31 October 2020

WISDOM -----

   एक  बार  भगवान  कृष्ण  से  भेंट  करने  उद्धव  गए   l   उद्धव  और  माधव  दोनों  बचपन  के  दोस्त  थे  l   द्वारपाल  ने  कहा ---- " इस  समय  भगवान  पूजा  में  बैठे  हैं  ,  इसलिए  अभी  आपको  थोड़ी  देर  ठहरना  होगा  l   समाचार  पाते  ही  भगवान   शीघ्र पूजा  कार्य  से  निवृत   होकर  उद्धव  से  मिलने  आए  l  कुशल - प्रश्न  के  बाद  भगवान  ने  पूछा  --- " उद्धव  तुम  किसलिए  आए   हो   ? "   उद्धव  ने  कहा --- " यह  तो  मैं  बाद  में  बताऊंगा  ,  पहले  मुझे  यह  बताइये  कि  आप  पूजा  किसकी  कर  रहे  थे  ? "  भगवान  ने  कहा --- " उद्धव  !  तुम  यह  नहीं  समझ   सकते  l "   लेकिन  उद्धव  कब  मानने  वाले  थे ,  उन्होंने  जिद   की   l  तब  भगवान  ने  कहा  --- "  उद्धव !  तुझे  क्या  बताऊँ   ?  मैं  तेरी  ही  पूजा   कर  रहा था   l  "  उद्धव  माधव  की  पूजा  करता  है   और  माधव  उद्धव  की  पूजा  करता  है   l   भगवान  भक्त  की  पूजा  करते  हैं  और   भक्त  भगवान  की  l   इस  आदर्श  से  भगवान  बताना  चाहते  हैं   ----- " जो  मालिक  हैं  ,  वे  मजदूरों  के  सेवक  बने   l   जो  शासक  हैं  , वे  प्रजा  के  सेवक  बने  l   शिक्षक  विद्दार्थियों  के   सेवक बने   , उद्दोगपति  श्रमिकों  के  सेवक  बनें  ,  माता - पिता  अपनी  संतान  के  सेवक  बनें  l   जिस  किसी  को  जिम्मेदारी  का  काम  मिला  है  ,  वे  सब  सेवक  बनकर  काम  करेंगे  ,  तो  दुनिया  के  सारे    झगड़े   मिट   जायेंगे   l  "

WISDOM ------ प्रकृति को अपनी रूचि बताना सीखें

     हमारे  द्वारा  किए   जाने  वाले  कार्य,    हमारी  हृदय  की  भावना ,  हमारे  विचार  और  हमारी  रूचि  को  प्रकट  करते  हैं  l   प्रकृति  और  मनुष्यों  में  निरंतर  एक  संवाद  होता  रहता  है  l   हम  अपने  आचरण,  अपनी   भावनाओं  के  द्वारा   प्रकृति  को  सन्देश  देते  हैं  कि   हमारी  पसंद  क्या  है  ,  हम  क्या  चाहते  हैं  ?    यदि   अधिकांश  लोग   जाति ,  धर्म  ,  ऊंच - नीच ,  सम्प्रदाय  आदि  के  आधार  पर   दंगे - फसाद  करते  हैं  ,   तो  प्रकृति  को  यही  संदेश   जाता  है  कि  मनुष्य  को   हाय - हत्या , लड़ाई - झगड़ा  ,   युद्ध , नाश  जैसी  नकारात्मकता  ही  पसंद  है  l   प्रकृति  अपने  तरीके  से  मानव  को  समझाने   का  भी  बहुत  प्रयास  करती  है   लेकिन  ईर्ष्या , द्वेष , लोभ , अहंकार   जैसी  मानसिक  विकृतियों  से  ग्रस्त  मानव    कुछ  समझना  चाहता   ही नहीं  है  --' जब  नाश  मनुज  पर  छाता   है ,  पहले  विवेक  मर  जाता  है  l '      तरीका  अलग - अलग  है  -- मनुष्य  अपनी  दुर्बुद्धि  द्वारा  अपना  ही    नाश    करता  है   और  प्रकृति   अपने  प्रकोप  से  भूकंप , बाढ़ ,  सुनामी  आदि  से  तबाही     ला  देती  है    l   भौतिक  प्रगति  तो  हमने  बहुत  की  ,  लेकिन  जीवन  जीना  नहीं  सीखा  l   बड़ी  मुश्किल  से  मनुष्य  जन्म  मिला  ,  कुछ  सकारात्मक  करने  के  बजाय   लड़ते - झगड़ते ,  बीमारी , महामारी  झेलते ,  रोते - पीटते  संसार  से  चले  जाते  हैं  l   बहुमूल्य  जीवन  का  कौड़ी  बराबर  भी  मूल्य  नहीं  रह  जाता  l 

30 October 2020

WISDOM -----

   एक  बार  रेगिस्तान  में   मुसाफिरों  का  एक  काफिला  सफर  कर  रहा  था   l  रास्ते  में  लुटेरों  के  एक  दल  से  काफिले  की  मुठभेड़  हुई  l   सरदार  के  हुक्म  से  हर  एक  यात्री  की  तलाशी  ली  गई  ,  जो  मिला  उसे  छीन  लिया  गया  l  एक  लड़के  की  तलाशी  में   फटे - पुराने  कपड़ों  के   सिवाय    कुछ  न  मिला  , तो  सरदार  ने  पूछा ---- क्या  तुम्हारे  पास  कुछ  भी  नहीं  है  l   लड़के  ने  कहा ---- "  मेरे पास  चालीस  अशर्फियाँ  हैं  ,  जो  माँ  ने  कपड़ों  में    सिल     दी  थीं   l   ये  मैं   अपनी  बहन  के  लिए   ले जा  रहा  हूँ   l "  सरदार  ने  कहा  --- ' जब  ये  तुम्हे  छिपानी  न  थीं   तो  फटे   कपड़े   में  सिलवाने  की  क्या  जरुरत  थी  ? '  लड़के  ने  कहा ---- माँ  ने  इस  वास्ते  सी दीं   की  कहीं  कोई  छीन  न  ले   और  नसीहत  भी  दी  कि   बेटा ,  कभी  झूठ  न  बोलना  l   मैंने  अपनी  माँ  का  आज्ञापालन  किया  l '  लड़के  की  इस  सच्चाई  से  लुटेरों  का  सरदार  खुश  हुआ   और  मुसाफिरों  का  लूटा   माल   वापस  कर  दिया  l   सभी   लुटेरों  को  बदल  कर   सच्चा  रास्ता  बताने  वाला   और  कोई  नहीं   अपितु  खलीफा  अमीन   था   l 

WISDOM -----

 एक  दिन  राजा  भोज गहरी  निद्रा  में  सोए   हुए  थे  l  उन्हें  स्वप्न  में  एक  अत्यंत  तेजस्वी  वृद्ध  पुरुष  के  दर्शन  हुए  l   भोज  ने  उनसे  पूछा ---- " महात्मन  ! आप  कौन  हैं  ? "  वृद्ध  ने  कहा ---- " राजन  ! मैं  सत्य  हूँ  l   तुझे  तेरे  कार्यों  का   वास्तविक  रूप  दिखाने   आया  हूँ  l   मेरे  पीछे - पीछे  चला    आ  और  अपने       कार्यों  का  वास्तविक  रूप  देख  l  "  राजा  उस  वृद्ध  के  पीछे  चल  दिया  l   राजा  भोज  बहुत  दान - पुण्य , यज्ञ , व्रत , तीर्थ , कथा - कीर्तन  करते  थे  l   उन्होंने  अनेक  मंदिर , कुएं तालाब , बगीचे   आदि  भी  बनवाये  थे  l   राजा  के  मन  में  उन  कर्मों  के  कारण  अभिमान  आ  गया   था  l   वृद्ध  पुरुष  के  रूप  में  आया  सत्य   सबसे  पहले  राजा  को  फल , फूलों  से  लदे   बगीचे  में       ले  गया   l   वहां  सत्य  ने  जैसे  ही   पेड़ों  को  छुआ  ,  सब  एक - एक  कर  के  ठूंठ  हो  गए  l   राजा  आश्चर्यचकित  रह  गया  l  फिर  सत्य  राजा  भोज   को मंदिर     ले  गया  l   सत्य  ने  जैसे  ही  उसे  छुआ  ,  वह  खंडहर  हो  गया  l  वृद्ध  पुरुष   ने   राजा  के   यज्ञ , तीर्थ , कथा , पूजन , दान  आदि  के  निमित  बने  स्थानों   आदि  को  ज्यों  ही  छुआ  वे  सब  राख   हो गए  l   राजा  यह  सब  देखकर  विक्षिप्त - सा  हो      गया  l  सत्य  ने  कहा --- " राजन  ! यश  की  इच्छा  के  लिए   जो  कार्य  किए   जाते   हैं ,  उनसे  केवल  अहंकार   की  पुष्टि  होती  है  ,  धर्म   का निर्वहन  नहीं   l   सच्ची  भावना  से   निस्स्वार्थ   होकर  कर्तव्यभाव  से  जो  कार्य   किए   जाते  हैं  ,  उन्ही  का  फल   पुण्य  रूप  में  मिलता  है   l    "  इतना  कहकर   सत्य  अंतर्धान    हो गया हो  गया  l     राजा  ने  निद्रा   टूटने पर   स्वप्न  पर   विचार   किया  और   सच्ची भावना   से  निष्काम   कर्म  करने  लगा   l 

29 October 2020

WISDOM -----

  अर्मीनिया   के  सर्वोच्च  सेनापति   सीरोजग्रिथ   का  व्यक्तित्व   उनकी      माता  ने  बनाया   l  विधवा  नार्विन  ग्रीथ  कपड़े   सीकर  किसी  तरह    अपने  बच्चों  का  पेट  पालती   थी  l   बड़े  बेटे  ग्रिथ   ने  अपनी  मर्जी  से   गरीबी  के  कारण   स्कूल   में   फीस  माफ   कराने   की  अर्जी  दे  दी  l    जो परिस्थिति  से   पूर्णत:   जानकार  अध्यापक  की  सिफारिश   पर  मंजूर  भी  हो  गई   l   ग्रिथ   की  माता  को  जब  यह  पता  चला  ,  तो  उन्होंने   उस  सुविधा  को  अस्वीकार   कर  दिया   l   उनने  लिखा    हम  लोग  मेहनत  कर  के  गुजारा  करते  हैं   तो  फीस  क्यों  नहीं  दे  सकेंगे  l   गरीबों  में  अपनी  गणना  कराना   हमें  मंजूर  नहीं   l   हमारा  स्वाभिमान  कहता  है   कि   हम   गरीब  नहीं  ,  स्वावलम्बन  से  इन  परिस्थितियों  से  जूझ  लेंगे   l 

