भगतसिंह को फाँसी से एक दिन पहले प्राणनाथ मेहता ने उन्हें एक क्रांतिकारी की जीवनी पढ़ने को दी थी l उस पुस्तक को पढ़ने में वे इतना तल्लीन हो गए कि उन्हें याद भी न रहा कि अगले दिन उन्हें फाँसी लगनी है l जब उस दिन जल्लाद उन्हें लेने जेल की कोठरी में आया तो उनका एक पृष्ठ पढ़ना शेष रह गया था l वे हाथ उठाकर बोले ---- " ठहरो ! अभी एक क्रांतिकारी की दूसरे क्रांतिकारी से मुलाकात हो रही है l " जल्लाद वहीँ ठिठक गया l भगतसिंह ने पुस्तक समाप्त की और फिर मस्ती भरे क़दमों के साथ फाँसी के तख्त की और चल पड़े l उनके साथ राजगुरु और सुखदेव भी थे l तीनों ने भारतमाता की जय के नारे लगाए और गर्व के साथ फाँसी पर चढ़ गए l