3 August 2022

WISDOM -----

   , जो  ईश्वर  से  भय  खाता  है  उसे  दूसरा  भय  नहीं  सताता  l '   अध्यात्मवेत्ताओं     के  अनुसार  --- संकीर्ण  स्वार्थ , वासना  और  अहं  से   युक्त  अनैतिक  जीवन   भय  का  प्रमुख  कारण  है   l  भय  का  सबसे  घ्रणित  पहलू   अपने  स्वार्थ  के  लिए  ,  दूसरों  पर  छाये  रहने  की   भावना  से   अधीनस्थ  लोगों  का  शोषण  करना  है  l                          ईश्वर  विश्वास  में  बहुत  शक्ति  होती  है    लेकिन  कलियुग  में  यह  मनुष्य  की  दुर्बुद्धि  है  कि  विज्ञानं  में  इतनी  तरक्की  कर  के  मनुष्य  स्वयं  को  भगवान  समझने  लगा  है  l   लेकिन  सत्य  यह  है  कि  आज  मनुष्य  आंतरिक  रूप  से  बहुत  कमजोर  और  भयभीत  है   l  मनुष्य  की  मानसिक  कमजोरियां  ही  उसके  भय  का  कारण  हैं  l  वैराग्य शतक  में  भतृहरि   ने  भय  की  सूक्ष्म  स्थिति  का   विशलेषण  किया  है   कि  ----- भोग  में  रोग  का  भय ,  सत्ता  में  शत्रुओं  का  भय ,  धन  में  चोरी  होने  का  भय  ,  सौन्दर्य  में  बुढ़ापे  का  भय  ,  शरीर  में  मृत्यु  का  भय   l  इस  तरह  संसार  में  सब  कुछ  भय  से  युक्त  है   l  उनके  अनुसार  त्याग  का  मार्ग  निर्भयता  की  अवस्था  की  ओर  ले  जाता  है   l    

WISDOM ------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- ध्वंस  सरल  है  l  उसे  छोटी  चिनगारी   एवं  सड़ी  कील  भी  कर  सकती  है  l  गौरव  सृजनात्मक  कार्यों  में  है  l  मनुष्य  का  चिंतन  और  प्रयास  सृजनात्मक  प्रयोजनों  में  ही  निरत  रहना  चाहिए  l  '    आचार्य श्री  लिखते  हैं   कि  अहंकार  और  अति  महत्वाकांक्षा      व्यक्ति   के    विवेक  का  हरण  कर  लेते  हैं  ,  उसकी  बुद्धि ,   दुर्बुद्धि  में  बदल  जाती  है    और  वह   गलत  राह  पर  चल  देता  है   l                     इतिहास  में  ऐसे  अनेक  उदाहरण  हैं    जैसे ----- सिकन्दर  शक्तिमंत  था  ,  सारे  विश्व  को  अपने  पैरों   तले लाने  की  महत्वाकांक्षा   उस  पर  प्रेत  की  तरह  सवार   हो  गई  ,  जिसने  उसे  आततायी  बना  दिया  l   स्वयं  को  विश्व विजेता  सिद्ध  करने  के  लिए   उसने   असंख्यों  का  रक्त  बहाया  ,  कितनी  ही  माताओं  की  गोद  सूनी  कर  दी ,  कितने  ही  बच्चों  को  अनाथ  कर  दिया   l  न  स्वयं  चैन  से  बैठा ,   न  अपने  सैनिकों  को  चैन  से  बैठने  दिया   और  न  ही    दूसरे  राजाओं  को    l   आचार्य श्री  लिखते  हैं ----- ' केवल  स्वार्थ  और  मिथ्याभिमान  से   प्रेरित  होकर   किया  गया  काम   कितना  ही  बड़ा  क्यों  न  हो    न  तो  उस  व्यक्ति  को  ही  सुखी  और  संतुष्ट  कर  सकता  है   और  न  मानव  समाज  को  ही  कुछ  दे  सकता  है   l  '  जब  उसके  जीवन  का  अंतिम  समय  आया  तो  वह  विक्षिप्त  सा  हो  गया  l  विचारों  से  मुक्त  होने  के  लिए  उसने  शराब  का  सहारा  लिया  l  कोई   कितना  ही  बड़ा  अजेय  योद्धा  हो  ,  क्या  मृत्यु  से  कोई  बचा  है  ?