27 March 2024

WISDOM -----

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----- " पद  जितना  बड़ा  होता  है  , सामर्थ्य  उतनी  ही  ज्यादा   और  दायित्व  भी  उतने  ही  गंभीर  l   जो  ज्ञानी  हैं  वे  अपनी  बढ़ती  हुई  सामर्थ्य  का  उपयोग   पीड़ितों  के  कष्ट  हरने   एवं  भटकी  मानवता  को  दिशा  दिखाने  में   करते  हैं  l  सामर्थ्य  का  गरिमापूर्ण  एवं  न्यायसंगत   निर्वाह  ही   श्रेष्ठ  मार्ग  है  l  " ---------------------- बोधिसत्व  सुंदर  कमल  के  तालाब   के  पास  बैठे  वायु  सेवन  कर  रहे  थे  l   कमल  की मनोहर  छटा  देखकर  वे  सरोवर  में  उतर  गए   और  निकट  जाकर  कमल  की  गंध का  पान  कर  तृप्त  हो  रहे  थे  l  उसी  समय  किसी  देवकन्या  का  स्वर  उन्हें  सुनाई  दिया  ------ ' तुम  बिना  कुछ  दिए  ही  इन  पुष्पों  की  सुरभि  का  सेवन  कर  रहे  हो  l '  बोधिसत्व  कुछ  कहते  ,  उसी  समय  एक  व्यक्ति  आया   और  सरोवर  में  घुसकर  निर्दयतापूर्वक   कमल -पुष्प  तोड़ने  लगा  l  उसे  रोकना  तो  दूर , देवकन्या  ने  उसे  मना  भी  नहीं  किया   l  बोधिसत्व  ने  उस  देवकन्या  से  पूछा --- " देवी  !  मैंने  तो  केवल  पुष्पों  का  गंधपान  ही  किया  था  ,  पर  अभी  आए  इस  व्यक्ति  ने    कितनी  निर्दयता  के  साथ  पुष्पों  को  तोड़कर   तालाब  को  असुंदर  और    अस्वच्छ  बनाया  ,  तब  तो  तुमने  इसे  कुछ  भी  नहीं  कहा  l  "  बोधिसत्व  की  बात  सुनकर  देवकन्या  गंभीर  होकर  कहने  लगी  --- " तपस्वी  !  लोभ  तथा  तृष्णा  में  डूबे  संसारी  मनुष्य   धर्म , अधर्म   में  भेद  नहीं  कर  पाते  l  अत:  उन  पर  धर्म  की  रक्षा  का  भार  नहीं  है  ,  किन्तु  जो  धर्मरत  हैं  ,  सत -असत  का  ज्ञाता  है  , नित्य  अधिक  से  अधिक  पवित्रता  और  महानता   के  लिए  सतत  प्रयत्नशील  है  ,  उनका  तनिक  सा  भी  पथभ्रष्ट  होना   एक  बड़ा  पातक  बन  जाता  है  l "  बोधिसत्व  ने  मर्म  को  समझ  लिया   कि  जिन  पर   धर्म   -संस्कृति की     रक्षा  का  भार   होता  है  ,  समाज  में   सर्वोपरि  पद  पर  रहने  के  कारण   उनके  दायित्व  भी  बढ़े -चढ़े  होते  हैं   l  अत:  अधिक  सजग  होना  उनके  लिए  एक  अनिवार्य  कर्तव्य  है  l