कबीर दास जी कहते हैं ---- " बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर , पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर l " बड़प्पन खजूर जैसा वृक्ष नहीं है , जो केवल दीखने में बड़ा होता है , पर जिसकी कोई छाया नहीं होती l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' बड़प्पन एक मानवीय गुण है , और बड़ा होना सामान्य बात नहीं है l बड़प्पन किसी को सुख देने में है , लाभ देने में है , किसी को दो पल की ख़ुशी , शांति देने में है l ' आज संसार की जो परिस्थितियां हैं उसमे ' बड़प्पन ' कहीं खो गया है l प्रजा हो या राजा , सभी एक चक्रव्यूह में फँसे हैं l पहले दुनिया की विभिन्न शासकों ने यह दिखाया कि उन्हें प्रजा के जीवन की , पर्यावरण की बहुत चिंता है , सबको वैक्सीन लगे , सब गाइड लाइन का पालन हो ताकि प्रजा का जीवन सुरक्षित हो लेकिन अब बिलकुल विपरीत हो गया , युद्ध में बमों से , मिसाइल आदि घातक अस्त्रों से शहरों को तबाह कर दो , पर्यावरण प्रदूषित हो जाये l इन सबसे बेगुनाह प्रजा का जीवन और अस्तित्व खतरे में हो गया l आज मनुष्य को यह समझना होगा कि वह आखिर चाहता क्या है ? सामान्य मनुष्य की चाहत का कोई महत्व नहीं है , जो शक्तिशाली हैं उनकी मानव जाति के प्रति क्या सोच है , उसी पर मानवता का भविष्य निश्चित होगा l