एक साधक जब भी पूजा में बैठता , तभी बुरे विचार उसके मन में उठते l वह गुरु से इसका हल पूछने गया l गुरु ने उसे एक कुत्ते की सेवा करने का आदेश दिया , दस दिन तक वह उनके आश्रम में ही ठहरा l शिष्य कारण तो नहीं समझ सका , पर गुरु के आदेशानुसार कुत्ते की सेवा करने लगा l दस दिन कुत्ते को साथ रखने से वह उसके साथ बहुत हिल -मिल गया l अब गुरु ने आज्ञा दी कि इसे भगाकर आओ l साधक भगाने जाता , लेकिन वह कुत्ता फिर उसके पीछे -पीछे लौट आता l तब गुरु ने समझाया कि जिन बुरे विचारों में तुम दिन भर डूबे रहते हो , वे पूजा के समय तुम्हारा साथ क्यों छोड़ने लगे ? शिष्य की समझ में बात आ गई और उसने दिन भर अच्छे विचार करते रहने की साधना शुरू कर दी l गुरु ने कहा --- ध्यान का अर्थ मात्र एकाग्रता नहीं , श्रेष्ठ विचारों की तन्मयता भी है l श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान ने कहा है कि निष्काम कर्म से मन निर्मल होता है , कर्म कटते हैं , जन्मों के पाप धुल जाते हैं और धीरे -धीरे एक समय ऐसा आता है कि बुरे विचारों का आना बंद हो जाता है l अध्यात्म -पथ पर धैर्य की जरुरत है l