कहते हैं ' सत्ता का नशा संसार की सौ मदिराओं से भी बढ़कर है l ' जब ये नशा चढ़ जाता है तो सत्ताधारी फिर चाहे वह किसी भी देश का हो , साम , दाम , दंड , भेद किसी भी तरीके से वह अपनी गद्दी को बचाने का प्रयास करता है l व्यक्ति संसार के किसी भी कोने में हो , काम , क्रोध , लोभ , मोह , अहंकार , अति महत्वाकांक्षा जैसे मानसिक विकारों के आगे विवश हो जाता है कि इनका परिणाम क्या होगा ? यह सोच ही नहीं पाता l विभिन्न देशों का इतिहास इसी की कहानी है l ------- बात उस समय की है जब रूस में जार का शासन था l वहां के प्रधान अधिकारी अपने लाभ के लिए ख़राब काम करने में भी नहीं हिचकिचाते थे l जब लेनिन के प्रचार कार्यों के फलस्वरूप मजदूर , किसान आदि जागरूक हो गए और जगह - जगह हड़ताल , आंदोलन , सभाएं प्रदर्शन आदि होने लगे l जब सरकार इनको सीधी तरह रोक नहीं सकी तो जार के सलाहकारों ने उसे सलाह दी कि श्रमजीवियों और गरीबों को धर्म के नाम पर भड़का कर यहूदियों से लड़वा देना चाहिए जिससे उनका ध्यान शासन और सरकारी नियमों की बुराइयों की तरफ से हट जायेगा और यहूदियों का भी सफाया हो जायेगा l जार और उनके सलाहकार कितने निरंकुश व अत्याचारी थे इसका नमूना जार के प्रधान मित्र कप्तान जनरल ट्रेयोन के भाषण के एक अंश से जाना जा सकता है ------- " वे आंदोलन करते हैं , उनको गोली से उड़ा दो l मजदूर लोग राज्य क्रांति करना चाहते हैं , उनमे थोड़े से पुलिस के भेड़ियों को नकली क्रांतिकारी बनाकर शामिल कर दो , वे तुरंत ही तुम्हारे जाल में फंस जायेंगे l l " इस योजना के अनुसार महिलाओं , बच्चों व यहूदियों पर बहुत अत्याचार हुए l जार के एक मंत्री ने तो यह सलाह भी दे डाली कि विदेशी शक्ति के साथ युद्ध छेड़ दो ताकि जनता का ध्यान उधर आकर्षित हो जाये और इस बीच आंदोलन को कुचल दो ----------------- " ---- राजनीतिक क्षेत्र में अनुचित महत्वाकांक्षा व्यक्ति और समाज दोनों के पतन का कारण होती है l "