नशा चाहे धन का हो , पद का हो या शराब का हानिकारक है l ' सत्ता का नशा संसार की सौ मदिराओं से भी अधिक होता है l उसकी बेहोशी सँभालने में एकमात्र आध्यात्मिक द्रष्टिकोण ही समर्थ हो सकता है l अन्यथा भौतिक भोग का द्रष्टिकोण रखने वाले असंख्य सत्ताधारी संसार में पानी के बुलबुलों की तरह उठते और मिटते रहे हैं और इसी प्रकार बनते और मिटते रहेंगे l '
पुराण की यह कथा बताती है कि व्यक्ति चाहे धरती पर हो अथवा स्वर्ग में , यदि उसमे अहंकार पैदा हो गया है तो उसकी बुद्धि , दुर्बुद्धि बदल जाती है l दुर्बुद्धि ग्रस्त व्यक्ति स्वयं ही अपने नाश का जिम्मेदार होता है -------
त्वष्टा का वध करने के कारण इंद्र को पाप लगा l तपस्या करने का आदेश मिला l नहुष को इंद्र बनाया गया l इन्द्रासन पाते ही उसमे अहंकार आ गया l बोला --- " अब मैं इंद्र हूँ , इसलिए शची को मेरी सेवा में भेजो , वह इन्द्राणी है l "
शची ने युक्ति से काम लिया और कहला भेजा कि---' यदि नहुष पालकी में बैठकर जिसे सप्त ऋषि ढोयें, उसके महल में आयें तो वह उनका आदेश स्वीकार करेंगी l "
एक तो सत्ता का नशा और कामांध , उसने सप्त ऋषियों को पालकी ढोने का आदेश दिया और पालकी में बैठकर शची से मिलने चला l व्याकुलता इतनी कि उसने अगस्त्य ऋषि को एक लात मारी और कहा ---- सर्प - सर्प , तेज चलो , तेज l " ऋषियों को क्रोध आ गया , उन्होंने पालकी पटक दी और कहा --- " मूर्ख राजा ! जा तू सर्प बनकर धरती पर जन्म ले और कोटर में निवास कर l तेरी यही सजा है l "
अहंकारी व्यक्ति अपना ही अहित कर लेता है l
पुराण की यह कथा बताती है कि व्यक्ति चाहे धरती पर हो अथवा स्वर्ग में , यदि उसमे अहंकार पैदा हो गया है तो उसकी बुद्धि , दुर्बुद्धि बदल जाती है l दुर्बुद्धि ग्रस्त व्यक्ति स्वयं ही अपने नाश का जिम्मेदार होता है -------
त्वष्टा का वध करने के कारण इंद्र को पाप लगा l तपस्या करने का आदेश मिला l नहुष को इंद्र बनाया गया l इन्द्रासन पाते ही उसमे अहंकार आ गया l बोला --- " अब मैं इंद्र हूँ , इसलिए शची को मेरी सेवा में भेजो , वह इन्द्राणी है l "
शची ने युक्ति से काम लिया और कहला भेजा कि---' यदि नहुष पालकी में बैठकर जिसे सप्त ऋषि ढोयें, उसके महल में आयें तो वह उनका आदेश स्वीकार करेंगी l "
एक तो सत्ता का नशा और कामांध , उसने सप्त ऋषियों को पालकी ढोने का आदेश दिया और पालकी में बैठकर शची से मिलने चला l व्याकुलता इतनी कि उसने अगस्त्य ऋषि को एक लात मारी और कहा ---- सर्प - सर्प , तेज चलो , तेज l " ऋषियों को क्रोध आ गया , उन्होंने पालकी पटक दी और कहा --- " मूर्ख राजा ! जा तू सर्प बनकर धरती पर जन्म ले और कोटर में निवास कर l तेरी यही सजा है l "
अहंकारी व्यक्ति अपना ही अहित कर लेता है l