लघु -कथा ------ बूढ़े और अशक्त सियार का पेट भरना मुश्किल हो गया l उसे एक तरकीब सूझी l वो चूहों के बिल के समीप जाकर एक पैर के बल तपस्वी की मुद्रा बनाकर खड़ा हो गया l कंठी माला पहने आसमान की ओर मुंह फाड़े एक पैर पर बिल के द्वार पर सियार को खड़ा देखकर चूहों का मुखिया ठिठका l घबराया कि ये क्या नई मुसीबत आ गई l सोचने लगा कि अब परिवार को बचाने हेतु यहाँ से भागना पड़ेगा l फिर साहस बटोर कर चूहों का सरदार सियार के पास जाकर बोला --- " आप कौन हैं ? हवा में मुंह फैलाये एक टांग पर क्यों खड़े हैं ? " कपटी सियार मीठे स्वर में बोला ----- " शांत रहो बच्चा , तप में विध्न नहीं डालो l हम दंडक वन से आये हैं , क्षुद्र जीवों के कल्याण हेतु तप में रत हैं l देखते नहीं हमारी क्रष काया तप करते -करते सूख गई है l " चूहे ने पूछा ---- ' आसमान की ओर मुंह फाड़ने से आपका क्या प्रयोजन ? ' सियार ने उत्तर दिया --- " हम तपस्वी हैं , पौहारी हैं , भोजन नहीं करते , मात्र वायु के सहारे जीते हैं l " चूहा सरदार ने साथियों को महात्मा का मंतव्य सुनाया , सब चूहे निश्चिन्त हो गए l कुछ समय बाद चूहों की संख्या घटती देख मूषक सरदार ने पूछा क्या हमारे कुछ सदस्य बाहर चले गए हैं , पहले तो बिल में खड़े होने की जगह भी मुश्किल थी l बूढ़े का माथा ठनका , कहीं ये छद्दम वेशी महात्मा बन्ने वाला सियार ही तो हमारे सदस्यों को नहीं खा जाता ? छिपकर देखा तो ज्ञात हुआ कि प्रतिदिन लौटते झुण्ड में से अंतिम सदस्य को अँधेरे में कपटी सियार चटकर जाता है l चूहों के सरदार ने सिर पीट लिया और पछताया गलती मैंने की है l छद्दम वेश और उसकी मीठी बातों से प्रभावित होकर मैंने ही अपने परिवार का नाश कराया है l इस कथा की यही शिक्षा है कि हम जागरूक हों , कहीं ऐसे छद्दम वेशधारी लोगों की बातों में आकर हम अपना , अपने परिवार और समाज का अहित तो नहीं कर रहे ?