28 October 2020

WISDOM -----

   हकीम   अजमल खाँ  जाने - माने   चिकित्सक  होने  के  अतिरिक्त   प्रसिद्ध   स्वतंत्रता  सेनानी  भी  थे  l   एक  बार  वे  किसी  रजवाड़े  में  बीमार  नवाब  को  देखने  गए  l   नवाब  और  बेगम  शाही  लिबास  पहने  बैठे  थे  l   जब  अजमल  खां   उन्हें  देखकर  चलने  लगे    तो  नवाब  साहब  ने  उनसे  उनका  मेहनताना  पूछा   l   हकीम   साहब  ने  उत्तर  दिया  --- " बुरा  न  माने  नवाब  साहब   तो  मेरा  मेहनताना  सिर्फ  इतना  होगा   कि   आप  लोग  खादी   धारण  कर  लें  l   जब  देश  का  एक  आम  आदमी   तन  ढंकने  के  लिए   चंद   कपड़े   नहीं  जुटा  पाता  तो  ऐसे  में   रत्नजड़ित  पोशाकों  को  पहनना   आपको  शोभा  नहीं  देगा  l "  बेगम  साहिबा  बोलीं ---- " पर  हकीम   साहब  !  खादी   खुरदरी  बहुत  है  ,  पहनने  में  जरा  तकलीफ  होती  है   l "  हकीम   अजमल  खां   बोले --- "  बेगम  साहिबा   !   अपनी  माँ  बदसूरत  हो  तो  भी  माँ   तो  अपनी  ही  है  l   कपड़े   खुरदरे   ही  सही   पर  स्वदेशी  तो  हैं   l  "   अजमल  खां   की  बात  से  प्रभावित  होकर   नवाब  साहब   और  उनकी  बेगम  ने   आजादी  के  आंदोलन  में  भाग  लेना  प्रारंभ   कर  दिया   l 

27 October 2020

WISDOM -----

   जगद्गुरु  शंकराचार्य   चाहते  थे  कि   देश  में  चारों  दिशाओं  में  ज्ञानक्रांति   के  केंद्र  बने  l   इसके  लिए  समस्या  धन  की  थी  l   इसलिए  वे  भिक्षाटन  के  लिए  निकले  थे  l  देश  के  श्रेष्ठि  वर्ग  ने  उनसे  अनेकों  बार  कहा   कि ---' आप  हमें  आदेश  दें ,  हम  धन  की  कोई  कमी  नहीं  पड़ने  देंगे  l   लेकिन  आचार्य  ने  उनके   इस  प्रस्ताव  को  विनम्रतापूर्वक  अस्वीकार  कर  दिया   और  कहा ---- " यदि  ज्ञान , जन  के  लिए  हो   तो  धन  भी  जन  का  होना  चाहिए  l   जनभागीदारी  से  जो  कार्य  किए   जाते  हैं  ,  जन  उन  कार्यों  को  महत्व   भी  देता  है  l   फिर  सबके  द्वार  पहुँचने  से   ज्ञान  का  सहज  वितरण    होगा  और  जनसहयोग   भी  प्राप्त  होगा  l "   अपने  इसी  प्रयास  में  वे  पदयात्रा  करते  हुए   एक  गांव  में  पहुंचे  l   अभी  जिस  द्वार  पर  उन्होंने  भिक्षा  के  लिए  पुकारा   वह  झोंपड़ी   एक  निर्धन   वृद्ध  विधवा  ब्राह्मणी  की  थी   l   उसके  पति  व  पुत्र  का  आकस्मिक  निधन  हो   गया  था  l   आचार्य  द्वारा  भिक्षा  की  याचना  सुनकर  वह  व्याकुल  हो  उठी   l   उसने  अपनी  पूरी  झोंपड़ी  खंगाल  ली  पर  कुछ  न  मिला  l   बाहर  देखा  तो  आचार्य  अभी  तक  खड़े  थे  l   व्याकुल  होकर  उसने  कहा --- ' हे  ईश्वर  !   तूने  मुझे  इतना  गरीब  क्यों  बनाया   ?   ' ईश्वर  को  यह  उलाहना  देते  हुए  उसने    फिर  से  अपनी  झोंपड़ी    में  सब  तरफ  ढूंढा   l   इस  बार  उसे  कोने  में  पड़ा  हुआ  सूखा  आंवला  मिला   l   उसने  बड़े  जतन   से  आंवला  उठा  लिया  और  दौड़ते  हुए  बाहर  आई   और  आचार्य  के  हाथ  पर  वह  सूखा  आंवला  रख  दिया   l  इस  आंवले  के  साथ  ही  आचार्य  की  हथेली  पर  आँसू   की  चार  बूँद   गिरी  l   दो  आँसू   वृद्धा  के  थे  और  दो  आचार्य  के   l   आचार्य  भावाकुल  हो  गए  ,  आंवले  के  रूप  में  वृद्धा  अपनी  सम्पूर्ण  सम्पति   दान  दे  रही  थी  l   ऐसी  उदारता  और   ऐसी  दरिद्रता  के   विरल   संयोग  को  देखकर  आचार्य  विकल   हो  उठे  l   उन्होंने  माता  महालक्ष्मी  को  पुकारा  --- " हे  माता  !  इस  उदारता  को  संपन्नता   का  वरदान  दो  "    उनके  मुख  से  स्वत:  स्तवन   स्फुरित  होने  लगा  ----- सारे  वातावरण  में  प्रकाश   छा  गया  l   स्तवन  के  पूर्ण  होते  ही    वृद्धा  की  झोंपड़ी  में    आकाश  से  स्वर्ण  आंवलों  की    कनकधाराएँ   बरसने  लगीं   l   महालक्ष्मी  की  कृपा  और   आचार्य   की भक्ति  के  सभी  साक्षी  बने  l   और  आचार्य   द्वारा  कहा  गया  स्रोत   --- कनकधारा  स्रोत    के  नाम  से   सिद्ध  स्रोत  के  रूप  में   वंदित   हुआ  l 

26 October 2020

WISDOM -------

   श्रीमद्भगवद्गीता   में  भगवान  कहते  हैं  ---  जो  मान - अपमान  में , शत्रु - मित्र  में   तथा  -सुख- दुःख   आदि  द्वंदों  में   सम   है   और  आसक्ति  से  रहित  है   वही  भक्त  मुझे  प्रिय  है  l   भगवान  कहते  हैं --- मान  - अपमान  का  संबंध   हमारे  अहं  से  है  l   अहं   के  कारण  ही  इनका  अनुभव  होता  है  l   पं.श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी   कहते  हैं  --- ' मान  से  यदि  अहंकार  को  पोषण  मिलता  है  , तो   अपमान  से   अहं   को   चोट  लगती  है  l   इसलिए  जब  हम  अपने  अहंकार  को  त्याग  देते  हैं    तो  ये  मान - अपमान  की   अनुभूतियाँ  स्वत:  ही  विसर्जित  हो  जाती  हैं   l   फिर  न  हम  में  मान  पाने  की   लालसा  बची   रह जाती  है   और  न  ही  हमें   अपमानित  होने  का  भय  सताता  है  l -------- स्वामी  रामतीर्थ   प्रव्रज्या  हेतु  अमरीका  गए  हुए  थे   l   उनका  उद्बोधन  प्रसिद्ध  चिंतकों  और  विचारकों    के मध्य  हुआ  तो   सभी  ने   एक स्वर  में  उनके  अद्भुत  व्यक्तित्व  और  प्रकांड   पांडित्य  की  प्रशंसा  की  l   उद्बोधन   के  पश्चात्  वे   जिस महिला  के  घर  रुके  हुए  थे  ,  उनके  घर  पहुंचे  और   उस  महिला  से  बोले  --- " बहन  !  आज  ईश्वर  ने   इस  नाचीज  को   बहुत  प्रशंसा  दिलवाई  l  '  कुछ  दिनों  उपरांत   वे  न्यूयार्क   शहर  के   ब्रौंक्स   क्षेत्र  से  गुजर  रहे  थे   कि   उनकी  वेशभूषा   को  देखकर  कुछ   अराजक  तत्वों  की  भीड़  लग  गई  l   उनमें  से  कुछ  उन  पर  छींटाकशी  करने  लगे   तो  कुछ  ऐसे  भी  थे   जो  बेवजह  उनके  साथ  दुर्व्यवहार  करने  लगे  l   घटना   की खबर  जब   महिला  को  लगी   तो  वह  कुछ  साथियों  को  लेकर   स्वामीजी  को  लेने  पहुंची  l   स्वामी  रामतीर्थ  उसी  निर्विकार  भाव  से  बोले  --- " बहन  !  आप  हस्तक्षेप  न  करो  l   आज  ईश्वर  का   अपने  इस  भक्त  को   अपमान  से  भेंट   कराने  का  मन  है  l   भगवान   के  भक्त  के  लिए  मान  क्या  और  अपमान  क्या    ?  श्रीमद्भगवद्गीता  में  जिस  स्थितप्रज्ञ   का  वर्णन  है  ,  उस  स्वरुप   का दर्शन   उनमे  सबको   उन  क्षणों  में  हुआ   l 

25 October 2020

WISDOM -----

  रामकृष्ण  परमहंस  काली  के  उपासक  थे   l   अनेक  दिन  बीत  गए  ,  वे  रोज  रोते  l   घंटों  पूजा  करते  l   एक  दिन  क्रोध   में  आकर  बोले  ---- " माँ  !  इतने   दिन  से  बुला  रहा  हूँ  l   तू  आती  ही  नहीं   l   या  तो  तू  प्रकट  हो   या  मैं  अप्रकट  होता  हूँ  l   या  तो  तू  रहे  या  मैं  मिटता  हूँ  l "  तलवार  हाथ  में  ले  ली   l   गरदन   पर  चलाने   वाले  ही  थे   कि   माँ  प्रकट  हो  गईं  l   मूर्ति  के  स्थान  पर  साक्षात्  माँ  विराजमान  थी   l   हँसती -- खिलखिलाती   सौंदर्य  की  प्रतिमूर्ति   माँ  काली   l   तलवार  फर्श  पर  गिर  गई   , वे  छह  दिन  तक  बेहोश  पड़े  रहे   l   सभी  भक्त  परेशान   l   छह  दिन  बाद  जब  होश  आया   तो  पहली  बात   जो  उनने  कही  ,  वह  यही   कि   इतने  दिन  तो  माँ  तूने  बेहोश  रखा  , अब   जब  छह  दिन  होश   में  रहा   तो  फिर  बेहोशी   में  क्यों  भेजती  है  !   तू  मुझे  फिर  से  बुला  ले  l   जा  मत ,  रुक  जा  l  यह  उनकी  पहली  समाधि   थी   l 

