14 May 2021

WISDOM ------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- 'चिंतन   परिक्षेत्र  बंजर  हो  जाने  के  कारण  कार्य  भी  नागफनी  , बबूल   जैसे  हो  रहे  हैं   l   इससे  मानवता  का  कष्ट  पीड़ित  होना  स्वाभाविक  है  l   कार्य  में  श्रेष्ठता  की  अभिव्यक्ति   होना  तभी  संभव  है  ,  जब  उसके  मूल  में  चिंतन  की   उत्कृष्टता  हो   l  '--------एक  बार  की  बात  है  --- राजा  भोज  गहरी  निद्रा  में   सो  रहे  थे  l   उन्हें  स्वप्न     एक  तेजस्वी  वृद्ध  पुरुष  के  दर्शन  हुए  l   भोज  ने  उससे  पूछा  ---- '  भगवन  !  आप  कौन  हैं  ? '  वृद्ध  ने  कहा --- " हे  राजन  !  मैं  सत्य  हूँ  l   तुझे  तेरे  कार्यों  का  वास्तविक  स्वरुप  दिखाने   आया  हूँ   l   मेरे  पीछे - पीछे  चला  आ   और  अपने  कार्यों   की  वास्तविकता  को  देख   l  "  राजा  भोज  अपने  आपको  लोक कल्याणकारी  और  बहुत  बड़ा  धर्मात्मा  समझते  थे ,  प्रसन्नता पूर्वक  उस  वृद्ध  के  पीछे  चल  दिए  l   वृद्ध  पुरुष  के  रूप  में  सत्य  ,  राजा  भोज  को   उसकी  कृतियों  के  पास  ले  गया  , जिनके  लिए  भोज  को  बड़ा  अहंकार  था  --- सर्वप्रथम  वह  उन्हें    फल - फूलों  से    लदे     बगीचे  में  ले  गया  l    सत्य    के  छूते       ही  वे  सब  पेड़  ठूंठ  हो  गए  l   फिर  राजा  द्वारा  बनवाये    मंदिर आदि  कृतियों  की  और  ले  गया  l  सत्य  के   छूते    ही  वे  सब  खंडहर  होकर  गिर  गए   l   यह  सब  देख  राजा   जड़वत  हो  गया  l   सत्य  ने  कहा  --- राजा  विषाद   मत  करो  ,  मेरे  साथ  आओ  , मैं  तुम्हे  तुम्हारे  कार्यों  की  वास्तविकता   दिखाता   हूँ   l  सत्य  उन्हें    उसके  द्वारा  किये  गए  लोक कल्याण  के  कार्यों ,  दान  की  बड़ी  राशियों  आदि  के  निकट  ले  गया ,  सत्य  के   छूते   ही  वे  सब  कंकड़ - पत्थर  हो  गईं   l   राजा  को  अपने  जिन  कार्यों   पर अभिमान  था  वे  सब   झूठे  और  निष्फल  साबित  हुए   l   अपने   कार्यों  की  ऐसी   दुर्गति  देख    राजा  हतबुद्धि  होकर  वहीँ  बैठ  गया   l  तब  सत्य  ने  कहा ---- " राजन  !  कर्म  के  राज्य  में  भावना  का  सिक्का  चलता  है   l   यश  की  इच्छा  से , लोक दिखावे  के  लिए  जो  कार्य   किये  जाते  हैं  ,  उनका  फल  इतना  ही  है  कि   दुनिया  की  वाहवाही  मिल  जाती  है   l   सच्ची  सद्भावना  से  , नि:स्वार्थ  होकर  , कर्तव्य  भाव  से   जो  कार्य  किये  जाते  हैं  ,  उन्ही  का  पुण्य  फल  होता  है   l  '  इतना  कहकर  वृद्ध  पुरुष  अंतर्धान  हो  गया  l  राजा  भोज  की  निद्रा  टूटी   l   वृद्ध  की  बातों  से  राजा   ने  समझा   कि   अंत:करण   पवित्र  होना  चाहिए   क्योंकि  धर्म - अधर्म  की  जड़  मन  में  है  , बाहर  नहीं   l