्द ही तो बोले हैं , इससे आपको विशेष चोट पहुंची क्या ? ये कोरे शब्द हैं , पत्थर तो नहीं जिनसे चोट लगती l आप स्वयं कह रहे थे नाम स्मरण केवल शब्द आडम्बर है , इससे कुछ नहीं होता l " स्वामीजी ने कहा ---- आप तनिक गहराई से विचार करें जिस प्रकार बुरे शब्दों की चोट ने आपको घायल किया , उसी प्रकार भागवान के पवित्र नाम स्मरण से सद्गुण विकसित होते हैं , दुःख -- दरद के घाव शीघ्र भर जाते हैं ---- संतप्त मन शांत होता है l ' स्वामी दयानंद का उपदेश सुनकर म वह युवक उनके पैरों पर गिर पड़ा और बोला ---- गुरुदेव l आपके कथन से मेरी शंका दूर हुई , मैं समझ गया कि मन्त्र जप , नाम स्मरण , स्रोत पाठ आदि भाषा का विषय नहीं है , वरन व्यक्ति के अन्तराल की भाव - संवेदनाओं को जगाने वाली ऐसी अलौकिक शक्ति - सामर्थ्य है , जिसके फलस्वरूप अहंकार एवं अन्य विकारों को विसर्जित होने में जरा भी देर नहीं लगती l "
घटना उन दिनों कि है एक नवयुवक स्वामी दयानंद के पास पहुंचा , उस समय स्वामीजी नाम स्मरण के सन्दर्भ में उपस्थित जन समुदाय के समक्ष भक्तियोग का उपदेश दे रहे थे l वह युवक तार्किक था प्रवचन के बीच में ही बोला ---" स्वामीजी ! नाम स्मरण से क्या फायदा ? यह शब्दों का जंजाल है , इससे किसी को कोई फायदा नहो l "
स्वामी दयानंद ने अपना उपदेश बीच में ही रोका और उसे समझाने के लिए जोर से बोले ---- " पागल कहीं का , जाने क्या बक रहा है ? जानता भी नहीं है , अहंकार इतना बढ़ा - चढ़ा है , जैसे कोई प्रकांड पंडित हो l "
स्वामीजी के इन अपशब्दों को सुनकर वह युवक तिलमिला गया और कहने लगा --- " आप एक संन्यासी हैं पर आपको बोलने का ढंग नहीं आया l "
स्वामीजी अब बड़े सहज और शांत स्वर में बोले ---- " अरे भाई ! मैंने दो - चार शब्द ही तो बोले हैं , इससे आपको विशेष चोट पहुंची क्या ? ये कोरे शब्द हैं , पत्थर तो नहीं जिनसे चोट लगती l आप स्वयं कह रहे थे नाम स्मरण केवल शब्द आडम्बर है , इससे कुछ नहीं होता l " स्वामीजी ने कहा ---- आप तनिक गहराई से विचार करें जिस प्रकार बुरे शब्दों की चोट ने आपको घायल किया , उसी प्रकार भागवान के पवित्र नाम स्मरण से सद्गुण विकसित होते हैं , दुःख -- दरद के घाव शीघ्र भर जाते हैं ---- संतप्त मन शांत होता है l ' स्वामी दयानंद का उपदेश सुनकर म वह युवक उनके पैरों पर गिर पड़ा और बोला ---- गुरुदेव l आपके कथन से मेरी शंका दूर हुई , मैं समझ गया कि मन्त्र जप , नाम स्मरण , स्रोत पाठ आदि भाषा का विषय नहीं है , वरन व्यक्ति के अन्तराल की भाव - संवेदनाओं को जगाने वाली ऐसी अलौकिक शक्ति - सामर्थ्य है , जिसके फलस्वरूप अहंकार एवं अन्य विकारों को विसर्जित होने में जरा भी देर नहीं लगती l "