24 October 2020

WISDOM ----

    भगवान    को  अपने  भक्तों  से  बहुत  प्रेम  होता  है  ,  वे  अपने  भक्तों  के  वश  में  होते  हैं   इसलिए  भक्तों  को  सताने  वाले ,  उनके  प्रति  अपराध  करने  वाले  को  भगवान  कभी  क्षमा  नहीं  करते   l   पुराणों  में  कथा  है  ----   प्रह्लाद  भगवान  के  भक्त  थे  l   उनके  पिता   हिरण्यकश्यप   को  यह  बात  मंजूर  नहीं  थी  l   ईश्वर  के  मार्ग  से  हटाने  के  लिए  उसने  अपने  पुत्र  प्रह्लाद  को  बहुत  कष्ट  दिए  ,  उन्हें  पहाड़  से  फेंका , समुद्र  में  गिराया ,  साँपों  से  कटवाया ,  अपनी  बहन  होलिका  की  गोदी  में  बिठाकर  अग्नि  में  जलाने   का  प्रयास  किया   लेकिन  भगवान  अपने  भक्तों  की  रक्षा  करते  हैं  ,  प्रह्लाद  सकुशल  रहे  l   हिरण्यकश्यप   अहंकारी  था ,  लेकिन  तपस्वी  भी  था l   तपस्या  कर  के  उसने   ईश्वर  को  प्रसन्न  किया   और  अमरता  का  वरदान  माँगा ,  लेकिन  यह  प्रकृति  के  विरुद्ध  है   इसलिए  भगवान  ने  कहा ---  यह  संभव  नहीं  है  l   तब  उसने   ईश्वर  से  कहा --- मैं  न  दिन  में  मरुँ , न  रात  में   l  न  मैं  पुरुष  से  मरुँ  न  नारी  से  ,  न  जानवर  से न  इनसान   ,  किसी  भी  अस्त्र - शस्त्र   से  न  मारा जाऊं  , न  धरती  पर  न   आकाश में  , न  घर  के  अंदर   न बाहर  ---------- जीवित  रहने  के  लिए  जो  भी  विकल्प  थे  , वह  सब  उसने  वरदान  में  मांग  लिए  l   और  अब  वह  अहंकारी  होकर  स्वयं  को   सर्वशक्तिमान  समझने  लगा   l   जनता  पर  बहुत  अत्याचार  किये  ,  अपने  पुत्र  प्रह्लाद   को  बहुत  सताया  l   वह  चाहता  था  कि   प्रह्लाद  उसे  ही  भगवान   माने  l   हिरण्यकश्यप     ने  प्रह्लाद  को  खम्भे  से  बाँध  दिया   और  पूछा  --- बता  ,  इस  खम्भे  में  भगवान  हैं  या  नहीं   l   प्रह्लाद  के  हाँ  कहते  ही   खम्भे  में  से  नरसिंह   भगवान  प्रकट  हो  गए  ,  अपने  भक्त  पर  होने  वाले  अत्याचार  के  कारण   क्रोध  से  उनकी  आँखे  लाल  थी  l   अपने  दिए  गए  वरदान  के  अनुसार     नृसिंह   भगवान   का आधा  शरीर  शेर  का  व  आधा  मनुष्य  का  था  ,  संध्या  का  समय  था ,  भगवान  ने  घर  की  देहरी  पर  बैठकर       हिरण्यकश्यप   को  अपनी  गोद   में    लिटाकर     अपने  नाखूनों  से  उसका  पेट  फाड़  दिया  l  भगवान  का  क्रोध  किसी  तरह  शांत  नहीं  हो  रहा  था   तब  भक्त  प्रह्लाद  ने  उनकी  स्तुति   की  और   अपने  को  अति  का  कष्ट   देने वाले  पिता   को  क्षमा  करने  के  लिए   प्रार्थना  की  l 

23 October 2020

WISDOM -----

  महात्मा  गाँधी  ने   भारतीय  किसानों  के  दर्द  को  गहराई  से  समझा  और  उसे  सुधारने  का  प्रयास  किया  l  उन्होंने  अपने  जीवन  में  ऐसे  कार्य  किए ,  ताकि  देश  का  किसान  आत्मनिर्भर  बन  सके  l   यद्द्पि  गाँधी जी  के  आस- पास  टाटा , डालमिया , बिड़ला और  बजाज  जैसे  उद्दोगपति  रहे  ,  लेकिन  उन्होंने  कभी  भी  बड़े  उद्दोगों  को  बढ़ावा  नहीं  दिया   और  रसायनमुक्त   जैविक  खेती  कर  रहे   किसानों   को प्राथमिकता  दी  l   गाँधीजी   द्वारा    ग्रामोद्दोग   को  बढ़ावा  देने  के  पीछे   उनका   व्यापक  वैज्ञानिक  दृष्टिकोण  था  , इसलिए  वे  चरखा , खादी ,  हाथकुटे   चावल ,  अहिंसक  चमड़े  के  जूते  जैसे  हस्तनिर्मित  ग्राम-उद्दोग   चलाने  पर  जोर  दे  रहे  थे  l   वे  मानते  थे  कि    यंत्रों  को  यथासंभव  दूर  रखा  जाए ,  क्योंकि  भारत  जैसे  विशाल  जनसँख्या  वाले    देश  में   यंत्र  चलाना   एक  तरह  से  मजदूरों  के  हाथ  काटने  के   समान   है   क्योंकि  यंत्रों  के   उपयोग  से   बहुत  सारे    मजदूर    बेरोजगार  हो  जायेंगे   l   आज  देश  को  गाँधी जी  के  विचारों  को  अमल  में  लाने  की  जरुरत  है  l   गाँधी जी  ने  तीस - चालीस  के  दशक  में  ही   रासायनिक  खादों  के  दुष्परिणाम  को  जान  लिया  था  l   आज  हम  देख  रहे  हैं  कि  रासायनिक  खाद  और  कीटनाशक  के  प्रयोग  से  खाद्द्य  पदार्थ   शरीर  को   नुकसान  पहुंचा  रहे  हैं  ,  संतुलित  और  संयमी  जीवन  जीने  वाले  भी   बड़ी  बीमारी  झेल  रहे  हैं  l  इसी  तरह  उन्होंने  कहा  था  कि  भारी - भरकम  यंत्रों  को  चलाने  के  लिए  जो  ऊर्जा  व्यय  होगी  ,  उससे  जंगलों  की  कटाई  होगी  , पर्यावरण  असंतुलित  होगा  l   उनके  ' स्वदेशी ' के  विचार  को  अपनाने  की  जरुरत  है   l   भारत   जैसे गरम  देश  में  छोटी  जोत   के  खेत   न  केवल   छायादार  झाड़ियों  और  वृक्षों  से  फसल  की  रक्षा  करते  हैं  ,  अपितु  नीचे   गिरे  पत्तों  से   मिटटी  में  उपजाऊपन  की  मात्रा  बढ़ाते  हैं   l 

22 October 2020

भक्ति का मर्म

  व्रज  की  गोपिकाओं  की  भक्ति    को  शब्दों  में   उच्चारित  नहीं  किया  जा  सकता  l   एक  कथा  है ----  भगवान  द्वारकाधीश  ने  एक  दिन  बीमार  होने  की  लीला  रची  l   उनकी  बीमारी  का  समाचार  सब  ओर   फ़ैल गया   l   राजवैद्य   आए ,  नाड़ी   देखी ,  पर  कोई  भी  किसी  तरह  रोग  का  निदान  नहीं  कर  पा  रहा  था  l  सब  बड़े  चिंतित  थे  l  तब  भगवान  ने  नारद जी  का  स्मरण  किया  l   नारद जी  आए ,  उन्होंने  देखा  कि   भगवान  के  पलंग  के  पास  रुक्मणी , सत्यभामा  आदि  रानियाँ   खड़ी  हैं ,  उन्होंने   नारद जी  से  कहा   ---देवर्षि  !   आप  तो  परम  ज्ञानी  हैं  l   आप  ही  भगवान  की  इस  बीमारी  का  कोई  इलाज  बताएं  l '  नारद जी  प्रभु  की  लीला  समझ  गए , उन्होंने  कहा  --- " इस  बीमारी  का  इलाज  बहुत  सुगम  है  ,  आप  में  से  कोई  भी  इसे  कर  सकता  है   l "    सभी  ने  कहा  -- उपाय  सहज  हो  या  कठिन  हम  अवश्य  करेंगे  l   तब  नारद जी  बोले ---- " यदि  भगवान  श्रीकृष्ण  का  कोई   भक्त  अपने  चरणों  की  धूल  इनके  माथे  पर  लगा  दे  तो  ये  अभी  तुरंत  ठीक   हो जायेंगे   l  "  यह  विचित्र  उपाय  सुनकर  सब  सोच  में  पड़   गए  l  रानियों  ने  कहा  --- " भला  यह  कैसे  संभव  है  l  पहले  तो  ये  हमारे  पति  हैं  ,  फिर  ये  स्वयं   ब्रह्म  हैं  l   अपने  चरणों  की  धूल  इनके  माथे  पर  लगाकर  हम  सब  नरकगामिनी  हो   जाएँगी  l  "  नरक  के  भय  से  द्वारका  में  कोई  भी  यह  उपाय  करने  को  तैयार  नहीं  हुआ  l   भगवान  श्रीकृष्ण  के  संकेत  से  नारद जी  हस्तिनापुर  पहुंचे  ,  अपना  संदेसा   भीष्म , विदुर  , द्रोपदी कुंती   एवं   सभी  पांडवों  आदि  को  सुनाया   l   नरक  के  भय  से    अपने  चरणों  की  धूल  देने  को  कोई  भी  तैयार  नहीं  हुआ  ,  ऐसे  पापकर्म  से  सब  भयभीत  थे  l   अंत  में  प्रभु  की  प्रेरणा  से  नारद जी  व्रजभूमि  पहुंचे  l   नारद जी  को  देखते  ही  सब  गोपियाँ  व्याकुल  होकर  भगवान  श्रीकृष्ण  का  हाल   पूछने  लगीं  l   नारद जी  से  उनकी  बीमारी   का समाचार  सुनकर   सब  गोपियाँ  पोटली  में  भरकर  अपने  चरणों  की  धूल  ले  आईं  l  उनके  ऐसा  करने  पर  नारद जी  ने  उन्हें  समझाया --- " अभी  समय  है , तुम  सब  सोच  लो   ,  श्रीकृष्ण  भगवान  हैं  ,  उन्हें  अपने  चरणों   की धूल  देकर  तुम  सब  नरक  में  जाओगी  l  "  गोपियों  ने  कहा  --- "श्रीकृष्ण  के  लिए  वे  सब  कुछ  त्याग  सकती  हैं  ,  उनके  लिए  वे  हर  कलंक - अपमान  सहने  को  तैयार  हैं  l  अपने  कृष्ण  के  लिए  हम  सदा - सदा  के  लिए  नरक  भोगने   को तैयार  हैं  l  "  यह    सुनकर   नारद  जी निरुत्तर  हो  गए   और   द्वारका  पहुंचकर  अपनी  अनुभव  कथा  कह  सुनाई  l  यह  सब  सुनकर  श्रीकृष्ण  हँसे  और  बोले --- " नारद  !  यही  है  वह  भक्ति  ,  यही  हैं  वे  भक्त  , जिनके  वश  में  मैं  हमेशा  रहता  हूँ  

