हम अपने कष्टों के लिए हमेशा दूसरों को दोष देते हैं लेकिन सच ये है कि व्यक्ति की अपनी ही कमजोरियां हैं जिनकी वजह से वह कष्ट भोगता है l ' मोह ' के कारण कैसे व्यक्ति बंधनों में बंध जाता है , इसे समझाने के लिए आचार्य जी ने एक कथा कही है --- ' वैसे तो भँवरे को सभी फूलों से प्यार होता है , पराग रस के लोभ में हर बाग़ में प्रत्येक फूल पर मंडराता घूमता है l यह भंवरा सबसे अधिक कमल के फूल को प्यार करता है और अपने इस अतिमोह में कभी -कभी वह अपने प्राण ही गँवा देता है l सुबह से साँझ तक कमल के सौन्दर्य और स्वाद में खोया हुआ भँवरा साँझ होने पर भी उसके मोह से नहीं निकल पाता l साँझ होने पर सूर्य अस्त की वेला में कमल की पंखुडियां बंद होने लगती हैं , पर कमल के मोह में बंधा भंवरा वही जस -का -तस बैठा रहता है और कमल के पूरी तरह बंद होने पर वह भ्रमर उसी में कैद कैद हो जाता है l जो भ्रमर अपने पराक्रम से कठोर कष्ट को भी काटकर चूर -चूर कर देता है , वही मोह विवश होने पर कोमल पंखुड़ियों को नहीं काट पाता l उन्ही के बीच सिकुड़ा बैठा रहता है l उसे प्रतीक्षा रहती है सुबह होने की , परन्तु वह सुबह उसके जीवन में कभी नहीं आती l कमल के अन्दर प्राणवायु के अभाव में उसके प्राण निकल जाते हैं अथवा सरोवर में स्नान करने आए हाथी उस समूची कमलनाल को ही उखाड़ कर खा जाते हैं l उस भ्रमर के भाग्य में मृत्यु के अलावा और कुछ नहीं होता l इसी तरह मनुष्य मोहजाल में फंसकर अपने अस्तित्व को भुला बैठता है l