लघु -कथा ---- एक ऊंट बड़ा आलसी था l चरने के लिए जंगल जाना और परिश्रम करना उसे बहुत बुरा लगता था l एक बार महादेव और पार्वती वहां से निकले तो ऊंट उनके सामने गरदन झुककर खड़ा हो गया l महादेव जी ने कहा --- 'कहो क्या बात है , क्या चाहते हो ? ' ऊंट ने कहा --. भगवन ! यदि आप प्रसन्न हों तो मेरी गरदन एक योजन लम्बी कर दीजिये जिससे मैं एक ही स्थान पर बैठा -बैठा दूर तक के वृक्षों को चर लिया करूँ , इधर -उधर जाने का कष्ट मुझे न उठाना पड़े l ' महादेव जी ऊंट पर बहुत झल्लाए और उसे समझाया ---" आलस्य का पोषण करने वाला वरदान मांगता है , यह तो तेरे नाश का कारण बन जायेगा l उचित परिश्रम कर के कमाई गई वस्तुएं ही सुखदायक होती हैं l " लेकिन ऊंट ने कुछ भी नहीं समझा , वह गरदन झुकाए एक पैर से खड़ा रहा l पार्वती जी को उस पर दया आई , उन्होंने कहा --आप हजारों प्राणियों को नित्य ही वरदान देते हो , इसे भी दे दीजिए l महादेव जी ने देखा कि यह ऊंट बड़ा जिद्दी है , कुछ समझना नहीं चाहता तो उन्होंने भी कह दिया ' तथास्तु ' l अब ऊंट की गर्दन एक योजन लम्बी हो गई और चैन से उसका समय काटने लगा l लेकिन समय जाते देर नहीं लगती l वर्षा शुरू हुई , कहाँ तक वह पानी में भीगता सो एक लम्बी गुफा में उसने अपनी लम्बी गर्दन को किसी तरह टिका दिया l उसी समय एक श्रगाल भी भीगता हुआ उस गुफा में आ गया l वह भूखा था , उसने समझा यह मांस का इतना बड़ा लट्ठ पड़ा है l वह बहुत खुश हुआ और मजे से उस मान को खाने लगा l एक योजन लम्बी गर्दन को इतनी आसानी से गुफा से निकालना संभव नहीं था , ऊंट वैसे ही आलसी था जब तक प्रयास करता सियार ने उसकी गरदन को फाड़कर दो टुकड़े कर दिए l ऊंट मर गया और सियार को बहुत दिनों का भोजन मिल गया l आलसी और अकर्मण्य व्यक्ति बिना परिश्रम किए बड़ी सम्पदाएँ चाहते हैं l यदि किसी प्रकार वे उन्हें मिल भी जाएँ तो अंत में वे दुःख दायक ही होती हैं l