13 November 2020

WISDOM ----- काल और कर्म से बड़ा कोई नहीं

' अखण्ड  ज्योति  '  में    प्रकाशित  एक  लेख  में   आचार्य श्री  ने   गोलोकधाम  में  भगवान  कृष्ण  और  श्रीराधा  जी  के  संवाद  के  माध्यम  से   काल  और  कर्म  की  महत्ता  को  समझाया  है  l   भगवान  श्रीकृष्ण  कहते  हैं ----- " जब  किसी  का  जन्म  होता  है   तो  वह  अपने  साथ  में  कर्मानुसार    एक  विशिष्ट   भाग्य  लेकर  आता  है   तो  वह  भाग्य   उसका  पीछा  तब  तक  नहीं  छोड़ता  , जब  तक  कि   उसकी  मृत्यु  न  हो  जाए   l  किसी  भी  तरह   उस  व्यक्ति  के  जीवन  से   उसके  भाग्य  को  हटाया  नहीं  जा  सकता  l    तपस्या  के  बल  पर  उसे  कम   किया  जा  सकता  है  l  "   श्रीराधा  ने  कहा --- प्रभु  !  इसे  और  स्पष्ट  कीजिए   l "   भगवान  कहते   हैं --- " भाग्य  का  भोग  नियत  समय  तक  ही  होता  है  ,  उसे  न  तो  बढ़ाया   जा सकता  है   और  न  घटाया  जा  सकता  है  ,  इसलिए  काल  का  बड़ा  महत्व   है  l अत: धैर्यपूर्वक   अपने  भोग  को  भोग  लेना  ही  श्रेयस्कर  है  l  "  श्रीराधा  ने  कहा ---- " मथुरा  में  कंस  की  अनीति  और  अत्याचार  अपने  चरम  पर  है  ---- उससे  सभी  पीड़ित  हैं  l कंस  ने  स्त्रियों  के  मान - सम्मान  को  तार-तार  कर  दिया  ,  कहीं  किसी  की  कोई  सुनवाई  नहीं  हो  रही  है  l  इन  दिनों  वह  देवकी -वसुदेव  को  कारागृह  में  डालकर  घोर  यंत्रणा  देने  में  लगा  है  l l "  इसी  बीच  देवर्षि  नारद  ' नारायण '  का  गान  करते  हुए  गोलोकधाम   में  आ  गए  l   उन्होंने  कहा --- " हे  नारायण  !  कंस  तो  खड्ग  उठाकर   देवकी - वसुदेव  का   सर्वनाश करने  चल  पड़ा  है  l   अब  क्या  होगा  प्रभु  ! "    भगवान  कृष्ण  कहते  हैं ---- "   कंस  के  हाथों  माता  देवकी  और  पिता  वसुदेव   का  अंत   नहीं लिखा  है  l  उनका  इतना  भोग  नहीं  बनता  है   कि  उनको  कंस   के हाथों  प्राण  गँवाने  पड़े  l  हे  देवर्षि  !  इस  सृष्टि   में   काल   और कर्म  से  बड़ा  कोई  नहीं   है  ,  कंस  भी  नहीं  l काल  और  कर्म  के  अनुसार  ही  भोग  का  विधान  बनता  है  l  अच्छा  और  बुरा   दोनों  ही   काल  के  द्वारा  संचालित  होते  हैं  l   जो  सत्कर्म  करता  है  ,  काल  उसको  श्रेष्ठतम  कर्म  का  माध्यम  बनाकर  प्रतिष्ठित  कर  देता  है   और  जो  दुष्कर्म  का  वाहक  होता  है  ,  काल  उसे  भीषण  दंड  देता  है  l   कंस  को  काल  दण्डित  करेगा  l   जब  काल  दण्डित  करता  है   तो  फिर  उसे  कोई  बचा  नहीं  सकता  l  "  श्रीराधा  और  देवर्षि   दोनों  ने  ही  कहा  ---- ' प्रभु  !  देवकी  और  वसुदेव  की   आप  कंस   के खड्ग  से  कैसे  रक्षा  करेंगे  ? "   इस  बात  पर  भगवान   कृष्ण मुस्करा  दिए  l   कंस  उन्मत  होकर  नंगी  तलवार  लेकर   कारागार   में  उनको  मारने   के  लिए  पहुँच  गया  l   देवकी  और  वसुदेव  अपनी  रक्षा   का भार  अपने  पुत्र  श्रीकृष्ण  पर  छोड़कर  निश्चिन्त  हो  गए  थे  l   जैसे  ही  कंस  ने  तलवार  चलानी   चाही  ,  वहीँ  एकाएक    शेषनाग  अपने  सहायक  फनों   के  साथ  प्रकट  हो  फुफकारने  लगे  l   इस  अप्रत्याशित  और  भयावह  घटना  से    कंस  बेहोश  होकर  गिर  गया  l