21 October 2020

WISDOM -----

     भौतिक  प्रगति  के  नाम  पर  मनुष्य  ने   सुख - सुविधाओं  के  अंबार   खड़े  कर  लिए   किन्तु  वह  पहले  की  अपेक्षा   दुःखी , परेशान , निराश  , अशांत  व   असंतुष्ट  है  l   इसका  कारण  यही  है  कि   मनुष्य  ने  मानवीय  जीवनमूल्यों   की  उपेक्षा  की  और  स्वार्थ , अहंकार ,  ईर्ष्या , द्वेष   में  उलझकर    संवेदना  को  भूल  गया  l   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है --- ' इस  संसार  की  समस्त  समस्याओं  का  एकमात्र  हल  संवेदना  है  l   संवेदनशील  व्यक्ति  कभी  हिंसा  के  मार्ग  पर  नहीं  चलता  l  '   एक  प्रसंग  है ------  कौशांबी   के  राजगृह  में  कारू  कसूरी  नामक  कसाई  रहता  था  l   वह  पशुओं   का  मांस  बेचकर  अपनी  जीविका  चलाता   था  l   राजगृह  में  बौद्ध  संत  आते  रहते  थे  l   संत  किसी  भी  प्रकार  की  हिंसा  न  करने  की  प्रेरणा  दिया  करते  थे  l   कारू  कसूरी  कहता  था  --- मैं  अपने  पुरखों  के  धंधे  को  कैसे  छोड़  दूँ  ?  यदि   मैं  हिंसा  न  करूँ   तो  खाऊंगा  क्या  ?  जब  कारू   कसाई  वृद्ध  हो  गया  तो   उसने  तलवार  अपने  बेटे  सुलस   को  सौंप  दी  l  कसाइयों  की  पंचायत  में  सुलस   से  कहा  गया  कि   कुलदेवी  की  प्रतिमा  के  समक्ष   भैंसे  की  बलि  दो  l  सुलस   का  हृदय   पशुओं  के  वध  के  समय  उनकी   छटपटाहट   देखकर   द्रवित  हो  उठता   था  l   अत:  उससे  तलवार  न  उठी  l   मुखिया  ने  दोबारा  उससे  कहा --- " बेटे  ! यह  हमारी  कुल  परंपरा  है  l  देवी   को प्रसन्न  करने  के  लिए   रक्त  निकालना   पड़ता  है  l  "  सुलस   ने  भैंसे  की  जगह   अपने  पैर   पर  तलवार   से  वार   कर  दिया  l   पैर   से  खून  बहने  लगा  l   ऐसा  करने  का  कारण  पूछने  पर   सुलस   बोला ---- " यदि  कुलदेवी  को  रक्त   की चाहत  है   तो  किसी  निर्दोष  का  खून  बहाने  से  बेहतर  है  कि   वे  मेरा  ही  रक्त  स्वीकार  कर  लें  l   उसका  उत्तर  सुनकर  कारू  कसाई   का  हृदय   द्रवित  हो  उठा   और  उस  दिन  के  बाद  उस    परिवार  में   पशुवध  बंद  कर  दिया  गया  l 

20 October 2020

WISDOM ----- कर्म की गति

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है  --- हम  विश्व  ब्रह्माण्ड  में  जहाँ  कहीं   भी    हों  ,  हमारे  कर्म  हमारा  पीछा  करते  ही  रहते  हैं   और  तब  तक  समाप्त  नहीं  होते  ,  जब  तक  हम  उन्हें  भोग  नहीं  लेते  l  '     महाभारत  का  युद्ध  समाप्त  हुआ  ,  भीष्म  शरशैया  पर  लेटे   थे  l   भगवान  श्रीकृष्ण  सब  पांडव  सहित  उनसे  धर्म  का  उपदेश  लेने  गए   l   तब  भीष्म  पितामह  ने  कहा --- " आप  कहते  हैं  तो  उपदेश  मैं  अवश्य  दूंगा  ,  किन्तु  हे  केशव  !  मेरी  एक  शंका  का  समाधान  करें  l  मैं  जनता  हूँ  कि   कर्मों  का  फल   भोगना  पड़ता  है  l   मैंने  ध्यान  कर  के  देखा  कि   मैंने  इस  जन्म  में  और  पिछले  72  जन्मों  में  भी   ऐसा  कोई  क्रूर  कर्म  नहीं  किया  ,  जिसके  फलस्वरूप  मुझे   बाणों  की  शैया  पर  शयन  करना  पड़े  l  "  उत्तर  में  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  कहा  --- " पितामह  !   यदि  आप  पिछला   एक  और  जन्म  देख  लेते  तो  आपकी  जिज्ञासा   का समाधान  हो  जाता  l   पिछले  73  वें   जन्म  में  आपने  ओक   के  पत्ते  पर  बैठे   हुए  हरे  रंग  के  टिड्डे  को  पकड़कर   उसको  बबूल  के  काँटे   चुभोए   थे  ,  आज  आपको  वही  काँटे   बाण  के  रूप  में  मिले  हैं  l  "  पुराणों  में  एक  और  कथा  है  ----  स्वर्ग  के  राजा  इंद्र  के  पुत्र  जयंत  ने   माँ  सीता  के  पैर   में   कौवे  के  रूप  में  चोंच  मार  दी  l   उनके  पैर   से  रक्त  निकल  आया  l   भगवान  श्रीराम  ने  यह  देखकर   समीप  रखे  कुशा  के  एक  तिनके  को   उठाया  और  उसे  मंत्रसिक्त  कर  के   जयंत  की  ओर   फेंक  दिया   l   कुशा  के  उस  तिनके  ने  अभेद्य  बाण  का  रूप  ले  लिया  और  जयंत  के  पीछे   पड़    गया  l   इस  बाण  से  बचने  के  लिए  जयंत  सभी  लोकों  में  भागता  फिर  l   स्वयं  उसके  पिता  से  लेकर   भगवान  ब्रह्मा  ने    उसको  शरण  नहीं  दी  ,  उसकी  सहायता  करने  से  मना  कर  दिया  l   अंत  में  उसे  भगवान  राम  की  शरण  में  ही  आना  पड़ा  l   उन्होंने  उसे  क्षमा   तो किया    परन्तु  कर्मफल  के  रूप  में  उसे   अपनी  एक  आँख  गँवानी   पड़ी  l   कर्म   का फल  सबको  भोगना  पड़ता  है  l   

19 October 2020

WISDOM -----

  ऋषि  कहते  हैं  --- लोग  पूजा - कर्मकांड  तो  बहुत  करते  हैं  लेकिन  उनकी  भावनाएं  ईश्वर  को  समर्पित  नहीं  होतीं  l   हजारों - लाखों  ठोकरें  खाने  के  बावजूद  संसार  से  कभी   अपनापन  टूटता  नहीं   l   प्राय:  सभी  लोग   अपना  नाता   उन  पुरखों  से  सहज  अनुभव  कर  लेते  हैं  ,  जिन्हे   उन्होंने कभी  देखा  ही  नहीं    परन्तु  आदिशक्ति  माँ  ,  जिनकी  कोख  से  हमारी  आत्मा  जन्मी  ,  जो  अनेकों  बार  हमें  संकटों  की  यातना  से  त्राण   दिलाती  हैं  ,  उनके  स्मरण  से   हृदय  में  न  तो  कोई  पुलकन  होती  है    और   न  ही  भवानी  के  प्रति  भावनाएं  आकृष्ट   हो   पाती    हैं   l    संसार  द्वारा   दिए  गए  आघात - प्रतिघात   मानव  मन  में  थोड़ी  देर  के  लिए  विवेक  और  वैराग्य  को  जन्म  देते  हैं  ,  किन्तु  थोड़ी  ही   देर  बाद  पुन:  मन  संसार  में  भटकने  लगता  है  l 

WISDOM ------

     मानव  शरीर  परमात्मा  की  सर्वश्रेष्ठ  कृति   है  l   यदि  शरीर  में  कोई  अंग  काम  है  या  अपंग   हो  तो    उस  स्थिति  में  सामान्य  जीवनक्रम  बिताना  कठिन  होता  है  l  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  --- "  शरीर  की  कमी  वस्तुत:  इतनी  बड़ी  कमी  नहीं  है  ,  जिसे  मनोबल  द्वारा  पूरा  न  किया  जा  सके  l   महत्वपूर्ण  काम  तो  मस्तिष्क  करता  है  ,   दूसरे    अंग  तो   उसकी  आज्ञाओं  का  पालन  भर  करते  हैं  l  यदि  एक  अंग  बिगड़  गया  है   तो  उसकी   आवश्यकता  दूसरा  अंग  पूरी  कर  सकता  है   l  अपनी  इच्छा  शक्ति  से  शरीर  के  अन्य  अंगों  को   अधिक  सक्षम  बनाकर    उस  विकृत  अवयव  की  आवश्यकता  पूरी  की  जा  सकती  है  l   इसी  का  एक  उत्कृष्ट  उदाहरण  सोलहवीं  सदी  के    प्रसिद्ध   नृत्यशास्त्री   सीवस्टीन   स्पिनोला  फ्रेंच  हैं  ,  जिन्हे   नृत्य  एवं   संगीत  का  पिता  माना   जाता  है  l   ग्यारह  वर्ष  की  उम्र  में   एक  दुर्घटना  में   घुटनों   के  नीचे   से   उनके  दोनों  पैर   कट   गए  थे  ,  पर  उन्होंने  अपने  को  कभी  अपंग  नहीं  माना   और  जब  कभी  उनके  पैरों  की  चर्चा  होती   तो  वे  यही  कहते   कि ----- " पैर   तो  शरीर  का   सबसे  निचला  और   कम  उपयोगी  अंश  है  l   जब  तक  मेरा  मस्तिष्क  और   हृदय  मौजूद  है    तब  तक  मुझे  अपंग  न  कहा  जाये   और  न  ही  दयनीय  माना  जाये   l "   वे  कटे  हुए  पैरों  को  ही  प्रशिक्षित  करते  रहे   और  नृत्य  विद्द्या  में   इतने  पारंगत  हो  गए   कि   उनकी  कला  को  देखकर   दर्शक  मंत्रमुग्ध  रह  जाते  थे    और  उस  विषय  में  रूचि  रखने  वाले   उनसे  शिक्षा  भी  प्राप्त  करते  थे   l 

