23 March 2013

व्यक्ति धर्म -उपदेशक हो अथवा विद्वान मनीषी ,वह अपने आप को कितना तपा सका ,इस पर उसकी आन्तरिक वरिष्ठता निर्भर है | संत राबिया जंगल में तप कर रहीं थीं | पशु -पक्षी उनके इर्द -गिर्द बैठे हंस खेल रहे थे | हसन उधर से निकले ,उन्हें भी पहुंचा हुआ संत माना जाता था | हसन जैसे ही राबिया के नजदीक पहुंचे ,सारे पशु -पक्षी उन्हें देखते ही भाग खड़े हुए | उन्हें अचम्भा हुआ ,उन्होंने राबिया से पूछा -जानवर परिन्दे तुम्हारे इतने नजदीक रहते हैं और मुझे देखकर भागते हैं ,इसका क्या कारण है ?राबिया ने पूछा -आप खाते क्या हैं ?हसन ने कहा -अधिकांशत:गोश्त ही खाने को मिलता है | राबिया हंस पड़ी | लोग आप को जो भी समझें उनकी मर्जी | पर आपका दिल कैसा है ,उसे यह नासमझ जानवर अच्छी तरह जानते हैं |
गायत्री मन्त्र
गायत्री विद्दा ही प्राण विद्दा है | 24 अक्षरों वाले गायत्री महामंत्र में प्राण विद्दा का समस्त विज्ञान -विधान निहित है | सूर्य ही समस्त स्रष्टि के प्राणों का आदि स्रोत है | सभी जीवधारी ,वृक्ष -वन


 स्पति इसी से प्राणों का अनुदान पाते हैं | इसी की प्रचंड ऊर्जा प्रखर प्राण चेतना बनकर समूचे ब्रह्मांड में संव्याप्त रहती  है और गायत्री महामंत्र के उपास्य ही सविता देव हैं | गायत्री महामंत्र ही स्रष्टि एवं जीवन का सार है | गायत्री महामंत्र का जप एवं सवि        

ता देव का ध्यानही प्राण को सुपुष्ट ,मन को सतेज ,इंद्रियों को सचेतन ,ह्रदय को पवित्र एवं जीवन को बलवान बनाता है |