8 August 2021

WISDOM ------

   इस  दुनिया  में  सुखी  और  संतुष्ट  जीवन  जीने  के  लिए   हमें  जीवन  जीने  की  कला   सीखनी  चाहिए  l   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी    मानव  मन  के  मर्मज्ञ  थे  ,  उन्होंने   अपने   साहित्य  से  हमें  जीवन  जीने  की   कला  सिखाई   l   उनका   कहना  है  ---- ' दूसरों   द्वारा  किए   जाने  वाले  व्यवहार  पर  ,  उनके  विचारों  और  कार्यों  पर   हमारा  नियंत्रण  नहीं  हो  सकता  ,  लेकिन     हम    स्वयं    के   व्यवहार ,  विचार  और   कार्यों  पर  नियंत्रण  जरूर  कर  सकते  हैं   l  '  आचार्य श्री  लिखते  हैं  ---- ' व्यावहारिक  जीवन  में  हम  किसी  भी  व्यक्ति  की   बुराई  के  कारण    उस  व्यक्ति   से  ही  घृणा  व  नफरत  करने  लगते  हैं  ,  उसके  प्रति  नकारात्मक  सोचने  लगते  हैं  ,  उससे  क्रोधित  होते  हैं  ,  उसे  नुकसान  पहुँचाने  की  कोशिश   करते  हैं  ,  यह  सब  अपने  मन  में  करते  हैं   l   ये  सब  कलुषित  भावनाएं  मन  में  होने  के  कारण   हमें  ही  ज्यादा  नुकसान  पहुंचती  हैं   l   इन  सबके  कारण   दूसरे  व्यक्तियों  का  कोई  नुकसान  नहीं  होता  ,  बल्कि  हमारा  अंतर्मन  इनकी  आग   से  जलने  लगता  है   और  अशांत  होने  लगता  है   l   हमारी  ही  शांति  हाहाकार  में  तब्दील  हो  जाती  है   l    ऐसी  कलुषित  मन: स्थिति  में  हम  परमात्मा  से  दूर   हो  जाते  हैं    और  कुछ  भी  अच्छा  कर  पाने  की  स्थिति  में  नहीं  होते   l  "                      आचार्य श्री  लिखते  हैं  ----- "  यदि  किसी  को  हम  अपना  अच्छा  मित्र  नहीं  बना  सकते ,   तो  उसे    अपना  शत्रु  भी  नहीं  बनाना  चाहिए   l   यदि  हमारे  जीवन  में   ऐसे  लोग  हैं   ,  जो  हमें  अच्छे  नहीं  लगते   तो  हमें  इन  व्यक्तियों  से  लड़ने  के  बजाय  उनसे  निश्चित  दूरी  बना  लेनी  चाहिए  ,  अर्थात  मन  से  उन  सीमाओं  को   निश्चित  करना  चाहिए  ,  जिससे  हमें  व्यक्ति  विशेष  के  साथ  कटु  व्यवहार  करने  के  लिए  विवश  न  होना  पड़े   l   हम  दूसरों  को   सुधारने   के  बजाय  स्वयं  को  सुधारें   l  अच्छा  साहित्य  पढ़ें  और  ऐसे  कर्म  करें  कि   जीवन  से  अंधकार , नकारात्मकता  दूर  हो   और   जीवन  में   सकारात्मकता ,  परमात्मा  का  प्रकाश  आए   l  "

WISDOM ------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  कहते  हैं  ----- "   सुख   बाँटने   वाली  ,    दुःख  बँटाने   वाली    जीवन  की  एक  ही  विभूति  है   ---- संवेदना   l   आज  चारों  तरफ   यही  सूखती  जा  रही  है   l   इसके  अभाव  में  मनुष्य  स्वार्थ  केंद्रित   ,  अहं   केंद्रित   हो  गया  है   l   यदि  मनुष्य  की  मुरझाई   जिंदगी  को   फिर  से  हरा - भरा  करना  है   तो  उसे  संवेदनशील  सृजन  से  सींचना  होगा    l   निष्ठुरता , एकाकीपन  ,  अलगाव  से  भरे   आज  के  समाज  में   सतयुगी  संभावनाएं   तभी  साकार  होंगी   जब  मनुष्य  के  भीतर  संवेदना  जागेगी   l   जिस  दिन  मानव  के  अंदर  मानवीय  संवेदना  जग  जाएगी  ,  उसी  दिन   मानव  जीवन  का  स्वर्ण युग  आएगा   l