17 October 2020

WISDOM ----- कठिनाइयाँ हमें सिखाने आती हैं

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है  ----  कठिनाइयाँ   हमें  बहुत  कुछ  बताने , सिखाने   आती  है   l  सीखने   वाली  मानसिकता   इससे  बहुत  कुछ  सीख  जाती  है  ,  इसके  संकेतों  को  पहचान  लेती  है  l '  इस  सम्बन्ध  में  श्री  अरविन्द   ' मानव चक्र '  में  लिखते  हैं  ---- नेपोलियन  अपने  दुर्दिनों  में  भगवान  के  संकेत  को  पहचान  नहीं  सका   और  इसी  कारण   यातनापूर्ण  जेल  जीवन  में  उसकी  इहलीला  समाप्त  हुई  l   आचार्य श्री  लिखते  हैं --- कठिनाइयों  से  जूझने  के  लिए   कभी - कभी  ईश्वरीय  संकेत  आता  है  l   जो  इस  संकेत  को  समझ  लेता  है   और  पुरुषार्थ  करता  है   , वही  संघर्ष  के  दरिया  को  पार  कर  लेता  है  l    कठिनाइयों   से    जूझता  इनसान  जब  वहां  से  निकलता   है  तो  बहुत  मजबूत  बन  जाता  है   l 

16 October 2020

WISDOM ----- प्रकृति में क्षमा का प्रावधान नहीं है

   ईश्वरीय  विधान  सृष्टि  की   स्वसंचालित  प्रक्रिया  है   l   सृष्टि  नियमों  से  बंधी  है  ,    नियमों    के  खिलाफ  चलने  का  तात्पर्य  है   दंड   का भागीदार  होना  l    ईश्वर    क्षमा  नहीं  करते  l   यदि  क्षमा  का  प्रावधान  होता   तो   रावण  परम  शिव  भक्त  था  ,  ब्राह्मण  था ,  वेद - शास्त्रों  का  ज्ञाता  था  ,  तो  ऋषिगणों  का  अपमान  करने  वाले , हिंसा  और  हत्या  करने  वाले   रावण  और  उसकी  आसुरी  सेना  को  क्षमा  कर  दिया  होता  l   भगवान  राम  स्वयं  करुणाकर  थे  ,  उनकी  करुणा    संवेदना   जगजाहिर  है  ,  फिर  भी  उन्होंने  असुरों  को  क्षमा  नहीं  किया  ,  सभी  असुरों  और  आततायियों  का  अंत   दिया  l   यदि  वर्तमान  युग  की  तरह  अपराधियों  को  महिमामंडित  करने  और  क्षमा  करने  की  व्यवस्था  तब  होती  तो   कुम्भकरण ,  जयद्रथ,  शिशुपाल , जरासंध ,  कंस  आदि   आततायियों   के  अत्याचार  से   धरती  लहूलुहान  हो  गई  होती  l   स्वयं  भगवान  ने  इन  अत्याचारियों  का  अंत   करने  के  लिए  धरती  पर  जन्म  लिया  l   महाभारत  का  युद्ध  ऐसे  ही  अत्याचारियों  और  अन्याय  करने  वालों  को  दण्डित  करने  के  लिए   लड़ा  गया  था  l   कृष्ण जी  स्वयं  भगवान  थे  ,  यदि  क्षमा  की  व्यवस्था    होती   तो  वे  द्रोपदी  का  चीर हरण  करने  वाले  दुर्योधन  और  दुःशासन   समेत   पूरे   कौरवों  को  माफ   करने  के  लिए    अर्जुन से  कह  सकते  थे    परन्तु  उन्होंने  गीता  का  उपदेश  देकर  अर्जुन  को   युद्ध  के  लिए  प्रेरित  किया   और  अनीति  का  साथ  देने  वाले   भीष्म पितामह ,  द्रोणाचार्य , कर्ण , कृपाचार्य  आदि   का  भी  अंत  करवा  दिया  l   अनीति   का  साथ  देना  भी  अनीति  करने  जैसा  है  ,  इसलिए  उसे  भी  बख्शा  नहीं  जाता  l   सृष्टि  में  ईश्वरीय  विधान  सर्वोपरि  है  l  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  भी  कहा  है  --- अपराधियों  को  कभी  क्षमा   नहीं करना  चाहिए  ,  दंड  का  भय  न  होने  से   अपराध  की  प्रवृति   बढ़ती है   l 

WISDOM -----

   योगी  वरदाचरण   का  नाम   बंगाल  में  बड़ा  विख्यात  है   l   वे  किसी  को  अपना  शिष्य  नहीं  बनाते  थे  l   योग  की  प्रक्रिया  स्तर  के  अनुरूप  बता  देते  थे  l   काजी  नजरुल  इसलाम   जैसे  प्रतिभाशाली  को   उनकी  विशेष  कृपा  प्राप्त  थी   l   वे  प्रारम्भ  में  प्रेमगीत  लिखते  थे  ,  पर  योगिराज  से  मिलने  के  बाद   उनकी  दिशाधारा     बदल  गई   l   काजी  नजरुल  इसलाम   को  अपने  प्रथम  पुत्र  का  शोक  था  ,  वे  उसकी  आत्मा  से  मिलना  चाहते  थे  ,  अपने  मृत  पुत्र  के  दर्शन  करना  चाहते  थे  l   योगिराज  ने  समझाया  ,  फिर  भी  वे  न  माने   l   मुसलिम   धर्म  में  पुनर्जन्म  या  मरणोत्तर  जीवन  की  मान्यताएं  भिन्न  है  ,  उनका  बालक  आया  ,  जब  वे  गुरु  का  नाम  जप  रहे  थे   l   उनके  चारों  ओर   खेलकर  लौट  गया   l   गुरु  की  आज्ञानुसार  उन्होंने  उसे  स्पर्श  नहीं  किया   l   नजरुल  जीवन  भर  योगिराज  के  शिष्य  बने  रहे    और  उनसे  पाई  शिक्षा  को  अपने  काव्य  में  उतारते   रहे  l  

15 October 2020

WISDOM ----

   एक  बार  ईश्वरचंद्र  विद्दासागर  अपने  एक  जमींदार   मित्र  से  भेंट  करने  कोलकाता  जा  रहे  थे  l   रास्ते  में   एक  दुकानदार  जो  उनका  पूर्व  सहपाठी  भी  रह  चूका  था  ,  मिला  और  अपनी   दुकान  पर  ले  गया  l   बैठने  को  एक  बोरा  दिया  l   वे  भी  उस  पर  बैठकर  बातें  करने  लगे  l   इसी  बीच  वही  जमींदार  मित्र   कहीं  से  लौटता  हुआ   बग्घी  पर  निकला  l   उसने  उन्हें  जमीन   पर  बैठे  देखा   और  कुछ  झिझक  के  साथ  बोला ---- " तुम  जहाँ - तहाँ   बैठ  जाते  हो  --- क्या  तुम्हे  अपनी  प्रतिष्ठा  का  कोई  ध्यान  नहीं   l  "  सुनकर  विद्दासागर  बोले  --- "  यदि  इससे  तुम  अपमानित  महसूस  कर  रहे  हो   तो  तुम  अपनी   मित्रता  समाप्त  कर  दो  ,  ताकि  फिर  कोई  शिकायत  तुम्हे  न  हो  l   वह  गरीब  है ,  केवल  इसलिए  मैं  अपने   दुकानदार  मित्र  का  अपमान  नहीं  कर  सकता  l  "    महामानव  हमेशा  सरल , सहज  और  मान - अभिमान  से  परे  होते  हैं  l 

14 October 2020

WISDOM ---- मृत्यु को आने - जाने के लिए द्वार आवश्यकता नहीं होती

      जीवन  जीने  की  इच्छा  कितनी  ही  प्रबल  क्यों  न  हो  ,  मृत्यु  से  बचा  नहीं  जा  सकता  l   सत्य  यही  है  कि  जिसने  जन्म  लिया  है  ,  उसका  मरण  सुनिश्चित  है  l    अपनी  सुरक्षा  के  लिए  राजा - महाराजाओं  ने  कितने  मजबूत  किले  बनवाए  l   वे  किले  तो  अभी  तक  हैं  ,    लेकिन    उनमें  रहने  वाले  नहीं  बचे  l   इसलिए  ऋषियों   का  कहना  है   कि   जो  निश्चित  है  उससे  भयभीत  न  हो  ,  जो  जीवन  हमारे  हाथ  में  है   उसे  सार्थक  करने  का  प्रयास  करें   l   '  जब  आया  था  इस  दुनिया  में ,  सब  हँसते  थे  तू  रोता   था   l   अब  ऐसी  करनी  कर  जग  में ,  सभी  रोयें  , तू  हँसता  जा   l  '

