10 January 2021

WISDOM ------

  एक  राज्य  में  एक  दानी  राजा  रहा  करते  थे   l   उनके  महल  में  हर  समय  याचकों  की  भीड़  लगी  रहती  थी  l   एक  बार  एक  संत   उस  राज्य  में  पधारे  l   उन्हें  राजा  की   दानी  प्रवृति  के  विषय  में  पता  चला   तो  वे  राजा  से  मिलने  पहुंचे  l   राजा  ने  उनका  यथोचित  स्वागत - सत्कार  किया   और  पूछा  ---- " महात्मन  !  मैं  आपकी  क्या  सेवा    कर  सकता  हूँ   ? "  संत  बोले  ----- " राजन  !  आप  दानवीर  हैं  ,  यह  स्वयं  एक  धार्मिक  गुण   है  ,  परन्तु   उसके  साथ  आप  एक  राजा   भी  हैं  ,  इसलिए  आपको  राजधर्म  भी  याद  दिलाने  आया  हूँ   l   आपसे  बिना  परिश्रम   दान  का  धन  पाकर   आपकी  प्रजा  श्रम  से  विमुख  होकर   आलसी  बन  गई  है   और  यों   ही   दान  पा  लेने  से  उनके  जीवन  में   कोई  सार्थक  परिवर्तन   भी  नहीं   आ   पा  रहा  है   l   इससे  अच्छा  है  आप  उन्हें  रोजगार  के  साधन  उपलब्ध  कराएं  l  "  राजा  को  संत  की  बात  समझ  में  आ  गई  और  उन्होंने  वही  पथ  अपना  लिया   l 

WISDOM -----

   संत  कबीरदास जी  कहते  हैं ---- ' बुरा  जो  देखन  मैं  चला ,  बुरा  न   मिलिया  कोय  l   जो  दिल  खोजा   आपना ,  मुझ - सा    बुरा  न   होय  l   हम  व्यर्थ  ही  दूसरों  के  दोष   ढूंढ़ने   में  लगे  रहते  हैं  l   सबसे  पहले  हमें  स्वयं   के  दोषों   को  देखना  चाहिए   l   महाभारत  में  एक  कथा  है  ---  ' एक  बार  शास्त्र   शिक्षा  देते  समय   आचार्य  द्रोण   के  मन  में    दुर्योधन  व  युधिष्ठिर   की  परीक्षा  लेने   का मन  हुआ  l   उन्होंने  सोचा  क्यों  न  इनकी  व्यावहारिक  बुद्धि  की  परीक्षा  ली  जाये   ?  "  दूसरे  दिन  आचार्य  ने   दुर्योधन  को  अपने  पास  बुलाकर  कहा  --- " वत्स  !  तुम  समाज  में  अच्छे  आदमी  की  परख  करो    और  वैसा  एक   व्यक्ति  खोजकर    मेरे  सामने  उपस्थित  करो  l  "   दुर्योधन  ने  कहा --- " जैसी  आज्ञा  l "  और  वह  अच्छे  आदमी  की  खोज  में  निकल  पड़ा  l   कुछ  दिनों  बाद   दुर्योधन   आचार्य द्रोण    के पास  आकर  बोला  ---- "  गुरुदेव  मैंने  कई  नगरों  और  गाँवों   का  भ्रमण  किया   परन्तु  कहीं  भी   कोई   अच्छा   आदमी नहीं  मिला  l    इस  कारण  मैं  किसी  को   आपके  पास  नहीं  ला  सका  l "  इसके  बाद  आचार्य  ने   युधिष्ठिर   को  अपने  पास  बुलाया  और  कहा --- "  बेटा  !   तुम  कहीं  से    कोई  बुरा  आदमी    खोज  कर     ला    दो  l "  युधिष्ठिर  ने  कहा --- "  ठीक  है  गुरुदेव   !  मैं  प्रयत्न  करता  हूँ   l "  इतना  कहकर  वे   बुरे  आदमी  की  खोज  में  निकल  पड़े  l   काफी  दिनों  बाद    युधिष्ठिर   आचार्य  द्रोण   के  पास  लौटे  l  आचार्य  ने  युधिष्ठिर  से  पूछा  --- " किसी  बुरे  आदमी  को  अपने  साथ  लाए  ? '  युधिष्ठिर  ने  कहा  ---- " गुरुदेव  !  मैंने  सब  जगह  बुरे  आदमी  की  खोज  की  ,  पर  मुझे  कोई  भी  बुरा  आदमी  नहीं  मिला  l   इस  कारण  मैं  खाली   हाथ  लौट  आया   l  "  शिष्यों  ने  पूछा  ---- " गुरुवर  !  ऐसा  क्यों  हुआ  कि   दुर्योधन  को  कोई  अच्छा  आदमी   नहीं मिला    और  युधिष्ठिर  किसी  बुरे  व्यक्ति  को   नहीं   खोज   सके   ? "    आचार्य  द्रोण   बोले  ---- " जो  व्यक्ति  जैसा  होता  है  ,  उसे  सारे  लोग   वैसे  ही   दिखाई  पड़ते  हैं  l   इसलिए  दुर्योधन  को  कोई   अच्छा  व्यक्ति  नहीं  दिखा   और  युधिष्ठिर    को  कोई    बुरा   आदमी नहीं  मिल  सका  l "  वास्तव  में  हमें   संसार वैसा  ही   दिखाई   देता  है  ,  जैसा  हमारा  देखने  का  नजरिया  होता  है   l