13 December 2020

WISDOM ----- तृष्णा का कोई अंत नहीं है

   एक   प्राचीन  कथा  है  ----- एक  अमीर  व्यक्ति  था  l   बहुत  वैभव  था  उसके   पास   लेकिन  वह  फिर  भी  बहुत  धन  चाहता  था   और  इस  लालच  में  वह   पुराने  किले ,  सुनसान    जगह   में  भी  भटकता  था   कि   कहीं  से  कोई  गुप्त  खजाना  मिल  जाये  l   ऐसी  ही  सोच - विचार  में  वह   एक  दिन   जा  रहा  था  कि   उसे  एक  आवाज  आई  ---- ' क्या  तुम्हे  धन  चाहिए   ? '  ' धन ' शब्द  सुनते  ही  वह  चौकन्ना  हो  गया   और  बोला   --- ' हाँ , मुझे  धन  चाहिए  l  ' तब  आवाज   ने कहा --- ' जा ,  घर  लौट  जा   l   घर  के  पिछवाड़े   अमुक   स्थान  पर   अशर्फियों   से  भरे  सात  घड़े   तेरा  इंतजार  कर  रहे  हैं  l "  यह  सुनकर   वह बहुत  प्रसन्न  हुआ  और  दौड़ता  हुआ  घर  आया ,  पत्नी  को  धीरे  से  कान  में   बताया  और  अँधेरी  रात  में    जमीन   खोदकर   सातों  घड़े   निकाल   लिए  l   अब  धैर्य  नहीं  था  ,   उत्साह  में आकर  वे    घड़े  खोलकर  देखने  लगे  l   छह   घड़े  सोने  की  अशर्फियों  से   भरे  थे   लेकिन  सातवां  घड़ा  आधा  खाली   था  l   अब  उन  दोनों  पति- पत्नी  को  सातवें  घड़े  को  भरने  की  चिंता  हो  गई   l   अपनी  जरूरतों  को  कम     कर  के  उन्होंने  घड़े  को  भरना   शुरू किया   लेकिन  घड़ा  भरने  का  नाम  ही  नहीं  लेता  l   इस  वजह  से  दोनों  बहुत  दुःखी   थे  l  एक  दिन  एक  साधु  उनके  घर  आया  , उन्हें  चिंतित  देखकर  साधु  ने  पूछा  --- " सांतवा  घड़ा  भरा  या  नहीं  ? '  यह  सुनकर  दोनों  पति - पत्नी  आश्चर्यचकित  रह  गए  कि   यह  बात  साधु  को  कैसे  मालूम  हुई  l   तब  साधु   बोला ----- " बेटा  !   यह  सांतवा  घड़ा  तृष्णा  का  है  ,  जो   कभी  पूरी  नहीं  होती  l   मनुष्य  इस  तृष्णा  को  साथ  लिए   दुनिया  से  विदा  हो  जाता   है  l   तुम  इस  घड़े  में  कितना  ही  सोना  डालो  यह  भरने  वाला  नहीं  है  l  यह  कहकर  साधु  चला  गया  l    और  साधु  के  जाते  ही  वे  सातों  घड़े  भी  गायब  हो  गए  l   अब  वे  दोनों  बहुत  पछताने  लगे   और   सोचने लगे  कि   सातवें  घड़े  को  भरने  के  बजाय   वे  इस  धन  को  लोक - कल्याण  में   और  दूसरों   की  पीड़ा  के  निवारण  में  लगाते  तो   यह जीवन  सार्थक  हो  जाता  l 

WISDOM ---

   स्वामी  रामकृष्ण  परमहंस   कहते  हैं ----- ' ईश्वर  दो  बार  हँसते  हैं   l   एक  बार  उस  समय  हँसते  हैं  ,  जब  दो  भाई  जमीन   बांटते  हैं   और  रस्सी  से  नापकर  कहते  हैं  --- ' इस  ओर   की  जमीन   मेरी  और  उस  ओर   की  तुम्हारी  l '  ईश्वर  यह   सोचकर हँसते  हैं   कि   संसार  है  तो  मेरा   और  ये  लोग   थोड़ी  सी  मिटटी  लेकर   इस  ओर   की  मेरी     और    उस     ओर   की  तुम्हारी  कर  रहे  हैं   l      फिर   ईश्वर   एक  बार  और  हँसते  हैं   , बच्चे  की  बीमारी  बड़ी  हुई  है   l     माँ  रो  रही  है  l   वैद्य  आकर   कह   रहा    है  ---- ' डरने     की  क्या   बात   है   माँ  !   मैं  अच्छा  कर  दूँगा   l  "  वैद्य  नहीं  जानता   कि   ईश्वर  यदि  मारना   चाहे   तो  किसकी  शक्ति    है ,  जो  अच्छा  कर    सके   ? "