WISDOM -----

  महाभारत   का  यह  प्रसंग   हमें  शिक्षा  देता  है  कि     कोई  परिवार  हो ,  संस्था  हो  अथवा  राष्ट्र  हो  ,  उनका  आपसी  वैमनस्य  परिवार  के  भीतर  ही  रहना  चाहिए  l  किसी  अन्य  के  साथ  संघर्ष  होने  पर   सबका  साथ - साथ  रहना  ही  श्रेयस्कर   है    l   यह  प्रसंग  है ------जब  पांडवों  का    वनवास काल  चल  रहा  था    और  वे  द्वैत  वन  में  निवास  कर  रहे  थे  ,  तब  इस  बात  की  सुचना  दुर्योधन  को  मिली  l   यह  समाचार  मिलने  पर    दुर्योधन  ने   अपने  दल - बल  के  साथ  वहां  जाने  का   निर्णय  किया  l   उसका   उद्देश्य मात्र  पांडवों  को  नीचा   दिखाना   और  अपने  राजसी  वैभव  का  दिखावा  करना  था  l   दुर्योधन  के  वहां   पहुँचने  से  पहले  ही  उसका  सामना  गंधर्व राज  चित्ररथ  के  समूह  से  हो  गया  l   चित्ररथ  अत्यंत  पराक्रमी  था  l   दुर्योधन  तो   स्वभाववश  वैमनस्य  रखने  वाला  था  ही  ,  उसने  अकारण  ही   अपनी  सेना  को  चित्ररथ  पर  हमला  करने  को  बोल  दिया  l   दुर्योधन  को  अंदेशा  था   कि  वह  आसानी  से   चित्ररथ  को  हरा  लेगा  ,  पर  होनी  को  कुछ   और  ही  मंजूर  था  l   चित्ररथ  की  सेना  ने  दुर्योधन    को  न  केवल  हरा  दिया  ,  वरन  उसको  अपने  कब्जे  में  ले  लिया  l   दुर्योधन  के  मंत्री  व  बचे  हुए  सैनिक  पांडवों  के  पास  सहायता  माँगने   को  पहुंचे  l   युधिष्ठिर  ने  उनको  अभयदान  दिया    व  युद्ध  कर  के    दुर्योधन  को  चित्ररथ  के  पास  से  सकुशल  छुड़वा  दिया  l     भीम  दुर्योधन  की  सहायता  करने  के  पक्ष  में  नहीं  थे  l   उन्होंने  भ्राता  युधिष्ठिर  से  प्रश्न  किया  ---- "  दुर्योधन  तो  अकारण  ही  हमसे  वैर  रखता  है  , फिर   हमें    उसकी  सहायता  करने  से  क्या  लाभ   ?  उसको  उसके  कर्मों  का  फल  मिलने  दिया  होता   l  "  भीम  का  वचन  सुनकर  युधिष्ठिर    ने  उत्तर  दिया  --- "  हम  पाँचों  भाइयों  का  भले  ही  अपने  सौ   भाइयों   से  विवाद  हो  जाये  l   किसी  अन्य  के  साथ  संघर्ष  होने  पर   हम  सबका  साथ - साथ  रहना  ही  श्रेयस्कर  है   l  "

13 October 2020

WISDOM -----

   अभय  कुमार  को  जंगल  में  एक  नवजात  शिशु  पड़ा  हुआ  मिला   l   वह  शिशु  को  घर  ले  आए  और  उसका  नाम  जीवक   रखा  l  अभय  कुमार  ने  उसे  यथायोग्य  शिक्षा  प्रदान  की  l   जब  जीवक  बड़ा  हुआ  तब  उसे  पता  चला  कि   अभय  कुमार  उसके  असली  पिता  नहीं  हैं  ,  उसे  संभवतया  किसी  ने  लोकाचार  के  भय  से  जंगल  में  छोड़  दिया  था  l   यह  जानकर  कि   वह  कुलहीन  है  ,  जीवक  का  हृदय  ग्लानि  से  भर  उठा  l   उसने   अपना दुःख  अभय  कुमार  को  बताया  l   अभय  कुमार  ने  उसे  यह  सब  भूलकर  तक्षशिला  जाने   तथा  श्रेष्ठतम  विद्द्या   अर्जित  करने  को  प्रेरित  किया  l  जीवक  के  तक्षशिला  पहुँचने  पर   उससे  प्रवेश  के  समय   कुल , गोत्र  संबंधित   प्रश्न  पूछे  गए   तो  उसने  स्पष्ट  रूप  से  सत्य  बता  दिया  l   प्रवेश  लेने  वाले  आचार्य  ने   जीवक  की  स्पष्टवादिता  से  प्रसन्न  होकर   उसे प्रवेश  दे  दिया  l   जीवक  ने  कठोर  परिश्रम  द्वारा  तक्षशिला   विश्वविद्दालय  से  आयुर्वेदाचार्य   की  उपाधि  हासिल  की  l  उनके  आचार्य  ने  उसे  मगध  जाकर  सेवा  करने  का  निर्देश  दिया  l   जीवक  ने  कहा --- " आचार्य  ! मगध  राज्य  की  राजधानी  है  l   सभी  कुलीन  लोग  वहां  निवास  करते  हैं  l   क्या  वे  मुझ  जैसे  कुलहीन  से  चिकित्सा  करवाना   स्वीकार    करेंगे   ?  मुझे  आशंका  है  कि   कहीं  मुझे  अपमान  का  सामना   न  करना  पड़े  l "  जीवक   के  गुरु  ने  उत्तर  दिया ----- "वत्स  !  आज  से  तुम्हारी  योग्यता , क्षमता ,  प्रतिभा  और  ज्ञान   ही  तुम्हारे  कुल  और  गोत्र  हैं  ,  तुम  जहाँ  भी  जाओगे  ,  अपने   इन्ही गुणों  के  कारण   सम्मान  के  भागीदार  बनोगे  l   कर्म  से  मनुष्य  की  पहचान   होती  है ,  कुल  और  गोत्र  से  नहीं   l   "  'जीवक  की  आत्महीनता  दूर  हो  गई  और  वे    सेवा  भाव  से  लोकप्रिय  हुए  ,  संसार  ने  उन्हें  महान  वैद्य  जीवक  के  नाम  से   जाना  l 

12 October 2020

WISDOM ------

   श्रीमद्भगवद्गीता  में  भगवान  अर्जुन   को  कहते  हैं  कि   भोगविलास  में   डूबे   एक  सामान्यजन  की  जीवनदृष्टि    उलटी  होती  है   अर्थात  जो  मानव  को  अपनी  गरिमा  के  अनुरूप  करना  चाहिए  ,  वह  उससे  उलटा   करता  है  ,  एक  नर - पशु  जैसी  जिंदगी  जीता  है  l   लेकिन  स्थितप्रज्ञ  व्यक्ति  धीर - गंभीर  होता  है   l  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने   उदाहरण  देकर  स्थितप्रज्ञ  की  विवेचना  की  है ----  '  रामकृष्ण  परमहंस  के  पास  गिरीश बाबू (जीसी )  की  बहस  चल  रही  थी   कि   स्थितप्रज्ञ  कैसा  होता  है  ?  गिरीश  बाबू  को  परमहंसजी  ने   चर्चा   हेतु  रोक  लिया   और  स्वामी  विवेकानंद  से  कहा  कि  वे  पंचवटी  में  जाकर  ध्यान  करें  l   चारों  ओर   से  मच्छरों   ने   स्वामी  विवेकानंद  को  ढक   लिया,   मानों   काली   चादर    हो   लेकिन  फिर  भी  उनका  मन  एकाग्र  रहा  ,  जरा  भी  विचलित  नहीं  हुआ  l   गिरीश  बाबू  को  भी  रामकृष्ण  परमहंस  ने   नरेंद्र ( स्वामी  विवेकानंद )  के  पास  बैठकर  ध्यान  करने  को  कहा  l   लेकिन  मच्छरों  के  कारण   वे  विचलित  रहे  l   अंदर  से  एक  कंबल   भी  ले  आए  लेकिन  कहीं  न  कहीं  से  मच्छर  उसमे  घुस  गए  ,  इस  कारण  वे  अस्थिर  हो  गए  ध्यान  न  कर  सके  l  लेकिन  मच्छरों  के  सतत   आक्रमण  के  बाद  भी  स्वामी  विवेकानंद   सतत   आठ  घंटे  ध्यानस्थ  रहे  l  गिरीश  बाबू  मच्छर  उड़ाते ,  आश्चर्य  से  स्वामी  विवेकानंद  को  देखते  रहे  l    विवेकानंद जी  उठे  --- अपना  हाथ  हिलाया  ,  सारे  मच्छर  उड़  गए  l   गिरीश  बाबू  ने  पूछा  --- ' इतने  मच्छरों  के  होते  हुए  आपने  कैसे  ध्यान  कर  लिया  ,  , हम  नहीं  कर  पाए  l  स्वामीजी  बोले --- ' ध्यान   तो आत्मा  से  किया  जाता   है  l   मच्छर  तो   शरीर   को काट  रहे  थे  ,  आत्मा  को  थोड़े  ही  कष्ट  दे  रहे  थे  l '    आचार्य श्री  लिखते  हैं ---  स्थितप्रज्ञ  समुद्र  की  तरह  धीर - गंभीर   व्यक्तित्व  वाला  होता  है  l   जिस  तरह  समुद्र  चारों  ओर  से  आने  वाले  जल  को   अपने  अंदर  समा  लेता  है  ,  फिर  सीमा  का  उल्लंघन  नहीं  करता  है   , इसी  तरह  स्थितप्रज्ञ   कितने  ही  कष्ट  आएं ,   कितने  ही  विषयों   का  आक्रमण  हो  ,  कभी   विचलित नहीं  होता  ,  शांत  बना  रहता  है  l 

