मनुष्य के अस्तित्व के लिए पेड़ - पौधे , पशु - पक्षी , वनस्पति , जल, वन आदि सभी कुछ अनिवार्य है l ' हम सब एक माला के मोती हैं l सबका हित , सबकी सुरक्षा और सब की ख़ुशी में ही स्वयं का आनंद है l -------- याकूब ने सुना था कि संत तालसुद पहुंचे हुए फकीर हैं l उनकी दुआ से दुःखी लोग भी आनंदित होकर लौटते हैं l याकूब उन्हें खोजता हुआ एक बियावान में जा पहुंचा l वहां पर उसने देखा कि वे संत एक टोकरी में दाना लिए चिड़ियों को चुगा रहे हैं और चिड़ियों की चहचहाहट ,व उनकी फुदकन के देखकर आनंदविभोर हो रहे थे l याकूब बहुत देर तक बैठा रहा , पर जब संत का ध्यान उसकी ओर नहीं गया तो वह झल्लाया l तालसुद ने उसे ऊँगली के इशारे से बुलाया और हाथ की टोकरी उसके हाथ में थमाते हुए कहा --- " लो अब तुम चिड़िया चुगाओ और उनकी प्रसन्न्ता देखकर स्वयं आनंद लो l " फिर थोड़ा गंभीर स्वर में बोले ---- " अपना दुःख भूलकर दूसरों को जहाँ तक संभव हो आनंद की अनुभूति दे पाना , उनके दुःख के क्षणों में स्वयं को उनका सहभागी बना लेना ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है l मैंने जीवन भर यही किया , तुम भी यही करो और अपने जीवन को धन्य बनाओ l "
12 January 2022
WISDOM-----
बात उन दिनों की है जब स्वामी विवेकानंद एल. एल. बी. के अंतिम वर्ष में थे l उन्हें लक्ष्य कर के स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने आत्मीयता पूर्वक कहा था ---- " क्यों रे नरेन ! तू कब तक भटकता रहेगा l वकालत कर के झूँठ - मूँठ पैसा कमाने के चक्कर में पड़ा तो तेरे हाथ का छुआ पानी नहीं पीऊंगा l " उनकी बात स्वीकार कर वे पूरी तरह विद्या के क्षेत्र में कूद पड़े l विद्या में प्रवीण होकर चमत्कारी व्यक्तित्व के स्वामी बन जाने पर किसी ने ठाकुर से पूछा --- " उनसे क्या कराएँगे l " गले में कैंसर हो जाने के कारण ठाकुर बोल नहीं सकते थे , उन्होंने कोयले का टुकड़ा उठाकर जमीन पर लिखा --- " नरेन शिक्षा दिबे l " नरेंद्र विद्या का शिक्षण देगा l स्वामी विवेकानंद कहते थे ---- " मेरे गुरु ने मुझे विद्या दी है l इसको पाकर मैं दार्शनिक नहीं हुआ , तत्ववेत्ता भी नहीं बना हूँ l संत बनने का दावा नहीं करता l परन्तु मैं इन्सान हूँ और इन्सानों को प्यार करता हूँ l "
WISDOM -----
स्वामी विवेकानंद अपने परामर्श प्रसंगों में कहते हैं --- " ध्यान करना हो तो अपने कमरे का एक कोना सकारात्मक बना लें l सभी सिद्धों - महापुरुषों को नमन कर वहां आमंत्रित करें l उनके विचार - सूक्तियों में खो जाएँ l उस कोने में एक आसन या कुर्सी पर बैठकर जितना समय मिले , सकारात्मक भावनाएं बिखरायें l वे सभी लौटकर आएँगी l सारी उदासी दूर कर मन को प्रसन्न करेंगी और ध्यान को सशक्त बनाएंगी l कुछ न करें , बस द्वेषमुक्त व प्रसन्नचित्त चिंतन करते रहें l "