30 July 2018

WISDOM ----------

   सम्राट  पुष्यमित्र  का  अश्वमेध  सानंद  संपन्न  हुआ   और  दूसरी  रात  अतिथियों  की   विदाई   के  उपलक्ष्य  में   नृत्य - उत्सव  रखा  गया  l  यज्ञ  के  ब्रह्मा  महर्षि  पतंजलि    उस  उत्सव  में  सम्मिलित  हुए  l   महर्षि  के  शिष्य  चैत्र   को   उस  आयोजन  में  महर्षि  की  उपस्थिति  अखरी   l  उस  समय  तो  उसने  कुछ  नहीं  कहा  ,  पर  एक  दिन  जब  महर्षि  योगदर्शन  पढ़ा  रहे  थे  ,  तो  चैत्र  ने  पूछा --- " गुरुवार  !  क्या  नृत्य - गीत  के  रस - रंग   चितवृतियों   के  निरोध  में  सहायक  होते  हैं    l  "
    महर्षि  ने  शिष्य  का  अभिप्राय  समझा   l  उन्होंने  कहा --- सौम्य    !  आत्मा  का  स्वरुप  रसमय  है  l  रस  में  उसे  आनंद  मिलता  है  l  वह  रस  विकृत  न  होने  पाए   और  अपने  शुद्ध  स्वरुप  में  बना  रहे  ,  इसी  सावधानी  का  नाम  संयम  है   l  विकार  की    आशंका   से     रस  का  परित्याग   कर  देना  उचित  नहीं  है  l  क्या  कोई  किसान  पशुओं  द्वारा  खेत  चरे  जाने  के  भय  से   कृषि  करना  छोड़  देता  है   ?  यह  तो  संयम  नहीं  पलायन  है   l   रस रहित  जीवन  बनाकर  किया  गया   संयम  प्रयत्न  ऐसा  ही  है  जैसे   जल  को  तरलता   और  अग्नि  को  ऊष्मा  से  वंचित  करना  l  "

WISDOM ----- रुग्णता ( रोग ) असंयम की प्रतिक्रिया भर है

   हकीम  लुकमान  कहते  हैं --- कि  मनुष्य  समय  से  पहले  मरने  और  गढ़ने   के   लिए   अपनी  कब्र  अपनी  जीभ  से  स्वयं  ही  खोदता  है   l  इसका  तात्पर्य  यह  है  कि चटोरेपन  के  वशीभूत   जिह्वा  अनुपयोगी  पदार्थों  को   अनावश्यक  मात्रा   में  उदरस्थ   करती   है    और  जीवन - मरण  का संकट  उत्पन्न  करती  है  l  
  यदि   असंयम  पर ----- वासना  और  लिप्सा  पर   नियंत्रण  स्थापित  किया  जा  सके   और  सुसंयत  जीवनक्रम  अपनाकर   उस  पर  आरूढ़  रहा  जा  सके   तो  रुग्णता  की  जड़ें    अपने  आप  सूखती  चली  जाएँगी   और  बिना  चिकित्सा  और  उपचार    के  भी  निरोग   बना   जा   सकेगा   l