11 October 2020

WISDOM -----

  संत  रविदास  मीराबाई  के   मार्गदर्शक  और    कबीरदास  जी  के  समकालीन  थे  l  संत  रविदास जी  चर्मकार  का  कार्य  करते  थे  ,  परन्तु  उनका  व्यक्तित्व  इतना  उत्कृष्ट  था  कि  उस  समय  जात - पाँत   को  मानने  वाले  समाज  ने  भी   उन्हें  संत  की  पदवी  दी  और  उनकी  महानता  को  स्वीकार  किया  l   संत  रविदास  जी  अपने  कर्म  को  ही  भगवान  की  पूजा  मानते  थे  ,  उनका  कहना  था  कि   जो  व्यक्ति  अपना  कर्तव्य  कर्म  पूरे   मन  से  करता  है  ,  वही  सच्चा  धार्मिक  व्यक्ति  है  l   इनके  बारे  में  एक  प्रसिद्ध   किवदंती  है  ---  एक  बार  काशी   के  एक  पंडित जी   रविदास  जी  के  पास  गए  l   बातों - बातों   में  गंगा - पूजा  की  चर्चा  चल  पड़ी  l   रविदास  जी  ने  पंडित जी  से  कहा  --- " आप  कृपा  कर  के   मेरी  भी  सुपारी  गंगा  जी  में   चढ़ा  देना  l l "  पंडित जी  ने  हामी  भरते  हुए   उनकी  सुपारी  अपने   पास    रख  ली   l   दूसरे  दिन  जब  पंडित  जी  ने   गंगा  जी  में  रविदास जी  की  सुपारी  चढ़ानी  चाही  ,  तब  गंगा  माँ  ने  हाथ  ऊँचा  कर  के   उस  सुपारी   को साक्षात्  ग्रहण  कर  लिया   और  बदले  में  एक  सोने  का  कंगन  दिया  l   यह  देखकर  पंडित  जी  आश्चर्यचकित  रह  गए  l   उन्होंने  वह  कंगन  रविदास जी  को  न  देकर  राजा  को  भेंट    कर  दिया  ,  जिससे  राजा  प्रसन्न  हो  जाएँ  l   राजा  ने  उसे  रानी  को  दे  दिया  l  कंगन  बहुत  सुन्दर  था  ,  रानी  उसकी  जोड़ी  का  दूसरा  कंगन  पाने  की  जिद  करने  लगी  l   तब  राजा  ने  पंडित   को बुलवाया ,  पंडित  ने  घबरा  कर  सारी  सच  बात  बता  दी  l   अब  राजा  ने  संत  रविदास  जी  से  कहा  कि   वे  गंगा  माँ  से   कंगन  का  दूसरा  जोड़ा  मांगे  l   कहते  हैं  उसके  बाद  रविदास  जी  ने   अपनी  झोंपड़ी  में  एक  कठौती  में   गंगा  माता  से  प्रकट  होने  की  प्रार्थना  की  l   उनकी  श्रद्धा - भक्ति  से   प्रसन्न होकर   माँ  गंगा  उनकी  कठौती  में  आ  गईं   और  उन्हें  कंगन  का  दूसरा  जोड़ा  अपने  हाथों  से  दे  गईं  l   तभी  से  यह  कहावत  बन  गई  कि  '  मन  चंगा  तो  कठौती  में  गंगा  l  "

WISDOM -----

  भगवान  बुद्ध  के  जीवन   का प्रसंग  है --- सारनाथ  में  धर्मचक्र  प्रवर्तन   के  बाद   भगवान  बुद्ध   लोगों  को  धर्म  का  उपदेश  देने  के  लिए  निकले  l   उन्होंने  सभा - समितियाँ   आयोजित  कीं  और  आत्मिक  प्रगति  की  शिक्षा  देने  लगे  l   सभा - समितियों  में  दस - पांच  लोग  भी  नहीं  आते  l   पांच - सात  दिन  तक  वे  प्रयत्न  करते  रहे  l   इस  प्रयोग  की  विफलता  के  बारे  में   सोचते   हुए  बैठे  ही  थे   कि   उनके  सामने  कालपुरुष  प्रकट  हुआ   और  बोला  ---"   लोगों  से  कुछ  लो  ,  तभी  वे  आपसे  ज्ञान  प्राप्त  करेंगे  l  नहीं  लोगे  तो  उनका  अहं  आड़े  आएगा   और  वे  कुछ  भी  ग्रहण  नहीं  करेंगे  l   हैं  तो  वे  याचक  और  दीन   ही  ,  पर  अपने  आप  के  बारे  में    इस  तरह  का  आभास  नहीं  होने  देना  चाहते   l  "   कालपुरुष  के  इस  परामर्श  के  बाद  ही  महात्मा  बुद्ध  ने   अपने  हाथ  में  भिक्षापात्र  पकड़ा   और  राह  चलते  हुए   लोगों  के  द्वार  पर  जाकर  भिक्षा  मांगी  l   इसके  बाद  ही  उन्हें  धर्म  का  उपदेश  दिया  l 

10 October 2020

WISDOM -----

  स्वामी  दयानन्द  सरस्वती  ने   राष्ट्रीय   स्वाभिमान  को  जगाया  ,  विशुद्ध  भारतीयता  पर  बल  दिया  l   सत्य - असत्य - विवेक  की  प्रवृति  को  जगाया  l   अन्धविश्वास  और  रूढ़िवाद  का  खंडन  किया  l   स्वामीजी  मूर्ति पूजा  का  विरोध  करते  थे  l   जुलाई  1869  की  बात  है   l   कानपुर   में   पं.  गुरुप्रसाद  ने   प्रयागनारायण   में  ' कैलास '  और  ' वैकुण्ठ '  नमक  दो  मंदिर   बहुत  धन  लगाकर  बनवाये  थे  l   स्वामीजी  ने  उनसे  कहा  था ----"  आपने  लाखों  रुपया  व्यर्थ  गँवा  दिया  l  इससे  अच्छा  था  कि   कान्यकुब्ज  कन्याओं  को  ,  जो  30 -30   वर्ष  की   कुमारी   बैठी  हैं  ,  विवाह  करवा  देते  ,  जिससे  देश  और  जाति   का  भला  होता  l "

WISDOM ----

   गाँधीजी   के  जीवन  की  एक  घटना  है  --- बात  चंपारण   जिले  की  है  l   गाँधीजी   उस  क्षेत्र  में   असहयोग  आंदोलन  का   वातावरण  बनाने  के  लिए   गाँव - गाँव   घूम  रहे  थे  l   एक  गाँव  में  उन्होंने  पशुबलि  का  जुलूस   निकलते  देखा  l   देवी  को  बकरा  चढ़ाने   एक  समूह  गाता  - बजाता   जा  रहा  था  l   गाँधीजी   ने  दृश्य  देखा  ,  तो  उन्होंने  एकत्रित  लोगों    को   वैसा  न  करने  के  लिए  समझाया  l   न  माने  तो  एक  नया   प्रस्ताव  रखा  -- गाँधीजी   ने  कहा -- पशु  के  रक्त  से   मनुष्य  का  रक्त  उत्तम  ही  होगा  l   तुम  लोग  अपने  देवता  पर   मेरी  बलि  चढ़ा  दो  l  उन्होंने  सिर   नीचे  झुका  लिया    और  वहां  जा  खड़े  हुए  ,  जहाँ  बकरा  कटना   था  l   सन्नाटा  छा  गया  ,  ग्रामीण  लौट  गए   और  उस  क्षेत्र  से  बलि  - प्रथा    सदा  के  लिए  समाप्त  हो  गई    l 

9 October 2020

WISDOM -----

 पं. श्री राम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है ---- ' हम  दूसरों  के  प्रति  जो  भी  बुरा  सोचते  हैं  ,  घृणा  व  नफरत  करते  हैं  ,  क्रोधित  होते  हैं ,  गुस्सा  करते  हैं  ,  वह  सब  अपने  मन  में  करते  हैं   l   ये  सब  कलुषित  भावनाएं  मन  में  होने  के  कारण   हमें  ही  ज्यादा  नुकसान  पहुँचाती   हैं  l   इन  सबके  कारण  दूसरे  व्यक्तियों  का   कोई  नुकसान  नहीं  होता  ,  बल्कि  हमारा  ही  अंतर्मन   इनकी  आग  से   जलने लगता  है   व  अशांत  होने  लगता  है  l   हमारी  ही  शांति  , हाहाकार  में  तब्दील  हो  जाती  है   और  ऐसी  स्थिति  में  हम  न  तो  कुछ  अच्छा  सोच  पाते   हैं  और  न  कुछ  अच्छा  कर  पाते  हैं   l   ऐसा  करने  से  हमारा  मन  कलुषित  हो  जाता  है  जिससे  हम  परमात्मा  से  भी  दूर  हो  जाते  हैं  l '  आचार्य श्री  का  कहना  था  --- ' कभी  भी  किसी  की  बुराई  को  अपनी  चर्चा  का  विषय   न बनाया  जाये  ,  क्योंकि  यदि  किसी  के  प्रति   थोड़ी  भी  बुराई  या   चर्चा   किसी  से  भी  की  जाती  है   तो  वह  वापस  लौटकर   कभी  न  कभी  ,  किसी  न  किसी  रूप  में  हमारे  पास  जरूर  आती  है  l '

WISDOM -----

     केवल  ताकत  नहीं , सूझबूझ  भी  जरुरी  है  l ---- एक  घना   जंगल  था  l  उसमें  कई  शूकर   परिवार  रहते  थे  l   आक्रमणकारी  सिंह  एक  ही  था  l   वह  जब  चाहता , हमला  करता  और  किसी  भी  शूकर   को  चट   कर  जाता  l   सब  शूकर   उस  सिंह   की वजह  से  बहुत  परेशान   व  दुःखी   थे  l   एक  दिन  बूढ़े  शूकर   ने   अपने सभी  स्व जातियों  की  एक  गुपचुप  सभा  बुलाई   और  कहा --- " मरना  है  तो  बहादुरी  से  क्यों  न  मरें  ?  रहना  है  तो  मिलजुल  कर  क्यों  न  रहें  ? " बात  सभी  को  अच्छी  लगी  और  वे  उसकी  योजना  अनुसार  चलने  को  राजी  हो  गए  l   दूसरे  दिन  तगड़े  शूकरों  का  दल  गठित  किया  गया   और  योजना  बनी  कि   आक्रमण  की  प्रतीक्षा  न  कर  के  ,  शेर  की  माँद   पर  चलें   और  वहां  उस  पर  हल्ला  बोल  दिया  जाये  l   नई   आशा , नई  हिम्मत  और  बहादुरी  के  साथ  तगड़े   शुक्र  चले   और  माँद   में  सोए   हुए  शेर  पर  बिजली  की  तरह  टूट  पड़े  l   शेर  ने  ऐसी  मुसीबत  पहले   कभी नहीं  देखी    थी  ,  उसने  सोचा  जंगल  में  भूतों  का  निवास  है  l   वह  जान  बचा  कर  इतनी  तेजी  से  भागा   कि   यह  भी  न  देख  सका  कि   हमला  करने  वाले  कौन  और  कितने  हैं  l   वह  भयभीत  हो  गया  और  निश्चय  किया  कि   अब  कभी  उस  गाँव  में  नहीं  लौटेगा  l   अपनी  सूझबूझ  से  वे  सब  शूकर   परिवार   उस  जंगल  में  आनंदपूर्वक  रहने  लगे  l 

