28 October 2021

WISDOM -----

   संसार  में  इतना  तनाव  , इतनी  अशांति  क्यों  है   ?   इसके  लिए     मनुष्य  स्वयं  जिम्मेवार  है   l   देवता  और  असुरों  में  शुरू  से  ही  वैर  रहा  है   l   देवत्व  को , अच्छाई  को  असुर  कभी  सहन  नहीं  करते   l   उसे  मिटाने  के  लिए  वे     छल , कपट , षड्यंत्र ,  दूसरे  को  नीचा   दिखाना ,  उनका  हक  छीनना   , अत्याचार , अन्याय   आदि  हर  संभव  उपाय  करते  हैं   l   कर्म  करना  व्यक्ति  की  अपनी  इच्छा  है   लेकिन  जब  उसे  अपने  दुष्कर्मों  का  फल  मिलता  है  तब  वह  तनाव  से  घिर  जाता  है  ,  उसका  सुख - चैन  सब  खत्म  हो  जाता  है  l   यह  सिलसिला  युगों  से  चला  आ  रहा  है  ,  कभी  समाप्त  नहीं  होता   l सम्पूर्ण  धरती  पर  मानव  जाति   की  यही  गाथा  है   l   त्रेतायुग  में  रावण  ने  छल- कपट  किया  ,  वह  तो  असुर  था  , यह  तो  उसका  लक्षण  ही  था   l  उधर  अयोध्या  में   माता  सीता  के  साथ  अन्याय  हुआ  -------- फिर  द्वापर   युग  में  महाभारत  हुआ  ---- यह  असुरता  ख़त्म  नहीं  होती  l  प्रकृति  इसे   सहन  नहीं  करती  l जब  अत्याचार - अन्याय  अपने  चरम  पर  पहुँच  जाता  है  तब  सामूहिक  दंड  के  रूप  में  महामारी , बाढ़ ,  भूकंप     युद्ध   आदि  आपदाएं  आती  हैं  l  लेकिन  मनुष्य  फिर  भी  नहीं  सुधरता ,  इन  समस्याओं  से  उबरकर  फिर  से  अपराध , भ्रष्टाचार , छल - कपट  आदि  अपने  स्वाभाव अनुसार  दुष्कर्म  में  संलग्न  हो  जाता  है   l   क्यों  नहीं  सुधरता  ?  आचार्य का , ऋषियों  का  कहना  है   कि    जब   तक  संस्कार  नहीं  बदलते  , व्यक्ति  सुधरता  नहीं  है   l    यदि  किसी  अपराधी  ने  आत्मसमर्पण  कर  दिया  ,  गलत  काम   न  करने  का   संकल्प  ले  भी  लिया   तो  संभव  है  वह  सुधर  जाये   लेकिन  उसने  जो  अपराध  किये   वे  संस्कार रूप  में  उसकी  किसी  संतान  में  अवश्य  आ  जाते  हैं  ,  फिर  यह  सिलसिला  चलता  ही  रहता  है   l   बड़े - बड़े  अपराधियों , षड्यंत्रकारियों    का  यदि  इतिहास  पता  किया  जाये   तो  यह  निश्चित  है   कि  उनके  पूर्वजों  में   कोई  ऐसा  अपराधी  अवश्य  होगा   l   इसलिए  पहले  जमाने  में  घर  के  बड़े - बुजुर्ग  कहा  करते  थे   कि   बेटी  के  विवाह  से  पहले   लड़के  की  सात  पीढ़ियों  का  पता  कर  लो  --किसी  को  कोई  भयंकर  बीमारी  न  हो ,  कोई  बड़ा  अपराधी  न  हो  ,  पता  नहीं   उस  संतान  में  कब   वो  दूषित  संस्कार  जाग  जाएँ   l  कहते  हैं   जनकपुर   के  लोग  अभी  भी  अपनी  बेटी  का  विवाह  अयोध्या  में  नहीं  करते  l   आज  संसार  को  ऐसे  सिद्ध  पुरुषों  की ,  योगियों  की  आवश्यकता  है    जो     वह  राह  दिखा  सकें  कि  बचपन  से  ही  संस्कार  परिवर्तन  की  प्रक्रिया  शुरू  हो  जाये   l