गुरु नानक यात्रा पर थे तो उनसे किसी ने आकर पूछा --- " हिंदू और मुसलमान में कौन बड़ा ? " गुरु नानक जी ने उत्तर दिया ---- " धर्म का मर्म अच्छे कर्म करने में है l बड़ा वह कहलाता है जो अच्छे कर्म करता है l कोई धर्म के आधार पर बड़ा नहीं होता l कहने को खजूर का पेड़ भी बड़ा होता है , पर उससे किसी की भलाई नहीं होती है लेकिन तुलसी का पौधा बहुत छोटा होते हुए भी बहुत उपयोगी है , अनेक रोगों का नाश कर देता है l यदि बड़प्पन और महानता का आकलन करना हो तो व्यक्ति के कर्मों को देखो , वह किस संप्रदाय या मजहब को मानता है --- इससे उसके बड़प्पन का मूल्यांकन मत करो l " उस व्यक्ति ने फिर पूछा ---- " क्या अच्छे कर्म करने के लिए किसी धर्म को मानना जरुरी नहीं है ? " गुरु नानक जी बोले ---- " अच्छा कर्म करना ही धर्म है l अच्छे कर्म करने वालों को किसी धर्म को मानने की आवश्यकता नहीं है l "
23 September 2020
WISDOM -----
दो आचार्य परस्पर वार्तालाप कर रहे थे l एक ने दूसरे से पूछा --- " उन्हें मूर्ख , परन्तु विनम्र शिष्य पसंद हैं अथवा बुद्धिमान , किन्तु अहंकारी l " आचार्य ने उत्तर दिया --- " जो मूर्ख है उसे समझाया जा सकता है , किन्तु जो विशेषज्ञ , परन्तु अहंकारी है , उसे ब्रह्मा भी रास्ते पर नहीं ला सकते l " विश्व का इतिहास ऐसे ही अहंकारियों की गाथा से भरा पड़ा है जिन्होंने अपने अहंकार के कारण सामान्य जन को बेकसूर मरने पर मजबूर कर दिया l यह सत्य है कि प्रत्येक प्राणी इस संसार में जीना चाहता है , कोई नहीं चाहता कि उसके बच्चे अनाथ हो जाएँ , उसका परिवार बेसहारा हो जाये , यह धरती अनाथों , विधवाओं , अपाहिजों और बीमारों के करुण क्रंदन से भर जाये l केवल कुछ लोगों के अहंकार , महत्वाकांक्षा और स्वार्थ का दुष्परिणाम संसार को भुगतना पड़ता है l यह जानते हुए भी कि मृत्यु निश्चित है , इस धरती से एक तिनका भी साथ नहीं ले जा सकते , फिर भी निर्दोष जनता को कष्ट व मुसीबत में डालकर लोग स्वयं अपने जीवन को कलंकित करते हैं
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- ' स्वार्थी व अहंकारी व्यक्ति कभी सुखी व संतुष्ट नहीं हो सकता क्योंकि उसके मन में सदैव कुछ पाने की इच्छा बनी ही रहती है l स्वार्थ के साथ अहंकार , ईर्ष्या , द्वेष आदि अवगुण स्वत: ही जुड़ जाते हैं l अहंकार कभी भी थोड़े से संतुष्ट नहीं होता , बल्कि वह तो और अधिक , सबसे अधिक , सर्वश्रेष्ठ की अपेक्षा रखता है l इसी कारण व्यक्ति में ईर्ष्या , द्वेष का उदय होता है , जो दूसरों के शोषण का कारण बनता है और इसी से उत्पन्न होती है भाव शून्यता l आज मनुष्य इसी भावशून्यता की स्थिति में जी रहा है l ' प्रेम , दया , त्याग का स्थान स्वार्थ , अहंकार व ईर्ष्या , द्वेष ने ले लिया है l " आचार्य श्री लिखते हैं --- ' अहंकारी व्यक्ति समाज की उपेक्षा कर अपने लिए सुख के साधन तो जुटा सकता है किन्तु जीवन को सुखी नहीं बना सकता l जीवन में सब कुछ होते हुए भी सुख , शांति व संतुष्टि नहीं होती l '