6 October 2020

WISDOM -----

   आज   भी आध्यात्मिक  विषयों  में    संसार  भर  के  जिज्ञासु   भारत  को   उसके  प्राचीन  ' जगद्गुरु ' भाव  से   देखते  हैं  और  आत्मिक  शांति   प्राप्त  करने  के  उद्देश्य  से  यहाँ  आते  हैं  l   इस  संबंध   में  आर्य  समाज  के  परम  विद्वान   महात्मा  आनंद  स्वामी  ने   अपने  अनुभव  की  एक  घटना  बतलाई  है -------- " पहली  बार  1950  में   जब  मैं   गंगोत्री  गया   और  वहां  एक  कुटिया  बना  कर   योगाभ्यास  करने  लगा   तो  उन्ही  दिनों दिनों  अमेरिका  से    एक  शिक्षित  पति - पत्नी   वहां  पहुंचे  l  एक  दिन  बातचीत  में  दुनिया  में  दुःखों   की  चर्चा  चली   तो  मैंने  अमेरिकन  सज्जन  से  पूछा ----  ' हम  लोग  अभी  तक  यही  सुनते   रहते  हैं  कि   अमेरिका  बड़ा  धनी    देश  है  l   मानव  के  सुख , आराम   तथा  ऐश्वर्य  के  हर  प्रकार  के  साधन   हैं  l   तब  इतनी  सब  सुख - सुविधा   और  आराम  छोड़कर   आप  गंगोत्री  जैसे  स्थान   पर क्यों  आए  l   यहाँ  तो  ठहरने  का  न  तो  उत्तम  स्थान  है  ,  न  ही  कोई  सुविधा  l  आपको  अमेरिका  जैसे  वैभवशाली  देश  से  कौन  सी   वस्तु    यहाँ    खींच   लाई l "  इस  पर  अमेरिकन  सज्जन  ने  बड़ी  गंभीरता  से  कहा ---- " वह  वस्तु  जो   वैभवशाली  अमेरिका  में  नहीं  है  ,  परन्तु  यहाँ  हमको  प्राप्त  हो  गई  है  ,  उसका  नाम  है --- शान्ति   और  आनंद   l 

4 October 2020

WISDOM -----

    जब  अर्जुन  ने  युद्ध  भूमि  में   देखा  कि   अपने  ही  पितामह , गुरु  और   भाइयों  से  युद्ध  करना  है  तो  उसने  अपना  गांडीव  धनुष   नीचे   रख  दिया   , तब  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  उसे   समझाया  कि   वे  लोग  अधर्म  पर  हैं  , अन्यायी  हैं   l   अत्याचार  और  अन्याय  को  यदि  हम  नहीं  मिटाएंगे   तो  वे  हमें  मिटा  डालेंगे   इसलिए  उठाओ  अपना  धनुष   और   इस  धरती  पर  से  अधर्म  और  अन्याय  को  मिटा  दो  l   भगवान    स्वयं  अर्जुन    के   सारथी   बने  l 

WISDOM ----

   मनुष्य  अपनी  कमजोरियों  और   कामना - वासना  के  चक्रव्यूह  में  इस  तरह  फँसा   है  कि   वह   वास्तविकता  का  सामना  नहीं  करना  चाहता  ,  सच्चाई  से  दूर  भागता  है l    एक  सच  को  छुपाने  के  लिए   सौ   झूठ  बोलने  पड़ते  हैं  l    पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  अपने  प्रवचन  में   एक  किस्सा  सुनाया  था ---- "   एक  समय  की  बात  है  l   एक  वकील  और  उनका   एक   मुवक्किल  था   l   मुवक्किल  किसी  केस  में  फँस   गया  l   उसने  कहा --- ' वकील  साहब  !  आप  मुझे  छुड़ा  दें   तो  मैं  जन्म  भर  आपका  एहसान   मानूँगा  l  वकील  ने  कहा --- ' जन्म  भर  एहसान   मत  मान  ,  बस , तू  मुझे  पांच  हजार  रूपये  दे  दे  ,  मैं  तेरा  केस  लड़  दूंगा  l   तू  पागल  बन  जाना  l   मैं  डॉक्टरों   से  मिलकर   तेरे   पागलपन  का  सार्टिफिकेट   बनवा  दूंगा  l   जब  तू  अदालत  में  जाए ,  तो  बस   एक  ही  शब्द  याद  कर  के  जाना  l   जब  जज  तुझसे  कोई  सवाल  पूछे    तो  तू  कह  देना  -- ' में. ' l   हमारे  कानून  में  पागलों      के     लिए    कोई    कानून     नहीं  है  l    अदालत  में  न्यायधीश  ने  पूछा  ---' क्या  नाम  है  तेरा  ? ' उसने  कहा --- ' में  ' l   क्या  तूने  गलत  काम  किया  है  ?  ' में '  न्यायधीश    कोई  भी  बात  पूछते    तो  वह  कहता  -- ' में  '  l   वकील  ने  कहा  --- साहब  यह  तो  पागल  है  l   यह  बात  उसने   गवाहों  और  सबूतों  के  माध्यम  से  सिद्ध  कर  दी  l   जज  साहब  ने  कहा  --- इसे  बरी  कर  दिया  जाये  l   छूटने  के  बाद  वह  व्यक्ति  वकील  साहब  के  घर  गया   l   वकील  साहब  ने  कहा --- लाइए  हमारे  फीस  के  पांच  हजार  रूपये  l   उस  व्यक्ति  ने  कहा --- ' में '  l   वकील  साहब  अपना  माथा  ठोकते  रह  गए  l 

3 October 2020

WISDOM ----

   '  प्रचुर मात्रा  में  सरकारी  सहायता  के  बावजूद   दलित  एवं   पिछड़े  समाज  में  कोई  विशेष  परिवर्तन  क्यों  नहीं  नजर  आता  है  ? '  ----- यह  पूछे  जाने  पर  पं. श्रीराम  शर्मा   आचार्य जी  ने  कहा ---- " किसी  भी  पिछड़े  समाज  को  मुख्य  धारा   में  लाने  के  लिए   केवल  सरकारी  सहायताएं  ही  पर्याप्त  नहीं  हैं  l   मुख्य  बात  तो  यह  है  कि  उस  समाज  के  लोगों  की  जीवनशैली  में  परिवर्तन  करना  आवश्यक  है  ,  और  जीवनशैली  में  परिवर्तन  करना  आसान  कार्य  नहीं  है  l   यह  अत्यंत  धैर्यपूर्वक  और  दीर्घकाल  तक  की  जाने  वाली  प्रक्रिया  है  l   आप  गहराई  से  सोचें  तो  पाएंगे   कि   इंसान  या  समाज  की  वर्तमान   दुरवस्था  का  कारण   उनके  अतीत  के  कर्मों  में   सन्निहित  है  l    शुभ   एवं सत्कर्मों  के  माध्यम  से    इस  वर्ग   की  स्थिति  में  वांछित  एवं    आशातीत  परिवर्तन  लाया  जा  सकता  है  l '  उन्होंने  आगे   कहा ----  ' समाज  की   महिलाओं  एवं   पुरुषों  को   केवल  सहायता   या  पैसा   देना पर्याप्त  नहीं  है  l   उस  सहायता  से    उनकी    क्षमता   के  आधार  पर  स्वावलम्बन  का  कार्य  प्रारम्भ  करना  चाहिए  ,  उन्हें  शुभ  कर्मों  से  जोड़ना  चाहिए  और  सेवा  कार्यों  में  संलग्न  करना  चाहिए  l  इससे  उनकी  जीवनशैली  में  परिवर्तन  आएगा  , नकारात्मक  विचार  बदलेंगे  l  शिक्षा  एवं   विभिन्न  प्रकार  के   सेवा   एवं   स्वावलम्बन  कार्य  करने  से   उनमे  आत्मविश्वास  जागेगा  l   जीवनशैली  एवं   विचारों  में  परिवर्तन  किए   बगैर   पिछड़े , दलित  या  ऐसे  किसी  समाज  का  उत्थान  संभव  नहीं  है  l 

2 October 2020

WISDOM ----

  महापुरुषों  के  प्रति  सच्ची  श्रद्धांजलि  यही  है  कि   हम   उनके   विचारों   को  अपने     जीवन   में उतारें ,  उनके  आदर्शों  पर , उनके  बताए   रास्ते  पर    चलें   l    महापुरुष   कोरे    विचार    नहीं     देते ,  अपने  आचरण  से  हमें  शिक्षा  देते  हैं  l   उनके  विचारों  में ,  सिद्धांतों  में   उनकी     साधना  का ,  उनकी  तपस्या  का  बल  होता  है  l   ईश्वर  ने  हमें  चयन   की स्वतंत्रता  दी  है  ---  --- 

1 October 2020

WISDOM ------

     इस  संसार  में  भाँति  - भाँति   के  लोग  हैं   l   जब  लोगों  पर  दुर्बुद्धि  हावी  हो  जाती  है   तो  उनके  कार्य  अपने - अपने  विचार  और  संस्कारों  के  अनुसार  भिन्न - भिन्न  होते  हैं   जैसे  --- रावण  ने   अपनी  लंका  सोने  की  बनाई  ,  और  लंका  से  बहुत  दूर   वन   से  सीताजी  का  अपहरण  किया  l   सिकंदर  ने  विश्व विजय  का  संकल्प  लिया  ,  अपने  राज्य  को  नहीं   लूटा ,  दूसरे  राज्यों  में  तबाही  मचाई  l  इस  अभियान  में  वह  भारत  भी  आया   l   यहाँ  के  राजाओं  ने  दिल  खोलकर  उसकी  मदद  की  l  दुर्बुद्धि  की  कहानी  बहुत   लम्बी  है   मीरजाफर , जयचंद   इन्होने  अपने  ही  देश  को  लुटवा  दिया  l   नादिरशाह   भारत  आया  ,  यहाँ  खूब   लूटा , कत्ले  आम  किया  ,  यहाँ  का  धन  वैभव  वह  अपने  देश  ले  गया  l   दुर्बुद्धि  का  असर  ऐसा  होता  है  कि   कुछ  लोग  दूसरों   का बगीचा  लूटते   हैं  ,  कुछ  अपना  ही  बगीचा  लूटते   हैं  l   अपने  अहंकार  , अपनी  पशुता   को  पोषित  करने   के लिए   जाति ,  धर्म ,  ऊंच - नीच  के  आधार  पर   कमजोर  पर , नारी  पर  अत्याचार  कर  के  ,  उन्ही  को  मार  कर    रौब  से  रहते  हैं  l   आज  सबसे  बड़ी  जरुरत  सद्बुद्धि  की  है  l  जियो  और  जीने  दो  l